जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 119/2021
उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-19.01.2021
परिवाद के निर्णय की तारीख:-06.08.2024
Mrs. Amita Saxena, aged about 68 years, wife of Dr. Aftab Husain, resident of 2/25, Vishal Khand Gomti Nagar, Lucknow.
................Complainant.
VERSUS
1. Ms. Akriti Jain, daughter of Sudhindra Jain, resident of A-1/4, Vivek Khand Gomti Nagar, Lucknow.
2. Ankush Agarwal, Raja Jewelers, ¼ Baldev Singh Arya Marg, Vivek Khand-1, Gomti Nagar Lucknow-226010.
...............Opposite Parties.
परिवादिनी के अधिवक्ता का नाम:-श्री सर्वेश कुमार शर्मा।
विपक्षीगण के अधिवक्ता का नाम:-कोई नहीं।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा-35 के अन्तर्गत इस आशय से प्रस्तुत किया गया है कि प्लाट संख्या–सीएफ-5 विकास खण्ड, पत्रकारपुरम, गोमती नगर लखनऊ के एवज में कम्पाउडिंग प्रमाण पत्र प्राप्त करने या किसी विकल्प के रूप में धनराशि 21,85,300.00 भुगतान करने के संबंध में जमा किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक ब्याज सहित, क्षतिपूर्ति एवं सेवा में कमी के संबंध में तथा वाद व्यय के रूप में 1,00,000.00 रूपया दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी आयोग के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत निवास करती है। विपक्षी संख्या 01 जो कि रियल स्टेट में काम करते है और विपक्षी संख्या 02 उनके कार्य की देखभाल करता है। प्लाट संख्या–सीएफ विकास खण्ड, पत्रकार पुरम, गोमती नगर लखनऊ में दोनों पक्षों के बीच विक्रय विलेख हुआ तथा विपक्षी द्वारा यह अवगत कराया गया कि उपरोक्त प्लाट लखनऊ एल0डी0ए0 से अनुमोदित है तथा सभी आवश्यक स्वीकृतियॉं उनके पास उपलब्ध है। तथा इस बात पर सहमति हुई कि फर्श का माप 7000 रूपये प्रति वर्ग फुट की दर से किया जाएगा। परिवादिनी ने अपने बच्चों के मेडिकल क्लीनिक स्थापित करने के संदर्भ में उक्त योजना बनायी। विपक्षी द्वारा कभी यह नहीं कहा गया कि यह प्लाट एल0डी0ए0 से अनुमोदित नहीं है। विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि सम्पूर्ण भवन का निर्माण कार्य स्वीकृत मानचित्र के अनुसार ही कराया जायेगा।
3. विक्रय पत्र दिनॉंक 10.07.2012 को निष्पादित किया गया। परिवादिनी ने स्टाम्प ड्यूटी सहित अन्य शुल्कों के अलावा विपक्षी को 20,00,000.00 रूपये की धनराशि का भुगतान किया था। 1,85,000.00 रूपये परिवादिनी द्वारा अलग से खर्च किया गया। परिवादिनी का पुत्र अमेरिका चला गया। वर्ष 2016 में परिवादिनी गंभीर रूप से बीमार हुई। परिवादिनी का पूरा उद्देश्य समाप्त हो गया। श्रीमती धारा मित्तल उक्त सम्पत्ति को क्रय करने के लिये इच्छुक थी और उन्होंने सम्पत्ति को क्रय किये जाने के संबंध में परिवादिनी को 1,00,000.00 रूपये टोकन मनी के रूप में दिया। परिवादिनी को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि श्रीमती धारा मित्तल को वित्तीय संस्थान ने ऋण देने से मना कर दिया गया और यह कहा गया कि यह सम्पत्ति एल0डी0ए0 से अनुमोदित नहीं है और परिवादिनी द्वारा श्रीमती धारा मित्तल को दिनॉंक 24.01.2019 को दी गयी टोकन मनी परिवादिनी को वापस कर दी गयी। विपक्षीगण द्वारा की गयी सेवा में कमी तथा अनुचित व्यापार प्रकिया के कारण परिवादिनी को अपूर्णनीय क्षति का सामना करना पड़ा। उसे 55,000.00 रूपये महीने का नुकसान हो रहा है।
4. विपक्षी के विरूद्ध वाद की कार्यवाही दिनॉंक 24.01.2024 से एकपक्षीय चल रही है।
5. परिवादिनी ने अपने कथानक के समर्थन में मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र एवं दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में बुकिंग लेटर, रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र, नक्शा, सेल डीड, मेडिकल सर्टिफिकेट आदि की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी हैं।
6. आयोग द्वारा परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा पत्रावली का परिशीलन किया गया।
7. प्रस्तुत प्रकरण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत 21,85,300.00 रूपये वापस दिलाये जाने की मॉंग किये जाने के उद्देश्य से संस्थित किया गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत परिवादिनी को ही परिवाद के कथनों को साबित किया जाना है।
8 परिवादिनी को निम्नलिखित दो आवश्यक तथ्यों को साबित किया जाना है-1-परिवादिनी का उपभोक्ता होना
2-विपक्षी द्वारा सेवा में कमी।
1-परिवादिनी का उपभोक्ता होना:-यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवादिनी ने परिवाद पत्र के तहत प्लाट संख्या सीएफ-5 विकास खण्ड, पत्रकारपुरम, गोमती नगर लखनऊ के विक्रय के संबंध में एक सेल डीड परिवादिनी एवं विपक्षी के बीच दिनॉंक 10.07.2012 को निष्पादित किया गया। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथानक है कि परिवादिनी को यह बताया गया था कि संबंधित प्लाट एल0डी0ए0 से अनुमोदित है। परिवादिनी का पुत्र अमेरिका चला गया। वर्ष 2016 में परिवादिनी गंभीर रूप से बीमार हुई। परिवादिनी का पूरा उद्देश्य समाप्त हो गया। श्रीमती धारा मित्तल उक्त सम्पत्ति को क्रय करने के लिये इच्छुक थी और उन्होंने सम्पत्ति को क्रय किये जाने के संबंध में परिवादिनी को 1,00,000.00 रूपये टोकन मनी के रूप में दिया। शेष धनराशि फाइनेन्स कराने के लिये प्रयास किया तो फाइनेन्सर ने यह कहकर मना कर दिया गया कि उपरोक्त सम्पत्ति एल0डी0ए0 से अनुमोदित नहीं है। किसी भी ट्रांजेक्शन के एवज में अगर कोई पैसा दिया गया है और सेल डीड निष्पादित की गयी है तो मेरे विचार से निष्पादन के बाद न तो जिसने वह लिखा है वह सेवा प्रदाता रह जाता है और न ही जिसने क्रय किया है वह उसका उपभोक्ता रहता है। परिवाद पत्र के परिशीलन से विदित है कि वर्ष 2012 से परिवादिनी उसका उपयोग कर रही है और इस प्रकरण को वर्ष 2021 में संस्थित किया गया है। इतने समय बाद बीच में इनके द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी। तो क्या इन्हें अब उपभोक्ता माना जायेगा या नहीं। चॅूंकि इनका तथ्य यह है कि एल0डी0ए0 से अनुमोदित होने के कारण ही उन्होंने प्लाट को क्रय किया था। क्या वास्तव में विपक्षी से यह संविदा थी, अगर थी तो जब विक्रय की बात चली और संज्ञान है कि वास्तव में अनुमोदित नहीं है तो मेरे विचार से उपभोक्ता की श्रेणी में लाया जा सकता है कि क्या वास्तव में एल0डी0ए0 से अनुमोदन की बात विपक्षी ने कही थी या नहीं। इस विषय वस्तु हेतु उपभोक्ता मानी जायेगी।
2-विपक्षी की सेवा में कमी:- यह कहा गया कि जमीन क्रय की गयी थी, उसके बाद वहॉं रहना शुरू किया जो उसने आवश्यकता समाप्त होने पर बेचने की बात की गयी।
9. परिवाद पत्र के कथानक के अनुसार परिवादिनी का कथानक है कि परिवादिनी को यह बताया गया था कि संबंधित प्लाट एल0डी0ए0 से अनुमोदित है। जबकि एल0डी0ए0 से अनुमोदित नहीं था, और अनुमोदित कराये जाने के संबंध में कोई साक्ष्य/प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादिनी का कथन है कि उसका पुत्र अमेरिका चला गया और परिवादिनी वर्ष 2016 में बीमार हो गयी। श्रीमती धारा मित्तल उक्त सम्पत्ति को क्रय करने के लिये इच्छुक थी और उन्होंने सम्पत्ति क्रय किये जाने के संबंध में परिवादिनी को 1,00,000.00 रूपये टोकन मनी के रूप में दिया। शेष धनराशि फाइनेन्स कराने के लिये प्रयास किया तो बैंक ने फाइनेन्स करने से यह कहकर मना कर दिया कि उपरोक्त सम्पत्ति एल0डी0ए0 से अनुमोदित नहीं है। परिवादिनी उक्त भवन का वर्ष 2012 से उपभोग कर रही है और इस प्रकरण को वर्ष 2021 में संस्थित किया गया है। इतने समय बाद बीच में इनके द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी, तो क्या परिवादिनी को उपभोक्ता माना जायेगा या नहीं। परिवादिनी ने एल0डी0ए0 से अनुमोदित होने के कारण ही प्लाट को क्रय किया था।
10. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवादिनी एवं विपक्षी के बीच में सेल डीड हो गयी थी, परन्तु मात्र केवल परिवाद पत्र में जिन तथ्यों को कहा गया है क्या वह प्रस्तावित बुक हुए प्लाट के बारे में विक्रेता ने क्रेता के संबंध में कहा था या नहीं इस परिप्रेक्ष्य में विक्रय विलेख का अवलोकन किया।
11. विक्रय विलेख के अवलोकन से विदित है कि विवादित संपत्ति जिसका विक्रय किया गया है, Community Facility space होने का तस्करा किया गया है। सेल डीड के अवलोकन से यह कहीं भी उल्लिखित नहीं किया गया है कि प्रस्तुत बिक्रीशुदा सम्पत्ति एल0डी0ए0 से अनुमोदित है और उनके द्वारा नक्शा पास किया गया है।
12. इस इस संबंध में सेलडीड होने तथा एल0डी0ए0 से नक्शा पास होने के बाद की परिस्थितियों का भी अवलोकन किया जाना आवश्यक है कि किन पत्रों द्वारा परिवादिनी द्वारा यह साबित किया गया कि उसको इस तिथि के बारे में संज्ञान दिया गया या कराया गया कि एल0डी0ए0 से संबंधित सम्पत्ति अनुमोदित है। परिवादिनी द्वारा एक नक्शा संलग्नक-5 दाखिल किया गया है इसमें लिखा है परमिट टू बिल इसमें विकास खण्ड के बारे जितने भी कालम सेक्शन्स के सापेक्ष में विक्रेता ने अप्लाई किये थे जिसमें उनको यह कहा गया था कि वे अथारिटी द्वारा परमीशन्स ग्रान्ट की गयी थी। यह भी लिखा गया सब्जेक्ट टू द कन्डीशन, एल0डी0ए0 का एक पत्र आकृति जैन विक्रेता को एक प्रापर्टी गोमती नगर विकास खण्ड में आवंटित की गयी है। प्लाट संख्या–सीएफ-5 विकास खण्ड, पत्रकारपुरम, गोमती नगर लखनऊ टर्म्स एण्ड कन्डीशन द्वारा लिखा गया और कभी भी कागजात नहीं दाखिल किया गये हैं। यह पेपर जो दाखिल किये गये है वह श्रीमती आकृति जैन को विक्रय किये गये प्लाट संख्या–सीएफ-5 को क्रय किया था, के संबंध में और उसको क्रय करके उन्होंने उस पर भवन का निर्माण किया। भवन बनाने का कार्य अनुमोदित नहीं समझा जायेगा और न ही ऐसा कोई प्रमाण परिवादिनी द्वारा दाखिल किया गया है कि इनके और विपक्षी के बीच किसी तरह की संविदा थी कि उपरोक्त प्लाट जो विपक्षी परिवादी को बेच रहा है वह एल0डी0ए0 से अनुमोदित है। नक्शा दाखिल किया गया है।
13. चॅूंकि अगर एक पहलू कि परिवादिनी के तर्कों को मान भी लिया जाए कि उनके द्वारा यह बताया गया कि विपक्षी द्वारा जो एल0डी0ए0 से अनुमोदित है तो परिवादिनी का भी यह दायित्व था कि इस तथ्य के बारे में वह संबंधित विभाग से संपर्क करक कि क्या वास्तव मे 7,000.00 रूपये स्क्वायर फिट जमीन क्रय की जाती है तो वास्तव में वह प्लाट एल0डी0ए0 अनुमोदित था या नहीं। क्रेता सावधान का तथ्य भी यही कहता है कि क्रेता को सम्पत्ति क्रय करने के लिये सजग रहना चाहिए। यद्यपि यह स्थिति चल सम्पत्ति के बारे में लागू होती है। परिवादिनी स्वयं लखनऊ की रहने वाली है और लखनऊ की सम्पत्ति गोमती नगर जैसी जगह में कर कर रही है तो उन्हें भी थोड़ा सजग रहने की आवश्यकता थी। परन्तु उनके द्वारा सजगता नहीं बरती गयी। चॅूंकि प्लाट का विक्रय विलेख हो गया है और करीब सात-आठ वर्ष से परिवादिनी उसकी मालिक है और –उसके बाद की स्थिति से इस स्तर पर कुछ भी नहीं कर सकती कि एल0डी0ए0 द्वारा अनुमोदन था, ESTOPPEL के सिद्धान्त से बाधित है। परिवादिनी यह साबित करने में असफल रही है कि एल0डी0ए0 से अनुमोदित था। अत: सेवा में कोई कमी नहीं है।
14. परिवादिनी द्वारा यह भी कहा गया कि विपक्षी ने अवैध निर्माण कराया। अवैध निर्माण अगर कराया भी गया है तो उसके लिये जो भी विधिक कार्यवाही परिवादिनी करना चाहे वह नियमानुसार कर सकती है, इसके लिये सक्षम विभाग /न्यायालय में कार्यवाही करने के लिये स्वतंत्र है।
15. परिवादिनी द्वारा यह भी कहा गया कि विपक्षी द्वारा धोखा दिया गया। कन्शीलमेंट ऑफ फैक्ट किया गया व धोखा दिया गया। क्या वास्तव में विपक्षी द्वारा परिवादिनी को कोई धोखा दिया गया। धोखा एक जटिल विषय है। धोखा को साबित करना परिवादिनी का दायित्व है जिसमें भिन्न-भिन्न साक्ष्य को जिरह करना व उसे साबित करना है।
इस परिप्रेक्ष्य में राज्य उपभोक्ता आयोग कर्नाटक बंगलौर द्वारा IV 1993 (1) C.P.R. 694 जिसमें कहा गया है कि जहॉं जटिल विषय हो जैसा कि कपट तो उपभोक्ता फोरम का, क्षेत्राधिकार नहीं है। ठीक इसी प्रकार राज्य उपभोक्ता आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा II 1993 (1) C.P.R. 260 में कहा गया है कि कपट डिसेप्शन यह जैसा इस तथ्य में जटिल प्रश्न है, इन प्रश्नों में समरी तौर पर नहीं दिया जा सकता। राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम नई दिल्ली द्वारा I 1992 (1) C.P.R. 34 में जहॉं पर जटिल प्रश्न हो या मिश्रित प्रश्न का उदाहरण हो वहॉं व्यवहार न्यायालय को क्षेत्राधिकार है।
अत: परिवादिनी का परिवाद क्षेत्राधिकार न होने के कारण खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद इस आयोग को क्षेत्राधिकार न होने के कारण खारिज किया जाता है। परिवादिनी यदि चाहे तो सक्षम न्यायालय में अपना वाद दायर कर सकती है।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:-06.08.2024