Vagata Ram filed a consumer case on 03 Feb 2015 against AEN,J.V.V.N.L in the Jalor Consumer Court. The case no is C.P.A 31/2013 and the judgment uploaded on 16 Mar 2015.
न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर
पीठासीन अधिकारी
अध्यक्ष:- श्री दीनदयाल प्रजापत,
सदस्यः- श्री केशरसिंह राठौड
सदस्याः- श्रीमती मंजू राठौड,
..........................
1.वगताराम पुत्र गजाजी, जाति चैधरी, उम्र- 45 वर्ष, निवासी- मांडवला, तहसील व जिला- जालोर।
....प्रार्थी।
बनाम
1.सहायक अभियन्ता, जो0 वि0 वि0 निगम लि0,
उम्मेदाबाद, तहसील व जिला- जालोर।
...अप्रार्थी।
सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:- 31/2013
परिवाद पेश करने की दिनांक:-13-02-2013
अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ।
उपस्थित:-
1. श्री केशव व्यास, अधिवक्ता प्रार्थी।
2. श्री दिलीप शर्मा, अधिवक्ता अप्रार्थी।
निर्णय दिनांक: 03-02-2015
1. संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थी ने वर्ष 2012 के आरंभ्भ में अप्रार्थी विभाग से नया विद्युत कनैक्शन लिया था। प्रार्थी के उपभोक्ता क्रमांक-2306-0247 हैं, तथा जनवरी से अक्टूम्बर 2012 तक जो विद्युत बिल जारी हूए वह 332 रूपयै से अधिक राशि के नहीं थे। तथा प्रार्थी ने अक्टूम्बर 2012 तक के सभी विद्युत बिलो का भुगतान समय पर अप्रार्थी को किया हैं, तथा दिसम्बर 2012 का विद्युत बिल रूपयै 27,400/- का अप्रार्थी ने जारी किया, तो बिल देखकर प्रार्थी के होश उड गये। बडी मुश्किल से मेहनत मजदूरी करके वह अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता हैं, ऐसे में इतना बिल देखकर पूरा परिवार परेशानी में आ गया, तब प्रार्थी अप्रार्थी के पास पहुंचा, तथा प्रार्थनापत्र देकर समस्या से अप्रार्थी को अवगत कराया, तो अप्रार्थी ने प्रार्थी को कहा, कि बिल की आधी राशि भर दो, फिर बाद में देखेंगें। प्रार्थी गरीब व्यक्ति हैं, तथा इतनी ज्यादा राशि का बिल भरने में असक्षम हैं। तथा प्रार्थी ने अप्रार्थी कार्यालय के कई चक्कर लगाये उसके बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई। तब प्रार्थी को उक्त परिवाद लाना पडा, तब प्रार्थी ने यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व विद्युत बिल दिसम्बर 2012 में नियमानुसार रियायत करवाकर उचित राशि करवाने एवं शारीरिक, आर्थिक व मानसिक परेशानी व परिवाद व्यय के पेटे 38,000/- रूपयै दिलानेे हेतु यह परिवाद जिला मंच के समक्ष पेश किया हैं।
2. प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थी को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया । अप्रार्थी की ओर से अधिवक्ता श्री दिलीप शर्मा ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थीगण ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि ‘‘ गा्रम माण्डवला में प्रार्थी के नाम का एक विद्युत कनैक्शन आया हुआ हैं, जिसके खाता संख्या-2306-0247 हैं। प्रकरण विवादित कनैक्शन के मीटर रीडींग रिकार्ड के अनुसार प्रार्थी को बिल निगम के प्रावधानो के तहत दिया गया हैं। बिल की राशि विद्युत निगम के प्रावधानेा के तहत अधिरोपित की हैं, जो राशि अधिकारीयों द्वारा अधिरोपित की गई हैं। प्रार्थी के नाम के जो बिल जारी किये गये हैं, जिसका पूर्ण विवरण प्रार्थी को दिया हैं, जिसे अदा करने का दायित्व खाता धारक का हैं। उक्त राशि जनरल कंडीशन आफ सप्लाई के प्रावधानो के अनुसार मीटर रीडींग में आई राशि के उक्त विद्युत बिल विद्युत निगम के प्रावधानो के अनुसार दिये हैं, जो सही हैं व विधि सम्मत हैं। विद्युत निगम के द्वारा सामान्य प्रक्रिया में निगम के प्रावधानो के अनुसार बिना किसी बदनीयति के प्रार्थी के उक्त खाते की राशि रिकार्डस् के आधार पर अधिरोपित की हैं, जिसे अदा करने का दायित्व खाता धारक का हैं। तथा विद्युत निगम पब्लिक सर्विस काॅरपोरेशन हैं, जो बिना किसी लाभ की मंशा के जनहितार्थ विद्युत की सुचारू व्यवस्था हेतु प्रयासरत हैं तथा प्रार्थी को विभागीय समझौता समिति के तहत विवाद को प्रस्तुत कर निस्तारण करवाना चाहिए था जो नही करवाया हैं, जिससे प्रथम दृष्टया ही परिवाद विधि की मंशा के प्रतिकूल होने से खारीज योग्य हैं। इसप्रकार अप्रार्थीगण ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर प्रार्थी का परिवाद खारीज किये जाने का निवदन किया हैं।
3. हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने के पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद, उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिस पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक हैें:-
1. क्या प्रार्थी, अप्रार्थी का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
2. क्या अप्रार्थी ने प्रार्थी के नाम दिसम्बर 2012 का विद्युत बिल
अधिक व गलत राशि का जारी किया, जिसे प्रार्थी के द्वारा सही
एवं संशोधित करने की लिखित प्रार्थना के बावजूद उक्त विद्युत
बिल को संशोधित नहीं कर अप्रार्थी ने सेवा प्रदान करने में
गलती एवं कमी कारित की हैं ?
प्रार्थी
3. अनुतोष क्या होगा ?
प्रथम विधिक विवाद बिन्दु:-
क्या प्रार्थी, अप्रार्थी का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि प्रार्थी ने अप्रार्थी से विद्युत कनैक्शन स्थापित करवाया हुआ हैं, जिसके उपभोक्ता क्रमांक-2306-0247 हैं, तथा फरवरी से अक्टॅूम्बर 2012 तक के समस्त विद्युत बिलो की अदायगी अप्रार्थी को समय पर की हैं। प्रार्थी ने उक्त कथनो के सम्बन्ध में अप्रेल 2012 से अक्टूम्बर 2012 तक के विद्युत बिलो की प्रतियां पेश की हैं जो अप्रार्थी ने प्रार्थी के नाम जारी किये हैं। तथा अप्रार्थी ने जवाब परिवाद में प्रार्थी के नाम विद्युत कनैक्शन स्थापित होना स्वीकार किया हैं। तथा अप्रार्थी, प्रार्थी को विद्युत विक्रय कर प्रार्थी से प्रतिफल प्राप्त करना प्रमाणित होता हैं। इसप्रकार प्रार्थी एवं अप्रार्थी के मध्य ग्राहक - सेवक का सीधा सम्बन्ध स्थापित होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 1 डी के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आता हैं, इसप्रकार प्रथम विवाद बिन्दु प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थी के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
द्वितीय विवाद बिन्दु:-
क्या अप्रार्थी ने प्रार्थी के नाम दिसम्बर 2012 का विद्युत बिल
अधिक व गलत राशि का जारी किया, जिसे प्रार्थी के द्वारा सही
एवं संशोधित करने की लिखित प्रार्थना के बावजूद उक्त विद्युत
बिल को संशोधित नहीं कर अप्रार्थी ने सेवा प्रदान करने में
गलती एवं कमी कारित की हैं ? प्रार्थी
उक्त द्वितीय विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने परिवादपत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि प्रार्थी के जनवरी 2012 में अप्रार्थी से नया विद्युत कनैक्शन लिया हैं, तथा जनवरी से अक्टूम्बर 2012 तक जो विद्युत बिल जारी हूए वह 332 रूपयै से अधिक राशि के नहीं थे। तथा प्रार्थी ने अक्टूम्बर 2012 तक के सभी विद्युत बिलो का भुगतान समय पर अप्रार्थी को किया हैं, फिर भी दिसम्बर 2012 में अप्रार्थी ने अचानक रूपयै 27,400/- का विद्युत बिल जारी किया, जो अधिक राशि का होने से प्रार्थी ने अप्रार्थी को लिखित में एक आवेदनपत्र दिनांक 26-12-2012 पेश कर बिल सुधारने का निवेदन किया, लेकिन अप्रार्थी ने प्रार्थी की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया। प्रार्थी ने उक्त कथनो के सत्यापन हेतु दिसम्बर 2012 का विद्युत एवं आवेदनपत्र दिनांक 26-12-2012 की प्रतियां पेश की हैं, तथा प्रार्थी ने अप्रेल 2012 से अक्टूॅबर 2012 के विद्युत बिलो की प्रतियां भी पेश की हैं। दिसम्बर 2012 के बिल में गत पठन 274 व वर्तमान पठन 335 उपभोग यूनिट 61 खर्च होना बताया गया हैं। लेकिन 61 यूनिट का विद्युत खर्च 27,400/- रूपयै नहीं हो सकता हैं। तथा प्रार्थी ने विद्युत बिल के काॅलम संख्या- 17 में अन्य देय/जमा कोड निगम राशि रूपयै 27,400/- अंकित की हैं। यह राशि अप्रार्थी विद्युत निगम ने किस पेटे बिल में अंकित की, इसकी कोई गणना, हिसाब- किताब या साक्ष्य सबूत पत्रावली पर पेश नहीं किया गया हैं। तथा अप्रार्थी ने मीटर रीडींग नोट शीट की प्रति पेश की हैं। जिसमें दिनांक 18-01-2012 को मीटर में यूनिट 22, एवं 9 दिसम्बर 2012 को मीटर में यूनिट 274 होना लिखा हैं, तथा दिसम्बर 2012 के बिल मंे दिनांक 25-11-2012 को मीटर पठन 335 यूनिट लिखा हैं, तथा मीटर नोट शीट में भी 335 यूनिट लिखा हैं, लेकिन तारीख नहीं लिखी गई हैं। तथा प्रार्थी का विद्युत कनैक्शन जारी होने से लेकर दिसम्बर 2012 तक विद्युत खर्च यूनिट 335 यूनिट हुआ हैं। तथा अक्टूम्बर 2012 तक 234 यूनिट खर्च हुए थे, जिसके विद्युत बिल समय- समय पर जारी हूए हैं, जिनका भुगतान समय-समय पर प्रार्थी ने अप्रार्थी को किया हैं, लेकिन दिसम्बर 2012 के विद्युत बिल में काॅलम संख्या-17 में दर्शित 27400/-रूपयै की राशि अंकित की गई हैं जिसका कोई हिसाब, गणना अप्रार्थी ने पेश नहीं की हैं। तथा उक्त राशि का विवाद एवं शिकायत प्रार्थी ने अप्रार्थी को की हैं, फिर भी अप्रार्थी ने प्रार्थी को उक्त राशि का हिसाब प्रार्थी को नहीं बताया हैं, तथा न ही बिल में संशोधन कर उक्त राशि को हटाया गया हैं। इसप्रकार उक्त राशि अप्रार्थी ने प्रार्थी के विद्युत बिल में बिना किसी कारण के जोडकर गलती एवं त्रुटि कारित की हैं, तथा उक्त गलती प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी को ध्यान में लाने पर भी प्रार्थी का विद्युत बिल नहीं सुधार कर, अप्रार्थी द्वारा, प्रार्थी के प्रति गलती कमी एवं सेवा दोष कारित करना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। इसप्रकार विवाद का द्वितीय बिन्दु भी प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थी के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
तृतीय विवाद बिन्दु-
अनुतोष क्या होगा ?
जब प्रथम एवं द्वितीय विवाद बिन्दुओ का निस्तारण प्रार्थी के पक्ष में हो जाने से तृतीय विवाद बिन्दु का निस्तारण स्वतः ही प्रार्थी के पक्ष में हो जाता हैं। लेकिन हमे यह देखना हैं कि प्रार्थी विधिक रूप से क्या एवं कितनी उचित सहायता अप्रार्थी से प्राप्त करने का अधिकारी हैं या उसे दिलाई जा सकती हैं। इसके सम्बन्ध में हमारी राय में दिसम्बर 2012 के विद्युत बिल के काॅलम संख्या- 17 में अन्य देय/जमा कोड निगम राशि 27,400/-रूपयै का हिसाब गणना अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत नहीं करने से अप्रार्थी उक्त राशि प्रार्थी से प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हैं, तथा दिसम्बर 2012 के विद्युत बिल में 27,400/-रूपयै को प्रार्थी संशोधित कराने का अधिकारी माना जाता हैं। तथा अप्रार्थी के उक्त कृत्य से प्रार्थी को जो मानसिक, शारीरिक, आर्थिक क्षति कारित हुई हैं। जिसके पेटे प्रार्थी को रूपयै 3,000/-एवं परिवाद व्यय के रूप में रूपयै 2000/- अप्रार्थी से दिलाये जाना उचित प्रतीत होता हैं। इस प्रकार प्रार्थी का परिवाद आशिंक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य हैं।
आदेश
अतः प्रार्थी वगताराम का परिवाद विरूद्व अप्रार्थी सहायक अभियन्ता, जो0 वि0 वि0 निगम लि0,उम्मेदाबाद, तहसील व जिला- जालोर के विरूद्व आशिंक रूप से स्वीकार कर आदेश दिया जाता हैं कि अप्रार्थी, दिसम्बर 2012 के विद्युत बिल में काॅलम संख्या- 17 में वर्णित राशि रूपयै 27,400/- अक्षरे सत्ताईस हजार चार सौ रूपयै मात्र प्राप्त करने के अधिकारी नहीं होने से उक्त राशि हटा कर विद्युत बिल संशोधित कर प्रार्थी को जारी करे। तथा रूपयै 27,400/- अक्षरे सत्ताईस हजार चार सौ रूपयै मात्र को प्रार्थी के आगामी विद्युत बिलो में दर्शित/सम्मिलित नहीं करे, तथा मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षति के रूपयै 3,000/-अक्षरे तीन हजार रूपयै मात्र एवं परिवाद व्यय के रूपयै 2000/- अक्षरे दो हजार रूपयै मात्र भी अप्रार्थी, प्रार्थी को अदा करेे। तथा उक्त निर्णय की पालना अप्रार्थी 30 दिन के भीतर अदा करे।
निर्णय व आदेश आज दिनांक 03-02-2015 को विवृत मंच में लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
मंजू राठौड केशरसिंह राठौड दीनदयाल प्रजापत
सदस्या सदस्य अध्यक्ष
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