राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :492 /2012
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, गाजीपुर द्वारा परिवाद संख्या-167/2011 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28-02-2012 के विरूद्ध)
- माया देवी पत्नी स्व0 रमेश सिंह यादव सा0 सद्धीपुर पो0 गांधीनगर जिला गाजीपुर।
- दिनेश उम्र लगभग 13 वर्ष, नाबा0 पुत्र स्व0 रमेश सिंह यादव।
- अवधेश उम्र लगभग 09 वर्ष, नाबा0 पुत्र स्व0 रमेश सिंह यादव।
- दीपक उम्र लगभग 05 वर्ष, नाबा0 पुत्र स्व0 रमेश सिंह यादव।
- सरोज, उम्र लगभग 15 वर्ष, नाबा0 पुत्र स्व0 रमेश सिंह यादव।
- वंदना उम्र लगभग 10 वर्ष, नाबा0 पुत्र स्व0 रमेश सिंह यादव।
- साधना उम्र लगभग 07 वर्ष, नाबा0 पुत्र स्व0 रमेश सिंह यादव।
द्वारा संरक्षिका माता मायादेवी पत्नी स्व0 रमेश सिंह यादव सा0 सद्धीपुर पो0 गांधी नगर जिला गाजीपुर, उ0प्र0
अपीलार्थीगण
बनाम्
- इलाहाबाद बैंक शाखा महेन्द द्वारा शाखा प्रबंधक, गाजीपुर जिला गाजीपुर।
प्रत्यर्थी
समक्ष :-
1- मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री कुमार संभव।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक :
मा0 श्रीमती बाल कुमारी द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-167/2011 माया देवी व अन्य बनाम् इलाहाबाद बैंक में जिला फोरम, गाजीपुर द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 28-02-2012 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनतर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने निम्न आदेश पारित किया है-
‘’ परिवादिनी का परिवाद खारिज किया जाता है। परिस्थितियों के अधीन, उभयपक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।‘’
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संक्षेप में इस केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति रमेश सिंह यादव किसान थे और अपने जीवनकाल में वे विपक्षी से, के0सी0सी0 नम्बर-1256 के द्वारा दिनांक 19-08-2009 को रू0 80,000/- तथा के0एस0वाई नं0-10244 से रू0 2,00,000/-रू0 का ऋण सुविधा प्राप्त किया था। दिनांक 29-10-2009 को दो पक्षों के बीच मारपीट हो रही थी और परिवादिनी के पति बीच-बचाव कर रहे थे इसी बीच एक पक्ष ने पीछे से उनके सिर पर घातक बार किया जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गयी। परिवादिनी के पति किसान थे और सरकार द्वारा चलाये जा रहे किसान दुर्घटना बीमा योजना का लाभ पाने के पात्र थे। सरकार की यह व्यवस्था थी कि यदि किसी भी किसान की मृत्यु दुर्घटना मे होती है तो उसे रू0 1,00,000/- का दुर्घटना बीमा लाभ दिया जायेगा। परिवादिनी के पति का दुर्घटना बीमा कराने का दायित्व बैंक का था। प्रतिपक्षी ने आश्वासन दिया कि उसके पति का बीमा करा दिया जायेगा। रमेश सिंह की मृत्यु के बाद परिवादिनी ने तत्काल उसकी मृत्यु की सूचना प्रतिपक्षी को दिया किन्तु प्रतिपक्षी ने परिवादिनी के बीमा के संबंध में कोई उत्तर नहीं दिया बल्कि यह कहा कि पूर्व प्रबंधक का स्थानान्तरण हो गया है। जबतक सम्पर्क नहीं होगा तबतक बीमा की राशि नहीं दी जायेगी। परिवादिनी ने दिनांक 11-05-2010 को सारे प्रपत्रों के साथ पत्र लिखकर विपक्षी को भेजा, जिसके उत्तर में शाखा प्रबंधक ने दिनांक 07-05-2011 को पत्र दिया, जिसमें इस तथ्य का उल्लेख किया कि बीमा क्लेम की राशि हेतु सहायक महाप्रबंधक को लिखा गया है। प्रतिपक्षी ने कभी भी स्पष्ट नहीं बताया कि स्व0 रमेश सिंह यादव का दुर्घटना बीमा कराया गया है या नहीं। ऐसी स्थिति में प्रतिपक्षी किसान बीमा दुर्घटना लाभ की धनराशि देने के लिए उत्तरदायी है।
प्रतिपक्षी की ओर से परिवादिनी के परिवाद का विरोध किया गया और प्रतिवाद पत्र 28 क प्रस्तुत किया गया, जिसमें यह स्वीकार किया गया कि परिवादिनी के पति रमेश सिंह यादव, किसान क्रेडिट कार्ड धारक थे। के0सी0सी0 नं0-1256 संस्वीकृति सीमा 80,000/-रू0 तथा के0सी0वाई0 नम्बर-10244 धनराशि रू0 2,00,000/- अवधि दिनांक 2-07-2009 से समाप्ति 01-07-212 तक के लिए ऋण सीमा स्वीकत थी। परिवादिनी के पति रमेश सिंह यादव किसान दुर्घटना बीमा नहीं कराये थे। प्रतिपक्षी बैंक ने इस संदर्भ में, रमेश सिंह यादव को बीमा करानेके लिए निर्देश भी दिया था। इसके बावजूद उसने बीमा कराने से इंकार करते हुए बैंक को यह आश्वासन दिया कि वह खेती का कार्य करके, ऋण की धनराशि की अदायगी कर देगा। रमेश सिंह यादव ने न तो किसान दुर्घटना बीमा
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कराया था और न ही उसने प्रतिपक्षी की तरु से दिये गये निर्देश के बावजूद बीमा प्रस्ताव को स्वीकार किया। यहॉं तक कि उसने बीमा किश्त की अदायगी से भी इंकार कर दिया। इसलिए उसका किसान दुर्घटना बीमा स्वीकार नहीं हुआ। रमेश सिंह यादव किसान दुर्घटना बीमा लाभ पाने के अधिकारी नहीं है। प्रतिपक्षी ने किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की है। चूंकि परिवादिनी के पति स्व0 रमेश सिंह यादव ने किसान दुर्घटना बीमा के लिए बीमा प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किया और न ही बीमा कराया। इसलिए परिवादिनी किसान दुर्घटना बीमा हितलाभ प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है। तद्नुसार परिवाद खारिज होने योग्य है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री कुमार संभव उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया।
अपीलार्थीगण के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने साक्ष्यों तथा तथ्यों की अनदेखी करते हुए विधि विरूद्ध आदेश पारित किया है। विपक्षी इलाहाबाद बैंक/प्रत्यर्थी की लापरवाही के कारण बीमा नहीं कराया है जबकि परिवादिनी/अपीलार्थीगण के पति किसान थे और सरकार द्वारा चलाये जा रहे किसान दुर्घटना बीमा योजना का लाभ पाने के पात्र थे। सरकार की यह व्यवस्था थी कि यदि किसी भी किसान की मृत्यु दुर्घटना में होती है तो उसे 1,00,000/-रू0 दुर्घटना बीमा लाभ दिया जायेगा,परिवादिनी/अपीलार्थीगण के पति का दुर्घटनाबीमा कराने का दायित्व बैंक का था जो उसने नहीं किया यह उसकी सेवा में कमी है अत: अपील स्वीकार की जाए।
पत्रावली का परिशीलन यह दर्शाता हैकि प्रत्यर्थी को यह स्वीकार है कि परिवादिनी के पति रमेश सिंह यादव किसान क्रेडिट कार्ड धारक थे और के0सी0सी0 नम्बर-1256 स्वीकृति सीमा 80,000/-रू0 तथा के0एस0वाई0 नं0-10244 धनराशि 2,00,000/-रू0 तथा अवधि दिनांक 02-07-2009से समाप्ति दिनांक 01-07-2012 तक लिए ऋण सीमा स्वीकृत थी। परिवादिनी के पति की दुर्घटना में मृत्यु होना, के0सी0सी0 , के0एस0वाई, पासबुक, मृत्यु प्रमाण पत्र, डाईग्नोसिस प्रमाण पत्र, डिस्चार्ज सर्टीफिकेट, एफ0आई0आर0, पोस्ट मार्टम रिपोर्ट व परिवाद रजिस्टर आदि का कोई विवाद नहीं है। विवाद सिर्फ इस बात का है कि प्रत्यर्थी बैंक का कथन है कि अपीलार्थीगण परिवादिनी के पति ने बीमा नहीं कराया, जबकि परिवादिनी/अपीलार्थीगण का कथन है कि उसके पति किसान थे और के0सी0सी0 धारक थे इसलिए उसका बीमा कराना बैंक का दायित्व था जो उसने नहीं कराया इसका प्रमाण कागज संख्या-19 लगायत 20 है। पत्र मण्डलीय कार्यालय इलाहाबाद बैंक द्वारा लिखा गया और उसमें सभी के0सी0सी0 धारकों के व्यक्तिगण दुघर्टना बीमा के प्रीमियम का विवरण उपलब्ध करना सुनिश्चित करना लिखा है इससे यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी बैंक के तत्कालीन प्रबंधक द्वारा अपीलार्थीगण परिवादिनी के पति का बीमा न कराकर सेवा में कमी की है। इस
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प्रकार से प्रत्यर्थी बैंक ने अपना दायित्व पूरा नहीं किया है जो कि उसकी सेवा में कमी है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश विधि विरूद्ध है और निरस्त किये जाने योग्य है। तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश को निरस्त किया जाता है और प्रत्यर्थी बैंक को आदेशित किया जाता है कि वह निर्णय से एक माह के अंदर परिवादिनी/अपीलार्थी के पति की बीमा धनराशि मु0 1,00,000/-रू0 मय 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से जिला फोरम में परिवाद योजित करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक अदा करे।
( राम चरन चौधरी ) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-5, प्रदीप मिश्रा, आशु0