Rajasthan

Churu

222/2011

Parmeshear Lal - Complainant(s)

Versus

Aen JVVNL - Opp.Party(s)

Surendra Dudi

19 Nov 2014

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 222/2011
 
1. Parmeshear Lal
Karwasara Churu
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

प्रार्थी की ओर से श्री सुरेन्द्र डुडी अधिवक्ता उपस्थित।  अप्रार्थीगण की ओर से श्री सुर्य प्रकाश अधिवक्ता उपस्थित। पक्षकारान की बहस सुनी गई। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों केा दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी ने अप्रार्थी से अपने पिता के समय से ही विद्युत सम्बंध कृषि हेतु लिया हुआ है। जिसके खाता संख्या 1912-2104-0220-08 है। पिता की मृत्यु के बाद कृषि भूमि का विरासतन इन्तकाल प्रार्थी के नाम से दर्ज हो गया जिस पर प्रार्थी काश्त करता आ रहा है। आगे तर्क दिया कि पिता की मृत्यु के बाद काश्त नहीं करने के कारण अप्रार्थीगण विभाग द्वारा कृषि विद्युत कनेक्शन काट दिया गया जिस पर प्रार्थी ने दिनांक 11.12.2007 को 20,000 रूपये जमा करवा कर कनेक्शन जुड़वाना चाहा। इसी क्रम में प्रार्थी के यहां दिनांक 05.02.2010 को पुनः कनेक्शन हुआ। प्रार्थी ने आगे तर्क दिया कि अप्रार्थीगण द्वारा फरवरी 2010 में पुनः विद्युत कनेक्शन स्थापित करते समय बकाया राशि 35428.60 रूपये का बिल जारी किया गया जबकि विद्युत कनेक्शन विच्छेद के समय बकाया राशि 26333 रूपये बनती थी जिसमें से प्रार्थी ने 20,000 रूपये जमा करवा दिये फिर भी अप्रार्थीगण ने दिसम्बर 2010 में 7,495.20 रूपये गलत रूप से प्रार्थी के विरूद्ध निकाले जिसको दुरूस्त करने हेतु प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां बार-बार निवेदन किया परन्तु अप्रार्थीगण ने कोई सुनवाई नहीं की। अप्रार्थीगण द्वारा औसत रिडिंग के आधार पर बिल जारी नहीं करना सेवादोष है। उक्त आधार पर परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्य तर्क यह दिया कि प्रार्थी को नियमानुसार फरवरी 2010 में 24516 रूपये की क्रेडिट दी जा चूकी है। वर्तमान में प्रार्थी की ओर 7,734.98 रूपये बकाया बनते है जो प्रार्थी द्वारा उपभोग की गयी यूनिट के ही बिल है। यह भी तर्क दिया कि चूंकि प्रार्थी व अप्रार्थीगण के मध्य विद्युत कनेक्शन के समय कोई संविदा नहीं हुई थी ना ही प्रश्नगत विद्युत सम्बंध प्रार्थी के नाम से है। इसलिए प्रार्थी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारीज करने का तर्क दिया।

           प्रार्थी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, बिलों की प्रतियां दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थीगण की ओर से बाइन्डर, स्टेटमेन्ट आॅफ अकाउन्ट दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। मंच का निष्कर्ष निम्न प्रकार है।

           हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में विवादक बिन्दु यह है कि क्या प्रार्थी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता है। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने अपनी बहस में मुख्य तर्क यह दिया कि प्रश्नगत विद्युत कनेक्शन प्रार्थी की बजाय प्रार्थी के पिता के नाम से है। प्रार्थी व अप्रार्थीगण विद्युत विभाग के मध्य कोई संविदा नहीं हुई। इसलिए प्रार्थी अप्रार्थीगण विभाग का उपभोक्ता नहीं है। यह स्वीकृत तथ्य है कि प्रश्नगत विद्युत खाता संख्या 1912-2104- 0220-08 प्रार्थी के नाम से नहीं है बल्कि प्रार्थी के पिता के नाम से है। प्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि चूंकि प्रार्थी के पिता के स्र्वगवास के बाद प्रार्थी ही प्रश्नगत विद्युत सम्बंध का उपभोग करता आ रहा है और बिलों का भुगतान करता आ रहा है इसलिए प्रार्थी अप्रार्थीगण विभाग का उपभोक्ता है। उक्त सम्बंध में हम माननीय राष्ट्रीय आयेाग के न्यायिक दृष्टान्त 3 सी.पी.जे. 2012 पेज 65 एन.सी. नीलम छाबड़ा बनाम उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम का उल्लेख कर रहे है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में विद्युत सम्बंध प्रार्थी की बजाय प्रार्थी के पिता के नाम से था। हालांकि प्रार्थी ने विद्युत सम्बंध अपने नाम से करने हेतु प्रार्थना-पत्र विद्युत विभाग में दिया गया था जिस तथ्य को अप्रार्थीगण विभाग ने भी स्वीकृत किया था। परन्तु विद्युत सम्बंध प्रार्थी के नाम से परिवर्तन नहीं हुआ था इसलिए माननीय राष्ट्रीय ने प्रार्थी को उपभोक्ता नहीं माना। उक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान परिवाद के तथ्यों से पूर्णत चस्पा होते है। वर्तमान प्रकरण में भी विद्युत सम्बंध प्रार्थी के बजाय उसके पिता के नाम से है और प्रार्थी ने विद्युत परिवर्तन हेतु कोई प्रार्थना-पत्र भी अप्रार्थीगण विभाग में नहीं दिया। इसलिए मंच की राय में प्रार्थी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) डी के अनुसार अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नहीं है। प्रार्थी का परिवाद उक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी के दृष्टीगत खारिज किये जाने योग्य है।

           अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध खारिज किया जाता है। पक्षकारान प्रकरण व्यय स्वंय अपना-अपना वहन करेंगे। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

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