राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(सुरक्षित)
अपील सं0- 47/2019
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वितीय, आगरा द्वारा परिवाद सं0- 128/2015 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 05.12.2018 के विरुद्ध)
हाकिम सिंह पुत्र हर दयाल सिंह, निवासी ए-30, एल0आई0जी0 हाऊस, शास्त्रीपुरम योजना, आगरा
...............अपीलार्थी
बनाम
सचिव, आगरा विकास प्राधिकरण, आगरा।
................प्रत्यर्थी
समक्ष:-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री नवीन कुमार तिवारी, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 25.08.2023
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 128/2015 हाकिम सिंह बनाम सचिव, आगरा विकास प्राधिकरण, आगरा में जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय, आगरा द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 05.12.2018 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रश्नगत निर्णय व आदेश के माध्यम से उपरोक्त परिवाद निरस्त कर दिया है, जिससे व्यथित होकर परिवाद के परिवादी की ओर से यह अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि उसने आगरा विकास प्राधिकरण की शास्त्रीपुरम योजना में एक एल0आई0जी0 भवन प्राप्त करने हेतु आवेदन किया था जिसके अंतर्गत पत्रांक सं0- 339/डी0/ए0ई0(पी0) 2001 के द्वारा दि0 05.02.2001 को भवन सं0- ए/30 आवंटित किया गया, जिसका वास्तविक मूल्य मु0 1,56,716/-रू0 एवं मु0 6,111/-रू0 फ्री होल्ड शुल्क (17 प्रतिशत) ब्याज के अनुसार देय था। इस प्रकार अपीलार्थी/परिवादी के भवन का कुल मूल्य मु0 1,62,827/-रू0 देय था। पत्र दि0 05.02.2001 के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी को मु0 16,000/-रू0 पंजीकरण शुल्क के रूप में एवं मु0 12,052/-रू0 आवंटन शुल्क के रूप में देय था। इसके अतिरिक्त शेष धनराशि मु0 1,34,775/-रू0 15 वर्षों में 60 तिमाही किश्तों में मु0 6,242/-रू0 की दर से अदा करनी थी। इसके साथ ही मु0 300/-रू0 अन्य शुल्क के रूप में जमा कराने के लिए कहा गया था।
आगरा विकास प्राधिकरण के पत्र दि0 05.02.2001 की प्राप्ति के पूर्व ही अपीलार्थी/परिवादी ने दि0 20.01.2001 को मु0 16,000/-रू0 पंजीकरण के शुल्क के रूप में चालान सं0- 51 के द्वारा आगरा विकास प्राधिकरण द्वारा निर्देशित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में कोड सं0- 21410 के अंतर्गत जमा कर दिये थे तथा दि0 05.03.2001 को मु0 12,452/-रू0 यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में ही जमा करा दिये और दि0 16.03.2001 को एकमुश्त मु0 56,000/-रू0 जमा करा दिये। इस प्रकार अपीलार्थी/परिवादी ने भवन की मूल धनराशि में आधे से अधिक धनराशि जमा कर दिया।
आगरा विकास प्राधिकरण के नियम आवासीय भवनों/भूखण्डों के पंजीकरण एवं आवंटन विनियम 1999 के नियम सं0- 45(2)ख के अनुसार यदि आवंटी भवन मूल्य का 50 प्रतिशत निर्धारित समय से जमा कर देता है तो वह कुल भवन का 02 प्रतिशत अतिरिक्त छूट का हकदार होगा और यदि वह निर्धारित समय पर भवन का कब्जा प्राप्त कर लेता है तो 2.5 प्रतिशत छूट पाने का हकदार होगा, इस प्रकार भवन के मूल्य पर कुल 4.5 प्रतिशत छूट पाने का हकदार होगा। अतएव अपीलार्थी/परिवादी द्वारा मूलधन में जमा मु0 84,452/-रू0 भवन पर छूट की धनराशि मु0 7,327/-रू0 कुल मु0 91,779/-रू0 होते हैं। इस प्रकार भवन के कुल मूल्य मु0 1,62,827/-रू0 में से घटाने पर किश्तों में जमा की जाने वाली धनराशि मु0 71,048/-रू0 होती है। अत: नियमानुसार वर्ष 2016 तक मु0 71,048/-रू0 की 60 तिमाही किश्तें विकास प्राधिकरण को बनानी चाहिए थी जो उसने नहीं बनायी, बल्कि इसके विपरीत आगरा विकास प्राधिकरण ने मनमानी तरीके से मु0 6,242/-रू0 की तिमाही किश्तें बना दी जो गलत एवं नियम विरुद्ध है।
अपीलार्थी/परिवादी आर्थिक मजबूरी वश दि0 25.05.2001 से दि0 23.09.2012 तक किश्तें जमा नहीं कर सका, किन्तु अपीलार्थी/परिवादी ने दि0 24.09.2012 को किश्तों की बकाया धनराशि में एकमुश्त मु0 1,00,000/-रू0 यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में जमा कर दिया। इस प्रकार अपीलार्थी/परिवादी ने भवन का कुल मूल्य मु0 1,62,827/-रू0 के स्थान पर मु0 1,84,452/-रू0 भवन आवंटन निरस्त होने से पूर्व दि0 24.09.2012 तक जमा कर दिया, जो कि भवन की कीमत से लगभग मु0 22,000/-रू0 अधिक है।
प्राधिकरण द्वारा भवन निरस्त करने से पूर्व अपीलार्थी/परिवादी को कोई भी अन्तिम चेतावनी नहीं दी गई। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने दि0 03.10.2013 को लिखित फरमान जारी करके अपीलार्थी/परिवादी का आवंटित भवन निरस्त कर दिया। दि0 03.10.2013 के निरस्तीकरण के आदेश के बाद भी अपीलार्थी/परिवादी से दि0 11.11.2013 को मु0 10,000/- व दि0 16.01.2014 को मु0 10,000/-रू0 जमा कराये, किन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी ने जमा करने से इंकार नहीं किया। अपीलार्थी/परिवादी ने दि0 15.10.2013, 06.06.2014, 05.07.2014, 13.08.2014, 11.09.2014 तथा दि0 30.09.2014 को निरस्तीकरण आदेश को समाप्त कर पुराने मूल्य पर ही आवंटन को रेस्टोर करने की मांग की, किन्तु कोई सुनवाई नहीं की गई।
प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से अपीलार्थी/परिवादी को सहायक अभियंता का पत्र दि0 24.05.2014 प्राप्त हुआ, जिसमें उल्लिखित था कि अपीलार्थी/परिवादी को भवन सं0- 30/ए एल0आई0जी0 ही पुनर्जीवित कर नई कीमतों पर पुन: आवंटित कर दिया गया है, जिसे अपीलार्थी/परिवादी ने अपने पत्रों के माध्यम से भवन को पुरानी कीमतों पर ही मय ब्याज लेकर भवन आवंटन कर रजिस्ट्री कराने की प्रार्थना की।
अपीलार्थी/परिवादी द्वारा दि0 24.09.2012 तक मु0 1,84,477/- रू0 जमा करने के पश्चात भी प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा दि0 03.10.2013 को उक्त भवन का आवंटन निरस्त कर दिया तथा दि0 24.05.2014 को पत्रांक सं0- 202/डी/एई(पी0) 2014 के माध्यम से अपीलार्थी/परिवादी को नई कीमत पर मु0 16,04,000/-रू0 जमा करने का पत्र दिया।
अपीलार्थी/परिवादी ने उपरोक्त भवन को निरस्त किये जाने का आदेश, भवन को नई कीमतों में आवंटित किये जाने के आदेश को समाप्त करते हुये पुरानी किश्तों पर ही आवंटन करने के आदेश देने की प्रार्थना करते हुए तथा शेष बची धनराशि मु0 71,048/-रू0 पर ब्याज जोड़कर किश्तों में अदा किये जाने का आदेश दिये जाने एवं क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए यह परिवाद योजित किया है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा अपने लिखित जवाब में कथन किया गया है कि अपीलार्थी/परिवादी को शास्त्रीपुरम आवासीय योजना में भवन सं0- ए-30 एल0आई0जी0 का भवन दि0 05.02.2001 को आवंटित किया गया था। आवंटन पत्र जारी होने की तिथि से 45 दिन के भीतर किराया क्रय पद्धति अथवा एकमुश्त धनराशि 60 दिन की अवधि में भीतर जमा कराने की दशा में आवश्यक धनराशि के नॉन जूडिशियल स्टाम्प पेपर व पासपोर्ट साइज के 06 फोटो जमा कर भूखण्ड का कब्जा अनुबंध अपने पक्ष में निष्पादित कराना था।
अपीलार्थी/परिवादी द्वारा आवंटन पत्र में वर्णित नियमों एवं शर्तों के तहत समय से किश्तों का भुगतान नहीं किया गया। प्राधिकरण द्वारा पत्र सं0- 1195 दि0 23.06.2004 द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को सूचित किया गया कि दि0 31.05.2004 तक किश्तों की मद में मु0 रू062837.67पैसे बकाया हैं एवं यदि उक्त बकाया धनराशि उसके द्वारा पत्र प्राति से 07 दिन की अवधि में जमा नहीं की जाती है तो उक्त भवन का आवंटन निरस्त कर दिया जायेगा, जिसका पूर्ण उत्तरदायित्व अपीलार्थी/परिवादी पर ही होगा। अपीलार्थी/परिवादी को किश्तों की बकाया के सम्बन्ध में कई पत्र भेजे गये, परन्तु अपीलार्थी/परिवादी द्वारा किश्तों की मद में बकाया धनराशि जमा नहीं की गई। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने आदेश दि0 20.09.2013 द्वारा आवंटित भवन को निरस्त कर दिया एवं अपीलार्थी/परिवादी को पत्र सं0- 1294 दि0 03.10.2013 द्वारा सूचित कर दिया गया।
उपाध्यक्ष आगरा विकास प्राधिकरण के आदेश दि0 15.04.2014 के अंतर्गत उक्त भवन इस शर्त के साथ पुनर्जीवित कर दिया गया था कि अपीलार्थी/परिवादी दि0 30.06.2014 तक अवशेष धनराशि रू015,98,617.20पैसे यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की ए0डी0ए0 शाखा में अवश्य जमा कर दें।
अपीलार्थी/परिवादी द्वारा पुनर्जीवन आदेश के उपरांत देय धनराशि की किश्तें बनाये जाने के सम्बन्ध में एक प्रार्थना पत्र दि0 06.06.2014 को प्रेषित किया गया। प्राधिकरण द्वारा पत्र सं0- 389 दि0 03.07.2014 द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को सूचित कर दिया गया था कि पुनर्जीवन के उपरांत अवशेष धनराशि की किश्तें बनाया जाना सम्भव नहीं हैं। अपीलार्थी/परिवादी का अवशेष धनराशि की किश्तें बनाये जाने का प्रार्थना पत्र पोषणीय नहीं है। अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद समय-सीमा से बाधित है। प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा किसी प्रकार की सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई है। अत: परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी और प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परीक्षण एवं परिशीलन किया गया।
निर्विवादित रूप से यह तथ्य प्रत्यर्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा अनउपयुक्त नहीं माना गया कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा आवंटित भवन के विरुद्ध आवंटन पत्र में उल्लिखित कुल मूल्य मु0 1,62,827/-रू0 के विरुद्ध कुल धनराशि मु0 रू0 1,84,452/- अर्थात लगभग 22,000/-रू0 अधिक जमा की गई। तीन माह में जमा की जाने वाली किश्त के रूप में देय धनराशि को निर्विवादित रूप से एकमुश्त ब्याज सहित अपीलार्थी/परिवादी द्वारा जमा किया गया। किश्तों में जमा की जाने वाली धनराशि को घटाने के पश्चात भी अपीलार्थी/परिवादी द्वारा देय धनराशि से अधिक धनराशि जमा किया जाना भी निर्विवादित रूप से स्वीकृत तथ्य है। तब उस स्थिति में जब कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा यह तथ्य उल्लिखित किया जाना कि वह बीमारी व उसकी नौकरी छूट जाने के कारण मजबूरी वश देय किश्त जमा करने में असमर्थ रहा तथा आर्थिक तंगी होने के उपरांत भी व्यवस्था करने के पश्चात उसके द्वारा दि0 24.09.2012 को एक मुश्त धनराशि 1,00,000/-रू0 यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में जमा किया गया।
उपरोक्त धनराशि निर्विवादित भवन आवंटन निरस्तीकरण आदेश पारित होने के पूर्व ही जमा किया जाना भी अविवादित है। तदनुसार समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखने के उपरांत हमारे विचार से अपीलार्थी/परिवादी को आवंटित भवन का निरस्तीकरण आदेश व पुनर्जीवित किये जाने का आदेश अनुचित है, क्योंकि पुनर्जीवित किये जाने के आदेश में जो भारी धनराशि प्रत्यर्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा अपीलार्थी/परिवादी से मांगी जा रही है उस धनराशि को मांगे जाने के सम्बन्ध में कोई तथ्य एवं समुचित विधिक कारण उल्लिखित नहीं पाया गया।
तदनुसार अपील स्वीकार की जाती है और विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 05.12.2018 अपास्त किया जाता है। प्रत्यर्थी/विपक्षी प्राधिकरण को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से 02 माह के अन्दर अपीलार्थी/परिवादी को आवंटित भवन सं0- ए/30 का कब्जा प्राप्त करावें, कब्जा न प्राप्त कराये जाने की दशा में अपीलार्थी/परिवादी द्वारा सम्पूर्ण जमा धनराशि पर जमा की तिथि से भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की गणना करते हुए प्रत्यर्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा जमा धनराशि मय ब्याज अपीलार्थी/परिवादी को वापस की जावे।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुधा उपाध्याय)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0, कोर्ट नं0- 1