राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-162/2021
(जिला उपभोक्ता आयोग, प्रतापगढ़ द्धारा परिवाद सं0-312/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22.12.2020 के विरूद्ध)
महेन्द्र कुमार त्रिपाठी सुत आद्या प्रसाद त्रिपाठी, निवासी देवगढ़ कमासिन, रानीगंज, जनपद प्रतापगढ़ (उ0प्र0)
........... अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1- अधिशाषी अभियंता, यू0पी0पी0सी0एल0, विद्युत वितरण खण्ड प्रथम, प्रतापगढ़ (उ0प्र0)
2- राज्य सरकार उ0प्र0 द्वारा श्रीमान् जिलाधिकारी महोदय, प्रतापगढ़ (उ0प्र0)
…….. प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थीगण के अधिवक्ता :- श्री एस0के0 शुक्ला
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता :- श्री कोई नहीं।
दिनांक :-08.12.2021
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/परिवादी महेन्द्र कुमार त्रिपाठी द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रतापगढ़ द्वारा परिवाद सं0-312/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22.12.2020 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 24.01.1995 को विद्युत कनेक्शन लेकर बिजली का उपयोग करते हुए विद्युत बिलों का निरंतर भुगतान किया जाता रहा तथा दिनांक 29.7.2000 को उसके ग्रामीण रामनिहोर हरिजन द्वारा विद्युत केबिल तोड़ दिया गया
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और अपने सामने से जाने नहीं दिया गया, जिस सम्बन्ध में दिनांक 29.7.2000 को जिलाधिकारी को सूचना देने पर जिलाधिकारी द्वारा अधिशासी अभियंता को विद्युत संबंध जोड़ने के लिए कहा गया और अधिशासी अभियंता द्वारा दिनांक 31.7.2000 को पत्रांक 2878 के माध्यम से उपखण्ड अधिकारी को प्रतिवेदन देने के लिए लिखा गया। परन्तु अपीलार्थी/परिवादी द्वारा बार-बार कहने के बाद भी विद्युत केबिल जोड़ा नहीं गया, साथ ही विद्युत बिल निरंतर भेजते रहे। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विभागीय आश्वासन के आधार पर दिनांक 24.02.2004 तक का विद्युत बिल का भुगतान किया जाता रहा। उसके बाद भुगतान बन्द कर दिया गया। दिनांक 07.10.2015 को विधायक निधि से एच.टी. लाइन गॉव में पहुंची तब नयी केबिल जुड़वाकर अपीलार्थी/परिवादी नवम्बर, 2015 से विद्युत का उपभोग कर रहा है। इस प्रकार दिनांक 27.7.2000 से अक्टूबर, 2015 तक उसके द्वारा विद्युत बिल का उपभोग नहीं किया गया है और वर्ष-2000 से वर्ष-2004 तक विद्युत बिल का भुगतान बिना उपभोग के ही किया है, इसलिए उक्त राशि को वर्ष-2015 के बाद जो देनदारी बन रही है उसे समायोजित किया जाये। अत्एव क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध वर्ष-2015 के बाद के बिलों को समायोजित किये जाने तथा क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत अभिलेखों एवं साक्ष्य के आधार पर निर्णय पारित नहीं किया गया है। जिला उपभोक्ता आयोग
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द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश तथ्य, विधि और साक्ष्य के विरूद्ध है और अपास्त किये जाने योग्य है।
मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री एस0के0 शुक्ला को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया।
वर्तमान प्रकरण में यह पाया जाता है कि जिस विद्यायक निधि से एच.टी. लाइन आने पर अगल से लाइन देकर केबिल जोड़ने का कथन अपीलार्थी/परिवादी द्वारा किया गया है, उसका कोई दस्तावेजी साक्ष्य अपीलार्थी/परिवादी की ओर से न तो जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख और न ही इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत किया गया है और इस सम्बन्ध में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है उसमें किसी प्रकार की त्रुटि होना नहीं पाई जाती है। अपील में बल नहीं है, अत्एव प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेगें।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1