राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या- 2807/2001
( जिला उपभोक्ता फोरम आजमगढ़ द्वारा परिवाद सं0-267/1995 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित.10.10.2001 के विरूद्ध)
इलाहाबाद बैंक, विस्तार पटल इक्जीक्यूशन काउन्टर, चिल्ड्रेन कालेज, आजमगढ़।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
अफजाल अहमद खान पुत्र अलाउद्दीन अहमद, विश्वकर्मा मंदिर के पीछे( विश्वकर्मा भवन) रेलवे स्टेशन, आजमगढ़, स्थाई पता- ग्राम-भवानीपुर, पोस्ट- जमीन कटघर, थाना- निजामाबाद, तहसील सदर जिला- आजमगढ़।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थिति: श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थिति : एस0एन0 तिवारी, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक- 01-12-2015
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
अपीलकर्ता ने यह अपील जिला उपभोक्ता फोरम आजमगढ़ द्वारा परिवाद सं0-267/1995 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित-10-10-2001 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। उपरोक्त आदेश में जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है।
“याची की याचिका स्वीकार की जाती है तथा विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वह एक माह के अन्दर याची को मु0 10,000-00 रूपये दिनांक 04-08-1995 से 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा करें।”
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि याची को दिनांक 26-12-94 को जारी अलरासी बैंकिंग और इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन से एक ड़ाफ्ट चेक मिला जो इलाहाबाद लाभ ( बेनीफिसियरी) एकाउण्ट नं0 513 के लिये जारी था तथा याची ने उक्त दस हजार रूपये ड्राफ्ट को दिनांक06-01-1995 को इलाहाबाद बैंक शाखा आजमगढ़ में जमा किया और वहॉ से उसे जमा राशि की रसीद भी प्राप्त हुई किन्तु उक्त रूपया याची के खातेमें नहीं डाला गया और न याची को रूपया ही दिया गया।
जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रतिवादी ने अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें परिवादी के कथनों इंकार किया गया है और कहा गया है कि याची द्वारा दिनांक 26-12-1994 को चेक जमा किया गया तथा उक्त चेक अलरजही बैंकिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन ब्रान्च आफलाज 142 रियाधसे केनारा बैंक गोरखपुर द्वारा कलेक्शन हेतु दिनांक 5-01-1995 को भेजा गया, किन्तु उक्त चेक कलेक्शन से वापस नहीं आया और इस सम्बन्ध में विपक्षी द्वारा बार-बार पत्र लिखा गया और इस सम्बन्ध में समय-समय पर याची को सूचित भी किया गया।
(2)
इसके बाद पुन: केनारा बैंक गोरखपुर से नान पेमेन्ट सटिफिकेट की मांग की गई, जिससे कि याची को दूसरी चेक बनाया जा सके, लेकिन केनारा बैंक द्वारा उक्त सर्टिफिकेट बनाकर नहीं दिया गया तथा विपक्षी द्वारा कोई लापरवाही नही की गई तथा सेवा में कोई त्रुटि भी नहीं की गई। इस याचिका में केनरा बैंक गोरखपुर को विपक्षी नहीं बनाया गया है, इसलिए याचिका पोषणीय नहीं है। विपक्षी ने अपने कथनों के समर्थन में शपथ पत्र व कागजात सबूत पेश किये है।
इस सम्बन्ध में अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कहा गया कि चेक गायब हो जाने पर जिसके पक्ष में चेक है, वह दोबारा चेक बनवाये। बैंक चेक की धनराशि की अदायगी के लिए जिम्मेदारी नहीं हैं। बैंक किसी सेवाओं में कमी के लिए केवल हर्जाना दे सकेगा।
मौजूदा केस में जिला उपभोक्ता फोरम ने यह पाया है कि याची द्वारा इलाहाबाद बैंक में कलेक्शन हेतु 10,000-00 रूपये का चेक जमा किया। बैंक की यह जिम्मेदारी थी कि वह जमा शुदा रकम कलेक्शन करवाकर याची के खाते में जमा कराता और विपक्षी ने सेवाओं में त्रुटि किया है और जिला उपभोक्ता फोरम ने 10,000-00 रूपये 09 प्रतिशत ब्याज के साथ परिवादी को देने का आदेश किया। यह भी तथ्य स्पष्ट है कि मौजूदा केस में 10,000-00 रूपये के ड्राफ्ट को दिनांक 06-01-1995 को इलाहाबाद बैंक शाखा आजमगढ में जमा किया और इस प्रकार से बैंक ड्रा्फ्ट की रकम 10,000-00 रूपये थी।
इस सम्बन्ध में अपीलकर्ता के तरफ से माननीय उच्चतम न्यायालय की रूलिंग दाखिल की गई:-
।।। (2009) सी.पी.जे. 3 (एस.सी.) Federal Bank LTD. Versus N.S. SABASTIAN
Consumer Protection Act, 1986..Section 2(1) (g)..Negotiable Instruments Act, 1938..Section 45 ..Banking and Financial Service ..Cheque lost in transit ..Bank advised complainant to get duplicate cheque from drawe..Banking Ombudsman held no deficiency in service on part of bank proved..Consumer complaint filed..State commission held bank liable to pay interest on cheque amount .. order upheld by national Commission .. Civil appeal filed. No amount deposited by drawer in account .. Even if cheque not lost in transit, would have been dishonoured due to insufficiency of funds..No steps taken to obtain duplicate cheque..No action taken against drawer for recovery of amount..Orders of consumer Fora set aside.
(3)
इस प्रकार से माननीय उच्चतम न्यायालय की उपरोक्त रूलिंग को दृष्टिगत रखते हुए स्पष्ट है कि चेक/ड्रा्फ्ट की रकम को नहीं दिलाया जा सकता है और उस पर कोई ब्याज भी नहीं दिलाया जा सकता है, जिसके पक्ष में चेक या ड्राफ्ट था, उसकी जिम्मेदारी थी कि वह पुन: चेक/ड्रा्फ्ट बनवाता, परन्तु जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा जो चेक की धनराशि दिलाया गया है, वह विधि सम्मत् नहीं है। यह तथ्य अवश्य है कि बैंक के द्वारा इस चेक के कलेक्शन करने में चेक जो गायब हुआ है, उसके बारे मे सेवाओं में कमी की गई है, जिसके लिए कुछ रकम हर्जाने के तौर पर परिवादी पाने का हकदार है।
मौजूदा केस में हम यह पाते हैं कि चेक की रकम पाने का हकदार नहीं है और न ही उस पर ब्याज पाने का हकदार है। केवल 4,000-00 हर्जाना दिलाया जाना उचित है। तद्नुसार अपीलकर्ता की अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
अपीलकर्ता की अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और यह आदेश किया जाता है कि जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा जो चेक की रकम 10,000-00 रूपये व उस पर ब्याज दिलाया गया है, उसे समाप्त किया जाता है। परिवादी/प्रत्यर्थी अपीलार्थी/विपक्षी इलाहाबाद बैंक से सेवाओं में कमी के कारण हर्जाने के तौर पर केवल 4,000-00 रूपये पाने का हकदार है
उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेगें।
(आर0सी0 चौधरी) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी.वर्मा, आशु.
कोर्ट नं05