राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१९८१/२०१३
(जिला फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-९१/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ३०-०७-२०१३ के विरूद्ध)
यूनियन आफ इण्डिया द्वारा पोस्ट मास्टर, हैड पोस्ट आफिस, बड़ा चौराहा, कानपुर नगर।
..................... अपीलार्थी/विपक्षी सं0-१.
बनाम्
१. आकांक्षा शुक्ला पुत्री श्री सर्वांशु कुमार शुक्ला, निवासी १६०, मानस विहार, तिवारीपुर-द्वितीय, कानपुर नगर। ...................... प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
२. स्टेट बैंक आफ बीकानेर एवं जयपुर, बिरहना रोड, कानपुर।
...................... प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-२.
३. बिट्स प्लानी, राजस्थान। ...................... प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-३.
समक्ष:-
१- मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :- श्री सर्वांशु कुमार शुक्ला विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ की ओर से उपस्थित: कोई नहीं।
दिनांक : २०-०८-२०१५
मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी डाक विभाग की ओर से यह अपील जिला फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-९१/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ३०-०७-२०१३ के विरूद्ध दिनांक ३०-०८-२०१३ योजित की गयी है।
संक्षेप में परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी आकांक्षा शुक्ला का कहना है कि उसने स्पीड पोस्ट के माध्यम से दिनांक २७-०१-२००७ को बिरला इन्स्टीट्यूट आफ टैक्नालॉजी एण्ड साइन्स, प्लानी राजस्थान में प्रवेश हेतु बिट्स प्लानी बिट्सीट-२००७ की परीक्षा हेतु अपना आवेदन पत्र हैड पोस्ट आफिस, बड़ा चौराहा, कानपुर नगर से भेजा था।
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अपीलार्थी डाक विभाग की लापरवाही के कारण उसका आवेदन पत्र समय से गन्तव्य तक नहीं पहुँचा जिसके फलस्वरूप, वह चयन प्रक्रिया में सम्मिलित होने से वंचित रह गयी। अपीलार्थी के यहॉं दिनांक १७-०४-२००७ को शिकायत करने पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी को उनके द्वारा कोई जानकारी नहीं दी गयी और न ही कोई कार्यवाही की गयी। अपीलार्थी डाक के इसी कृत्य को सेवा में कमी मानते हुए प्रत्यर्थी/परिवादिनी आकांक्षा शुक्ला ने परिवाद संख्या-९१/२००९ अधीनस्थ फोरम में योजित किया।
अपीलार्थी डाक विभाग की ओर से अधीनस्थ फोरम के समक्ष यह बचाव लिया गया कि परिवादिनी ने जिस स्पीड पोस्ट का उल्लेख किया है वह दिनांक २७-०१-२००७ से सम्बन्धित है और परिवादिनी ने परिवाद दिनांक २४-०१-२००९ को प्रस्तुत किया है, जो कालबाधित है। उनका यह भी कहना है कि स्पीड पोस्ट का रिकार्ड रखने की समय सीमा मात्र ०६ माह है, इसके बाद रिकार्ड समाप्त कर दिया जाता है। इस कारण स्पीड पोस्ट के सम्बन्ध में जानकारी देना सम्भव नहीं है।
विपक्षी सं0-२ व ३ की ओर से जिला मंच के समक्ष कोई उपस्थित नहीं हुआ। अत: अपीलार्थी एवं परिवादिनी/प्रत्यर्थी को सुनने के उपरान्त अधीनस्थ फोरम द्वारा प्रश्नगत परिवाद को अपीलार्थी/विपक्षी सं0-१ के विरूद्ध स्वीकार किया गया एवं उन्हें निर्देशित किया गया कि वे निर्णय के ३० दिन के भीतर परिवादिनी को उसके स्पीड पोस्ट को गन्तव्य पर न पहुँचाने के फलस्वरूप क्षतिपूर्ति स्वरूप १०,०००/- रू० का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को किया जाना सुनिश्चित करें। इसके अतिरिक्त विपक्षी सं0-०२ एवं ०३ के विरूद्ध परिवाद निरस्त कर दिया गया। इसी आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी डाक विभाग द्वारा प्रस्तुत अपील योजित की गयी है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का कहना है कि अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथ्यों एवं विधिक सिद्धान्तों के विपरीत होने के कारण अपास्त होने योग्य है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का यह कहना है कि अपीलार्थी डाक विभाग द्वारा प्रश्नगत स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजे गये पत्र को उसमें दिये गये पते पर समय से न पहुँचाकर सेवा में घोर कमी की है अत: विद्वान फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश में कोई विधिक त्रुटि नहीं है।
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पीठ द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तारपूर्वक सुना गया एवं उनके तर्कों के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख/साक्ष्यों एवं प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का गहनता से परिशीलन किया गया। इस प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक २७-०१-२००७ को एक स्पीड पोस्ट भेजी थी जो पत्र में दिये गये पते पर अन्तत: नहीं पहुँची। इस प्रकार स्पीड पोस्ट का दिये गये पते पर न पहुँचना निश्चित रूप से सेवा में कमी है। इस सम्बन्ध में इण्डियन पोस्ट आफिस रूल्स १९३३ में संशोधित करते हुए दिनांक ०१-०८-१९८६ को नियम ६६ (बी) को जोड़ा गया। तत्पश्चात् विभाग द्वारा वृत्तांक सं0-एफ.नं० ४३-४/८७-डी/बीडीडी दिनांक २२-०१-१९९९ जारी किया गया जिसके अनुसार स्पीड पोस्ट के दिये गये पते पर न पहुँचने पर लगाये गये टिकट का दोगुना कम्पोजिट फीस के रूप में अथवा १०००/- रू० जो भी कम हो देय होना माना गया है। इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्पीड पोस्ट द्वारा मैनेजर स्पीड पोस्ट आफिस, जीपीओ बिल्डिंग, जयपुर बनाम लक्ष्मण सिंह २०१० एनसीजे ३०९ (एनसी) में स्पष्ट विधिक सिद्धान्त दिया गया है। अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश सीनियर पोस्ट मास्टर, जीपीओ, पुणे बनाम अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत व अन्य, १९८६-९६ कन्जूमर २५५४ तथा पोस्ट मास्टर इम्फाल व अन्य बनाम डॉ0 जामिनी देवी सगोलबन्द २००२ कन्जूमर ६२३० (एनएस) एवं स्टेट आफ हरियाणा बनाम लीला राम IV (2008) CPJ 146 (NC) में दिये गये सिद्धान्तो के विपरीत है। अधीनस्थ फोरम द्वारा नियम ६६ (बी) तथा विज्ञप्ति सं0-४३ दिनांक २२-०१-१९९९ पर बिना विचार विमर्श किये ही प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में क्षतिपूर्ति अदा करने हेतु आदेश पारित किया गया है जो विधि सम्मत नहीं है। अधीनस्थ फोरम के पास उपरोक्तानुसार आज्ञप्ति पारित करने का कोई विधिक अधिकार नहीं था अत: आदेश उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं के आलोक में संशोधित होने योग्य है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह भी कहना है कि प्रश्नगत परिवाद भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ में दिये गये प्राविधान से बाधित है एवं इस परिवाद की सुनवाई करने का कोई क्षेत्राधिकार अधीनस्थ फोरम के पास नहीं था। फलस्वरूप क्षेत्राधिकार के अभाव में प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि शून्य एवं
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निष्प्रभावी है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अपने कथन के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यूनियन आफ इण्डिया व अन्य बनाम एम0एल0 बोरा २०११(२) सीपीसी १७९ एवं (२०००) एनसीजे १४२ पोस्ट मास्टर इम्फाल बनाम जामिनी देवी सगोलबन्द में दिये गये विधिक सिद्धान्त की ओर पीठ का ध्यान आकृष्ट कराया जिनमें यह विधि व्यवस्था दी गयी है कि इस प्रकार के परिवाद भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ से बाधित हैं। चूँकि प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा डाक विभाग के किसी अधिकारी या कर्मचारी पर कोई व्यक्तिगत द्वेष अथवा भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगया गया है, अत: इस मामले में धारा-६ भारतीय डाक अधिनियम १८९८ में दिये गये प्राविधान लागू होते हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-६ में निम्नवत् प्राविधान है कि -
Section 6 of the Indian Post Office Act. 1898 reads as under :
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”
उपरोक्त प्राविधान तथा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा टीकाराम बनाम इण्डियन पोस्टल डिपार्टमेण्ट IV (2007) CPJ 123 (NC) के अतिरिक्त मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्पीड पोस्ट द्वारा मैनेजर स्पीड पोस्ट आफिस, जीपीओ बिल्डिंग, जयपुर बनाम लक्ष्मण सिंह २०१० एनसीजे ३०९ (एनसी) तथा सीनियर पोस्ट मास्टर, जीपीओ, पुणे बनाम अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत व अन्य, १९८६-९६ कन्जूमर २५५४ तथा पोस्ट मास्टर इम्फाल व अन्य बनाम डॉ0 जामिनी देवी सगोलबन्द २००२ कन्जूमर ६२३० (एनएस) एवं स्टेट आफ हरियाणा बनाम लीला राम IV (2008) CPJ 146 (NC) में दिये गये विधिक सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए हमारे विचार से अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि अनुरूप नहीं है। वर्णित परिस्थिति में अधीनस्थ फोरम
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द्वारा जारी आज्ञप्ति, मात्र इस सीमा तक संशोधित करते हुए कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी केवल कम्पोजिट फीस के रूप में प्रश्नगत स्पीड पोस्ट में लगाये गये सम्पूर्ण डाक टिकट की दोगुना धनराशि प्राप्त करने का अधिकारी है, अपास्त की जाने योग्य है। तद्नुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-९१/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ३०-०७-२०१३ के अन्तर्गत जारी आज्ञप्ति को मात्र इस सीमा तक संशोधित किया जाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी केवल कम्पोजिट फीस के रूप में प्रश्नगत स्पीड पोस्ट में लगाये गये सम्पूर्ण डाक टिकट की दोगुना धनराशि प्राप्त करने का अधिकारी है। इसके अतिरिक्त अधीनस्थ फोरम द्वारा अधिनिर्णीत समस्त अनुतोष अपास्त किया जाता है। पक्षकार अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(बाल कुमारी)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.