Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। परिवाद सं0 :- 90/2011 Smt Anubha Gupta aged about 25 years, w/o Sri Aashish Gupta, R/O C-3. Sector F, Kapoorthala, Aliganj, Lucknow-226024 - Complainant
Versus - The Chief Manager, Allahabad Bank, Asset Recovery Management Branch, 1St Floor, Main Branch Building, Hazratganj, Lucknow 226001
- The D.G.M. Allahabad bank, Zonal Office, Main Branch, Hazratganj, Lucknow 226001.
- Opp. Parties
समक्ष - मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय
उपस्थिति: परिवादी के विद्वान अधिवक्ता:- श्रीमती सुचिता सिंह विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता:- श्री विनय शंकर दिनांक:-12.06.2023 माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - परिवादिनी द्वारा यह परिवाद इन अनुतोष हेतु प्रस्तुत किया गया है कि पुनर्नीलामी दिनांक 11.08.2011 निरस्त की जाए। बैंक द्वारा परिवादी की जमा धनराशि का 25 प्रतिशत कटौती करते हुए शेष धनराशि वापस किये जाने का आदेश 08.08.2011 निरस्त किया जाये। 25 प्रतिशत धनराशि रू0 13,83,000/- 18 प्रतिशत ब्याज की दर से वापस किया जाये। दूसरी नीलामी के नीलामकर्ता से धनराशि वसूली को रोका जाये। इसके अतिरिक्त मानसिक एवं शारीरिक क्षति के लिए रूपये 5,00,000/- और वाद व्यय 50,000/- दिलवाये जाने की प्रार्थना भी की है। परिवादिनी का कथन इस प्रकार है कि भवन सं0 बी-11, सेक्टर जी अलीगंज एक ऋण के संबंध में विपक्षी बैंक द्वारा परिवादिनी को नीलामी दिनांक 19.11.2008 में अधिकतम मूल्य की नीलामी के आधार पर आवंटित किया गया था, किन्तु यह नीलामी पत्र दिनांकित 08.08.2011 के माध्यम से निरस्त कर दी गयी। उक्त मकान की नीलामी की सूचना समाचार पत्र हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुई थी, जिसके संदर्भ में परिवादिनी ने बिट/टेण्डर में रूपये 55,32,000/- का 10 प्रतिशत देते हुए डिमाण्ड ड्राफ्ट प्रेषित किया था। परिवादिनी को अधिकतम बोली का क्रेता मानते हुए परिवादिनी की बोली स्वीकृत की गयी थी। बैंक द्वारा इसके उपरांत धनराशि का 15 प्रतिशत मांगा गया, जिसको परिवादिनी ने दिनांक 19.11.2008 को जमा कर दिया। इस प्रकार परिवादिनी ने बोली की धनराशि का 25 प्रतिशत 13,83,000/-रू0 जमा कर दिये थे। दिनांक 19.11.2008 को बैंक द्वारा जारी की गयी और परिवादिनी को शेष 75 प्रतिशत धनराशि जमा करने की हिदायत दी गयी थी। परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत सम्पत्ति का कब्जा दिलाये जाने की प्रार्थना की गयी क्योंकि उसके द्वारा सशर्त बोली लगायी गयी थी, जिससे प्रश्नगत सम्पत्ति का भौतिक कब्जा सुरक्षित हो सके। परिवादिनी के अनुसार वह शेष धनराशि अदा करने को तैयार है, किन्तु उसके द्वारा सशर्त बोली लगायी गयी थी, जिसका अनुपालन बैंक द्वारा नहीं किया गया। परिवादिनी द्वारा बैंक को अनेकों स्मरण पत्र प्रेषित किये गये। बैंक द्वारा मौखिक रूप से परिवादिनी को सूचना दी गयी कि सम्पत्ति के संबंध में डी0आर0टी0 लखनऊ में केस चल रहा है और जैसे ही यह केस अंतिम रूप में पहुंचेगा, इसकी सूचना दी जायेगी, किन्तु बैंक द्वारा कोई सूचना परिवादिनी को नहीं दी गयी। इसके स्थान पर दैनिक जागरण समाचार पत्र में उसी मकान के संबंध में दिनांक 08.07.2011 को नई नीलामी बैंक द्वारा जारी की गयी। परिवादिनी के अनुसार यह अनुचित व्यापार पद्धति तथा सेवा में कमी की श्रेणी में आती है। परिवादिनी ने उपरोक्त आधारों पर उपरोक्त वर्णित अनुतोष के लिए यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
- विपक्षी बैंक की ओर से प्रारंभिक आपत्ति प्रस्तुत की गयी, जिसमें प्रथमत: यह बिन्दु लिया गया है कि यह परिवाद सरफेसी एक्ट की धारा 34 से बाधित है। इस कारण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत उपभोक्ता न्यायालय को इसका क्षेत्राधिकार नहीं है। विपक्षी बैंक द्वारा नीलामी की नोटिस इन शर्तों के साथ दी गयी थी कि अधिकतकम बोली बोलने वाले क्रेता को 25 प्रतिशत की धनराशि तुरंत जमा करनी होगी यदि उक्त धनराशि 15 दिन के भीतर जमा करने में क्रेता असफल रहता है तो 25 प्रतिशत धनराशि जब्त कर ली जायेगी। 25 प्रतिशत धनराशि देने के बाद परिवादिनी शेष 75 प्रतिशत धनराशि देने में असफल रही। सेक्योरिटी इन्टरेस्ट (इन्फोर्समेंट) रूल्स, 2002 के रूल 9 सबरूल 3, 4 तथा 5 के अंतर्गत बैंक द्वारा कार्यवाही की गयी है। इस प्रकार एक ओर परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। दूसरी और बैंक द्वारा सभी कार्यवाही विधिसम्मत की जा रही है एवं परिवादिनी किसी अनुतोष को पाने के अधिकारी नहीं है। परिवादिनी का परिवाद निरस्त होने योग्य है।
- परिवादिनी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्रीमती सुचिता सिंह एवं विपक्षीगण की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री विनय शंकर को विस्तार से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया।
- प्रस्तुत मामले में परिवादिनी की ओर से मुख्य रूप से यह आधार लिया गया है कि उसके द्वारा प्रश्नगत सम्पत्ति की नीलामी में नीलामकर्ता बैंक द्वारा मांगी गयी धनराशि नीलामी में लगायी गयी सम्पत्ति के मूल्य का 25 प्रतिशत जमा कर दिया था तथा यह जमा इस शर्त के साथ किया गया था कि उसे प्रश्नगत सम्पत्ति का कब्जा दे दिया जाये। कब्जा दिये जाने पर ही शेष 75 प्रतिशत धनराशि प्रदान कर सकी। चूंकि प्रश्नगत सम्पत्ति का कब्जा परिवादिनी को नहीं दिया गया। अत: उसने शेष धनराशि जमा नहीं की और इस कारण उसके पक्ष में जो नीलाम स्वीकृत हुई थी उसको स्वीकार किया जाना अनुचित है क्योंकि स्वयं नीलामकर्ता बैंक ने उसके द्वारा लगायी गयी शर्त का पालन नहीं किया था।
- विधिक रूप से उक्त शर्त लगाया जाना इस पीठ की दृष्टि में उचित नहीं है। प्रश्नगत नीलामी के शर्तों नोटिस आफ सेल अर्थात जो शर्तें प्रकाशित की गयी थी और जिनके आधार पर परिवादिनी को कार्य करना था। उसमें स्पष्ट रूप से अंकित किया गया था कि 25 प्रतिशत धनराशि दिये जाने के उपरान्त 15 दिन के भीतर शेष धनराशि दी जायेगी और यह धनराशि न दिये जाने पर नीलामकर्ता बैंक को इस नीलामी को निरस्त करने का अधिकार है। नीलामी की शर्तें जो स्वयं परिवादिनी के अनुसार समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थी। उसमें निम्नलिखित प्रकार से अंकित है:-
The successful bidder shall deposit 25% of the bid amount immediately and the balance within 15 days. Payment to be made only in for of bankers cheque/DD in favor of the authorized offer, Allahabad bank payable at Lucknow. In case the successful bidder fails to deposit 25% of the bid amount immediately on the bid being declared in his favor and the balance amount within 15 days, the Authorized officer without any notice shall forfeit the entire deposit made by the bidder. The successful bidder would bear th charges/fees payable for conveyance such as stamp duty, registration fee etc, as applicable as per law. The authorized officer will not be held responsible for any charge lien, encumbrance, property tax or ay other dues to the Govt or anybody in respect of the property under auction. The Authorized office has the absolute right to accept or reject the bid or adjourn/postpone the tender without assigning any reason there of. - इस प्रकार उपरोक्त शर्त से स्पष्ट है कि परिवादिनी को बिना शर्त शेष धनराशि जमा करनी थी। स्वयं अपनी ओर से अतिरिक्त शर्त लगाये जाने का कोई औचित्य बैंक द्वारा की गयी नीलामी में स्पष्ट नहीं होता है कि परिवादिनी को ऐसा कोई अधिकार था कि वह उक्त नीलामी की शर्तों में स्वयं अपनी भी कोई शर्त लगा सके। जैसा कि उसने कब्जा दिलाये जाने की शर्त लगायी थी।
- विपक्षी इलाहाबाद बैंक (वर्तमान इंडियन बैंक) के द्वारा नीलामी रद्द करने के पत्र दिनांक 08.08.2011 की प्रतिलिपि अभिलेख पर है, जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा है कि शेष 75 प्रतिशत धनराशि उसे 15 दिन के भीतर जमा करनी है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि चूंकि परिवादिनी ने उक्त 75 प्रतिशत धनराशि अदा नहीं की है, जिस कारण उसके द्वारा जमा की गयी शेष धनराशि 25 प्रतिशत भी जब्त की जायेगी। ऐसा ही उक्त शर्त में अंकित किया गया है। अत: परिवादिनी के पक्ष में कोई अनुतोष प्रदान किये जाने का अधिकार नहीं बनता है क्योंकि परिवादिनी ने स्वयं अपनी शर्त लगाते हुए अनुचित प्रकार से 75 प्रतिशत शेष धनराशि जमा नहीं की। उक्त नीलामी की शर्तों के अनुसार नीलामकर्ता बैंक को यह अधिकार प्राप्त था जो उभय पक्षीय संविदा के अंदर था कि वह जमा की गयी धनराशि जब्त कर सकता है।
- पीठ के समक्ष एक तथ्य यह भी है कि बैंक द्वारा यह कार्यवाही धारा 13 (2) SARFAESI Act, 2002 के अंतर्गत की गयी थी, जैसा कि उक्त नोटिस आफ सेल में अंकित है, जिसमें यह लिखा गया है:-
Under securitization and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of security interest act, 2002 whereas the authorized officer of bank has issued notice U/S 13(2) of SARFAESI ACT, 2002 to the following Borrowers/Guarantors and thereafter has taken symbolic possession of the mortgaged property and has decided to sale the property by inviting tenders from the public, described herein below on ASIS where is basis under rules 8 & 9 of security interest (enforcement) Rules, 2002 - जिससे स्पष्ट है कि बैंक द्वारा यह कार्यवाही धारा 13 के अंतर्गत की गयी उक्त अधिनियम की धारा 34 में यह प्रदान किया गया है:-
Civil court not to have jurisdiction- No civil court shall have jurisdiction to entertain any suit or proceeding in respect of an matter which a Debts Recovery Tribunal or the Appellate Tribunal is empowered by or uner this act ot deteremine and no injunction shall be granted by any court or other authority in respect of any action taken or to be taken in pursuance of any power conferred by or under this act or under the recovery of Debts due to banks and financial Institution Act, 1993. - उपरोक्त अधिनियम के अंतर्गत ऐसे किसी मामले का प्रसंज्ञान सिविल न्यायालय, जिसमें यह आयोग भी सम्मिलित है, द्वारा नहीं लिया जायेगा, जिसके संबंध में अधिनियम के अंतर्गत Debt recovery Tribunal को अधिकारिता प्रदान की गयी है। अधिनियम की धारा 17 में Debt recovery Tribunal के समक्ष उस व्यक्ति द्वारा आवेदन करने की व्यवस्था दी गयी है।
Application against measure to recover secured debts-1 Any person (including borrower), aggrieved by any of the measures referred to in sub-section(4) of section 13 taken by the secured creditor or his authorized officer under this chapter, 1 [may make an application along with such fee, as may be prescribed,] to the Debts recovery tribunal having jurisdiction in the matter within forty five days from the date on which such measure had been taken: 2 [provided that different fees may be prescribed for making the application by the borrower - इस मामले में निश्चित ही धारा 17 के अंतर्गत परिवादिनी को यह अधिकार है कि वह ऋण अधिकारी के समक्ष बैंक द्वारा की गयी किसी प्रक्रिया को चैलेंज कर सकती है। परिवादिनी द्वारा ऐसा न करके इस पीठ के समक्ष आवेदन किया है, जिसको निस्तारित करने का अधिकार उपरोक्त अधिनियम के अंतर्गत ऋण वसूली अधिकरण को है एवं सभी सिविल न्यायालय जिसमें यह आयोग भी सम्मिलित है, के क्षेत्राधिकारिता का अपवर्जन अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत किया गया है अत: इस दृष्टि से भी परिवादिनी अनुतोष पाने योग्य अधिकार नहीं रखती है।
- उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन के आधार पर यह पीठ इस मत की है कि परिवादिनी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अनुतोष पाने का अधिकार नहीं रखती है। अत: परिवादिनी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
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परिवादिनी का परिवाद निरस्त किया जाता है। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (सुधा उपाध्याय)(विकास सक्सेना) संदीप आशु0कोर्ट नं0 3 | |