सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-1270/2010
(जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय आगरा द्वारा परिवाद संख्या-160/2005 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.05.2010 के विरूद्ध)
श्रीमती ममता देवी पत्नी श्री प्रमोद कुमार बंसल, निवासिनी 6/330, बंलनगंज, आगरा।
अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम्
आगरा डेवलेपमेंट अथारिटी, द्वारा वाइस चेयरमैन, जयपुर हाउस, आगरा।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय श्री संजय कुमार, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री आर0के0 गुप्ता, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 09.01.2018
मा0 श्री संजय कुमार, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, परिवाद संख्या-160/2005, श्रीमती ममता देवी बनाम आगरा विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय आगरा द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.05.2010 से क्षुब्ध होकर परिवादिनी/अपीलार्थी की ओर से याजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत जिला फोरम द्वारा निम्नवत् आदेश पारित किया गया है :-
'' परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी की जमा धनराशि 8,000/- रूपए 9 प्रतिशत साधारण ब्याज सहित 1 जनवरी, 1996 से वास्तविक भुगतान दिनांक तक आदेश की दिनांक से तीस दिन के भीतर अदा करें। साथ ही उक्त अवधि में ही विपक्षी परिवादिनी को 3,000/- रूपए परिवाद-व्यय का भी अदा करें।
अवहेलना करने पर परिवाद-व्यय की धनराशि 3,000/- रूपए पर 9 प्रतिशत ब्याज आदेश की दिनांक से वास्तविक भुगतान की दिनांक तक देय होगा। ''
प्रस्तुत प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी ने प्लाट प्राप्त करने के लिए दिनांक 26.08.1977 को पंजीकरण शुल्क रू0 8,000/- जमा किये थे। परिवादिनी से 1996 में जो भी औपचारिकतायें पूरी करने के लिए कहा गया, उसे उसने पूरा किया, किन्तु विपक्षी द्वारा प्लाट नहीं दिया गया, जिससे क्षुब्ध होकर प्रश्नगत परिवाद जिला फोरम के समक्ष योजित किया गया।
विपक्षी की ओर से परिवाद पत्र का विरोध करते हुए प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया और मुख्यत: यह कहा गया कि मा0 सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अन्तर्गत 22.01.1996 को लॉटरी में परिवादिनी का नाम सम्मिलित किया गया था, लेकिन वह लॉटरी ड्रा में असफल रही, अत: उसे किसी अन्य योजना में कोई प्लाट नहीं दिया जा सकता, अत: परिवादिनी किसी भी अनुतोष को पाने की अधिकारिणी नहीं है। प्रतिवाद पत्र में यह भी कहा गया कि एक वर्ष के पश्चात जमा पंजीकरण धनराशि के अनुगामी माह के 6 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज सहित धनराशि वापस की जाती है, जिसे पाने के लिए नियमानुसार प्रार्थना पत्र व जमा धनराशि का मूल चालान व मूल पंजीकरण प्रमाण पत्र जमा करना होता है, जो जमा नहीं किया गया, अत: परिवादिनी कोई भी अनुतोष पाने की अधिकारिणी नहीं है। परिवाद गलत तथ्यों पर आधारित है, जो खारिज होने योग्य है।
जिला फोरम द्वारा उभय पक्ष को सुनने एवं पत्रावली का परिशीलन करने के उपरांत उपरोक्त निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.05.2010 पारित किया गया है।
अपील सुनवाई हेतु पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता उपस्थित हुए। विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुना गया एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश तथा उपलब्ध अभिलेखों का गम्भीरता से परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया कि जिला फोरम का निर्णय एवं आदेश संशोधित होने योग्य है, क्योंकि जिला फोरम ने ब्याज दर जो दिलायी है, वह दिनांक 01 जनवरी 1996 से दिलायी है, जबकि परिवादिनी द्वारा पैसा दिनांक 26.08.1977 को जमा किया गया था, अत: ब्याज की दर दिनांक 26.08.1977 से दिलायी जाये एवं ब्याज की दर 09 प्रतिशत दिलायी है, वह उचित नहीं है ब्याज दर 12 प्रतिशत की दर से दिलाया जाना उचित है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि जिला फोरम ने जो ब्याज की दर दिलायी है, वह उचित है एवं ब्याज की दर वर्ष 1996 से दिलाया जाना भी उचित है, क्योंकि दिनांक 22.01.1996 को लाटरी में परिवादिनी का नाम सम्मिलित किया गया था। इस प्रकार जिला फोरम का निर्णय एवं आदेश सही एवं उचित है। अपीलार्थी की अपील खारिज होने योग्य है।
आधार अपील एवं सम्पूर्ण पत्रावली का परिशीलन किया गया, जिससे यह तथ्य विदित होता है कि परिवादिनी/अपीलार्थी द्वारा प्लाट प्राप्त करने के लिए दिनांक 26.08.1977 को रू0 8,000/- पंजीकरण शुल्क विपक्षी/प्रत्यर्थी के यहां जमा किया गया था, लेकिन परिवादिनी लाटरी ड्रा में असफल रहने के कारण उसे किसी भी योजना में प्लाट नहीं दिया जा सका, जिसके आधार पर जिला फोरम ने जमा पंजीकरण धनराशि दिलाये जाने का आदेश दिया है एवं उस पर ब्याज की दर 01 जनवरी 1996 से 09 प्रतिशत दिलाये जाने का भी आदेश दिया है। अपीलार्थी/परिवादिनी का तर्क है कि ब्याज की दर जमा तिथि दिनांक 26.08.1977 से दिलायी जाये। यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से लाटरी ड्रा दिनांक 22.01.1996 को किया गया था, किन्तु पत्रावली पर मा0 सर्वोच्च न्यायालय का ऐसा कोई आदेश उपलब्ध नहीं कराया गया है, जिसमें ब्याज भी दिनांक 22.01.1996 से ही दिये जाने का उल्लेख हो। अत: विद्वान जिला फोरम ने ब्याज दिनांक 22.01.1996 से अनुमन्य करके त्रुटि की है। पंजीकरण धनराशि पर ब्याज की देयता उसके जमा करने की तिथि से ही होनी चाहिये। अपीलार्थी/परिवादिनी का यह भी तर्क है कि ब्याज की दर 09 प्रतिशत जो दिलायी गयी है, वह बहुत ही कम है, उसे 12 प्रतिशत होना चाहिये। यह तर्क भी स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है, क्योंकि प्राधिकरण के निमयों में यह स्पष्ट उल्लेख है कि पंजीकरण धनराशि एक वर्ष बाद वापिस किये जाने पर 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अनुमन्य होगा। विद्वान जिला फोरम ने 09 प्रतिशत ब्याज अनुमन्य किया है, जो प्राधिकरण के नियमों के विपरीत है, किन्तु इसके विरूद्ध प्राधिकरण द्वारा कोई अपील नहीं की गई है। अत: ब्याज की दर के सम्बन्ध में प्रश्नगत आदेश प्राधिकरण के विरूद्ध अंन्तिम हो चुका है। इसलिए वर्ष 1996 से ब्याज की दर 09 प्रतिशत जिला फोरम ने दिलायी है, उसमें इस स्तर पर कोई बदलाव सम्भव नहीं है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थियितों पर विचार करने के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश आंशिक रूप से संशोधित होने योग्य है। पंजीकरण की जमा धनराशि पर ब्याज दिनांक 22.01.1996 के स्थान पर दिनांक 26.08.1977 से देय होगा। अत: तदनुसार प्रश्नगत आदेश संशोधित होने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.05.2010 संशोधित करते हुए प्रत्यर्थी को निर्देशित किया जाता है कि वह अपीलार्थी/परिवादी को उसकी जमा धनराशि रू0 8000/- पर उसके जमा होने की तिथि दिनांक 26.08.1977 से वास्तविक भुगतान होने की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज का भुगतान इस आदेश के पारित होने की तिथि से 30 दिन की अवधि में करेगा। इसके जिला फोरम द्वारा अनुमन्य किये गये वाद व्यय रू0 3000/- का भी भुगतान उक्त अवधि में किया जाये।
अपील स्तर पर अपना-अपना वाद व्यय पक्षकार स्वंय वहन करेंगे।
पक्षकारान को इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(संजय कुमार) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-4