Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/1620

Bhartiya Airtel Ltd - Complainant(s)

Versus

Akhil Singhal - Opp.Party(s)

V P Sharma

30 Mar 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/1620
( Date of Filing : 02 Sep 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Bhartiya Airtel Ltd
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Akhil Singhal
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 30 Mar 2022
Final Order / Judgement

                                                                                                                                                                   (सुरक्षित)                                              

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                                                         अपील संख्‍या- 1620/2011

 

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, गौतमबुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्‍या- 311/2010 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 23-04-2011 के विरूद्ध)

  

भारती एयरटेल लि0 प्रथम तल, पैनीसुला चैम्‍बर, पैनीसुला कारपोरेट पार्क गनपत राय कतम मार्ग लोवर परेल वेस्‍ट मुम्‍बई।

                                                                                                         अपीलार्थी/विपक्षी

                              बनाम 

अखिल सिंघल, सेक्‍टर-20 नोएडा, गौतमबुद्ध नगर।

                                                                                                          प्रत्‍यर्थी/परिवादी

मक्ष:-  

 माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य

 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :   विद्वान अधिवक्‍ता श्री वी०पी० शर्मा

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित  :   कोई उपस्थित नहीं।

 

दिनांक.   08-04-2022

 

माननीय सदस्‍य श्री राजेन्‍द्र सिंह, द्वारा उदघोषित

                                                                                            निर्णय

       प्रस्‍तुत अपील, परिवाद संख्‍या- 311 सन् 2010 अखिल सिंघल बनाम एयरटेल भारती इण्डिया लि0 में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, गौतमबुद्ध नगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 23-04-2011 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

     संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश माननीय राष्‍ट्रीय आयोग (एन०सी०डी०आर०सी०) और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के आदेशों की अनदेखी कर पारित किया गया है। विद्वान जिला आयोग को वाद

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श्रवण का अधिकार नहीं था। विद्वान जिला आयोग ने वाद श्रवण कर गलती की है। यह एक झूठा परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है। अपीलार्थी कम्‍पनी का पंजीकृत कार्यालय है और उसके विरूद्ध वाद संस्थित किया गया है। यह परिवाद चलने योग्‍य नहीं था। अपीलार्थी के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही करने का जिला आयोग को कोई अधिकार नहीं दिया गया था। विद्वान जिला आयोग द्वारा  ई-मेल की फोटोप्रति पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया गया है जो गलत है। टेलीफोन रेगुलेटरी अथारिटी के विरूद्ध परिवाद प्रस्‍तुत करना गलत है। विद्वान जिला आयोग को प्रत्‍यर्थी/परिवादी के मोबाइल फोन का परीक्षण करना चाहिए था। विद्वान जिला आयोग का निष्‍कर्ष उचित नहीं है और वह टेलीफोन रेगुलेटरी अथारिटी का मूल्‍यांकन करने में असफल रहे हैं। वर्तमान मामला चलने योग्‍य नहीं है। अत: ऐसी स्थिति में माननीय राज्‍य आयोग से निवेदन है कि वर्तमान अपील स्‍वीकार करते हुए प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश अपास्‍त किया जाए।

       हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री वी०पी० शर्मा को सुना और पत्रावली का सम्‍यक रूप से परिशीलन किया। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थि‍त नहीं हुआ है।

       हमने पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त साक्ष्‍यों एवं विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया।

     परिवादी ने अपने मोबाइल फोन को डीएनडी सेवा के अन्‍तर्गत पंजीकृत कराया था और इस पंजीकरण के उपरान्‍त भी उसे विज्ञापन से संबंधित काल एवं एस०एम०एस० प्राप्‍त होते रहे जिसके फलस्‍वरूप उसे मानसिक संताप हुआ। अत: व्‍यथित होकर उसने परिवाद जिला आयोग के सम्‍मुख प्रस्‍तुत किया।

    

3

     अपीलार्थी/विपक्षी को नोटिस जारी की गयी परन्तु वह उपस्थित नहीं हुए। विद्वान  जिला  आयोग  ने  अपने  निर्णय  में  कहा  कि  परिवादी द्वारा

एस०एम०एस० एवं विज्ञापन संबंधी काल बन्‍द कराने के बाद भी आवांछित काल और एस०एम०एस० आना विपक्षी की सेवा में कमी का परिणाम है। इसी आधार पर विद्वान जिला आयोग ने अपीलार्थी/विपक्षी से प्रत्‍यर्थी/परिवादी को मानसिक संताप हेतु क्षतिपूर्ति 5000/-रू० एवं वाद व्‍यय के रूप में 1000/-रू० दिलाए जाने का निर्णय पारित किया है।

     माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने पुनरीक्षण याचिका संख्‍या- 1703/2010 में कहा था कि सब्‍सक्राइबर और टेलीफोन रेगुलेटरी अथारिटी के अधिकार के बीच के मामले को मध्‍यस्‍थता द्वारा निपटाना चाहिए जैसा कि माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने जनरल मैनेजर टेलीकाम बनाम एम कृष्‍णा व अन्‍य (2009) 8 (एस०सी०सी) में कहा है।

     माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने अपने निर्णय में यह भी कहा है कि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम किसी अन्‍य अधिनियम के अधीन न होकर स्‍वतंत्र है और आर्बीट्रेशन का कोई प्रभाव यहॉं नहीं पड़ता है। प्रश्‍नगत निर्णय एकपक्षीय रूप से घोषित हुआ है। विपक्षी एयरटेल भारती इण्डिया लि० को पक्षकार बनाया गया है जिसका पूरा पता परिवाद पत्र में अंकित है। एयरटेल कम्‍पनी को पत्र भी भेजा गया है और उसका उत्‍तर भी प्राप्‍त हुआ है जो पत्रावली पर संलग्‍न है। प्रश्‍नगत निर्णय दिनांक 23-04-2011 को घोषित हुआ है जिसकी नकल दिनांक 02-07-2011 को प्राप्‍त की गयी और इसके बाद वर्तमान अपील दिांक 02-09-2011 को प्रस्‍तुत की गयी है। स्‍पष्‍ट है कि वर्तमान अपील प्रस्‍तुत किये जाने में 02 माह का विलम्‍ब हुआ है।

    

4

   

     हमने इस मामले में आदेश पत्रों का अवलोकन किया जिससे स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी अपील प्रस्‍तुत करने के दिनांक से प्रत्‍यर्थी के विरूद्ध पैरवी नहीं करना चाहता था और कई बार पैरवी किये जाने हेतु उसे आदेशित किया गया अंतत:

दिनांक 17-12-2019 को अपीलार्थी द्वारा पैरवी पूर्ण की गयी अर्थात इस कार्य में अपीलार्थी ने 08 वर्ष का समय मात्र पैरवी पूर्ण करने में निकाल दिया जो उसकी लापरवाही को स्‍पष्‍ट परिलक्षित करता है।

     यह स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी को उसके पते पर ई-मेल और डाक से नोटिस भेजी गयी जो उसे प्राप्‍त नहीं हुयी। चॅूकि नोटिस वापस लौटकर नहीं आयी अत: नोटिस की तामीला की कार्यवाही उस पर पर्याप्‍त मानी गयी।

     अपीलार्थी ने इस अपील के प्रस्‍तुत किये जाने में हुए विलम्‍ब के बारे में विलम्‍ब को क्षमा करने का प्रार्थना पत्र दिया जिसमें उसने कहा कि उसे विद्वान जिला आयोग के निर्णय की जानकारी नहीं थी जो कि एकपक्षीय रूप से पारित किया गया है। जानकारी होने पर उसने दिनांक 02-07-2011 को नकल प्राप्‍त किया और फिर उसने वर्तमान अपील दिनांक 02-09-2011 को प्रस्‍तुत किया। विलम्‍ब के सम्‍बन्‍ध में निम्‍नलिखित न्‍यायिक दृष्‍टांतो का उल्‍लेख करना आवश्‍यक है:-

      In Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd. Vs. Naresh Singh, I(2013) CPJ 407 (NC), where the delay was of 71 days only, it was held by the Hon'ble National Commission that "condonation cannot be a matter of routine and the petitioner is required to explain delay for each and every date after expiry of the period of limitation". In the instant matter, the appellants have not given any explanation of delay for each and every day.

    

5

 

       In U.P. Avas Evam Vikas Parishad Vs. Brij Kishore Pandey, IV (2009) CPJ 217 (NC), where the delay was of only 84 days, it was held that "this is enough to demonstrate that there was no reason for this delay, much less a sufficient cause to warrant its condonation." In the instant matter, the cause shown by the appellants has been vehemently denied by the respondent on cogent reasons. 

       In Anshul Agarwal Vs. New Okhla Industrial Development Authority, IV (2011) CPJ 62 (SC), it was observed by the Hon'ble Apex Court that "it is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the Court has to keep in mind that special period of limitation has been  prescribed in the Consumer Protection Act for filing appeals and revisions in consumer matter and the objection of expeditious adjudication of consumer disputes will get defeated if this court was to entertain highly belated petition against the orders of Consumer Fora."

      उपरोक्‍त स्थिति में हम इस निष्‍कर्ष पर पहॅुचते हैं कि वर्तमान मामले में विलम्‍ब को क्षमा किये जाने हेतु जो स्‍पष्‍टीकरण दिया गया है वह सन्‍तोषजनक और युक्तियुक्‍त स्‍पष्‍टीकरण नहीं है। यह कहना कि अपीलार्थी को वाद की सूचना नहीं थी, उचित प्रतीत नहीं होता है क्‍योकि उसको ई-मेल भेजा गया था और उसके पते पर पंजीकृत डाक से नोटिस भी संबंधित शाखा को भेजी गयी है। इस प्रकार वर्तमान मामले में विलम्‍ब को क्षमा करने का कोई उचित आधार नहीं दिखता है और प्रस्‍तुत अपील विलम्‍ब के आधार पर खरिज किये जाने योग्‍य है।

                          

 

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आदेश

वर्तमान अपील, कालबाधित होने के कारण निरस्‍त की जाती है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

    आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

(सुशील कुमार)                              (राजेन्‍द्र सिंह)

  सदस्‍य                                     सदस्‍य

      

     निर्णय आज दिनांक- 08-04-2022 को खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित/दिनां‍कित होकर उद्घोषित किया गया।

 

 

(सुशील कुमार)                                                  (राजेन्‍द्र सिंह)            

      सदस्‍य                                                      सदस्‍य

 

कृष्‍णा–आशु0

कोर्ट-2

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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