राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1685/2015
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, आगरा द्वारा परिवाद संख्या 357/2011 में पारित आदेश दिनांक 04.07.2015 के विरूद्ध)
Shriram General Insurance Company Limited, E-8, EPIP, RIICO Industrial Area, Sitapura, Jaipur (Rajasthan)-302022 Branch Office 16, Chintal House, Station Road, Lucknow through its Manager. .................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Akhilesh Kumar S/o Anand Swaroop R/o 28/164, Naiwali Gali, Gokulpura, Agra. .................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार के सहयोगी
श्री आनन्द भार्गव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 20.12.2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-357/2011 अखिलेश कुमार बनाम श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 04.07.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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''परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को 21400/- (इक्कीस हजार चार सौ रूपया) मय 08 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज दिनांक 30.03.2011 से वास्तविक अदायगी तक एक माह के अन्दर अदा करे। इसके अतिरिक्त मानसिक कष्ट वेदना एवं वाद व्यय के रूप में 3000/- (तीन हजार रूपया) विपक्षी परिवादी को एक माह के अन्दर अदा करे।''
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार के सहयोगी श्री आनन्द भार्गव उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। प्रत्यर्थी पर नोटिस का तामीला पहले ही पर्याप्त माना जा चुका है। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन कर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसकी हीरो होण्डा मोटर साइकिल, जिसका पंजीयन संख्या–यू0 पी0 80 ए एस 8795 था अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से दिनांक 12.10.2010 से
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दिनांक 11.10.2011 तक की अवधि हेतु बीमाकृत थी और बीमा अवधि में ही दिनांक 02.11.2010 को मोटर साइकिल चोरी हो गयी, जिसकी रिपोर्ट प्रत्यर्थी/परिवादी ने उसी दिन थाना हरीपर्वत आगरा में लिखायी। तब पुलिस ने अपराध संख्या-1169/2010 अन्तर्गत धारा-379 आई0पी0सी0 पंजीकृत कर विवेचना की और वाद विवेचना अन्तिम रिपोर्ट न्यायालय प्रेषित किया, जिसे सम्बन्धित मजिस्ट्रेट ने स्वीकार कर लिया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने मोटर साइकिल चोरी की सूचना दिनांक 18.11.2010 को अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को दी, जिस पर अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपना सर्वेयर प्रत्यर्थी/परिवादी के पास भेजा। सर्वेयर को आवश्यक कागजात प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपलब्ध कराए। फिर भी प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने खारिज कर दिया। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी ने लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रश्नगत वाहन का बीमा 28,000/-रू0 मूल्य पर था।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा है कि मोटर साइकिल चोरी होने के 14 दिन बाद प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 16.11.2010 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने थाने में दर्ज करायी है और 20 दिन बाद दिनांक 22.11.2010 को बीमा कम्पनी को
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सूचना दिया है। इस प्रकार तुरन्त प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस में दर्ज न कराकर और तुरन्त बीमा कम्पनी को सूचित न कर उसने बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन किया है। अत: पत्र दिनांक 30.03.2011 के द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा खारिज किया गया है। ऐसी स्थिति में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि दिनांक 02.11.2010 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने घटना की रिपोर्ट थाने पर दी है, परन्तु पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 16.11.2010 को पंजीकृत की है। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन चोरी के बाद तुरन्त सूचना थाने पर दिया है, परन्तु इसके साथ ही जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने बीमा कम्पनी को 20 दिन बाद सूचना दिया है। अत: जिला फोरम ने नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमित धनराशि से 20 प्रतिशत कटौती कर स्वीकार किया जाना उचित माना है और तदनुसार आक्षेपित निर्णय और आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि विरूद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने घटना की सूचना तुरन्त पुलिस और बीमा कम्पनी दोनों को न देकर बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन किया
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है। अत: बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमा निरस्त किया जाना उचित है और ऐसा कर बीमा कम्पनी ने अपनी सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है। जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर गलती की है।
अपीलार्थी/विपक्षी ने लिखित तर्क प्रस्तुत किया है और लिखित तर्क में पुनरीक्षण याचिका संख्या-1054/2016 रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम अरूण कुमार सिंह व एक अन्य में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय दिनांक 03.01.2017 एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं0-6739/2010 ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम प्रवेश चन्द्र चड्ढा के वाद में दिए गए निर्णय दिनांक 17.08.2010 को सन्दर्भित किया है। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने लिखित तर्क के साथ सर्वेयर आख्या की प्रति भी संलग्न किया है।
मैंने अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में कहा है कि मोटर साइकिल दिनांक 02.11.2010 को चोरी हो गयी, जिसकी रिपोर्ट प्रत्यर्थी/परिवादी ने उसी दिन थाना हरीपर्वत आगरा में दर्ज करायी है। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में उल्लेख किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के शपथ पत्र का संलग्नक ''ब'' थाने पर दिए गए प्रार्थना पत्र की प्रति है। इस पर थाना हरीपर्वत की दिनांक 02.11.2010 की प्राप्ति की मोहर अंकित है। जिला फोरम
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ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि थाना पुलिस द्वारा घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 16.11.2010 को पंजीकृत की गयी है। अत: जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि घटना के तुरन्त बाद प्रत्यर्थी/परिवादी थाने पर चोरी की सूचना देने गया है और लिखित सूचना थाने पर दिया है, परन्तु पुलिस ने रिपोर्ट विलम्ब से दर्ज की है। इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने लिखित तर्क के साथ जो सर्वेयर की आख्या प्रस्तुत की है उसमें प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन अंकित है कि चोरी की घटना के तुरन्त बाद उसने 100 नम्बर के टेलीफोन पर पुलिस को सूचना दी थी और करीब के हरीपर्वत पुलिस स्टेशन गया था। सर्वेयर ने अपनी आख्या में पुलिस से सत्यापन कर इस बात का खण्डन नहीं किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने घटना के बाद 100 नम्बर के फोन पर पुलिस को सूचित किया था और वह थाना हरीपर्वत गया था। अत: सर्वेयर आख्या में अंकित विवरण एवं प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा थाने को दी गयी सूचना की प्रति के आधार पर यह मानने हेतु उचित और युक्तसंगत आधार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने घटना के तुरन्त बाद पुलिस को मोटर साइकिल चोरी की सूचना दी है। अत: इस सन्दर्भ में जिला फोरम ने जो निष्कर्ष निकाला है, वह आधार रहित नहीं कहा जा सकता है।
निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 22.11.2010 को
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बीमा कम्पनी को सूचना चोरी की घटना के 20 दिन बाद दिया है, परन्तु चोरी की सूचना प्राप्त होने पर बीमा कम्पनी ने सर्वेयर नियुक्त किया है और सर्वेयर ने जांच करने के उपरान्त अपनी आख्या प्रस्तुत किया है। सर्वेयर ने अपनी जांच आख्या में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित मोटर साइकिल चोरी की घटना को फर्जी और बनावटी नहीं बताया है और न ही पुलिस द्वारा की गयी विवेचना में ऐसा निष्कर्ष निकाला गया है। अत: माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं0 15611/2017 ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस व अन्य में पारित निर्णय दिनांक 04.10.2017 में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार किया जाना उचित नहीं है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस व अन्य के उपरोक्त वाद में पारित निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धरित किया जा रहा है:-
“It is common knowledge that a person who lost his vehicle may not straightaway go to the Insurance Company to claim compensation. At first, he will make efforts to trace the vehicle. It is true that the owner has to intimate the insurer immediately after the theft of the vehicle. However, this condition should not bar settlement of genuine claims
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particularly when the delay in intimation or submission of documents is due to unavoidable circumstances. The decision of the insurer to reject the claim has to be based on valid ground. Rejection of the claims on purely technical grounds in a mechanical manner will result in loss of confidence of policy-holders in the insurance industry. If the reason of delay in making a claim is satisfactorily explained, such a claim cannot be rejected on the ground of delay. It is also necessary to state here that it would not be fair and reasonable to reject genuine claims which had already been verified and found to be correct by the Investigator. The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act.”
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वर्तमान वाद के तथ्यों एवं परिस्थितियों एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस व अन्य के वाद में दिए गए निर्णय के आधार पर अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को उसके विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित उपरोक्त निर्णयों का लाभ नहीं मिल सकता है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा अस्वीकार कर सेवा में त्रुटि की है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस व अन्य के वाद में प्रतिपादित सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने जो 20 प्रतिशत कटौती कर नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर प्रत्यर्थी/परिवादी को मोटर साइकिल की बीमित धनराशि दिलायी है वह उचित नहीं है, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कोई अपील प्रस्तुत नहीं की गयी है। अत: जिला फोरम के निर्णय में इस अपील में हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश में हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। अत: अपील निरस्त की जाती है।
इस अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत
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अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1