राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-८१०/१९९८
(जिला मंच, बदायूँ द्वारा परिवाद सं0-३७१/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २४-०२-१९९८ के विरूद्ध)
जय प्रकाश पुत्र श्री नेत राम निवासी मोहल्ला नेकपुर, निकट रेलवे क्रासिंग, जिला बदायूँ। ................. अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम्
१. इलाहाबाद बैंक, हैड आफिस ७ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस रोड एवं शाखा कार्यालय स्टेशन रोड, बदायूँ द्वारा ब्रान्च मैनेजर।
२. यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 द्वारा ब्रान्च मैनेजर, शाखा श्याम नगर, बदायूँ।
३. यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर, हैड आफिस २४, वार्डेण्ट्स रोड, चेन्नई। ................ प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
अपील सं0-८१४/१९९८
(जिला मंच, बदायूँ द्वारा परिवाद सं0-३७२/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २४-०२-१९९८ के विरूद्ध)
जय प्रकाश पुत्र श्री नेत राम निवासी मोहल्ला नेकपुर, निकट रेलवे क्रासिंग, जिला बदायूँ। ................. अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम्
१. इलाहाबाद बैंक, हैड आफिस ७ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस रोड एवं शाखा कार्यालय स्टेशन रोड, बदायूँ द्वारा ब्रान्च मैनेजर।
२. यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 द्वारा ब्रान्च मैनेजर, शाखा श्याम नगर, बदायूँ।
३. यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर, हैड आफिस २४, वार्डेण्ट्स रोड, चेन्नई। ................ प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी ओर से उपस्थित :- श्री अनिल कुमार मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-१ बैंक की ओर से उपस्थित:- श्री दीपक मेहरोत्रा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ की ओर से उपस्थित:- कोई नहीं।
दिनांक : ०३-०६-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपीलें, क्रमश: अपील सं0-८१०/१९९८ एवं अपील सं0-८१४/१९९८
-२-
जिला मंच, बदायूँ द्वारा परिवाद सं0-३७१/१९९६ एवं परिवाद सं0-३७२/१९९६ में पारित अलग-अलग निर्णयों दिनांकित २४-०२-१९९८ के विरूद्ध योजित की गयी हैं। इन दोनों अपीलों के तथ्य एवं परिस्थितियॉं समान प्रकृति की हैं तथा विद्वान जिला मंच द्वारा पारित निर्णय भी समान निष्कर्ष पर आधारित है। अत: इन अपीलों की सुनवाई साथ-साथ की गयी तथा इनका निस्तारण भी साथ-साथ किया जाना समीचीन पाते हुए साथ-साथ किया जा रहा है। इन अपीलों के निस्तारणार्थ अपील सं0-८१०/१९९८ अग्रणी होगी।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने स्वरोजगार एवं अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए राजकीय अनुसूचित जाति जन जाति विकास योजना के अन्तर्गत भैंस पालने के लिए प्रत्यर्थी सं0-१ इलाहाबाद बैंक की शाखा स्टेशन रोड बदायूँ से १३,०००/- रू० बतौर ऋण प्राप्त किया, जिसके सम्बन्ध में अनुबन्ध पत्र दिनांक ०९-०६-१९९४ को निष्पादित हुआ। उपरोक्त ऋण की धनराशि ६० माह की किश्तों में वापस अदा की जानी थी। उपरोक्त १३,०००/- रू० में से ६,०००/- रू० दिनांक ०९-०६-१९९४ को निर्गत किए गये। इस राशि से अपीलार्थी/परिवादी ने एक भैंस दिनांक ०९-०६-१९९४ को खरीदी तथा भैंस का बीमा कराया गया। बीमा पालिसी से सम्बन्धित समस्त कागजात प्रत्यर्थी सं0-१ बैंक की स्टेशन रोड बदायूँ शाखा में जमा कर दिए। उपरोक्त भैंस की मृत्यु दिनांक २५-१२-१९९५ को अर्थात् एक वर्ष ०६ माह १६ दिन बाद हो गयी, जिसकी सूचना अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी सं0-१ बैंक तथा सम्बन्धित बीमा कम्पनी को दिनांक २६-१२-१९९५ को दी।
उपरोक्त स्वीकृत १३,०००/- रू० की धनराशि में ७,०००/- रू० दिनांक २८-०६-१९९४ को निर्गत किए गये। इस धनराशि से अपीलार्थी/परिवादी ने दूसरी भैंस खरीदी तथा दूसरी भैंस का भी बीमा कराया गया। अनुबन्ध पत्र की शर्तों के अनुसार समस्त कागजात बीमा पालिसी सहित प्रत्यर्थी सं0-१ बैंक में जमा कर दिए। बीमा पालिसी दिनांक २८-०६-१९९४ से २७-०६-१९९५ तक प्रभावी थी। दूसरी
-३-
भैंस भी दिनांक ०१-१२-१९९५ को मर गयी, जिसकी सूचना दिनांक ०२-१२-१९९५ को प्रत्यर्थी सं0-१ बैंक तथा बीमा कम्पनी को दे दी गयी।
बीमा कम्पनी ने अपीलार्थी/परिवादी के दोनों बीमा दावे इस आधार पर निरस्त कर दिए कि मृत्यु की तिथि को मृत भैंस बीमित नहीं थीं। अत: अपीलार्थी/परिवादी ने क्रमश: परिवाद सं0-३७१/१९९६ एवं परिवाद सं0-३७२/१९९६ जिला मंच में बीमा की राशि एवं क्षतिपूर्ति दिलाए जाने हेतु योजित किए। जिला मंच ने दोनों परिवाद अपने दो अलग-अलग निर्णयों दिनांकित २४-०२-१९९८ द्वारा निरस्त कर दिए।
इन दोनों निर्णयों से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत दोनों अपीलें योजित की गयीं।
हमने अपीलार्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा तथा प्रत्यर्थी सं0-१ इलाहाबाद बैंक की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ बीमा कम्पनी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
यह तथ्य निर्विवाद है कि ६,०००/- रू० में प्रथम भैंस खरीदी गयी तथा प्रथम भैंस का बीमा दिनांक ०९-०६-१९९४ से ०८-०६-१९९५ तक प्रभावीथा तथा इस भैंस की मृत्यु दिनांक २५-१२-१९९५ को हो गयी। दूसरी भैंस का बीमा दिनांक २८-०६-१९९४ से दिनांक २७-०६-१९९५ तक प्रभावी था और इस भैंस की भी मृत्यु दिनांक ०१-१२-१९९५ को हो गयी। इस प्रकार दोनों ही भैंसों की मृत्यु की तिथि पर उनका करया गया बीमा प्रभावी नहीं था।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि बीमा पालिसी के नवीनीकरण का दायित्व ऋणदाता प्रत्यर्थी सं0-१ इलाहाबाद बैंक का था, जबकि प्रत्यर्थी सं0-१ इलाहाबाद बैंक के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत ऋण के अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार भैंस के बीमा के नवीनीकरण का दायित्व ऋणदाता बैंक का नहीं था, बल्कि स्वयं अपीलार्थी/परिवादी/ऋण प्राप्तकर्ता का था।
-४-
अत: इन अपीलों में मुख्या विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या प्रश्नगत ऋण के अन्तर्गत क्रय की गयी भैंसों की बीमा पालिसियों के नवीनीकरण का दायित्व अपीलार्थी/परिवादी का था अथवा ऋणदाता प्रत्यर्थी सं0-१ इलाहाबाद बैंक का था ?
प्रश्नगत ऋण के सन्दर्भ में पक्षकारों के मध्य निष्पादित अनुबन्ध पत्र की छायाप्रति अपील सं0-८१०/१९९८ के साथ संलग्नक-२३ के रूप में दाखिल की गयी है। इस अनुबन्ध पत्र की शर्त सं0-९ के अनुसार – ‘’ That the borrower(s) shall at all times keep such items of security as are of insurable nature, insured against loss or damange by fire and other risks as may be required by the Bank and shall deliver to the Bank all such policies, it shall be also lawfull for but obligatory upon the bank to insure and keep Insured by debit to the borrower(s) account(s) the security as are insurable nature. The proceeds of such insurance shall at the option of the Bank either to applied towards replacement towards the satisfaction of the bank’s dues hereunder. ‘’
अपीलार्थी/परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि लिखित तर्क में यह कहा गया है कि इस शर्त का अनुपालन करते हुए अपीलार्थी/परिवादी ने दोनों भैसों का बीमा कराके दोनों पालिसियॉं बैंक को दे दी गयीं। यही कारण है कि क्लेम अग्रसारण हेतु लिखे गये पत्र दिनांकित ०५-०१-१९९६, जिसकी छाया प्रति अपील के साथ संलग्नक-३० के रूप में दाखिल की गयी है, में बैंक ने अपीलार्थी/परिवादी से बीमा पालिसियों की मांग नहीं की, केवल बीमा दावा फार्म भरवाना चाहा। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि इस शर्त के परिशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रथम बीमा पालिसी परिवादी द्वारा ली थी और शेष चार वर्षों के लिए बीमा पालिसी का नवीनीकरण प्रत्यर्थी बैंक द्वारा कराया जाना था तथा बीमा पालिसी की खरीद राशि परिवादी/अपीलार्थी के खाते से डेबिट की जानी थी। ऐसा न करके तथा दोनों बीमा पालिसी का नवीनीकरण न कराके प्रत्यर्थी सं0-१ बैंक द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है। अपने इस तर्क के समर्थन में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा
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1-State Bank of India Vs. Sri Easwari Vaccines & Om Vaccine Clinic & Anr. III (2014) CPJ 106 (NC), 2-Allahabad Bank Vs. J.D.S. Electronic Company I (2007) CPJ 270 (NC), 3-Union Bank Of India Vs. Annu Vastralaya & Anr. IV (2007) CPJ 187 (NC) and 4-Corporantion Bank Vs. Smt. Sandhya Shenoy and another 2009 CTJ 303 (CP) (NCDRC) में दिए गये निर्णयों पर विश्वास व्यक्त किया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दभ्रित उपरोक्त निर्णयों का हमारे द्वारा अवलोकन किया गया। उपरोक्त निर्णयों के तथ्य एवं परिस्थितियॉं प्रस्तुत मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों से भिन्न हैं, अत: इन मामलों में दिए गये निर्णयों का लाभ प्रस्तुत मामले के सन्दर्भ में अपीलार्थी को नहीं दिया जा सकता।
पक्षकारों के मध्य निष्पादित अनुबन्ध पत्र की धारा-९ के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत ऋण के सम्बन्ध में बीमा कराने का दायित्व ऋण प्राप्तकर्ता का था तथा उसके द्वारा बीमा पालिसी बैंक में जमा करायी जानी थी। बीमा कराना ऋणदाता बैंक के लिए बाध्यकारी नहीं था। अपीलार्थी का यह कथन नहीं है कि उसने ऐसा कोई निर्देश ऋणदाता बैंक को दिया था कि बीमा बैंक द्वारा करा लिया जाय तथा बीमा की धनराशि उसके खाते से काट ली जाय और न ही ऐसी कोई साक्ष्य अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत की गयी। अपीलार्थी/परिवादी यह स्वयं स्वीकार करता है कि पहला बीमा स्वयं परिवादी ने ही कराया था। पक्षकारों के मध्य निष्पादित अनुबन्ध के अनुसार बीमा के नवीनीकरणका दायित्व अपीलार्थी बैंक का नहीं माना जा सकता।
प्रत्यर्थी सं0-१/इलाहाबाद बैंक की ओर से विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में अशोक कुमार कालरा बनाम इलाहाबाद बैंक, III(2006) CPJ 34 (NC) के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया। माननीय राष्ट्रीय आयोग ने भी उपरोक्त निर्णय में अनुबन्ध पत्र की इस धारा के सन्दर्भ में यही मत व्यक्त किया है।
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उपरोक्त तथ्यों के अलोक में हमारे विचार से विद्वान जिला मंच ने अपीलार्थी/परिवादी के प्रश्नगत दोनों परिवादों को निरस्त करके कोई त्रुटि नहीं की है। इन निर्णयों में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अत: उपरोक्त दोनों अपीलें निरस्त किए जाने योग्य हैं। तद्नुसार प्रश्नगत दोनों निर्णय पुष्टित होने योग्य हैं।
आदेश
प्रस्तुत अपील सं0-८१०/१९९८ एवं अपील सं0-८१४/१९९८ निरस्त की जाती हैं। जिला मंच, बदायूँ द्वारा क्रमश: परिवाद सं0-३७१/१९९६ एवं परिवाद सं0-३७२/१९९६ में पारित अलग-अलग दोनों निर्णयों दिनांकित २४-०२-१९९८ की पुष्टि की जाती है।
इस निर्णय की मूल प्रति अपील सं0-८१०/१९९८ में रखी जाये तथा एक प्रमाणित प्रतिलिपि अपील सं0-८१४/१९९८ में रखी जाय।
पक्षकार इन अपीलों का व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.