राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
परिवाद संख्या 46 सन 2010
जगमोहल अग्रवाल पुत्र श्री रामरीछ पाल निवासी ''अन्नपूर्णा'' प्रीत विहार कालोनी, मिहीलाल स्कूल के पीछे, खुशालपुर मुरादाबाद ।
.............परिवादी
बनाम
1 इलाहाबाद बैंक, हेड आफिस, 2, नेताजी सुभाष रोड, कोलकाता, द्वारा
चीफ मैनेजर ।
2 पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ आर.एम.एस., बी0एल0 मण्डल बरेली रीजन,
बरेली द्वारा सुपरिण्टेंडेंट।
.................विपक्षी
समक्ष:-
1 मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2 मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
परिवादी स्वयं : श्री जगमोहन अग्रवाल ।
विद्वान अधिवक्ता विपक्षी : श्री शरद शुक्ला ।
दिनांक: 13.5.15
श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, सदस्य (न्यायिक) द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
परिवादी द्वारा यह परिवाद कुल 57 लाख रू0 क्षतिपूर्ति पाने हेतु इस आधार पर प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी का पुत्र प्रवीन कुमार, विपक्षी इलाहाबाद बैंक में कर्मचारी था जिसको अक्षम अधिकारी द्वारा सेवा से निकाल दिया गया जिसके संबंध में श्रम न्यायालय में वाद लम्बित है। इसी बीच परिवादी ने कई पत्र, सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत विपक्षीगण को प्रस्तुत किए, किन्तु विपक्षीगण द्वारा वांछित सूचनाऐं उपलब्ध नहीं कराई गयी जिससे परिवादी एवं उसके परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। वांछित सूचना प्रदत्त न करके विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गयी है, अत: कुल 57 लाख रू0 प्रतिकर दिलाए जाने की याचना की गयी है ।
विपक्षी बैंक द्वारा प्रारम्भिक आपत्ति इस आधार पर की गयी है कि परिवादी उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं आता है। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 से संबंधित प्रकरण, उपभोक्ता फोरम में चलने योग्य नही है।
हमने परिवादी एवं विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुन ली है एवं संबंधित अभिलेख का अनुशीलन कर लिया है।
अभिलेख के अनुशीलन से स्पष्ट है कि यह परिवाद सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत वांछित सूचनाऐं विपक्षीगण से प्राप्त न होने के फलस्वरूप क्षतिपूर्ति हेतु उपभोक्ता फोरम में दाखिल किया गया है।
मा0 राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली द्वारा पुनरीक्षण याचिका संख्या 3146/12 संजय कुमार मिश्रा बनाम पब्लिक इन्फार्मेशन आफीसर एवं अन्य में दिनांक 08.1.2015 में यह निर्णय दिया गया है कि '' सूचना का अधिकार'' से संबंधित वाद कन्ज्यूमर फोरम द्वारा अवधारणीय नहीं हैं। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने इस बिन्दु पर निम्नांकित मत व्यक्त किया है :-
" 25. For the reasons stated hereinabove, we hold that (i) the person seeking information under the provisions of RTI Act cannot be said to be a consumer vis-à-vis the Public Authority concerned or CPIO/PIO nominated by it and (ii) the jurisdiction of the Consumer Fora to intervene in the matters arising out of the provisions of the RTI Act is barred by necessary implication as also under the provisions of Section 23 of the said Act. Consequently no complaint by a person alleging deficiency in the services rendered by the CPIO/PIO is maintainable before a Consumer Forum. The Revision Petition NO. 2028 of 2012'' and Revision petition No. 362 of 2013 are, therefore, allowed and the complaints subject matter of the said revision petitions are dismissed. Consumer Complaint No.66 of 2014 is also hereby dismissed. Revision Petition No. 3146 of 2012, Revision Petition No. 2806 of 2012 and First Appeal No. 275 of 2012 are dismissed."
उपर्युक्त सम्मानित विधि व्यवस्था के प्रकाश में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यह परिवाद उपभोक्ता फोरम में अवधारणीय नहीं है।
परिणामत:, यह परिवाद तदनुसार निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद तदनुसार निरस्त किया जाता है।
परिवादी सक्षम अथारिटी के समक्ष अपना वाद प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र होगा ।
उभय पक्ष इस परिवाद का अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करा दी जाए।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (बाल कुमारी)
पीठा0 सदस्य (न्यायिक) सदस्य
कोर्ट-2
(S.K.Srivastav,PA-2)