जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
प्रभुदयाल चैधरी सुपुत्र श्री छोटूराम चैधरी, जाति-जाट, निवासी- ग्राम- रामनेर की ढाणी, तहसील व जिला-अजमेर ।
- प्रार्थी
बनाम
1. प्रबन्धक, रामनेर ढाणी ग्राम सेवा सहकारी समिति, पंचायत समिति श्रीनगर, जिला-अजमेर ।
2. प्रबन्धक, अजमेर सेन्ट्रल काॅपरेटिव बैंक लिमिटेड, जयपुर रोड, अजमेर ।
3. संयुक्त रजिस्ट्रार(बैंकिग) रजिस्टर्ड कार्यालय सहकारी समितियां, जयपुर, राजस्थान- 302001
- अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 237/2014
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री भंवर लाल मेघवंषी, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री अभिषेक षर्मा, अधिवक्ता अप्रार्थी सं. 1
3. श्री विवेक पाराषर, अधिवक्तार अप्रार्थी सं. 2
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 25.10.2016
1. प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि उसकी माता श्रीमति केली देवी, जो अप्रार्थी संख्या 1 की सदस्या थी, जिनका दिनंाक 19.2.2014 को निधन हो गया । उसकी माता ने अपने जीवनकाल में अप्रार्थी संख्या 1 से कृषि कार्य हेतु सहकारी किसान कार्ड पर रू. 50,000/- का ऋण प्राप्त किया था , के समायोजन हेतु उसने दिनंाक 12.3.2014 को क्लेम फार्म अप्रार्थी संख्या 3 के समक्ष पेष किया । किन्तु अप्रार्थीगण ने बावजूद नोटिस दिनंाक 4.6.2014 के उसकी माता द्वारा लिए गए ऋण को न तो समायोजित किया और ना ही माफ किया। जबकि उसकी माता, जो 74 वर्ष की थी, नियमानुसार ऋण माफी की हकदार थी। अप्रार्थीगण द्वारा उसकी माता की उम्र अलग अलग रिकार्ड में कही 85 वर्ष, कहीं 80 वर्ष तो कहीं 100 वर्ष अंकित कर दी है । प्रार्थी ने अप्रार्थीगण द्वारा उक्त किए गए कृत्यों को सेवा में कमी बताते हुए परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है।
2. अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा जवाब पेष करने हेतु 4-5 मौके चाहे गए किन्तु इसके बावजूद जवाब पेष नहीं करने पर जरिए आदेष दिनांक 4.6.2015 को उनका जवाब बन्द किया गया ।
3. अप्रार्थी संख्या 2 ने जवाब प्रस्तुत करते हुए परिवाद की चरण संख्या 1 लगायत 6 में वर्णित तथ्य का उनसे संबंध नहीं होने का कथन करते हुए दर्षाया है कि प्रार्थी उसकी माता द्वारा लिए गए ऋण को नहीं चुकाने की गरज से यह आधारहीन तथ्यों पर परिवाद पेष किया है । प्रार्थी उत्तरदाता का उपभोक्ता नहीं है और ना ही वह विधिक उत्तराधिकारी है । अन्त में परिवाद निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है ।
4. अप्रार्थी संख्या 3 बावजूद नोटिस तामील न तो मंच में उपस्थित हुआ और ना ही परिवाद का कोई जवाब ही पेष किया । अतः अप्रार्थी संख्या 3 के विरूद्व दिनांक 30.10.2014 को एक पक्षीय कार्यवाही अमल में लाई गई ।
5. प्रार्थी का तर्क रहा है कि उसकी स्वर्गीय माता द्वारा अप्रार्थी के यहां बतौर सदस्य रहते हुए कृषि कार्य हेतु रू. 50,000/- का ऋण सहकारी किसान कार्ड के द्वारा प्राप्त किया गया था । अप्रार्थी संख्या 1 के यहां कई बार मृत्यु दावा प्रपत्र भरने के लिए निवेदन किया गया। किन्तु उसके द्वारा मना किए जाने के बाद क्लेम फार्म भर कर दिनंाक 12.3.2014 को अप्रार्थी संख्या 3 को रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजा गया था । किन्तु उसे क्लेम का भुगतान नहीं किया गया है । मृतका द्वारा सदस्य के रूप में राषनकार्ड के अनुसार 74 साल अंकित करवाई गई थी । किन्तु अप्रार्थीगण द्वारा उक्त उम्र को जानबूझकर अलग अलग कही 85 साल, कहीं 80 साल और कहीं 100 साल अंकित कर दी गई है । मृतका 74 साल की होने के कारण ऋण माफ किए जाने की श्रेणी में आती थी । उसका ऋण माफ नहीं किया जाकर अप्रार्थीगण द्वारा सेवा में कमी की गई है ।
6. अप्रार्थी संख्या 2 ने खण्डन में प्रार्थी को उत्तराधिकारी प्रमाण पात्र के अभाव में क्लेम प्राप्त करने का अधिकारी नही ंहोना बताया व प्रकरण इस न्यायालय के ़क्षेत्राधिकार में नहीं आने व प्रार्थी के उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आने के कारण खारिज होने योग्य बताया ।
7. हमने परस्पर तर्क सुन लिए हैं एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
8. हस्तगत मामले में प्रार्थी ने अपनी माता का अप्रार्थी संख्या 1 सहकारी समिति की सदस्या होने के नाते रू. 50,000/- ऋण लिया जाना व उसकी मृत्यु के बाद इस ऋण की राषि को समायोजित करने व इसे माफ किए जाने हेतु प्रतिवाद का आधार लिया है । मृतका का उक्त सहकारी समिति का सदस्य होना, उपलब्ध सहकारी किसान कार्ड को देखने से प्रकट होता है तथा इसमें की गई रू. 50,000/- की ऋण की प्रविष्ठि को देखते हुए यह भी प्रकट होता है कि उसके द्वारा इस प्रकार का कोई ऋण प्राप्त किया गया था । क्या यह ऋण किसी प्रकार के स्वीकृत लोन से समायोजित किया जा सकता था अथवा माफ किया जा सकता था ? यह तथ्य प्रार्थी की ओर से इस मंच को अवगत नहीं कराया गया है । दूसरे ष्षब्दांे में वह यह अनुतोष किस आधार पर प्राप्त करना चाहता है, इसका भी उन्होने कोई खुलासा नहीं किया है । मात्र उक्त संस्थान के सदस्य होने के नाते लिए गए ऋण को किस प्रकार से माफ किया जाए अथवा समायोजित कर दिया जाए, ऐसा कोई प्रावधान भी हमारे समक्ष सामने नहीं आया है । स्वयं प्रार्थी की ओर से दिनंाक 13.3.2014 को अप्रार्थी संख्या 3 को लिखे गए पत्र से प्रकट होता है कि, जिसमें उनके द्वारा लिखा गया था कि क्लेम मिलने एवं लोन माफ किए जाने का कोई प्रावधान या नियम हो तो वे अपने स्तर पर विभागीय कार्यवाही करते हुए विभाग द्वारा नियमानुसार मिलने वाला क्लेम दिलवाते हुए लोन की भरपाई करवाने की कृपा करें । चूंकि ऐसा कोई प्रावधान न तो बताया गया है ओर ना ही हमारे समक्ष प्रस्तुत किया गया है । अतः ऐसे किसी स्पष्ट प्रावधान के अभाव में वांछित अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता । प्रार्थी किस प्रकार अप्रार्थीगण का उपभोक्ता है वह यह भी सिद्व नहीं कर पाया है । सहकारी समितियों के संदर्भ में प्रचलित विधिक प्रावधानों के अनुसार वांछित अनुतोष हेतु अलग प्लेटफार्म निर्धारित किया गया है । अतः मंच की राय में यह प्रकरण इस मंच की क्षेत्राधिकारिता में किस प्रकार आएगा , यह बिन्दु भी प्रार्थी अपने पक्ष में सिद्व करने में असफल रहा है । फलतः में प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार होकर खारिज होने योग्य है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
9. प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 25.10.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष