( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :892/2019
(जिला उपभोक्ता आयोग, महोबा द्वारा परिवाद संख्या-74/2014 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27-06-2019 के विरूद्ध)
अभय सिंह पुत्र श्री भूपेन्द्रसिंह निवासी-123 कंचन भवन सुभाष नगर, महोबा प्रो0 सिंह कंप्यूटर्स महोबा जिला महोबा।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
इलाहाबाद बैंक, शाखा गांधीनगर महोबा तहसील व जिला महोबा द्वारा ब्रांच मैनेजर।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष :-
- मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री सुशील कुमार शर्मा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- श्री साकेत श्रीवास्तव।
दिनांक : 23-11-2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-74/2014 अभय सिंह बनाम इलाहाबाद बैंक द्वारा शाखा प्रबन्धक, इलाहाबाद बैंक में जिला उपभोक्ता आयोग, महोबा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 27-06-2019 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
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जिला आयोग के आक्षेपित निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी की ओर से यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी शिक्षित बेरोजगार व्यक्ति है और उसने स्वरोजगार हेतु कम्प्यूटर/ऐसेसरीज की दुकान खोलने हेतु खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से ऋण लेने हेतु आवेदन किया जिस पर खादी बोर्ड ने परिवादी की ऋण पत्रावली ऋण उपलब्ध कराने हेतु विपक्षी बैंक की शाखा महोबा में भेजा। खादी ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा प्रेषित ऋण स्वीकृत करने हेतु पत्रावली ऋण राशि प्रदान किये जाने से पहले विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी का अपनी शाखा महोबा में एक सी0सी0 लिमिट खोला जिस पर परिवादी से मु0 1,00,000/-रू0 मार्जिन मनी की राशि जमा कराकर दिनांक 26-09-2011 को स्वीकृत ऋण की राशि उपरोक्त लिमिट खाते में अंतरित कर दी। परिवादी के सी0सी0 लिमिट खाते की आहरण सीमा 7,80,000/-रू0 थी जिस पर 12.50 प्रतिशत की दर से वार्षिक ब्याज देय था। विपक्षी बैंक ने परिवादी के सी0सी0 लिमिट खाते में ऋण राशि अंतरित करने के बाद परिवादी द्वारा अपने कंप्यूटर व्यवसाय हेतु दिनांक 25-11-2011 को मु0 5,50,000/-रू0 जरिये चेक संख्या-910351 से आहरित किये गये, इसके बाद धन की आवश्यकता पड़ने पर 90,000/-रू0 चेक संख्या- 910352 के जरिये दिनांक 11-01-2012 को आहरित किये गये। इस प्रकार परिवादी ने अपने उपरोक्त सी0सी0 लिमिट खाते से केवल 6,40,000/-रू0 आहरित किया जबकि परिवादी के उपरोक्त सी0सी0 लिमिट खाते में विभिन्न तिथियों पर मार्जिन मनी की राशि सहित 23,71,002/-रू0 जमा थे। जब परिवादी को
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अपने व्यवसाय हेतु पुन: धन की आवश्यकता हुई तब वह मार्च, 2014 में विपक्षी की महोबा शाखा में अपने उपरोक्त सी0सी0 लिमिट खाते से धनराशि आहरित करने गया तो बैंक कर्मचारियों द्वारा बताया गया कि उसके लिमिट खाते में आहरण सीमा से अधिक धनराशि निकाल ली गयी है और परिवादी के ऊपर लगभग 8,17,975/-रू0 ऋण राशि अवशेष है इसलिए परिवादी के खाते से कोई राशि आहरित नहीं की जा सकती है। यह जानकारी होने पर परिवादी ने तत्काल अपने खाते का विवरण प्राप्त किया तो उसे ज्ञात हुआ कि उसके उपरोक्त सी0सी0 लिमिट खाते से अलग-अलग तिथियों में करीब 23 ऋण राशियॉं विपक्षी बैंक द्वारा निकाला जाना अंकित किया गया है जो बिल्कुल फर्जी है। परिवादी ने विपक्षी बैंक में शिकायती प्रार्थना पत्र दिया और निकाली गयी धनराशियों के चेक/बाऊचर का अवलोकन कराये जाने की याचना की, जिनके अवलोकन से परिवादी को यह जानकारी हुई कि निकाली गयी धनराशि कूटरचित बाउचर पर परिवादी के फर्जी हस्ताक्षर करके धनराशियॉं आहरित की गयी है जिससे परिवादी को लगभग 17,31,002/-रू0 की क्षति हुई है। परिवादी ने विपक्षी बैंक से तथा उसके क्षेत्रीय कार्यालय हमीरपुर से लिखित एवं मौखिक रूप से जॉंच कराकर निकाली गयी धनराशि को खाते में वापस जमा करने की याचना किया लेकिन विपक्षी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। परिवादी ने विपक्षी को विधिक नोटिस भेजा जिसका कोई जवाब विपक्षी द्वारा नहीं दिया गया और न ही निकाली गयी धनराशियॉं ही खाते में वापस की गयी, जो कि विपक्षी के स्तर से सेवा में कमी है अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया है।
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विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए कथन किया गया कि परिवादी को 10,00,000/-रू0 का ऋण दिया गया था जिसमें से 7,80,000/-रू0 सी0सी0 लिमिट तथा 1,80,000/-रू0 टर्म लोन था। सी0 सी0 लिमिट दिनांक 26-09-2011 को विपक्षी द्वारा स्वीकार किया गया था जिस पर 12.50 प्रतिशत की दर से ब्याज देय था। परिवादी रू0 9,45,000.94 पैसे का बकायेदार है तथा परिवादी ने दिनांक 19-03-2013 को अंतिम बार जरिये चेक 30,000/-रू0 निकाला था। परिवादी का सी0सी0 लिमिट खाता दिनांक 28-02-2013 को एन0पी0ए0 हो गया था और टर्म लोन का खाता भी दिनांक 07-09-2013 को एन0पी0ए0 हो गया, इसलिए परिवादी विपक्षी का बकायेदार है। परिवादी का यह कथन कि कूटरचित ढंग से फर्जी हस्ताक्षर बनाकर धनराशियॉं निकाली गयी है गलत है जब कि चेक व बाउचर पर परिवादी के ही हस्ताक्षर है और परिवादी ने रू0 25,18,783/-रू0 की धनराशि अपने भाई के नाम अंतरित किया है। उनकी ओर से सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नही की गयी है।
विद्धान जिला आयोग ने उभयपक्ष को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का भली-भॉंति परिशीलन करने के उपरान्त विपक्षी बैंक की सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी न पाते हुए परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार शर्मा उपस्थित। प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री साकेत श्रीवास्तव उपस्थित।
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अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है। अत: अपील स्वीकार करते हुए जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को निरस्त किया जावे।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का भली-भॉंति विश्लेषण करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय पारित किया है अत: अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
मेरे द्वारा उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का भली-भाँति परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
पत्रावली के अवलोकन से यह विदित होता है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का भली-भॉंति परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा , आशु0 कोर्ट नं0-1