जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
षिवषंकर भस्में पुत्र स्व. श्री गोविन्द राम भस्में, आयु-70 वर्ष, पष्चिम रेल्वे क्वार्टर नं. 1845/ए, ब्यावर रोड, उत्तर पष्चिम रेल्वे अस्पताल, अजमेर मार्फत रमेषचन्द पुत्र श्री लक्ष्मण लाल, मकान नं. 1486/30, नगरा प्रकाष रोड, अजमेर ।
- प्रार्थी
बनाम
ऐवष्र्या त्रिपाठी, सहायक महाप्रबन्धक/महाप्रबन्धक, होल टाईम डायरेक्टर, कन्ट्रीइन प्राईवेट लिमिटेड, बी-201, अन्सल चैम्बर, भीका जी कामा प्लेस, नई दिल्ली-110066
- अप्रार्थी
परिवाद संख्या 325/2013
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री रमेष चन्द, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री षिषिर विजय, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 28.03.2016
1. प्रार्थी ( जो इस परिवाद में आगे चलकर उपभोक्ता कहलाएगा) ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम , 1986 की धारा 12 के अन्तर्गत अप्रार्थी के विरूद्व संक्षेप में इस आषय का पेष किया है कि अप्रार्थी के अभिकर्ता ने दिनंाक
29.10.2002 को दूरभाष द्वारा यह अवगत कराया कि उसे होटल रिसोर्ट के लिए विजेता घोषित किया गया है और अप्रार्थी के अभिकर्ता के कहे अनुसार वह अपनी पत्नी के साथ टी.आर.एम रेस्टोरेण्ट, अजमेर पर मिला। जहां उसे बताया कि प्रतिवर्ष 7 दिन की अवधि के लिए भारत के मुख्य होटल रिसोर्ट उपलब्ध कराया जावेगा जिसके लिए उसे रू. 60,000/- अग्रिम जमा कराने होगें, जिसमें ।ददनंस डंपदजमदंदबम ब्ींतहम भी सम्मिलित है । इसके अतिरिक्त उपभोक्ता को कोई अतिरिक्त राषि नहीं देनी पडेगी । इस पर उसने अप्रार्थी को रू. 60,000/- नगद अदा किए । जिसकी रसीद संख्या 11438 दिनंाक 29.10.2002 को जारी की गई तथा 10 वर्ष के लिए चार सदस्यों के लिए सदस्यता प्रमाण पत्र भी जारी किया, साथ ही दिनांक 29.10.2002 को एक टाईम स्केल इकरारनामा निष्पादित किया किन्तु अप्रार्थी ने बावजूद पत्राचार व नोटिस के, जिनका विवरण परिवाद की चरण संख्या 9 व 10 में दिया है , उसे कोई रिसोर्ट की सेवाएं उपलब्ध नहीं कराई गई । अप्रार्थी के उक्त कृत्य को सेवा में कमी बतलाते हुए परिवाद पेष कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में उपभोक्ता ने स्वयं का षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी ने परिवाद का जवाब प्रस्तुत करते हुए बताया है कि यह परिवाद पोषणीय नहीं है क्योंकि यह मस्तिष्क का प्रयोग किए बिना इकरारनामे की षर्तों के विरूद्व 10 दिन के कूलिंग पीरियड के बाद प्रस्तुत किया गया है । पक्षकारों के मध्य किसी भी विवाद को मध्यस्थ को सौेपें जाने का एग्रीमेंट में उल्लेख किया गया है । किन्तु मामला मध्यस्थ को नहीं सौंपा जाकर सीधे मंच में चाराजोही किए जाने के कारण परिवाद निरस्त होने योग्य है । किन्हीं नीरा भस्में को आवष्यक पक्षकार नहीं बनाए जाने के कारण भी परिवाद को खारिज होने योग्य बतलाया । उपभोक्ता ने व्यक्तिगत बीमारी के कारण रिसोर्ट की सेवाएं प्राप्त नहीं की । इसलिए भी प्रस्तुत परिवाद खारिज होने योग्य बताया । जवाब में परिवाद के तथ्यों को जानकारी के अभाव में अस्वीकार किया । यह भी बताया गया है कि अप्रार्थी की स्कीम के तहत उपभोक्ता व उसकी पत्नी को पूरी जानकारी देते हुए बुलाया गया व स्कीम की समस्त षर्तो को समझाया गया व उनके द्वारा रूचि लिए जाने के बाद एवं उनके मेम्बर बनने की इच्छा के अनुरूप वर्कषीट तैयार की गई । उनसे रू. 60,000/- प्राप्त कर दिनंाक
29.10.2002 को रसीद दी गई , एवं रू. 21,250/- का डिस्काउण्ट भी दिया गया । उपभोक्ता द्वारा उक्त भुगतान स्वेच्छा से बिना किसी डर,दबाव व पूरी जानकारी के साथ तत्समय किया गया है । इस बात को अस्वीकार किया गया कि उपभोक्ता को यह भी बतलाया गया हो कि उक्त रू. 60,000/- की राषि में वार्षिक रखरखाव चार्जेज भी सम्मिलित है । टाईम षेयर एग्रीमेंट संलग्न करते हुए यह भी बताया गया कि इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि उपभोक्ता अथवा टाईम षेयर होल्डर वार्षिक रखरखाव चार्जेज के लिए एग्रीमेंट की षर्त संख्या 8 व 9 के अन्तर्गत दायी है । यह कि बताया गया कि अप्रार्थी द्वारा उपभोक्ता को कभी भी रिसोर्ट की सुख सुविधाओं से वंचित किए जाने बाबत् मना नही ंकिया गया है । वास्तविकता यह है कि उपभोक्ता स्वयं अपनी वृद्वावस्था व स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रकाष में उक्त रिर्सोट की सुख सुविधा का उपभोग करना नहीं चाहता था । यह भी बताया गया कि अप्रार्थी का यह दायित्व नहीं था कि वह उपभोक्ता को सूचित करें कि टाईम षेयर एग्रीमेंट की टम्र्स एण्ड कण्डीषन को ध्यान में रखते हुए इनका उपभोग करें । उपभोक्ता अब उक्त एग्रीमेंट के 10 वर्षाे की अवधि की समाप्ति के बाद अप्रार्थी को सेवा में दोषी नहीं ठहरा सकते । इस बात को अस्वीकार किया गया कि उपभोक्ता द्वारा अनेकांे पत्रों द्वारा अप्रार्थी को सूचित किया गया हो । परिवाद के साथ ऐसे पत्रों की की प्रतियां भी संलग्न नहीं की गई है । उपभोक्ता 10 वर्षो के बाद अब किसी प्रकार का अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है । उसके द्वारा ई-मेल के जरिए रिर्सोट के उपभोग की सूचना दिए जाने को भी अस्वीकार किया गया । उपभोक्ता ने पत्र दिनंाक 13.2.2013 में स्वयं ने यह स्वीकार किया है कि वह सन् 2002 में भुगतान की गई राषि को स्वास्थ्य संबंधी कारणों से वापस लेना चाहता है । अन्त में परिवाद का मियाद बाहर प्रस्तुत करना बतलाते हुए खारिज होने योग्य बतलाया व उपभोक्ता से उन्हें हुई मानसिक क्षतिपूर्ति पेटे रू. 35,000/- व वाद व्यय के रू. 25,000/- दिलवाते हुए परिवाद खारिज किए जाने की प्रार्थना की है ।
3. परिवाद के उक्त जवाब के साथ अप्रार्थी की ओर से धारा 24(।) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करते हुए बतलाया गया कि उक्त परिवाद एग्रीमेंट दिनंाक 29.10.2002 के क्लाॅज 15 के अन्तर्गत 10 दिन के अन्दर अन्दर किया जा सकता था किन्तु 10 वर्षो के बाद उपभोक्ता द्वारा परिवाद प्रस्तुत किए जाने के कारण उसका परिवाद समयावधि बाधित होकर खारिज होने योग्य है । जवाब समर्थन में श्री रंजीत पट्टाजोषी का ष्षपथपत्र पेष किया है ।
4. उपभोक्ता ने उक्त प्रार्थना पत्र का जवाबुल जवाब प्रस्तुत करते हुए बतलाया कि एग्रीमेंट के पैरा 9 के अन्तर्गत उपभोक्ता किसी प्रकार का कोई रखरखाव चार्जेज देने का दायी नहीं है । यह भी बतलाया गया कि वास्तव में उपभोक्ता दिनांक 1.6.2003 से 31.5.2013 के दौरान 10 वर्ष की अवधि में ैजनकपव ।बबवउउवकंजपवद के लिए एक सप्ताह की छुट्टियों का पात्र था । जबकि अप्रार्थी ने इस अवधि में उपभोक्ता को ऐसी कोई सुविधा प्रदान नहीं की । फलतः वह रखरखाव की राषि अदा करने का पात्र नहीं है । अप्रार्थी द्वारा दिनांक 1.6.2003 से 31.5.2013 क अवधि में किसी प्रकार का कोई त्मेवतज ।बबवउउवकंजपवद प्रदान नहीं किया । अन्त में परिवाद को मियाद अवधि के अन्दर बतलाते हुए अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत किए गए समस्त तथ्यों को आधारहीन बतलाया व वांछित अनुतोष प्रदान किए जाने की प्रार्थना की है । इसके समर्थन में उपभोक्ता ने स्वयं का षपथपत्र पेष किया ।
5. उभय पक्षकारेां की बहस में सर्वप्रथम अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने परिवाद को मियाद बाहर होना बतलाया है व इसी कारण परिवाद को खारिज होने येाग्य बतलाया । उनका तर्क रहा है कि यह परिवाद एग्रीमेंट की 10 वर्ष की अवधि के बाद प्रस्तुत किया गया है जबकि एग्रीमेंट की षर्तो के अनुसार उपभोक्ता द्वारा उक्त करार पर हस्ताक्षर किए जाने के 10 दिनों के अन्दर ही समाप्त किया जा सकता था । अपने तर्को के समर्थन में उनकी ओर से ।प्त् 2011 ैब् 212क्तण् टण्छण्ैीतपाींदकम टे डतेण् ।दपजं ैमदं थ्मतदंदकमेए ।प्त् 2009 ;छव्ब्द्ध 1792;छब्ब्द्ध डंींदंहंत ज्मसमचीवदम छपहंउ स्जक टे टण्ज्ञण्।ीनरं ए2015;1द्धब्पअपस ब्वनतज ब्ंेमे 497;ैब्द्ध ैजंजम व िज्तपचनतं - व्ते टे ।तंइपदकं ब्ींातंइवतजल - व्तेए2009क्छश्र;ैब्द्ध521 ैठप् टे डध्े ठण्ैण् ।हतपबनसजनतंस प्दकनेजतपमेए त्स्ॅ 1999;2द्धत्ंरंेजींद ैउजण् च्नतं टे स्ंसाप ंदक ।दवजीमत ंदक त्स्ॅ 2006;4द्धैब्2877 त्ण्क्ण् छंहचंस टे टपरंल क्नजज - ।दत पर अवलम्बन लिया है ।
6. विद्वान अधिवक्ता उपभोक्ता ने इन तर्को का खण्डन किया व सम्पूर्ण करार अवधि के समाप्त हो जाने के बाद तुरन्त 2 वर्ष के अन्दर अन्दर परिवाद प्रस्तुत किए जाने से परिवाद समयावधि के अन्दर बतलाया ।
7. हमने परस्पर तर्क सुने व प्रस्तुत विष्निचयों में प्रतिपादित सिद्वान्तों का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया ।
8. प्रष्नगत करार में पक्षकारों के मध्य दिनंाक 1.6.2003 से 31.5.2013 तक प्रत्येक वर्ष रिर्सोट सुविधा प्राप्त किए जाने का उल्लेख है ऐसी स्थिति में उपभोक्ता करार के अन्त तक उक्त सुविधा प्राप्त करने का अधिकारी था और यदि उसने अंतिम वर्ष में उक्त सुविधा प्राप्त की हो अथवा नहीं की हो तो ऐसी स्थिति में तत्समय तक वादकारण कायम रहेगा । वह करार की अवधि समाप्त होने के बाद 2 वर्ष के अन्दर अपने अधिकारों के लिए सक्षम क्षेत्राधिकारिता के समक्ष वांछित अनुतोष प्राप्त करने हेतु चाराजोही करने के लिए स्वतन्त्र है व इन हालात में उसका परिवाद समयावधि से बाधित नहीं माना जा सकता । जो विनिष्चय प्रस्तुत हुए हैं वे किसी ऐसे करार से उत्पन्न हुए वादकारण से संबंधित नहीं हंै तथा भिन्नता लिए हुए हंै जो उनके लिए तथ्यों की भिन्नता के कारण सहायक नहीं है ।
9. अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी आपत्ति उठाई है कि उपभोक्ता की ओर से जो श्री रमेष चन्द प्रतिनिधित्व कर रहे हंै, वे अधिकृत प्रतिनिधि नहीं हंै । उन्हें अधिकृत होने के लिए लिखित में अधिकार पत्र आवष्यक है । उन्होनंे इस संबंध में त्स्ॅ 2006;4द्धैब्2877 त्ण्क्ण् छंहचंस टे टपरंल क्नजज - ।दत पर अवलम्बन लिया है ।
10. खण्डन में उपभोक्ता की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया है कि उपभोक्ता की वृद्वावस्था को ध्यान में रखते हुए उसके द्वारा श्री रमेष चन्द को अधिकृत किया गया है जो परिवाद प्रस्तुत किए जाने से ही है और वे इस प्रकरण में प्रारम्भ से ही पैरवी करते चले आ रहे हैं व अधिकृत हंै । उनको लिखित में अधिकृत करने की कोई आवष्यकता नहीं है ।
11. हमने इस सदर्भ में विचार किया है । विनिष्चयों में प्रतिपादित सिद्वान्तों का अवलोकन किया है । स्वीकृत रूप से उपभोक्ता 70 वर्ष, अब लगभग 73 वर्ष का होकर सीनियर सिटीजन की श्रेणी में आता है । परिवाद उसी के द्वारा प्रस्तुत हुआ है । रमेष चन्द का अभिभाषक पत्र पत्रावली पर मार्फत श्री रमेष चन्द्र द्वारा दिनांक 24.5.2013 का संलग्न है । जिसके अन्तर्गत उपभोक्ता द्वारा इन्हें अधिकृत किया गया है । इन हालात में विधिक प्रावधानों के प्रकाष में उपभोक्ता अधिकृत प्रतिनिधि के माध्यम से अपना परिवाद मंच के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है व इस संदर्भ में उठाई गई आपत्ति सारहीन होने के कारण खारिज होने योग्य है ।
12. अब हम परिवाद के गुणावगुण पर विचार करते हैं । परिवाद का मुख्य आधार यह रहा है कि सम्पूर्ण करार की अवधि में अप्रार्थी द्वारा उपभोक्ता को समय समय पर रिर्सोट की सुविधा प्रदान नहीं की गई। उसे रखरखाव चार्जेज भी दिए जाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता व समय समय पर किए गए पत्राचार के बावजूद कोई जवाब अथवा सुविधा उपलब्ध नहीं करवाए जाने की स्थिति में अप्रार्थी सेवा में दोषी का पात्र है । फलतः उपभोक्ता वांछित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है । उसकी ओर से विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि उक्त रिसोर्ट में सुविधा दिए जाने हेतु उनके द्वारा पत्राचार किया व ई-मेल द्वारा भी लिखा गया, परन्तु अप्रार्थी द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया ।
13. विद्वान अधिवक्ता अप्रार्थी ने उपरोक्त तर्को को खण्डन किया व उपभोक्ता द्वारा स्वयं उक्त सुविधा का लाभ अपनी वृद्वावस्था के कारण नहीं उठा पाना बताया व उसे किसी प्रकार का कोई अनुतोष का अधिकार नहीं होना बताया ।
14. सर्वप्रथम यहां यह लिखना उचित रहेगा कि उपभोक्ता ने अपने परिवाद में करार की अवधि 10 वर्ष दिनंाक 1.5.2002 से 31.5.2013 तक बताई उसने इस संबंध में अनुबन्ध प्रदर्ष ।-2 भी प्रस्तुत किया । उक्त करार के संदर्भ में रिर्सोट उपभोग करने का अधिकार 10 वर्षो के लिए दिनांक 1.6.2003 से
31.5.2013 तक के लिए था, जैसा कि ब्वनदजतल प्छछ डमउइमतेीपच के प्रमाण पत्र से स्पष्ट है । इस प्रकार स्वयं उपभोक्ता ने उक्त करार की तिथियां गलत अंकित की है ।
15. बहस के दौरान उपभोक्ता के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी तर्क प्रस्तुत किया कि इन 10 वर्षो के दौरान अप्रार्थी द्वारा उसे कभी भी अवगत नहीं कराया कि उपभोक्ता को आरक्षण कराना है व कहां आरक्षण कराना है व कितने दिन पहले कराना है । यहां यह उल्लेखनीय है कि सुविधा का उपभोग उपभोक्ता को अपनी सुविधा के अनुसार करार की षर्तो के अधीन प्रत्येक वर्ष में एक सप्ताह के लिए किया जाना था एवं इसके लिए उसे स्वयं पहल करनी थी न कि अप्रार्थी के लिए अपेक्षित था कि वह उसे सूचित करें कि कब आरक्षण करना है व कहां आरक्षण काना है ।
16. उपभोक्ता ने रिर्सोट की सुविधा के लिए अप्रार्थी को पत्र दिनंाक 5.3.2003 , 4.5.2004, 9.4.2005, 11.4.2006, 17.3.2007,19.4.2007, 25.8.2008, 1.5.2009, 11.6.2010, 12.5.2011 व 10.5.2012 लिखना बतलाया है
17. सर्वप्रथम क्या ये पत्र अप्रार्थी को मिल गए थे, यह उपभोक्ता सिद्व नहीं कर पाया है क्योंकि न तो इनकी कोई रसीद प्रस्तुत की गई है और ना ही कोई अन्य साक्ष्य से इसको सिद्व किया गया है । आष्चर्य की बात यह भी है कि उपभोक्ता ने अपने 11.4.2006 के पत्र में अप्रार्थी को दिनंाक 25.4.2005 अर्थात एक वर्ष पहले रिर्सोट में ठहरने के लिए रिर्सोट रिजर्व करने की सूचना दी है । अतः इस पत्र की स्थिति से भी सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है । उपभोक्ता द्वारा दिनांक 3.4.2013 को अप्रार्थी को ई-मेल भिजवाया गया है। इसी के संदर्भ में अप्रार्थी द्वारा उपभोक्ता को दिनांक 2.4.2013 के ई- मेल द्वारा सूचित किया गया है कि उसकी मेम्बरषिप की अवधि दिनंाक 31.5.2013 को समाप्त हो रही है तथा इससे पहले वह एक सप्ताह की छुट्टी का उपभोग कर सकता है । किन्तु किसी भी पत्र अथवा सूचना से प्रकट नहीं होता कि उपभोक्ता ने उक्त ई-मेल के संदर्भ में यह कन्फर्म किया हो कि वह निष्चित अवधि में उक्त रिर्सोट का उपभोक्ता करना चाहेगा वह तदानुसार रिजर्व किया जाए । स्पष्ट है कि स्वयं उपभोक्ता ने पूरे करार की अवधि में प्रत्येक वर्ष निष्चित अवधि के लिए पूर्व सूचना दी जाकर रिर्सोट की सुविधा हेतु अप्रार्थी को सूचित कर दिया हा,ेऐसा सिद्व नहीं किया है । जहां तक रखरखाव के खर्चे का प्रष्न है, यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब उपभोक्ता भी सुविधा का उपभोग करे अथवा उपभोग करने के लिए अग्रिम सूचना देवें ।
18. इन सब स्थिति के अलावा पक्षकारों ने टाईम षेयर एग्रीमेंट दिनांक 29.2.2002 को निष्पादित किया है जिसकी टम्र्स एण्ड कण्डीषन के पैरा-13 के अनुसार पक्षकारों के मध्य विवाद होने की स्थिति में क्षेत्राधिकारिता दिल्ली के न्यायालयों को होगी । टम्र्स एण्ड कण्डीषन के पैरा 17 के अनुसार प्रत्येक विवाद मध्यस्थ को संबंधित अधिनियम के संदर्भ में सौंपा जाएगा । चूंकि उभय पक्ष के मध्य हुए करार के अन्तर्गत दोनों पक्ष इस कारार में विहित षर्तो से बाध्य थे, इन हालात में उपभोक्ता अपना विवाद इस मंच के समक्ष लाने से भी निषिद्व है ।
19. उक्त विवेचन के प्रकाष में उपभोक्ता यह सिद्व नहीं कर पाया है कि उसका विवाद अप्रार्थी की सेवा दोष का परिणाम था । परिणामस्वरूप परिवाद अस्वीकार किया जाकर खारिज होने योग्य है ।
-ःः आदेष:ः-
20. उपभोक्ता का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 28.03.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष