Rajasthan

Jalor

C.P.A 115/2012

Bhopal Singh - Complainant(s)

Versus

AEN, J.V.V.N.L etc. - Opp.Party(s)

Dholat Raj

18 Mar 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर।

पीठासीन अधिकारी

अध्यक्ष:-  श्री  दीनदयाल प्रजापत,

सदस्यः-   श्री केशरसिंह राठौड,

सदस्याः-  श्रीमती मंजू राठौड,

      ..........................

1.भोपालसिंह पुत्र मोपसिंह, जाति राजपूत, उम्र- 47 वर्ष, निवासी- कवंला, तहसील आहोर, जिला- जालोर,            

.......प्रार्थी।

                बनाम  

1.जोधपुर विद्युत वितरण निगम लि0,

जरिये अधीक्षण अभियन्ता,

2.जो0 वि0 वि0 नि0 लि0 कार्यालय जालोर।

सहायक अभियन्ता,

जोधपुर विद्युत वितरण निगम लि0 कार्यालय उम्मेदपुर।

तहसील आहोर, जिला जालोर।    

 

 

 

...अप्रार्थीगण।

                                सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:- 115/2012

परिवाद पेश करने की  दिनांक:-14-09-2012

अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता  संरक्षण  अधिनियम ।

उपस्थित:-

1.            श्री दौलतराज बराड,  अधिवक्ता प्रार्थी।

2.            श्री  दिलीप शर्मा, अधिवक्ता अप्रार्थीगण।

  निर्णय     दिनांक:  18-03-2015

1.              संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थी के नाम एक घरेलू विद्युत  कनैक्शन अप्रार्थीगण से स्थापित करवा रखा हैं, जिसके खाता संख्या- 2306-0372 हैं, तथा अप्रार्थी ने अक्टूम्बंर 2011 का विद्युत बिल रूपयै 888/- का भेजा जो विद्युत खर्च की तुलना में

 

अधिक राशि का था, जिसपर प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या दो को शिकायत की, जिस पर बिल संशोधित कर रूपयै 260/- का किया, जो प्रार्थी ने अदा कर दिया। तथा दिसम्बर 2011 में उपभोग 110 यूनिट बताते हूए गलत रूप से रूपयै 1082/- का बिल भेजा, जिसकी शिकायत प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या दो से की, जिस पर बिल संशोधित  कर 390/- रूपयै कर दिया गया। तथा अप्रार्थी ने आश्वासन दिया कि भविष्य में बिल सही आयेगा। तथा फरवरी 2012 का बिल उपभोग यूनिट 10 बताते हूए रूपयै 884.00 का भेजा, जिसमें 672.01 रूपयै  पिछला बकाया बताया, जिसकी शिकायत करने पर बिल संशोधित कर रूपयै 185/- कर दिया। तथा अप्रार्थी ने कहा अब भविष्य में बिल सही आयेगा। तथा अप्रेल 2012 के विद्युत बिल में पिछला बकाया 683.41 रूपयै जोडकर रूपयै 875/-का जारी किया। जून 2012 के बिल में पिछला बकाया 874.97 बताकर रूपयै 1162/- का बिल जारी किया। प्रार्थी गरीब मजदूरी पेशा व्यक्ति हैं, जिसने अपने सीमित संसाधनो के बल पर अपने उक्त विद्युत कनैक्शन स्थापित किया हैं, तथा प्रार्थी को अप्रार्थीगण ने माह अक्टूम्बर, दिसम्बर 2011, फरवरी, अप्रेल, जून 2012 के भेजे गलत बिलो में सुधार के लिए व उसके परिणाम को मिट आउट प्रभावहिन करने के लिए अप्रार्थी संख्या- 1 के विभिन्न कार्यालयो के चक्कर काटने से प्रार्थी को भारी मानसिक परेशानी का सामना करना पडा हैं। इसप्रकार प्रार्थी ने यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व प्रार्थी के विद्युत खाता संख्या-2306-0372 का सही हिसाब-किताब रखकर वास्तविक विद्युत बिल  भविष्य में सही भिजवाने हेतु एवं मानसिक क्षतिपूर्ति राशि रूपयै 20,000/-, आर्थिक क्षति रूपयै 5,000/- एवं परिवाद खर्च दिलवाये जाने  हेतु यह परिवाद जिला मंच के समक्ष पेश किया गया हैं।

 

2.                   प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थीगण को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया गया। जिस पर अप्रार्थीगण की ओर से अधिवक्ता श्री दिलीप शर्मा ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थीगण ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि अप्रार्थी विद्युत निगम पब्लिक सर्विस काॅर्पोरेशन हैं, जो बिना किसी लाभ की मंशा के जनहितार्थ विद्युत की सुचारू व्यवस्था हेतु प्रयासरत हैं। तथा प्रकरण वर्णित विद्युत सम्बन्ध की विद्युत निगम के अधिकारीयों द्वारा जाॅंच करते हूए राशि विद्युत निगम के प्रावधानो के अनुसार अधिरोपित की हैं। उक्त राशि रिकार्ड के आधार पर अधिरोपित की हैं, जो कि विद्युत के उपभोग के आधार पर आयी हैं। उक्त राशि शीट में आये अकंन के आधार पर अधिरोपित की हैं, जो बिल जारी किये गये हैं, जिसका पूर्ण विवरण उपभोक्ता को दिया हैं। उक्त राशि जनरल कंडीशन आफ सप्लाई के प्रावधानो के अनुसार मीटर रीडींग रिकार्ड में आये अकंन के आधार पर निर्धारण कर बिल  विद्युत निगम के प्रावधानो के अनुसार एवं रिकार्डस् की जाॅंच कर प्रार्थी पर अधिरोपित कियेे हैं, जो सही हैं। तथा प्रार्थी ने विभागीय समझौता समिति के तहत विवाद को प्रस्तुत नहीं किया हैं।  विभागीय समझौता समिति स्टूचरी बाॅडी हैं, जो उक्त प्रकार के विवाद का विभागीय स्तर पर उचित निस्तारण करती हैं। उपभोक्ता ने प्रकरण को प्रथम तया विभागीय समझौता समिति के समक्ष पेश नहीं किया हैं, जिससे यह परिवाद  प्रथम दृष्टया ही विधि की मंशा के प्रतिकूल होने से खारीज योग्य हैं। इस प्रकार अप्रार्थीगण ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर प्रार्थी का परिवाद  मय खर्चा खारीज करने का निवेदन किया हैं।

 

3.           हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने का पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद,  उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिन पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक  हैें:-

 

  1. क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ?        प्रार्थी

 

2.  क्या अप्रार्थीगण ने प्रार्थी को अक्टूम्बंर 2011 से जून 2012 तक

       गलत  एवं अधिक राशि के बिल  जारी  कर  सेवा  प्रदान

       करने  में गलती एवं लापरवाही कारित की हैं ?            

                                                   प्रार्थी                                   

  1. अनुतोष क्या होगा ?   

 

प्रथम विधिक विवाद बिन्दु:-

         क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ?      प्रार्थी  

           

       उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने अप्रेल 2010 से फरवरी 2012 तक के 12 बिलो की प्रतियां पेश की हैं, जो अप्रार्थी विद्युत विभाग ने प्रार्थी के नाम विद्युत खाता संख्या-2306-0372 से जारी किये हैं, जिनकी राशि प्रार्थी ने अप्रार्थीगण विद्युत विभाग को दी हैं, तथा प्रार्थी विद्युत का उपभोग प्रतिफल अदा कर के करता हैं। जिससे प्रार्थी एवं अप्रार्थीगण के मध्य गा्रहक-सेवक का सीधा सम्बन्ध स्थापित होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 1 डी  के तहत उपभोक्ता की तारीफ में आता हैं, इसप्रकार प्रथम विवाद  बिन्दु  प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थीगण के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।

द्वितीय विवाद बिन्दु:-  

     क्या अप्रार्थीगण ने प्रार्थी को अक्टूम्बंर 2011 से जून 2012 तक

       गलत  एवं  अधिक राशि के बिल  जारी  कर  सेवा  प्रदान

       करने  में गलती एवं लापरवाही कारित की हैं ?         

                                                  प्रार्थी                                   

                                   

              उक्त द्वितीय विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं।  जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने अक्टूम्बंर 2010 से जून 2011 तक के 4 विद्युत बिलो की प्रतियां पेश की हैं। अक्टूम्बंर 2010 के बिल में गत पठन 475 व वर्तमान पठन 700 अंकित कर उपभोग यूनिट 225 खर्च होने का कम्पयूटर प्रिन्टेड बिल रूपयै  888/- का जारी किया हैं, जिसे प्रार्थी की शिकायत पर अप्रार्थी ने उक्त बिल में संशोधन कर वर्तमान पठन 700 के स्थान पर 500 पेन से लिखकर उपभोग 25 यूनिट खर्च का कर, बिल 260/-रूपयै   का होना संशोधित किया गया हैं। जिसे प्रार्थी ने दिनांक 04-11-2011 को भुगतान कर दिया हैं। दिसम्बर 2012 के विद्युत बिल में गत पठन 700 व वर्तमान पठन 810 उपभोग 110 यूनिट खर्च का कम्पयूटर प्रिन्टेड बिल  रूपयै  1042/- का जारी किया गया हैं। जिसमें पिछली बकाया राशि रूपयै 612/- भी जोडे गये हैं, जब कि प्रार्थी अक्टूम्बंर 2011 के बिल का भुगतान कर चुका था, तथा दिसम्बर 2011 के बिल में भी संशोधित कर गत पठन 700 के स्थान पर 475 व वर्तमान पठन 579 उपभोग 104 यूनिट कर रूपयै 390/- किया गया हैं, जिसे प्रार्थी ने दिनांक 02-01-2012 को भुगतान कर दिया गया हैं, तथा फरवरी 2012 के विद्युत बिल में पूर्व संशोधित बिल के आधार पर गत पठन  579 सही अंकित करते हूए वर्तमान पठन 589 अंकित कर जारी किया गया, लेकिन जिसमें पिछले बिल की बकाया राशि रूपयै 672.01 जोड दी गई, जो प्रार्थी में बकाया नहीं थी,  जिस कारण अप्रार्थी ने फरवरी 2012 के गलत  जारी बिल को रूपयै 853/- से सही एवं संशोधित कर रूपयै  185/- कर दिया गया हैं, जिसे प्रार्थी ने दिनांक 27-02-2012  को भुगतान किया हैं, तथा अप्रेल 2012 का  विद्युत बिल रूपयै 843/- का जारी किया, जिसमे ंफिर से पिछला बिल बकाया राशि रूपयै 683.41 जोडी गई हैं, इसप्रकार अप्रार्थीगण विद्युत विभाग ने प्रार्थी को बार-बार लगातार 4 बिल गलत एवं अधिक राशि के त्रुटिपूर्ण  जारी किये,  जिसे संशोधित भी किया तथा फिर आगामी विद्युत बिल अप्रेल व जून 2012 में गलत, अधिक एवं त्रुटिपूर्ण जारी किये हैं, जो सिद्व एवं प्रमाणित हैं। जिसके कारण प्रार्थी को अपना दैनिक कार्य/मजदूरी/धन्धा से वंचित होकर बिल संशोधन हेतु अप्रार्थीगण के कार्यालय के चक्कर लगाने पडे हैें। जो अप्रार्थीगण की उपभोक्ता को दी जाने वाली सेवा में कमी , गलती एवं त्रुटि कारित करना सिद्व होता हैं। इसप्रकार विवाद का द्वितीय बिन्दु भी प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थीगण  विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।

 

तृतीय विवाद बिन्दु- 

                                अनुतोष क्या होगा ?           

       जब प्रथम एवं द्वितीय विवाद बिन्दु प्रार्थी के पक्ष में निस्तारित हो जाने से तृतीय विवाद बिन्दु का निस्तारण स्वतः ही प्रार्थी के पक्ष में हो जाता हैं। लेकिन हमे यह देखना हैं कि प्रार्थी विधिक रूप से क्या एवं कितनी उचित सहायता अप्रार्थीगण से प्राप्त करने का अधिकारी हैं। या उसे दिलाई जा सकती हैं। जिसके बारे में हमारी राय में अप्रार्थीगण ने अक्टूम्बंर 2011 से जून 2012 तक 5 बिल गलत व अधिक राशि के एवं त्रुटिपूर्ण जारी किये हैं, जिससे अप्रेल 2012 के बिल में पिछला बकाया 683.41 पैसे नहीं होने पर भी जोडे गये हैं।  जो प्रार्थी कम करवाने का अधिकारी हैं। तथा आगामी विद्युत बिलो में उक्त त्रुटि एवं गलती नहीं हो , इसके लिए  प्रार्थी  अप्रार्थीगण को पाबन्द करवाने का  अधिकारी माना जाता हैं। तथा अप्रार्थीगण की गलती, त्रुटि एवं लापरवाही से प्रार्थी को दैनिक मजदूरी कार्यो से वंचित होना पडा हैं, मानसिक व शारीरिक रूप से परेशान होना पडा हैं, जिसके सम्बन्ध में मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति राशि रूपयैै 3000/- एवं परिवाद व्यय के रूप में रूपयै 2000/- अप्रार्थीगण से दिलाये जाना उचित माना जाता हैं। तथा प्रार्थी को दी जाने वाली उक्त आदेशित क्षतिपूर्ति राशि रूपयै 5000/- अप्रार्थीगण  विद्युत निगम अपने अधिकारी/कर्मचारी जिसने प्रार्थी के प्रति बार-बार गलती , त्रुटि एवं लापरवाही कारित की हैं, उसके वेतन/सम्पति से प्राप्त करने का अधिकारी माना जाता हैं। इस प्रकार प्रार्थी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य हैं।

 

                   आदेश 

 

                 अतः प्रार्थी भोपालसिंह का परिवाद विरूद्व अप्रार्थीगण अधीक्षण अभियन्ता, जोधपुर विद्युत वितरण निगम लि0 जालोर व अन्य के विरूद्व स्वीकार कर आदेश दिया जाता हैं कि निर्णय की तिथी से 30 दिन के भीतर अप्रार्थीगण प्रार्थी के विद्युत खाता संख्या-2306-0372 में जारी विद्युत बिल अप्रेल व जून 2012 में फरवरी 2012 का पिछला बकाया राशि नहीं होने से सही एवं संशोधित करके देवे, तथा आगामी जारी होने वाले विद्युत बिलो में उक्त गलती की पुर्नरावृति नहीं करे, तथा अप्रार्थीगण, प्रार्थी को मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति राशि के रूपयै  3,000/- अक्षरे तीन हजार रूपयै मात्र एवं परिवाद व्यय के रूपयै 2000/- अक्षरे दो हजार रूपयै मात्र  जिस पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथी  14-09-2012 से 9 प्रतिशत  वार्षिकी दर से ब्याज सहित अदा करेे। तथा प्रार्थी को दी जाने वाली उक्त आदेशित राशि अप्रार्थीगण विद्युत निगम अपने अधिकारी/कर्मचारी जिसने प्रार्थी के प्रति बार-बार उक्त गलती एवं त्रुटि तथा लापरवाही बरती हैं, उसके वेतन/सम्पति से प्राप्त कर सकेगी।

निर्णय व आदेश आज दिनांक 18-03-2015 को विवृत मंच में  लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

 

  मंजू राठौड        केशरसिंह राठौड          दीनदयाल प्रजापत

     सदस्या            सदस्य                       अध्यक्ष   

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