सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 1324/2017
(जिला उपभोक्ता फोरम, वाराणसी द्वारा परिवाद संख्या- 104/2011 में पारित निर्णय और आदेश दिनांक 17-06-2017 के विरूद्ध)
बृजेश कुमार द्धिवेदी, पुत्र श्री हरी नरायण द्धिवेदी, निवासी ग्राम मडौली, पोस्ट भुल्लनपुर, तहसील व जिला वाराणसी।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
इलाहाबाद बैंक द्वारा ब्रांच मैनेजर, ब्रांच आफिस मंडुआडीह, जिला वाराणसी।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री रमेश कुमार राय।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई उपस्थित नहीं।
दिनांक – 05-06-2018
मा0 श्री न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या 101/2011 बृजेश कुमार द्धिवेदी बनाम वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक, इलाहाबाद बैंक व एक अन्य में जिला फोरम वाराणसी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 17-06-2017 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद खारिज कर दिया है जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी श्री बृजेश कुमार द्धिवेदी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री रमेश कुमार राय उपस्थित आए। प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
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मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी बृजेश कुमार द्धिवेदी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह कई वर्षों से मेसर्स आकाश मोटर्स के नाम से व्यवसाय करता है और परिवादी का विपक्षीगण के इलाहाबाद बैंक शाखा मंडुआडीह में उसका खाता है। उसने अपने खाते में दिनांक 21-03-2005 को 10,00,000/- रू० नगद जमा किया जिसकी पावती बैंक द्वारा प्रदान की गयी। परन्तु दिनांक 21-03-2005 को ही बैंक के तत्कालीन कैशियर विपक्षी संख्या-2 द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के कैश में हेरा-फेरी की गयी और कई लाख रूपये का गबन कर लिया गया। इस हेरा-फेरी के सम्बन्ध में तत्कालीन शाखा प्रबन्धक श्री एस०बी० सिंह द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी है जिसके आधार पर अपराध संख्या 79/2005 अन्तर्गत धारा 406,409,419,420,120 बी आई०पी०सी० पंजीकृत किया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि जब उसने विपक्षी बैंक से अपनी जमा धनराशि का भुगतान मांगा तो बैंक द्वारा कहा गया कि गबन का मुकदमा चल रहा है। निर्णय के बाद ही पैसे का भुगतान किया जाएगा। उसके बाद अपीलार्थी/परिवादी बार-बार विपक्षी बैंक की शाखा गया लेकिन यही कहकर वापस कर दिया जाता रहा कि आपराधिक वाद लम्बित है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि जब उसने लम्बित आपराधिक वाद के सम्बन्ध में न्यायालय मुख्य न्यायिक अधिकारी से जानकारी किया तो उसे पता चला कि विपक्षी संख्या 2 को धारा 409 भ द स के अन्तर्गत अपराध में पांच वर्ष के कारावास एवं 10000/- रू० अर्थदण्ड से दण्डित किया गया है। यह जानकारी परिवादी को होने के उपरान्त उसने पुन: विपक्षी बैंक और संबंधित कर्मचारियों से सम्पर्क किया परन्तु उसका भुगतान नहीं किया गया। तब उसने रजिस्टर्ड डाक से
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नोटिस जोनल मैनेजर के वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक इलाहाबाद बैंक मंडुआडीह को भेजा फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी तो उसने विवश होकर परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी संख्या 1 की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवादी के परिवाद का खण्डन किया गया है और कहा है कि तत्कालीन शाखा प्रबन्धक इलाहाबाद बैंक शाखा मंडुवाडीह द्वारा दिनांक 22-03-2005 को अपराध संख्या 76/2005 अन्तर्गत धारा 410,420,406,409,120 बी आई०पी०सी० थाना मंडुआडीह में मुकदमा पंजीकृत कराया गया है। अत: इस मुकदमें के निस्तारण तक बैंक द्वारा परिवादी का कथित रूपया लौटाया जाना न्यायहित में नहीं होगा। लिखित कथन में यह भी कहा गयाहै कि अपराध संख्या 76/2005 में पंजीकृत मुकदमें में परिवादी को भी अभियुक्त के रूप में नामांकित किया गया है। परिवादी का खाता एन०पी० हो गया है जिसके सम्बन्ध में सिविज जज के यहॉं मुकदमा चल रहा है।
विपक्षी संख्या 2 जिला फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं हुए हैं और न ही कोई लिखित कथन प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम ने परिवाद पत्र एवं परिवाद के विपक्षी संख्या 1 के लिखित कथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि परिवादी का प्रश्नगत खाता व्यावसायिक उद्देश्य के लिए बैंक में खोला गया है। अत: अपीलार्थी/परिवादी धारा 2(1) डी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय में यह उल्लेख किया है कि परिवाद में बैंक के कैशियर द्वारा परिवादी की जमा धनराशि में हेरा-फेरी करके गबन किये जाने का कथन किया गया है। अत: जिला फोरम ने यह माना है कि परिवाद जालसाजी, छलकपट, और कूटरचना के जटिल तथ्यों पर आधारित है। अत: परिवाद उपभोक्ता फोरम में पोषणीय नहीं है।
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उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर ही जिला फोरम ने परिवाद खारिज किया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने परिवाद निरस्त करने का जो आधार उल्लिखित किया है वह उचित नहीं है और साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा जमा धनराशि का अपयोजन प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के कैशियर द्वारा किया गया है और आपराधिक वाद में कैशियर को दोषी करार दिया जा चुका है। अत: प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक वाइकेरियस लाइबेलिटी के आधार पर अपीलार्थी/परिवादी के प्रति उत्तरदायी हैं।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र के कथन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के कैशियर को आपराधिक न्यायालय द्वारा धारा 409 आई०पी०सी० के अपराध का दोषी करार दिया जा चुका है। बैंक अपने कर्मचारी की त्रुटि हेतु ग्राहकों के प्रति वाइकेरियस लाइबेलिटी के सिद्धान्त के आधार पर उत्तरदायी है। मजिस्ट्रेट न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध कैशियर द्वारा अपील प्रस्तुत किये जाने के आधार पर अपीलार्थी/परिवादी के दावा को बैंक द्वारा स्थगित नहीं किया जा सकता है। कैशियर के विरूद्ध सक्षम आपराधिक न्यायालय का निर्णय आ चुका है। अत: जिला फोरम ने जो परिवाद निरस्त करने का यह कारण अंकित किया है कि परिवाद जालसाजी, छलकपट, और कूटरचना के जटिल तथ्यों पर आधारित है वह उचित नहीं है। सक्षम आपराधिक न्यायालय बैंक के कैशियर को दोषी घोषित कर चुका है।
परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी प्रत्यर्थी/विपक्षी के बैंक में खाता खोलकर अपने व्यापार का संचालन करता है। उसने बैंक से अपने व्यापार हेतु कोई ऋण सुविधा नहीं ली है। वह अपने व्यापार का रूपया बैंक में जमा करता है और बैंक में जमा रूपये को व्यापार में लगाता है। बैंक का उसके व्यापार से कोई सम्बन्ध नहीं है और बैंक उसके व्यापार में कोई सेवा नहीं देता है। उसने मात्र प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की बैंकिंग सेवा प्राप्त की है।
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मा0 राष्ट्रीय आयोग ने Branch Manager, ICICI Bank Ltd. Vs. M/s Limenaph Chemicals Private Limited. 2017 (4) CPR 50 (NC) के वाद में Harsolia
Motors Vs. National Insurance Co. Ltd. [I (2005) CPJ 27 (NC)] के निर्णय में मा0 सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिपादित सिद्धांत का उल्लेख किया है जो निम्न है :-
’’Further, from the aforesaid discussion, it is apparent that even taking wide meaning of the words for any commercial purpose it would mean that goods purchased or services hired should be used in any activity directly intended to generate profit. Profit is the main aim of commercial purpose. But, in a case where goods purchased or services hired in an activity which is not directly intended to generate profit, it would not be commercial purpose.”
माननीय सर्वोच्च न्यायायल एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए मैं इस मत का हॅूं कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी को धारा 2 (1) (डी) के अन्तर्गत प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक का उपभोक्ता न मानने का जो कारण उल्लिखित किया है वह विधि अनुकूल नहीं है।
उपरोक्त विवेचना एवं ऊपर निकाले गये निष्कर्ष एवं सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हॅूं कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद निरस्त करने हेतु जो कारण उल्लिखित किया है वह उचित और विधि सम्मत नहीं है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश अपास्त कर पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित किया जाना उचित है कि जिला फोरम विधि के अनुसार उभय पक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर गुण-दोष के आधार पर निर्णय व आदेश यथाशीघ्र 03 महीने के अन्दर पारित करें।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश दिनांक 17-06-2017 निरस्त किया जाता है तथा पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाती है कि जिला फोरम
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उभय पक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर परिवाद में पुन: निर्णय और आदेश गुण-दोष के आधार पर विधि के अनुसार 03 महीने के अन्दर पारित करें।
अपीलार्थी/परिवादी जिला फोरम के समक्ष 20-07-2018 को उपस्थित हों।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01