Uttar Pradesh

StateCommission

A/210/2020

Smt. Megha Motwani - Complainant(s)

Versus

Agra Development Authority - Opp.Party(s)

Rajiv Srivastava

30 Sep 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/210/2020
( Date of Filing : 06 Mar 2020 )
(Arisen out of Order Dated 12/02/2020 in Case No. C/83/2014 of District Agra-II)
 
1. Smt. Megha Motwani
W/O Sri Harish Kumar Motwani R/O C/O harish Readymate Corner house No. 13/30 Shahganj Distt. Agra
...........Appellant(s)
Versus
1. Agra Development Authority
Jaipur house Distt. Agra Through its Secretray
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 30 Sep 2021
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                 (सुरक्षित)

अपील सं0 :- 210/2020

(जिला आयोग, द्वितीय आगरा द्वारा परिवाद सं0- 83/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 12/02/2020 के विरूद्ध)

Smt. Megha Motwani Wife of Sri Harish Kumar Motwani, Resident of C/O Harish Readymate Corner, House No. 13/30 Shahganj, Agra, District-Agra

 

  1. Appellant/complainant  

 

  •  

 

Agra Development Authority, Jaipur House, District-Agra through its Secretary.

 

  1. Respondent/opposite party

समक्ष

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष

उपस्थिति:

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता:-       श्री राजीव श्रीवास्‍तव

प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता:-         श्री ओम प्रकाश पाण्‍डेय

दिनांक:- 05-10-2021  

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

              प्रस्‍तुत अपील अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा जिला आयोग, आगरा द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित 12.02.2020 के विरूद्ध योजित की, जो परिवाद सं0 83/2014 में जिला फोरम, द्वितीय आगरा द्वारा पारित किया गया।

          संक्षेप में परिवाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादिनी  आगरा विकास प्राधिकरण आगरा की शास्‍त्रीपुरम योजना में एल0आई0जी0 के लिए दिनांक 21.09.2002 को आवेदन किया था और मु0 22,000/- रू0 जमा करके अपना रजिस्‍ट्रेशन कराया था। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा अपीलार्थी/परिवादिनी को भवन सं0- एल0आई0जी0- ए- 148 63.17 वर्गमीटर का एक भवन दिनांक 07.10.2002 को लॉटरी द्वारा आवंटित किया गया था। अपीलार्थी/परिवादिनी बीमार रहती है और इस कारण अपीलार्थी/परिवादिनी ने मनोज कुमार पुत्र श्री विजय पाल सिंह को रजिस्‍टर्ड पॉवर आफ अटॉरनी देकर उक्‍त प्‍लाट के संबंध में कार्यवाही करने के समस्‍त अधिकार दे रखे हैं। उक्‍त भवन का कुल मूल्‍य मु0 2,12,657/- रू0 तथा फ्री होल्‍ड राशि मु0 10,666 कुल मु0 2,23,323/- रू0 है। इसमें से अपीलार्थी/परिवादिनी मु0 45,000/- रू0 दिनांक 27-09-2012 त‍था मु0 75,000/- रू0 दिनांक 28-09-2012 तथा मु0 10,000/- रू0 30-03-2013 में जमा करा चुकी है और अपीलार्थी/परिवादिनी मु0 2,23,323/- रू0 मे से मु0 1,52,000/- रू0 लगभग जमा करा चुकी है तथा शेष धनराशि जमा करने को तैयार है। अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा रूपये जमा कराने में हुए विलम्‍ब के कारण प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने मनमाने तरीके से अधिक ब्‍याज लगा दी। अपीलार्थी/परिवादिनी ने यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया में एक मुश्‍त समाधान योजना के अंतर्गत दिनांक 30-03-2013 को मु0 500/- रू0 शुल्‍क जमा किया था और समाधान योजना की कार्यवाही विचाराधीन थी, परंतु प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने अपीलार्थी/परिवादिनी के प्रार्थना पत्र को आज तक निस्‍तारित नहीं किया। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने अपीलार्थी/परिवादिनी के फ्लैट सं0- एल0आई0जी0-ए-148, शास्‍त्रीपुरम को शेष बचे फ्लैटों की नीलामी में शामिल कर लिया। अपीलार्थी/परिवादिनी के अधिकृत प्रतिनिधि मनोज कुमार यादव ने वहां पहुंचकर लिखित में एतराज जताया और एतराज की प्राप्ति रसीद मांगी। श्रीमती मेघा मोटवानी उक्‍त प्‍लाट में आवंटन की तिथि से ही काबिज हैं और शेष धनराशि जमा करने के लिए तैयार है। अपीलार्थी/परिवादिनी को विश्‍वस्‍त सूत्रों से ज्ञात हुआ कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने मनमाने तरीके से अपीलार्थी/परिवादिनी का भवन गैर कानूनी तरीके से आवंटित करना विधि विरूद्ध है और निरस्‍त होने योग्‍य है। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी ने अपीलार्थी/परिवादिनी के मकान को         एकमुश्‍त समाधान योजना के अंतर्गत निस्‍तारित न कर उपभोक्‍ता विवाद उत्‍पन्‍न किया है जो फोरम के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है। विपक्षी का उपरोक्‍त कृत्‍य सेवा में कमी की श्रेणी में आता है।

          अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा जिला फोरम के सम्‍मुख अपने परिवाद पत्र में प्रार्थना की है कि अपीलार्थी/परिवादिनी को उक्‍त आवंटित मकान किसी     अन्‍य को बिक्री करने के लिए प्रत्‍यर्थी/विपक्षी को रोका जावे और यदि     आवंटन कर दिया गया है तो उसे निरस्‍त किया जावे। अपीलार्थी/परिवादिनी ने यह भी प्रार्थना की है कि उक्‍त मकान को पुरानी कीमत मु0 2,23,323/- रू0 पर 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज लेकर अपीलार्थी/परिवादिनी के हक में दो माह   के अंदर बैनामा करने के आदेश दिया जावे और मानसिक पीड़ा के लिए मु0 50,000/- रू0 व वाद व्‍यय मु0 20,000/- रू0 प्रत्‍यर्थी/विपक्षी से दिलाया जावे। शपथ पत्र मनोज कुमार का दाखिला किया गया है तथा प्रलेखों की छायाप्रतियां दाखिल की है।

                        जिला उपभोक्‍ता आयोग, द्वितीय आगरा के सम्‍मुख विपक्षी आगरा विकास प्राधिकरण ने प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा परिवाद पत्र में वर्णित तथ्‍यों को गलत बताया तथा यह उल्‍लेख किया कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने मु0 रू0 22,000/- यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया  एक्‍सटेंशन काउन्‍टर ए0डी0ए0 आगरा में दिनांक 21.09.2002 को पुराना नम्‍बर-35 के द्वारा रजिस्‍ट्रेशन के लिए एल0आई0जी0 मकान विपक्षी प्राधिकरण द्वारा प्रस्‍तावित योजना के अंतर्गत धन जमा कराया था। उपरोक्‍त मकान अपीलार्थी/परिवादिनी को पत्रांक सं0-232/डी/ए.ई. (पी)/02 दिनांकित 29.10.2002 के द्वारा इस शर्त पर आवंटित किया गया कि मकान की कीमत मु0 2,23,323/- रू0 होगी जिसमें फ्री होल्‍ड का मु0 10,666/- रू0 शामिल है। मु0 31,198/- रू0 आवंटन एवं फ्री होल्‍ड चार्ज के रूप में देय होंगे जो कि दिनांक 30-12-2002 तक जमा किये जाने थे। शेष धन मु0 1,70,125/- रू0 60 त्रिमासिक किस्‍तों में 15 साल के अंदर जमा किये जाने थे, प्रत्‍येक किस्‍त मु0 7879/- रू0 थी। प्रतिवाद पत्र की धारा 03 में उल्‍लेख है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने मु0 31,198/- रू0 जिसमें मु0 20,532/- रू0 आवंटन के थे तथा मु0 10666/- रू0 फ्री होल्‍ड के थे, दिनांक 30-11-2002 तक जमा नहीं किये और तदनुसार जो पावर ऑफ अटार्नी अपीलार्थी/परिवादिनी ने मनोज कुमार पुत्र विजय पाल सिंह के पक्ष में की है उसका विधि के समक्ष कोई महत्‍व नहीं है। इसके            अतिरिक्‍त अपीलार्थी/परिवादिनी के ऊपर दिनांक 09-08-2013 तक मु0 7,86,842/- रू0 बकाया थे जो उसने अदा नहीं किये इसलिए उपाध्‍यक्ष ए0डी0ए0 ने अपने आदेश दिनांक 20-09-2013 के द्वारा आवंटन को निरस्‍त कर दिया।

          यह तथ्‍य निर्विवाद है कि परिवादिनी ने पिछले 10 वर्षों की अवधि में, अर्थात दिनांक 29-10-2002 से 27-09-2012 तक एक भी पैसा जमा नहीं किया। अपीलार्थी/परिवादिनी के समक्ष यह विकल्‍प था कि वह आवंटन निरस्‍त होने के 03 माह की अवधि में प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत करती। अत: अब परिवादिनी कोई अनुतोष प्राप्‍त करने की अधिकारिणी नहीं है। यह भी उल्‍लेख किया गया है कि ब्‍याज की दर आवंटन आदेश दिनांक 29-10-2002 के अनुसार लगाई गई है। यह कहना कि ब्‍याज दर अधिक है, गलत है। मकान की कीमत का निर्धारण फोरम के अधिकार से बाहर है। अपीलार्थी/परिवादिनी ने ओ0टी0एस0 के अंतर्गत कोई प्रार्थना पत्र नहीं दिया है। प्रतिवाद पत्र की धारा 06 में उल्‍लेख है कि ए0डी0ए0 के द्वारा अनेकों नोटिस भेजने के बाद आवंटन को निरस्‍त किया गया। चूंकि अपीलार्थी/परिवादिनी ने 03 माह के अंदर अपने आवंटन को रिवाइब नहीं कराया इसलिए इस मकान को नीलामी के लिए ए0डी0ए0 ने शामिल कर लिया। आवंटन निरस्‍त होने के बाद मकान का कब्‍जा अनाधिकृत है। अपीलार्थी/परिवादिनी इस समय एक अनाधिकृत कब्‍जेदार इस मकान की है तथा ए0डी0ए0 को पूरा अधिकार अपीलार्थी/परिवादिनी को बेदखल करने का है। अपीलार्थी/परिवादिनी को कोई वाद कारण प्राप्‍त नहीं है। वर्तमान विवाद उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। विपक्षी ने सेवा में कोई कमी नहीं की है इसलिए अपीलार्थी/परिवादिनी कोई अनुतोष पाने की अधिकारिणी नहीं है। अतिरिक्‍त कथन की धारा 17 में लिखा गया है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने प्रश्‍नगत मकान का कब्‍जा अटार्नी होल्‍डर को दे दिया है इसलिए सूरज लेम्‍स (एवं इण्‍डस्‍ट्रीज बनाम स्‍टेट आफ हरियाणा व अन्‍य) की व्‍यवस्‍था के अनुसार यह ट्रांजेक्‍शन शून्‍य हो चुका है। परिवाद संधारणीय नहीं है, निराधार एवं निरस्‍त किये जाने योग्‍य है। श्री बाबू सिंह एडिशनल सैक्रेटरी का शपथ पत्र प्रतिवाद पत्र के साथ दाखिल किया गया है।

          अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा जिला फोरम के सम्‍मुख प्रति उत्‍तर शपथ पत्र दाखिल करके प्रतिवाद पत्र का विरोध किया जिससे यह सुस्‍पष्‍ट है कि उपरोक्‍त प्रति उत्‍तर पर अपीलार्थी/परिवादिनी श्रीमती मेघा मोटवानी एवं मनोज कुमार दोनों के हस्‍ताक्षर हैं, जिसमें अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा पूर्व में परिवाद पत्र में वर्णित तथ्‍य को उन्‍हें दोहराते हुए यह उल्‍लेख किया कि अपीलार्थी/परिवादिनी के पति अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गये। अतएव ए0डी0ए0 ने किस्‍तों के बारे में अपीलार्थी/परिवादिनी को कोई सूचना नहीं दी तथा जब अपीलार्थी/परिवादिनी विपक्षी प्राधिकरण के कार्यालय गयी तब उसे यह पता चला कि उसके द्वारा 31,148/- रूपये जमा करना है, जिस पर अपीलार्थी/परिवादिनी ने विपक्षी को अवगत कराया कि उसके पास धन उपलब्‍ध नहीं है, जिस पर अपीलार्थी/परिवादिनी ने यह कथन किया कि वे 6 प्रतिशत ब्‍याज के साथ जमा धनराशि को बाद में जमा करने हेतु समहत है, तदोपरान्‍त अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा स्‍वयं विभिन्‍न तिथियों पर प्राधिकरण के सम्‍मुख कुल रूपये 2,45,723/- जमा कराये, तदोपरांत स्‍वयं उसके द्वारा दिनांक 30-03.2013 को मु0 500/- रूपये एकमुश्‍त समाधान योजना के अंतर्गत भी जमा किये गये। अपीलार्थी/परिवादिनी के विद्धान अधिवक्‍ता द्वारा उपरोक्‍त तथ्‍यों को इंगित करते हुए यह कथन किया गया कि जिला फोरम द्वारा उपरोक्‍त तथ्‍यों को सुसंगत रूप से परीक्षण न करते हुए अपने निर्णय के अनुसार यह आदेश पारित किया गया कि अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्‍तुत किया गया परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है तथा यह कि यदि विपक्षी प्राधिकरण अपीलार्थी/परिवादिनी से वांछित धन लेकर उसके आवंटन को पुनर्जीवित नहीं करता है तो उस दशा में वह अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा जमा कराया गया कुल धन वापस करेगा, जिस पर 6 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज 30 दिवस की अवधि में जमा तिथि से देय तिथि तक अर्थात वास्‍तविक भुगतान की तिथि तक प्रत्‍यर्थी/विपक्षी प्राधिकरण अपीलार्थी/परिवादिनी को वापस करेगा।

          मेरे द्वारा उभय पक्ष के विद्धान अधिवक्‍ता श्री राजीव श्रीवास्‍तव एवं प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री ओम प्रकाश पाण्‍डेय को विस्‍तृत रूप से सुना गया, दौरान बहस श्री ओम प्रकाश पाण्‍डेय प्राधिकरण के अधिवक्‍ता द्वारा यह अवगत कराया गया कि जिला फोरम के निर्णय एवं आदेश दिनांक 12.02.2020 के अनुपालन में प्राधिकरण द्वारा अनेकों बार अपीलार्थिनी/परिवादिनी को देय धनराशि प्राप्‍त कराने की भरसक चेष्‍टा/कोशिश की गयी परंतु अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा देय धनराशि स्‍वीकार नहीं की गयी, प्रस्‍तुत अपील उपरोक्‍त निर्णय दिनांक 12.02.2020 के विरूद्ध इस न्‍यायालय के सम्‍मुख प्रस्‍तुत की गयी है, जिसमें कार्यालय द्वारा त्रुटियां इंगित की गयी। उन इंगित त्रुटियों का निवारण करने हेतु अपीलार्थी/परिवादिनी के विद्धान अधिवक्‍ता को अवसर प्रदान किया जाता रहा परंतु उनके द्वारा आज दिनांक तक इंगित त्रुटियों का निवारण सुनिश्चित नहीं किया गया। दौरान बहस विपक्षी के विद्धान अधिवक्‍ता द्वारा अवगत कराया गया कि उपरोक्‍त विवादित एल0आई0जी0 फ्लैट में अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा अवैधानिक रूप से कब्‍जा करते हुए कि‍सी तृतीय पक्ष को कब्‍जा प्राप्‍त करा दिया गया है, जिससे अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा मासिक किराया भी वसूल किया जा रहा है, जैसा कि प्राधिकरण को ज्ञात हुआ है। उपरोक्‍त्‍ तथ्‍यो को दृष्टिगत रखते हुए तथा विद्धान जिला फोरम द्वितीय आगरा द्वारा पारित निर्णय के परिशीलनोपरान्‍त मैं यह पाता हूं कि प्रस्‍तुत अपील में इंगित त्रुटियों का निवारण डेढ वर्ष की अवधि में भी अपीलार्थी/परिवादिनी के अधिवक्‍ता द्वारा सुनिश्चित नहीं किया जा सका साथ ही यह तथ्‍य भी विवादित नहीं है कि अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा गैर कानूनी ढंग से उक्‍त फ्लैट में किसी तीसरे पक्ष को कब्‍जा प्राप्‍त कराया गया है जो पूर्णतया अवैधानिक है तथा उक्‍त तथ्‍यो को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्‍तुत अपील को निरस्‍त किया जाता है साथ ही अपीलार्थी/परिवादिनी के विरूद्ध रूपये 20,000/- हर्जाना लगाया जाता है जो प्राधिकरण देय/वापसी की धनराशि में से काटकर बाकी की धनराशि अपीलार्थी/परिवादिनी को जिला फोरम द्वितीय, आगरा के द्वारा निर्णय एवं आदेश के अनुपालन में एक माह की अवधि में प्राप्‍त कराये तथा विवादित फ्लैट का कब्‍जा भी प्राप्‍त करे। तदनुसार प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

         

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

 

(न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)

अध्‍यक्ष

संदीप आशु0 कोर्ट 1

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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