Rajasthan

Jalor

C.P.A 18/2013

MangiLal - Complainant(s)

Versus

AEN,J.V.V.N.L etc. - Opp.Party(s)

KESHAV V.

13 Mar 2015

ORDER

न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर

पीठासीन अधिकारी

अध्यक्ष:-  श्री  दीनदयाल प्रजापत,

सदस्याः-  श्रीमती मंजू राठौड,

      ..........................

1.मंागीलाल पुत्र  जुटाजी, जाति माली, उम्र- 58 वर्ष, निवासी- माण्डवला, तहसील-जालोर, जिला- जालोर,         

.......प्रार्थी।

                बनाम  

1.अधीक्षण अभियन्ता,

जोधपुर विद्युत वितरण निगम लि0, जालोर।

तहसील जालोर, जिला जालोर।

2.सहायक अभियन्ता, ( ओ0 एण्ड एम0 )

जोधपुर विद्युत वितरण निगम लि0, उम्मेदाबाद,

उम्मेदाबाद, तहसील सायला, जिला जालोर।  

 

 

 

...अप्रार्थीगण।

                                सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:- 18/2013

परिवाद पेश करने की  दिनांक:-16-01-2013

अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता  संरक्षण  अधिनियम ।

उपस्थित:-

1.            श्री केशव व्यास,  अधिवक्ता प्रार्थी।

2.            श्री  दिलीप शर्मा, अधिवक्ता अप्रार्थीगण।

 

  निर्णय दिनांक:  13-03-2015

1.              संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थी के विद्युत उपभोक्ता क्रमांक- 2308-0097 हैं, तथा प्रार्थी प्रतिमाह अप्रार्थी द्वारा दी जाने वाली विद्युत का उपभोग करता हैं। तथा उसका जो भी बिल दिया जाता हैं, उसका भुगतान वह समय पर करता हैं। तथा वर्ष 2009 में प्रार्थी के कभी भी 1000/-रूपयै से अधिक का बिल नहीं आया, उसके पश्चात् वर्ष 2010 में बिल 39,566/-रूपयै का आया था। तब प्रार्थी ने अपना डेरी का सामान बेचकर इस बिल का भुगतान किया , इसके पश्चात् प्रार्थी ने उक्त स्थान पर काम करना बन्द कर दिया। उसके पश्चात् कभी भी इतना अधिक बिल नहीं आया, तथा जून 2010 में गत पठन 112 व वर्तमान पठन 763 आये, तथा अगस्त 2012 तक गत पठन 1138 तथा वर्तमान पठन डी  बताया। उक्त अवधि में जितने भी बिल आये, वे सभी प्रार्थी द्वारा भरे गये, तथा अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी का मीटर अपनी मर्जी से पुराने मीटर 9133215 को बदल कर नया मीटर नम्बर-6789437 लगा दिया, तथा मीटर बदलते ही अक्टूम्बर 2012 में बिल 78,827/-रूपयै का आया, तो प्रार्थी दिनांक  30-10-2012 को प्रार्थनापत्र लेकर गया, व अपनी समस्या से अवगत कराया, तो अप्रार्थी ने प्रार्थी को कहा कि बिल की आधी राशि भर दो, फिर देख्ेागें। तथा दिसम्बर 2012 का बिल रूपयै 83,326/- आया। प्रार्थी गरीब व्यक्ति हैं। इस महंगाई के दौर में मेहनत मजदूरी करके अपना व अपने परिवार का बडी मुश्किल से भरण पोषण करता हैं। तथा अप्रार्थी के कार्यालय के कर्मचारी मीटर रीडीगं सही ढंग से नहीं लेते हैं। अपनी मर्जी के हिसाब से आंकडे लिख देते हैं। इससे अप्रार्थी की सेवा में कमी का खामियाजा भुगतना पडता हैं, तथा अप्रार्थी के कार्यालय के चक्कर लगाने के बावजूद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई, जिसके चलते प्रार्थी को माननीय न्यायालय की शरण लेनी पडी हैं। इसप्रकार प्रार्थी ने यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व  अक्टूम्बर 2012 के बिल में संशोधन कर नियमान्तर्गत उचित राशि बतायी जावे, तथा शारीरिक व आर्थिक परेशानी के रूपयै 30,000/- एवं परिवाद व्यय के रूपयै 8,000/- दिलाने हेतु यह परिवाद जिला मंच में पेश किया गया हैं।

 

2.                        प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थीगण को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया गया। जिस पर अप्रार्थीगण की ओर से अधिवक्ता श्री दिलीप शर्मा ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थी ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि विद्युत निगम पब्लिक सर्विस काॅर्पोरेशन हैं, जो बिना किसी लाभ की मंशा के जनहितार्थ विद्युत की सुचारू व्यवस्था हेतु प्रयासरत हैं। तथा ग्राम माण्डवला में प्रार्थी के नाम एक विद्युत सम्बन्ध आया हुआ हैं। जिसके खाता संख्या- 2308-0097 हैं। कनैक्शन के मीटर रीडीगं  रिकार्ड में आये अकंन के अनुसार प्रार्थी को बिल निगम के प्रावधानो के तहत दिये गये हैं। विद्युत बिलो की राशि विद्युत निगम  के प्रावधानो के अनुसार अधिरोपित की हैं। प्रार्थी के नाम के जो बिल जारी किये गये हैं, जिसका पूर्ण विवरण प्रार्थी को दिया हैं। उक्त राशि जनरल कंडीशन आफ सप्लाई के प्रावधानो के अनुसार मीटर रीडींग रिकार्ड में आये अकंन के आधार पर निर्धारण कर बिल  विद्युत निगम के प्रावधानो के अनुसार दिये हैं, जो सही हैं व विधि सम्मत हैं। जिसे अदा करने का दायित्व खाताधारक का हैं। प्रार्थी ने माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय व निर्देशानुसार  बनी विभागीय समझौता समिति के तहत विवाद को प्रस्तुत कर निस्तारण करवाना चाहिए, विभागीय समझौता समिति स्टूचरी बाॅडी हैं, जो उक्त प्रकार के विवाद का विभागीय स्तर पर उचित निस्तारण करती हैं। प्रकरण को विभागीय समझौता समिति के समक्ष पेश नहीं किया गया, जिससे यह परिवाद  प्रथम दृष्टया ही विधि की मंशा के प्रतिकूल होने से खारीज योग्य हैं। इस प्रकार अप्रार्थीगण ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर प्रार्थी का परिवाद  मय खर्चा खारीज करने का निवेदन किया हैं।

 

3.           हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने के पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद,  उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिन पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक  हैें:-

 

1.   क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ?           प्रार्थी

 

2.   क्या अप्रार्थीगण ने अक्टूम्बर 2012 का विद्युत बिल गलत एवं

       अधिक राशि का  जारी  किया, जिसे प्रार्थी द्वारा सही करने

       का निवेदन पर भी सही एवं संशोधित नहीं कर अप्रार्थीगण ने

       सेवा प्रदान करने में गलती एवं त्रुटि कारित की हैं ?          

 

      प्रार्थी                                    

                                                                                 

3.  अनुतोष क्या होगा ?     

 

प्रथम विधिक विवाद बिन्दु:-

         क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ?     प्रार्थी

  

           

       उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि प्रार्थी ने अप्रार्थीगण विभाग से विद्युत कनैक्शन ले रखा हैं, जिसके विद्युत बिल का भुगतान प्रार्थी करता हैं। उक्त कथनो के सत्यापन हेतु प्रार्थी ने वर्ष 2008 से जुलाई  2010 तक 10 बिल एवं अप्रेल 2012 से दिसम्बर 2012 तक के 5 बिल  कुल 15 विद्युत बिलो की प्रतियां पेश की हैं, जो अप्रार्थीगण विद्युत विभाग ने प्रार्थी के नाम एन0डी0एस0 विद्युत खाता संख्या- 2308-0097 से जारी किये गये हैं। तथा जवाब परिवाद में भी अप्रार्थी ने प्रार्थी के नाम उक्त विद्युत खाता संख्या-  2308-0097 से विद्युत सम्बन्ध स्थापित होना स्वीकार किया हैं। इसप्रकार प्रार्थी, अप्रार्थीगण विद्युत विभाग का विद्युत उपभोक्ता होने से ग्राहक-सेवक का सम्बन्ध होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 1 डी  के तहत उपभोक्ता की तारीफ में आता हैं, इसप्रकार प्रथम विवाद  बिन्दु  प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थीगण के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।

 

द्वितीय विवाद बिन्दु:-  

      क्या अप्रार्थीगण ने अक्टूम्बर 2012 का विद्युत बिल गलत एवं

       अधिक राशि का  जारी  किया, जिसे  प्रार्थी द्वारा सही करने

       का निवेदन पर भी सही एवं संशोधित नहीं कर अप्रार्थीगण ने

       सेवा प्रदान करने में गलती एवं त्रुटि कारित की हैं ?    

 

      प्रार्थी                                  

                                     

              उक्त द्वितीय विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं।  जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने दिसम्बर 2008 से दिसम्बर 2012 तक की अवधि में जारी 15 विद्युत बिलो की प्रतियां पेश की हैं जिसमें जुलाई 2010 के विद्युत बिल में प्रार्थी के मीटर क्रमांक-9133215 व गत पठन  0  एवं वर्तमान पठन 763 यूनिट अंकित हैं , तथा उपभोग यूनिट  786 खर्च होना मानकर बिल जारी किया हैं, जिसे प्रार्थी ने अप्रार्थी को अदा कर दिया, इसके बाद प्रार्थी ने अपने उक्त प्रतिष्ठान पर डेयरी चलाना बन्द कर दिया। तथा जून 2010 से अगस्त 2012 तक के विद्युत बिलो की प्रतियों में मीटर नम्बर-9133215 होना अंकित हैं, तथा जून 2010 के बिल में 763 यूनिट खर्च होना डेयरी मशीन चलने से अधिक खर्चा होना माना हैं , इसके बाद डेयरी चलाना बन्द कर दिया, उसके बाद उपभोग, अगस्त 2010 में 375 यूनिट, अक्टूम्बर 2010 से अप्रेल 2012 तक 10 बिलो में 100-100  एवरेज यूनिट  यानि 1000 यूनिट उपभोग जून 2012 के बिल में 600 यूनिट, अगस्त 2012 के यूनिट में 300 यूनिट विद्युत खर्च के बिल अप्रार्थीगण ने प्रार्थी को जारी किये हैं, जो जून 2010 से अगस्त 2012 के बिलो में उपभोग यूनिट खर्च का योग 3038 हैं, यानि प्रार्थी ने 3038 युनिट खर्च का भुगतान अप्रार्थीगण को किया हैं, तथा अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के विद्युत खाते की  आन्तरिक अंकेक्षण जाॅंच की गणना शीट पेश की हैं, जो अप्रेल 2010 से अप्रेल 2012 तक की हैं, लेकिन अप्रेल 2010 में प्रस्तुत बिलो की प्रतियों के अनुसार प्रार्थी के  विद्युत खाते में मीटर नम्बर- 9133215 था ही नहीं, जो अप्रेल 2010 के बिल  में मीटर नम्बर-285816 लगा होना लिखा होने प्रमाणित हैं। तथा अप्रार्थी की गणना शीट के अनुसार प्रार्थी के मीटर नम्बर-9133215 में अप्रेल 2012 तक 1397 यूनिट विद्युत खर्च होना दिखाया गया हैं, जबकि विद्युत बिलो की प्रतियों के अनुसार  अप्रेल 2012 तक 2138 यूनिट उपभोग हो चुका था, जो अगस्त 2012 तक के बिल के अनुसार 3038 यूनिट खर्च हूए हैं, तथा अगस्त 2012 तक 3038 यूनिट खर्च के बिल प्रार्थी, अप्रार्थीगण को अदा कर चुका हैं। यह तथ्य सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा जुलाई 2010 के विद्युत बिल के अनुसार मीटर पठन तिथी 11 जून को 763 यूनिट खर्च एवं अन्य अधिरोपित राशि जोडकर रूपयै 39,566/- का बिल जारी हुआ हैं, जो प्रार्थी ने अप्रार्थी को अदा कर दिया गया हैं। तथा 11 जून 2010 से अगस्त 2010 तक प्रार्थी के मीटर में 375 यूनिट खर्च होना अगस्त 2010 के बिल से प्रमाणित हैं। तथा उसके बाद प्रार्थी का मीटर अप्रार्थी ने  क्   डिफेक्टिव होना मानकर काल्पनिक यूनिट खर्च के बिल जारी किये हैं, तथा विद्युत अधिनियम  2003 के अनुसार मीटर बन्द की अवधि में एवरेज यूनिट खर्च के अनुसार राशि निर्धारण कर वसूली की जा सकती हैं। तथा ऐसा एवरेज मीटर खराब होने से ठीक पहले 3 माह की अवधि में विद्युत खर्च के अनुसार या  मीटर बदलने के ठीक बाद तीन माह तक की अवधि में विद्युत खर्च के अनुसार एवरेज राशि निकाली जा सकती हैं, जो 11 जून 2010 से अगस्त 2010 के बीच की अवधि का विद्युत बिल  अगस्त 2010 का था, जिसके अनुसार अप्रार्थीगण ने मीटर बन्द की अवधि का एवरेज नहीं निकाल कर  इससे पूर्व अप्रेल से मई 2010 के बिल के अनुसार एवरेज राशि निकाली हैं, जो नियमाुनसार सही नहीं हैं, क्यों कि मई 2010 तक प्रार्थी ने डेयरी मशीन चलाना स्वीकार किया हैं, उसके बाद डेयरी मशीन बेच देना बताया हैं।  तथा अप्रार्थीगण ने प्रार्थी से अधिक राशि वसूलने हेतु  अधिक खर्च यूनिट वाले बिल के अनुसार एवरेज लिया हैं, जो गलत हैं। तथा उक्त वर्णितानुसार अप्रार्थीगण द्वारा मीटर बन्द/खराब अवधि के सम्बन्ध में विद्युत विभाग के आन्तरिक अंकेक्षण आडिट द्वारा प्रार्थी के विद्युत खाते की गणना शीट गलत बनाई हैं। तथा रूपयै 77890.60 पैसे गलत एवं अधिक रूप से अधिरोपित किये हैं। तथा उक्त गणना शीट पर कोई तिथी अंकित नहीं की हैं, जिससे यह गणना शीट विभाग द्वारा कब तैयार की गई यह प्रमाणित नहीं होता हैं। जो नियम विरूद्व एवं संदिग्ध हैं। तथा ऐसी गलत गणना शीट की राशि अक्टूम्बर 2012 के विद्युत बिल में जोडकर प्रार्थी को जारी किया हैं, तथा उक्त राशि विद्युत बिल में जोडने से पूर्व अप्रार्थीगण ने प्रार्थी को कोई मांग का नोटिस या सूचना भी जारी नहीं की हैं, तथा अक्टूम्बर 2012 के विद्युत बिल में अधिक राशि आने की शिकायत का  प्रार्थनापत्र दिनांक 30-10-2012 प्रार्थी द्वारा देने की प्रति प्रार्थी ने पेश की हैं। जिस पर अप्रार्थी की टिप्पणी अंकित हैं, उसके बाद भी अप्रार्थीगण ने प्रार्थी का विद्युत बिल अगस्त 2012 सही नहीं किया, तथा अगस्त 2012 के विद्युत बिल की राशि आगामी विद्युत बिल अक्टूम्बर 2012 व दिसम्बर 2012 के बिलो में अंकित कर बिल जारी किये हैं। तथा प्रार्थी ने विद्युत कनैक्शन का मीटर अक्टूम्बर 2010 से अक्टूॅम्बर 2012 तक दो वर्ष तक अप्रार्थीगण स्वंय अपने  जारी विद्युत बिलो में डिफेक्टिव होना अंकित कर रहे हैं। तथा मीटर डिफेक्टि होने का अप्रार्थीगण को ज्ञान होने पर भी अप्रार्थीगण ने डिफेक्टिव मीटर को सही नहीं कर या मीटर नहीं बदलकर प्रार्थी को काल्पनिक यूनिट खर्च के 2 वर्ष तक बिल जारी कर सेवा प्रदान करने में गलती एवं लापरवाही बरती हैं, जो सिद्व एवं प्रमाणित हैं। इसप्रकार विवाद का द्वितीय बिन्दु भी प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थीगण  विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।

 

तृतीय विवाद बिन्दु- 

                 अनुतोष क्या होगा ?          

       जब प्रथम एवं द्वितीय विवाद बिन्दु प्रार्थी के पक्ष में निस्तारित हो जाने से तृतीय विवाद बिन्दु का निस्तारण स्वतः ही प्रार्थी के पक्ष में हो जाता हैं। लेकिन हमे यह देखना हैं कि प्रार्थी विधिक रूप से क्या एवं कितनी उचित सहायता अप्रार्थीगण से प्राप्त करने का अधिकारी हैं। या उसे दिलाई जा सकती हैं। जिसके बारे में हमारी राय में अप्रार्थीगण द्वारा प्रस्तुत मीटर  बन्द अवधि में आन्तरिक अंकेक्षण की एवरेज गणना शीट गलत व अधिक राशि की होने से  अप्रार्थीगण गणना शीट की अधिरोपित राशि  रूपयै  77890.60 पेैसे प्रार्थी से प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हैं। तथा  मीटर डिफेक्टिव से ठीक पूर्व अगस्त 2010 के विद्युत बिल में जो विद्युत खर्च हुई हैं, उसी आधार पर एवरेज गणना शीट बनाकर उस मंे से काल्पनिक यूनिट खर्च की राशि बाहर कर शेष राशि बकाया निकालती हो, तो वह अप्रार्थीगण, प्रार्थी से प्राप्त करने के अधिकारी होगें माना जाता हैं। तथा अप्रार्थीगण के सेवादोष से प्रार्थी को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक क्षति के रूप में रूपयै 3000/- एवं परिवाद व्यय के रूप में रूपयै 2000/- अप्रार्थीगण से दिलाये जाना उचित माना जाता हैं। इस प्रकार प्रार्थी का परिवाद आशिंक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य हैं।

 

                   आदेश 

 

                 अतः प्रार्थी मांगीलाल का परिवाद विरूद्व अप्रार्थीगण अधीक्षण अभियन्ता, जोधपुर विद्युत वितरण निगम लि0 जालोर व अन्य के विरूद्व आशिंक रूप से स्वीकार कर आदेश दिया जाता हैं कि अप्रार्थीगण, प्रार्थी के विद्युत सम्बन्ध के बारे में मीटर डिफेक्टिव/ बन्द  अवधि की एवरेज राशि पत्रावली पर प्रस्तुत गणना शीट के अनुसार रूपयै 77890.60 पैसे/- अक्षरे सत्तहत्तर हजार आठ सौ नब्बे रूपयै साठ पैसे मात्र वसूल नहीं करे, एवं मीटर डिफेक्टिव अवधि अक्टूम्बर 2010 से अक्टूम्बर 2012 तक की एवरेज राशि अगस्त 2010 के विद्युत बिल में अंकित यूनिट ़ खर्च के अनुसार एवरेज राशि की गणना  पुनः कर अक्टूम्बर 2012 का विद्युत बिल इसी अनुसार संशोधित कर, संशोधित गणना शीट सहित प्रार्थी को देवे।  तथा अप्रार्थीगण को मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति राशि के रूपयै  3,000/-अक्षरे तीन हजार रूपयै मात्र एवं परिवाद व्यय के रूपयै 2000/- अक्षरे दो हजार रूपयै मात्र भी अदा करेे। उक्त निर्णय की पालना निर्णय की तिथी से 30 दिन के भीतर अप्रार्थीगण कर देवें, अन्यथा प्रार्थी उक्त आदेशित क्षतिपूर्ति राशि 3000/- व 2000/- कुल 5000/- रूपयै अक्षरे पाॅंच हजार रूपयै  पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथी 16-01-2013 से तारीख अदायगी तक 9 प्रतिशत वार्षिकी दर से ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा।   

 

                निर्णय व आदेश आज दिनांक 13-03-2015 को विवृत मंच में  लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

 

                       मंजू राठौड                       दीनदयाल प्रजापत

            सदस्या                          अध्यक्ष

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