(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-115/2016
माधव गोविन्द फूड प्रोडक्ट्स प्रा0लि0, रजिस्टर्ड आफिस हनुमान मंदिर रोड, बिहाइंड मंगला माता मंदिर, बेतिया हाता, गोरखपुर द्वारा डायरेक्टर अनूप कुमार छपरिया।
परिवादी
बनाम्
1. इलाहाबाद बैंक, रिजनल आफिस मोहद्दीपुर, कसिया रोड, गोरखपुर द्वारा रिजनल मैनेजर/रिजनल हेड।
2. इलाहाबाद बैंक, ब्रांच आफिस सिटी आफिस, हलसीगंज-शेखपुर, उर्दु बाजार, गोरखपुर द्वारा ब्रांच मैनेजर/चीफ मैनेजर आफ द ब्रांच आफिस।
3. श्री सी.के. मांझी, ब्रांच मैनेजर/चीफ मैनेजर आफ द इलाहाबाद बैंक ब्रांच आफिस सिटी आफिस, हलसीगंज-शेखपुर, उर्दु बाजार, गोरखपुर
विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार , सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री प्रखर निगम,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री शरद कुमार शुक्ला,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 17.05.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्ध अंकन 26,22,688/-रू0 की वसूली के लिए, अंकन 1,11,231/-रू0 12 प्रतिशत ब्याज सहित प्राप्त करने के लिए, मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 50 हजार रूपये प्राप्ति के लिए प्रस्तुत किया गया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी के पक्ष में विपक्षीगण द्वारा दिनांक 23.8.2011 को टर्म लोन स्वीकृत किया गया। परिवादी के अनुरोध पर टर्म लोन सुविधा अंकन 6.50 करोड़ रूपये तक बढ़ाई गई। दिनांक 3.4.2014 को विपक्षी पक्षकार द्वारा 1 प्रतिशत बेस रेट के स्थान पर + 2 प्रतिशत बेस रेट परिवादी को सूचना दिए बगैर कर दिया गया। दिनांक 17.12.2015 को विपक्षी संख्या-3 पूर्व भुगतान पर दण्ड स्वरूप 2.5 प्रतिशत धनराशि वसूली गई तथा 1 प्रतिशत ब्याज अधिक वसूल किया गया। अत: परिवादी पूर्व भुगतान के रूप में वसूली गई राशि टर्म लोन खाता संख्या-50081673413 अंकन 7,86,664/-रू0 है तथा टर्म लोन खाता संख्या-50149652660 की राशि अंकन 77,594/-रू0 है। दिनांक 1.4.2014 से दिनांक 30.11.2015 तक ब्याज का अंतर अंकन 7,64,921/-रू0 तथा अंकन 77,774/-रू0 है तथा दिनांक 1.4.2014 से दिनांक 23.12.2015 तक ब्याज का अंतर अंकन 9,15,735/-रू0 है, यह तीनो राशि अधिक वसूली गई हैं। अत: परिवादी कुल राशि अंकन 26,22,688/-रू0 वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत है तथा इस राशि पर प्राप्ति की तिथि से अंकन 1,11,231/-रू0 12 प्रतिशत ब्याज के आधार पर प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
3. परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र तथा अनेक्जर संख्या-1 लगायत 8 दस्तोवजी साक्ष्य प्रस्तुत किए गए।
4. विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन में प्रारम्भिक आपत्ित यह की गई है कि परिवादी उपभोक्ता नहीं है। परिवादी एक पंजीकृत कंपनी है, जो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में कंपनी एक्ट के तहत दर्ज है। ऋण व्यापारिक उद्देश्य के लिए गया था, इसलिए उपभोक्ता फोरम को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। यह कंपनी एक्सपोर्ट का काम करती है। ऋण करार के पैरा संख्या-5 के अनुसार 2 प्रतिशत अधिक ब्याज वसूले जाने का उल्लेख है। ब्याज तय करने का अधिकार बैंक में निहित है, जिसे परिवादी द्वारा स्वीकार किया गया है, इसलिए इस मद में परिवादी कोई राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है। परिवादी द्वारा वर्ष 2014 में टर्म लोन सुविधा अंकन 12 करोड़ 26 लाख रूपये प्राप्त की गई थी। कंपनी के निदेशक द्वारा ऋण स्वीकृति का पत्र प्राप्त किया गया था, जो अनेक्जर संख्या-3 है, जिसमें ब्याज दर बदलने का अधिकार बैंक में निहित किया गया है, इसलिए जो भी धनराशि मांगी गई है, वह देय नहीं है, गलत गणना प्रस्तुत की गई है।
5. लिखित कथन के समर्थन में शपथ पत्र तथा दस्तोवजी साक्ष्य प्रस्तुत किए गए।
6. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रखर निगम तथा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्त श्री शरद कुमार शुक्ला को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का अवलोकन किया गया।
7. इस केस में सर्वप्रथम विवादित बिन्दु यह है कि क्या परिवादी कंपनी उपभोक्ता की श्रेणी में आती है। परिवादी कंपनी स्वीकार्य रूप से कंपनी एक्ट के तहत पंजीकृत कंपनी है। परिवादी द्वारा व्यापारिक उद्देश्य के लिए ऋण सुविधा अंकन 12 करोड़ 26 लाख रूपये की सीमा तक स्वीकृत कराई गई है। नजीर M/s RT Karachiwala (Godrej & Barshane) vs The Manager Nagar Urban Co-Operative Bank Ltd में यह व्यवस्था दी गई है कि चूंकि कंपनी द्वारा एक उच्च कैश क्रेडिट ऋण सुविधा प्राप्त की हुई है, जो व्यापारिक उद्देश्य के लिए है और यह ऋण अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए किया गया है, इसलिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(डी)(II) के अंतर्गत कंपनी उपभोक्ता नहीं है। यह स्थिति प्रस्तुत केस में भी मौजूद है। अत: इस नजीर के आलोक में कहा जा सकता है कि परिवादी कंपनी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है, क्योंकि परिवादी कंपनी द्वारा अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से उच्च स्तर की कैश क्रेडिट ऋण सुविधा प्राप्त की हुई है। अत: उपभोक्ता परिवाद संधारणीय न होने के कारण खारिज होने योग्य है।
8. इस अवसर पर यह उल्लेख करना भी समीचीन होगा कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित करार के अनुसार यह तथ्य स्थापित है कि ऋण की ब्याज राशि में परिवर्तन का अधिकार बैंक में निहित, स्वंय परिवादी कंपनी द्वारा माना गया है, इसलिए इस आधार पर भी उपभोक्ता परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत परिवाद खारिज किया जाता है।
पक्षकार परिवाद का व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय एवं आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2