जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 204/2015
याकूब खां पुत्र श्री सुल्तान खां, जाति-कायमखानी, निवासी- कुचेरा, तहसील- मूण्डवा, जिला- नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. आकांक्षा इन्टरनेषनल दी गुरूकुल, मूण्डवा रोड, नागौर जरिये निदेषक ललित पारासर व हर्श पारासर, निवासीगण-नागौर, जिला-नागौर (राज.)।
-अप्रार्थी
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. प्रार्थी स्वयं उपस्थित।
2. श्री विक्रम जोषी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 16.03.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी स्कूल के प्रचार-प्रसार से प्रभावित होकर सत्र 2015-16 में अपने पुत्र दिलषाद खान का प्रवेष ग्यारहवी कक्षा (विज्ञान वर्ग) में करवाया। परिवादी ने दिनांक 07.07.2015 को बच्चे के स्कूल में प्रवेष के साथ ही स्कूल संचालक के बताये अनुसार यूनियन बैंक आॅफ इण्डिया षाखा नागौर में जरिये चालान 18,900/- रूपये (14,000़4,900 बस किराया, कुल-18,900/- रूपये) जमा करवाये। अप्रार्थी ने स्कूल में प्रवेष के समय जैसा प्रचार-प्रसार किया व अध्यापन की व्यवस्थाएं बताई, वैसी स्कूल में नहीं थी। जिससे बच्चा प्रवेष के साथ ही लगातार कमजोर होता जा रहा था। इस बारे में स्कूल संचालक व स्टाफ को षिकायत की गई तो उन्होंने गलती मानते हुए षीघ्र ही व्यवस्थाएं सुधारने की बात कही मगर व्यवस्थाओं में कोई सुधार नहीं हुआ। बल्कि स्कूल में अध्यापन में सुधार की बजाय लगातार व्यवस्थाएं बिगडती गई। इसकी बार-बार षिकायत की गई तो अप्रार्थी स्कूल संचालक नाराज हो गया तथा उसके साथ अभद्र व्यवहार करते हुए दिनांक 24.07.2015 को उसके पुत्र दिलषाद खान की टी.सी. काटकर दे दी तथा कहा कि जो करना है वो कर लेना, अब स्कूल में मत आना। अप्रार्थी से फिर भी निवेदन किया कि उसने टी.सी. के लिए कोई आवेदन नहीं किया है और उसके बच्चे की जबरदस्ती टी.सी. काटकर उसका भविश्य खराब किया जा रहा है। इस तरह अप्रार्थी की मनमर्जी से उसे भारी नुकसान उठाना पडा। अतः परिवादी को, अप्रार्थी द्वारा बच्चे के प्रवेष पर ली गई राषि 18,900/- रूपये मय ब्याज दिलाई जाये। साथ ही अप्रार्थी के उपेक्षापूर्ण व गैर कानूनी कृत्य से परिवादी व उसके पुत्र को हुई मानसिक, षारीरिक व आर्थिक क्षति के रूप में 50,000/- रूपयेे एवं परिवाद व्यय के 10,000/- रूपये दिलाये जावें।
2. प्रतिपक्षी स्कूल द्वारा प्रस्तुत जवाब परिवाद के सार संकलन के अनुसार परिवादी के अभिकथनों को अस्वीकार करते हुए परिवादी के बच्चे का स्कूल में प्रवेष करवाना एवं परिवादी द्वारा 14,000/- रूपये ट्यूषन फीस के व 4,900/- रूपये बस किराये के कुल 18,900/- रूपये जमा किया जाना स्वीकार किया तथा कथन किया कि परिवादी ने दिनांक 27.06.2015 को अपने पुत्र दिलषाद के प्रवेष का फार्म भरा तथा नियमानुसार परिवादी व उसकी पत्नी ने रजिस्ट्रेषन फार्म एवं एडमिषन फार्म पर अपने हस्ताक्षर किये। उसी वक्त परिवादी को अवगत करा दिया था कि उसकी जमा फीस न तो ट्रांसफरेबल है और न ही रिफण्डेबल है। प्रवेष के समय परिवादी ने अपने आपको गरीब व ग्रामीण परिवेष का व्यक्ति होना बताते हुए आग्रह किया कि वे एडमिषन फीस जमा करवाने में असमर्थ है, इस अनुरूप उसे एडमिषन/रजिस्टेªषन फीस से मुक्ति देते हुए परिवादी से मात्र ट्यूषन फीस व बस प्रभार षुल्क ही लिया गया। अप्रार्थी ने अपने जवाब में मुख्य रूप से यह कहा कि परिवादी स्वयं दिनांक 24.07.2015 को स्कूल में आया तथा कहा कि वह अपने पुत्र का केन्द्रीय विद्यालय में एडमिषन करवाना चाहता है। अतः उसके पुत्र का ट्रांसफर सर्टिफिकेट जारी किया जावे। परिवादी के इस आग्रह पर ही उसे उसके पुत्र का ट्रांसफर सर्टिफिकेट जारी किया गया। उसे एडमिषन/रजिस्टेªषन फीस में पहले ही मुक्ति दी जा चुकी है तथा स्कूल बस फीस पेटे ली गई राषि 4,900/- का भी दिलषाद के नाम चैक दिनांक 24.07.2015 को जारी कर दिया गया। चैक का भुगतान भी परिवादी के खाते में हो चुका है। परिवादी ने अप्रार्थी पर दबाव बनाने के उद्देष्य से ही मंच में गलत रूप से परिवाद पेष किया है। अतः परिवाद परिवादी खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस अंतिम प्रार्थी एवं योग्य अधिवक्ता पक्षकारान सुनी गई। अभिलेख का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
5. परिवादी द्वारा प्रस्तुत षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात से यह स्पश्ट है कि परिवादी ने अपने पुत्र दिलषाद खान का प्रवेष अप्रार्थी स्कूल में करवाया तथा प्रवेष के साथ ही स्कूल संचालक के बताये अनुसार यूनियन बैंक आॅफ इण्डिया षाखा नागौर में जरिये चालान 18,900/- रूपये (14,000़4,900 बस किराया, कुल-18,900/- रूपये) जमा करवाये एवं प्रतिपक्षी ने इस तथ्य को स्वीकार भी किया है। अप्रार्थी पक्ष के विद्वान ने 2014 छब्श्र 508 (छब्) त्महपवदंस प्देजपजनजम व् िब्ववचमतंजपअम डंदंहमउमदज टमतेने छंअममद ज्ञनउंत ब्ींनकींतल का न्यायिक निर्णय पेष कर तर्क दिया है कि प्रार्थी विद्यार्थी होने के कारण अप्रार्थी संस्था का उपभोक्ता नहीं माना जा सकता। अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त वर्णित न्याय निर्णय का सम्मानपूर्वक अवलोकन किया गया, हस्तगत मामले के तथ्यों अनुसार अप्रार्थी एक निजी षिक्षण संस्था है, जिसके द्वारा ट्यूषन फीस प्राप्त कर विद्यार्थियों को पढाया जाता है, ऐसी स्थिति में प्रस्तुत न्याय निर्णय के तथ्यों एवं हस्तगत मामले के तथ्यों में पर्याप्त भिन्नता होने के कारण अप्रार्थी पक्ष को उपर्युक्त वर्णित न्याय निर्णय में अभिनिर्धारित मत का लाभ देकर यह नहीं माना जा सकता कि प्रार्थी विद्यार्थी होने के कारण उपभोक्ता की परिभाशा में नहीं आता हो। परिणामतः परिवादी अप्रार्थी का उपभोक्ता होना पाया जाता है।
6. प्रार्थी का तर्क रहा है कि उसने 14,000/- रूपये ट्यूषन फीस के एवं 4,900/- रूपये बस किराया कुल 18,900/- रूपये जमा करवाये थे लेकिन अप्रार्थी षिक्षण संस्था ने पढाई की उचित व्यवस्था न होने तथा उनके अभद्र व्यवहार के कारण प्रार्थी के साथ धोखा हुआ, साथ ही टी.सी. काटकर दे दी एवं जमा करवाई गई राषि भी वापस नहीं दी। ऐसी स्थिति में उसे मानसिक क्षतिपूर्ति के साथ जमा करवाई गई राषि 18,900/- रूपये वापस दिलवाये जाये। जबकि उक्त के विपरित अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि प्रार्थी के निवेदन पर विद्यार्थी की टी.सी. दी गई थी। साथ ही बस किराया की राषि 4,900/- रूपये का चैक जारी कर दे दिया गया। जो परिवादी के खाते में जमा हो चुका है। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद खारिज किया जावे।
7. पक्षकारान द्वारा दिये गये तर्कों पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन किया गया। अप्रार्थी पक्ष की ओर से अप्रार्थी षिक्षण संस्था के यूनियन बैंक आॅफ इण्डिया, नागौर में संचालित बैंक खाता का विवरण पेष किया गया है। जिसके अनुसार परिवादी याकूब खान के नाम से जारी चैक संख्या 33007586 राषि 4,900/- का दिनांक 25.07.2015 को याकूब के नाम से विड्राॅल हुआ है। यद्यपि परिवादी याकूब खा की ओर से स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर षाखा कुचेरा में संचालित स्वयं के खाते का विवरण पेष किया है। जिसमें इस राषि के जमा होना अंकित नहीं है। लेकिन अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत बैंक के खाता विवरण अनुसार परिवादी याकूब खान के नाम से चैक संख्या 33007586 के जरिये 4,900 रूपये का आहरण हुआ है। ऐसी स्थिति में यही संभावना प्रबल बनती है कि अप्रार्थी पक्ष द्वारा बस किराया बाबत् प्राप्त राषि 4,900/- परिवादी को जरिये चैक लौटा दी गई थी। जहां तक ट्यूषन फीस का प्रष्न है तो अप्रार्थी पक्ष के अनुसार यह राषि रिफण्डेबल नहीं है। लेकिन यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी याकूब खान के पुत्र दिलषाद खान का अप्रार्थी विद्यालय में दिनांक 07.07.2015 को प्रवेष दिलाया गया था तथा टी.सी. प्रदर्ष 3 के अनुसार दिनांक 24.07.2015 को टी.सी. कट जाने के पष्चात् उसने अप्रार्थी षिक्षण संस्था में कोई अध्ययन नहीं किया। परिवादी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज षुल्क जमा करवाने की रसीद प्रदर्ष 1 के अनुसार परिवादी ने दिनांक 07.07.2015 को ट्यूषन फीस की प्रथम किष्त के रूप में 14,000/- रूपये की राषि जमा करवाई थी तथा षेश 10,000-10,000 की दो किष्तें बाद में जमा होनी थी। यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी के पुत्र दिलषाद खान ने अप्रार्थी षिक्षण संस्था में एक माह से भी कम अवधि करीब 15-16 दिन ही अध्ययन किया था। ऐसी स्थिति में अप्रार्थी को चाहिए था कि कुछ आवष्यक राषि की कटौती कर बाकी ट्यूषन फीस की राषि परिवादी को लौटा देता लेकिन अप्रार्थी षिक्षण संस्था द्वारा ऐसा न कर उपभोक्ता के हितों की उपेक्षा कर सेवा दोश किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री को देखते हुए न्याय हित में परिवादी द्वारा ट्यूषन फीस के रूप में जमा करवाई गई 14,000/- राषि में से अप्रार्थी षिक्षण संस्था के आवष्यक खर्चों की कटौती स्वरूप 4,000 रूपये की कटौती करते हुए षेश 10,000/- रूपये परिवादी को मय ब्याज लौटाने का आदेष दिया जाना न्यायसंगत होगा। इसी प्रकार परिवादी को अनावष्यक मानसिक परेषानी एवं परिवाद व्यय के रूप में भी 2,500-2,500 रूपये भी दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
आदेश
8. परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विरूद्ध अप्रार्थी आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी परिवादी को उसके द्वारा जमा करवाई गई ट्यूषन फीस की राषि में से 10,000/- रूपये वापिस प्रदान करें तथा इस राषि पर आवेदन प्रस्तुत करने की दिनांक 03.09.2015 से 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज भी अदा करें। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी अपने सेवादोश पूर्ण कृत्य के कारण परिवादी को हुई मानसिक परेषानी हेतु 2,500/- रूपये एवं परिवाद व्यय के 2,500/- रूपये भी अदा करेगा। अप्रार्थी को उक्त सम्पूर्ण राषि आदेष की तिथि से एक माह के अंदर अदा करनी होगी।
9. आदेष आज दिनांक 16.03.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या