Uttar Pradesh

StateCommission

C/1998/39

Mr. Prashant Chandra - Complainant(s)

Versus

Airtel Bharti Cellular Ltd. - Opp.Party(s)

P. Chandra

05 Apr 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. C/1998/39
( Date of Filing : 20 Apr 1998 )
 
1. Mr. Prashant Chandra
a
...........Complainant(s)
Versus
1. Airtel Bharti Cellular Ltd.
a
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 05 Apr 2021
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

परिवाद सं0- 39/1998

Prashant chandra, advocate, aged about 43 years, Son of Late Dr. R.C. srivastava, Resident of Hargovind Villa, Wazir Hasan road, Lucknow.

                                                                                        ………Comp.

                                                    Versus

1. Airtel, Bharat cellular Ltd. D-184, Okhla Industrial area, Phase-1 New Delhi-110020, through its Managing Director.

2. Koshika telecom Ltd. (Ushaphone), Franchises of Airtel, 20 Jopling road, Lucknow.   

                               ………Opposite parties

समक्ष:-

       माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

       माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

 

परिवादी की ओर से     : श्री सर्वेश कुमार शर्मा के सहयोगी,

                       अधिवक्‍ता श्री पियूष मणि त्रिपाठी।

विपक्षीगण की ओर से  : श्री सी0के0 सेठ के सहयोगी,

                       अधिवक्‍ता श्री शोभित कांत। 

 

दिनांक:- 05.04.2021

 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

निर्णय

1.        परिवादी प्रशांत चन्‍द्र एड्वोकेट द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण एयरटेल भारत सेल्‍यूलर लि0 व एक अन्‍य के विरुद्ध धारा 17 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया है।

2.        परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसने विपक्षीगण के कार्यालय से अंकन 4,260/-रू0 अदा कर अपना कैश कार्ड क्रियाशील कराया था और लखनऊ से दिल्‍ली के लिए यात्रा प्रारम्‍भ की, परन्‍तु दिल्‍ली पहुँचने पर कनेक्‍शन समाप्‍त हो गया इस कारण परिवादी का यह कथन है कि तीन बार दिल्‍ली आने-जाने के कारण 3,60,000/-रू0 की हानि हुई। एयर टिकट क्रय करने पर 39,000/-रू0 हानि हुई। अंकन 350/-रू0 टैक्‍सी किराया दिया गया और परिवादी को अपनी चाची की बीमारी द्वारा दि0 02.01.1998 को मृत्‍यु की सूचना प्राप्‍त नहीं हो सकी। अत: इस मद में अंकन 1,00,000/-रू0 तथा मान-सम्‍मान में कमी एवं मानसिक प्रताड़ना के रूप में 2,00,000/-रू0 और सेवा में कमी के मद में 3,00,000/-रू0 प्रतिकर की मांग करते हुए यह परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है। साथ ही उपरोक्‍त वर्णित राशि पर 24 प्रतिशत ब्‍याज की भी मांग की गई है।

3.        विपक्षीगण कम्‍पनी का कथन है कि इंडियन टेलीग्राफ एक्‍ट की धारा 7B  के अनुसार यह प्रकरण राज्‍य आयोग के समक्ष संधारणीय नहीं है। यह भी उल्‍लेख किया गया है कि परिवादी ने अनाधिकृत अभिकर्ता से अपना मोबाइल कनेक्‍शन रिचार्ज कराया था और वर्ष 1998 में यह कम्‍पनी उ0प्र0 में व्‍यापार नहीं करती थी। वर्ष 2004 से उ0प्र0 में व्‍यापार करने की अनुमति प्राप्‍त हुई है। कम्‍पनी के समक्ष कभी कोई आपत्ति नहीं की गई। यह भी कथन किया गया है कि यह कनेक्‍शन केवल दिल्‍ली में क्रियाशील होना है, इसलिए परिवादी को यह तथ्‍य साबित करना है कि प्रश्‍नगत वह दिल्‍ली में मौजूद था।

4.        परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा के सहयोगी अधिवक्‍त श्री पियूष मणि त्रिपाठी उपस्थित आये। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता श्री सी0के0 सेठ की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री शोभित कांत उपस्थित आये, परन्‍तु उनके द्वारा बहस नहीं की गई। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता की बहस सुनी गई। पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों का अवलोकन किया गया।

5.        सर्वप्रथम इस बिन्‍दु पर विचार किया जाता है कि क्‍या परिवाद टेलीग्राफ एक्‍ट की धारा 7B के प्राविधान से राज्‍य आयोग के समक्ष संधारणीय हेतु बाधित है। इस प्रश्‍न का उत्‍तर नकारात्‍मक है, क्‍योंकि धारा 7B के प्राविधान लाइन को संशोधन के बिन्‍दु पर विचार करने की स्थिति पर लागू होते हैं न कि कनेक्‍शन रिचार्ज कराने के विवाद पर।

6.        लिखित कथन के अनुसार बीमा कम्‍पनी का यह दावा है कि मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा जनरल मैनेजर टेलीकाम बनाम मेसर्स कृष्‍णा तथा अन्‍य में 01 सितम्‍बर 2009 को पारित किए गए निर्णय के अनुसार यदि टेलीग्राफ एक्‍ट की धारा 7B में उपचार उपलब्‍ध है तब जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष परिवाद प्रस्‍तुत करने की आवश्‍यकता नहीं है। उपरोक्‍त केस के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी पर टेलीफोन उपभोग का बिल बकाया था, इसलिए कनेक्‍शन काट दिया गया था। उपभोक्‍ता द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष परिवाद प्रस्‍तुत किया गया, परन्‍तु मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष परिवाद संधारणीय नहीं पाया गया। इस नजीर में टेलीग्राफ के नियम 413 का उल्‍लेख किया गया है जिसके अनुसार सभी सेवायें टेलीग्राफ एक्‍ट से नियंत्रित होती हैं। इसी नियम के विरुद्ध नियम सं0- 443 में टेलीफोन कनेक्‍शन विच्‍छेद करने की व्‍यवस्‍था दी गई है, परन्‍तु इस नजीर में रिचार्ज कराने के पश्‍चात टेलीफोन रिचार्ज न होने के बिन्‍दु पर कोई चार्ज नहीं किया गया है। अत: रिचार्ज के लिए धन जमा करने के पश्‍चात सेल्‍यूलर फोन कनेक्‍ट न करना इस नियम एवं नजीर के अंतर्गत नहीं आता है। प्रस्‍तुत केस में सेल्‍यूलर कम्‍पनी द्वारा रिचार्ज धन वसूल करने के बावजूद कनेक्‍शन जारी न करना सेवा में कमी है।

7.        परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि स्‍वयं विपक्षी के प्रबंध निदेशक द्वारा यह स्‍वीकार किया गया है कि परिवादी को यह सुविधा कारित हुई है और इसकी प्रतिपूर्ति करने के लिए तैयार है इस पत्र की प्रति पत्रावली पर मौजूद है। अत: इस तथ्‍य से स्‍थापित हो जाता है कि विपक्षी को यह स्थिति स्‍वीकार है कि परिवादी की सेल्‍यूलर फोन सं0- 9810079866 के लिए कैश क्रेडिट परचेज किया गया और अंकन 4,260/-रू0 अदा किया गया, परन्‍तु इसके बावजूद जब परिवादी दिल्‍ली गया तब यह कनेक्‍शन जारी नहीं हुआ, इसलिए विपक्षीगण द्वारा यह निश्चित रूप से यह सेवा कारित हुई है, परन्‍तु परिवादी द्वारा जब विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति के रूप में जिन धनराशियों की मांग की गई है उनमें से सेवा में कमी के लिए और शेष सेवा में कमी के लिए मांग की गई धनराशि दूरवर्ती क्षति की स्थिति में आती है। किसी भी सेवा प्रदाता कम्‍पनी को दूरवर्ती क्षति के लिए उत्‍तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। परिवादी केवल वह राशि प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है जो उनके द्वारा कैश कार्ड क्रय करने के लिए विपक्षीगण के कार्यालय में जमा करायी गई तथा सेवा में कमी के मद में भी निश्चित धनराशि प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है।

8.        अब इस बिन्‍दु पर विचार करना है कि सेवा में कमी के बिन्‍दु पर परिवादी किस धनराशि को प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है। परिवाद पत्र के अनुसार इस मद में अंकन 3,00,000/-रू0 की धनराशि मांग की गई है। अब 3,00,000/-रू0 की मांग का कोई आधार परिवाद पत्र में वर्णित नहीं है न ही बहस के दौरान इस ऊंची राशि की क्षतिपूर्ति के लिए कोई तर्क प्रस्‍तुत किया गया है। केवल यह  कथन किया गया है कि परिवादी को मानसिक प्रताड़ना का‍रित हुई और सेल्‍यूलर फोन का सम्‍पर्क न होने के कारण वह अपनी चाची की बीमारी/मृत्‍यु के पश्‍चात अन्तिम क्रिया कर्म में भी शामिल नहीं हो सका। यह सही है कि परिवादी को मानसिक प्रताड़ना एवं असुविधा कारित हुई है, इसलिए परिवादी इस पीठ की राय में अंकन 1,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है।    

आदेश

9.        परिवाद इस रूप में स्‍वीकार किया जाता है कि विपक्षीगण, परिवादी को अंकन 1,04,260/-रू0 परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से अन्तिम भुगतान की तिथि तक इस राशि पर 06 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्‍याज सहित अदा करें।     

          उभयपक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।                

           

  (विकास सक्‍सेना)                        (सुशील कुमार)

     सदस्‍य                                सदस्‍य

 

   शेर सिंह, आशु0

   कोर्ट नं0- 2  

 

 

         

    

 

 

 

 

 

 

 

 

 

         

 

         

 

           

            

                        

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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