Uttar Pradesh

StateCommission

A/487/2016

Nalin Lachan Shukla - Complainant(s)

Versus

Allahabad Bank - Opp.Party(s)

Rajiv Narain Pandey

11 Sep 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/487/2016
(Arisen out of Order Dated 02/02/2016 in Case No. C/148/2013 of District Faizabad)
 
1. Nalin Lachan Shukla
Faizabad
...........Appellant(s)
Versus
1. Allahabad Bank
Faizabad
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 11 Sep 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-487/2016

(सुरक्षित)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, फैजाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या 148/2013 में पारित आदेश दिनांक 02.02.2016 के विरूद्ध)

1. Nalin Lachan Shukla, aged about 43 years, Son of                 

   Ram Abhilakh Shukla.

2. Rajeev Lochan Shukla, aged about 53 years,  Son             

   of Ram Abhilakh Shukla.

   Resident of House no. 5/19/157 Beniganj,  Deokali            

   Marge   Pergana – Haveli  Avadh,  Post - Deokali        

   District-Faizabad.             

                        .................अपीलार्थीगण/परिवादीगण

बनाम

The Allahabad Bank, Branch Deokali District-Faizabad

Through its branch Manager.

                                 ................प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : अपीलार्थी सं01, स्‍वयं।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री साकेत मिश्रा,

                          विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक: 24.10.2017

 

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत यह अपील राज्‍य आयोग के समक्ष परिवाद संख्‍या-148 वर्ष 2013 सावित्री शुक्‍ला व दो अन्‍य बनाम शाखा प्रबन्‍धक इलाहाबाद बैंक देवकाली फैजाबाद में जिला फोरम, फैजाबाद द्वारा पारित निर्णय व आदेश दिनांक 02.02.2016 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी                   है।

 

 

-2-

आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्‍त कर दिया है। अत: परिवाद के परिवादीगण नलिन लोचन शुक्‍ला व राजीव लोचन शुक्‍ला ने क्षुब्‍ध होकर यह अपील प्रस्‍तुत की है।

अपीलार्थीगण की ओर से अपीलार्थी संख्‍या-1 श्री नलिन लोचन शुक्‍ला उपस्थित आए। प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री साकेत मिश्रा उपस्थित आए।

मैंने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया है।

अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादीगण ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उनका और उनकी माता का खाता प्रत्‍यर्थी/विपक्षी बैंक की शाखा में है। उनकी माता ने अपने खाता से 2,10,000/-रू0 अपीलार्थी संख्‍या-2 के खाता में और 1,10,000/-रू0 अपीलार्थी संख्‍या-1 के खाता में डाला, परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/विपक्षी बैंक की शाखा देवकाली के ब्रांच मैनेजर ने तीसरे पक्ष की शिकायत पर अपीलार्थी/परिवादीगण एवं उनकी माता को विश्‍वास में लिये बिना अपीलार्थी/परिवादीगण का खाता सीज कर दिया है, जो गैर कानूनी है। अपीलार्थी/परिवादीगण ने अपने खातों को बहाल करने हेतु प्रार्थना पत्र बैंक में दिया, परन्‍तु कोई कार्यवाही नहीं हुई। अत: अपीलार्थी/परिवादीगण ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

 

 

-3-

प्रत्‍यर्थी/विपक्षी बैंक ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्‍तुत किया है और कहा है कि अपीलार्थी/परिवादीगण की माता सावित्री शुक्‍ला ने दिनांक 18.04.2013 को जिलाधिकारी को शिकायती प्रार्थना पत्र दिया, जिसके आधार पर जिलाधिकारी ने दूरभाष के माध्‍यम से अपीलार्थी/परिवादीगण का खाता सीज करने का आदेश दिया है, जिसके अनुपालन में बैंक ने खाता सीज किया है। अत: जब तक अपीलार्थी/परिवादीगण सक्षम अधिकारी का आदेश बैंक में नहीं लाते हैं तब तक खाता का संचालन सम्‍भव नहीं है।

जिला फोरम ने उभय पक्ष के कथन पर विचार कर निष्‍कर्ष निकाला है कि वर्तमान परिवाद में उपभोक्‍ता विवाद नहीं है। अत: जिला फोरम ने परिवाद इसी आधार पर निरस्‍त किया है।

अपीलार्थीगण की तरफ से अपीलार्थी संख्‍या-1 का तर्क है कि जिलाधिकारी को मौखिक आदेश से खाता अनिश्चित काल के लिये सीज करने का अधिकार नहीं है। अत: बैंक ने अपीलार्थीगण के खातों को जिलाधिकारी के मौखिक आदेश से जिस ढंग से सीज किया है वह विधि विरूद्ध है और सेवा में कमी है व अनुचित व्‍यापार पद्धति है। अत: अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद  स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है। जिला फोरम का निर्णय त्रुटिपूर्ण             है।

प्रत्‍यर्थी बैंक के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला‍ फोरम का निर्णय उचित है। इसमें किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है।

 

 

-4-

मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

प्रत्‍यर्थी के लिखित कथन से स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थीगण की माता सावित्री शुक्‍ला के शिकायती प्रार्थना पत्र पर जिलाधिकारी के निर्देश पर अपीलार्थीगण का खाता सीज किया गया है। सावित्री शुक्‍ला के शिकायती प्रार्थना पत्र में उल्लिखित विवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की परिधि से बाहर है। अत: इस शिकायती प्रार्थना पत्र में अंकित विवाद पर जिला फोरम निर्णय नहीं दे सकता है।

उल्‍लेखनीय है कि अपीलार्थी/परिवादीगण ने परिवाद में सावित्री शुक्‍ला को परिवादिनी संख्‍या-1 बनाकर परिवाद उनकी तरफ से भी प्रस्‍तुत किया था, परन्‍तु परिवाद पत्र पर उनका हस्‍ताक्षर या निशानी अगूंठा नहीं है और परिवाद के लम्बित रहते हुए अपीलार्थी/परिवादीगण ने सावित्री शुक्‍ला का नाम परिवाद से Delete कर दिया है। अत: अब श्रीमती सावित्री शुक्‍ला परिवाद में पक्षकार नहीं हैं। अत: इस कारण भी अपीलार्थी/परिवादीगण या उनके खातों के सम्‍बन्‍ध में उनकी माता श्रीमती सावित्री शुक्‍ला की शिकायत के सम्‍बन्‍ध में वर्तमान परिवाद में कोई निष्‍कर्ष अंकित नहीं किया जा सकता है।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर स्‍पष्‍ट है कि जिला फोरम ने परिवाद निरस्‍त कर गलती नहीं की है। अपीलार्थी/परिवादीगण विधि के अनुसार सक्षम न्‍यायालय या अधिकारी के समक्ष कार्यवाही करने हेतु स्‍वतंत्र हैं। अत: अपील अपीलार्थी/परिवादीगण को इस  छूट  के

 

 

                        -5-

साथ निरस्‍त की जाती है कि विधि के अनुसार सक्षम न्‍यायालय या अधिकारी के समक्ष वे कार्यवाही करने हेतु स्‍वतंत्र हैं।

अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 

 

    (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)

                           अध्‍यक्ष

 

जितेन्‍द्र आशु0                        

कोर्ट नं0-1            

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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