Rajasthan

Ajmer

CC/359/2011

MANSINGH SOMRA - Complainant(s)

Versus

ADARSH CO. OPERATIVE BANK - Opp.Party(s)

ADV ANIL SHARMA

29 Sep 2014

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/359/2011
 
1. MANSINGH SOMRA
AJMER
 
BEFORE: 
  Gautam prakesh sharma PRESIDENT
  vijendra kumar mehta MEMBER
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला    मंच,      उपभोक्ता     संरक्षण         अजमेर

मानसिंह सोमरा पुत्र श्री रावत सिंह सोमरा, निवासी- 155, हरिभाउ उपाध्याय नगर, अजमेर (राज)
                                                       प्रार्थी

                            बनाम

1. प्रबन्धक, आदर्ष को-आपरेटिव बैंक लि., कचहरी रोड, अजमेर
2. मैनेजर, चन्द्रउदय  आटोमोबाईलस प्रा.लि., ऋषि टोयटो, एनएच 65, मैन पाली रोड, जोधपुर । 
                                                        अप्रार्थीगण 
                    परिवाद संख्या 359/2011

                            समक्ष
                   1.  गौतम प्रकाष षर्मा    अध्यक्ष
            2. विजेन्द्र कुमार मेहता   सदस्य
                   3. श्रीमती ज्योति डोसी   सदस्या

                           उपस्थिति
                  1.श्री अनिल षर्मा,अधिवक्ता, प्रार्थी
                  2.श्री अवतार सिंह उप्पल,  अधिवक्ता अप्रार्थी सं.1 
                  3.श्री रामकुमार कसवा, अधिवक्ता अप्रार्थी सं.2
                              
मंच द्वारा           :ः- आदेष:ः-      दिनांकः- 31.10.2014

1.         परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि  प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 2 से  इनोवा जी. एक्स. चार कार क्रय करने हेतु समस्त औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए अप्रार्थी संख्या 1 से  दिनांक 5.3.2010 को  राषि रू. 8,00,000/- का ऋण प्राप्त किया ।  अप्रार्थी संख्या 1 ने प्रार्थी से वाहन की मार्जिन मनी  लेकर  वाहन की कुल राषि रू. 9,77,173/- का ड्राफट संख्या 475452 दिनांक 5.4.2010 को अप्रार्थी संख्या 2 को दे दिया ।  प्रार्थी को  रू0 22300/- प्रतिमाह की दर से  किष्तें तय की गई थी ।  प्रार्थी जब अप्रार्थी संख्या 2 के यहा वाहन की डिलीवरी लेने गया तो स्टाॅक में उसके द्वारा क्रय किए जाने वाला माॅडल नहीं होने और आने पर वाहन की डिलीवरी दिए जाने का आष्वासन दिया । कई चक्कर लगाने के बाद भी उसे वाहन की डिलीवरी नहीं दी गई । परिवाद पेष करते हुए प्रार्थी ने  अप्रार्थीगण को यह आदेष दिए जाने का निवेदन किया है कि अप्रार्थी संख्या 2 से प्रार्थी को वाहन दिलाया जावे एवं  जब तक वाहन की डिलीवरी नहीं हो जाती तब तक ऋण किष्तों की कटौती नहीं की जावे  तथा मानसिक संताप व वाद व्यय दिलाए जाने की प्रार्थना की है । 
2.    अप्रार्थी संख्या 1 ने परिवाद का जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रारम्भिक आपत्तियों में दर्षाया है कि  प्रार्थी ने वाहन टैक्सी के उद्देष्य से क्रय किया था इसलिए प्रार्थी  उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है । आगे पैरावाईज जवाब प्रस्तुत करते हुए   कथन किया है कि प्रार्थी द्वारा इनोवा कार हेतु ऋण उपलब्ध कराए जाने बाबत् सम्पर्क करने पर समस्त औपचारिकताएं पूर्ण किए जानेे के उपरान्त दिनंाक 5.3.2010 को रू. 8,00,000/- का ऋण  स्वीकृत  किया गया और प्रार्थी  से वाहन की मार्जिन मनी राषि रू. 1,77,173/- प्राप्त करते हुए  रू. 9,77,173/- का ड्राफट  अप्रार्थी संख्या 2 को देय प्रार्थी को सुपुर्द  किया गया । प्रार्थी ने ऋण पैटे कुल 11 किष्तों में रू. 2,46,200/- ही जमा कराए है।
    आगे जवाब में दर्षाया है कि उत्तरदाता बैंक ने प्रार्थी से वाहन का फिजिकल वेरीफिकेषन करवाए जाने को कहा किन्तु प्रार्थी ने वाहन का फिजिकल वेरिफिकेषन  नहीं करवाया । नोटिस दिए जाने के बाद प्रार्थी ने वाहन का इंष्योरेंस कवर नोट व रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र  अप्रार्थी बैंक को उपलब्ध करवाए । रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र की अप्रार्थी बैंक द्वारा जांच करवाए जाने पर  प्रादेषिक परिवहन अधिकारी , अजमेर ने अपने पत्र दिनंाक 12.11.2010 से अवगत करवाया कि  रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र में अंकित वाहन संख्या आर.जे.1-टीए-1994 किसी भी वाहन को आवंटित नहीं किया गया है  और उक्त प्रमाण पत्र फर्जी होना बतलाया ।  इसी प्रकार  बीमा कवर नोट की भी फयूचर स्कवायर मोटर इंष्योरेंस क.लि. से जांच करने जाए पर  उक्त कवर नोट भी फर्जी पाया गया । तदोपरान्त अप्रार्थी बैंक ने  प्रार्थी व उसके गारण्टर श्रीमति संगीता चैधरी, रामसिंह व अप्रार्थी संख्या 2 के विरूद्व पुलिस थाना सादर कोतवाली, अजमेर में प्रथम सूचना रिर्पोट संख्या 75/2011 दर्ज करवाई और अनुसन्धान के दौरान पुलिस द्वारा यह पाया गया कि प्रार्थी ने उक्त कार अप्रार्थी संख्या 2 से प्राप्त कर  उत्तरदाता बैंक के अलावा अन्य फाईनेन्स कम्पनी कोगटा फाईनेन्सर(आई), विजय नगर, हाल गणपति प्लाजा,जयपुर से भी फाईनेन्स प्राप्त किया है । इसी प्रकार  प्रषनगत वाहन के बीमा कवर नोट व रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र फर्जी पाए जाने पर पुलिस ने प्रार्थी के विरूद्व न्यायालय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या 2, अजमेर में  अन्तर्गत धारा 420, 467,468,471 भारतीय दण्ड संहिता के तहत चार्जषीट दायर की है जो न्यायालय में विचाराधीन है । अन्त में परिवाद खारिज  किए जाने की प्रार्थना की है । 
3.    अप्रार्थी संख्या 2 ने परिवाद का जवाब प्रस्तुत किया है जिसमें  प्रारम्भिक आपत्ति  में यह दर्षाया है कि  प्रार्थी के विरूद्व  कूटरचित दस्तावेज तैयार करने के आधार पर  पुलिस थाना कोतवाली, अजमेर में  प्रथम सूचना रिर्पोट  संख्या 75/2011 दर्ज  हुई है जिसके संबंध में प्रकरण सक्षम न्यायालय में विचाराधीन है ।
    अप्रार्थी का कथन है कि प्रार्थी ने उत्तरदाता अप्रार्थी संख्या 2 से  जरिए डिलवरी चालान संख्या 542 दिनांक 1.9.2008 के एक इनावा जी 4 आठ सीटर सिल्वर कलर वाहन प्राप्त कर लिया  जिसे प्रार्थी ने राॅयल सुन्दरम एलायन्ज इन्ष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड से  कवर नोट संख्या 0814096 के दिनांक 31.8.2008  से बीमा करवाया तथा वाहन का अस्थायी रजिस्ट्रेषन नम्बर भी प्राप्त कर लिया ।  उक्त वाहन की सुपुर्दगी के समय प्रार्थी ने उत्तरदाता को वाहन की विक्रय राषि का भुगतान षीघ्र ही करने का आष्वासन दिया था। चूंकि प्रार्थी पूर्व में उनके यहां से चार वाहन  खरीद चुका था इसलिए प्रार्थी पर विष्वास कर  वर्ष 2008 का वाहन डिलीवर किया गया था किन्तु प्रार्थी द्वारा वाहन की विक्रय राषि अदा नही ंकिए जाने पर  उससे ब्याज वसूलने की  बात कही तब  प्रार्थी ने  अप्रार्थी संख्या 1 से दिनांक 5.4.2010 को वाहन का लोन  करवा कर अप्रार्थी संख्या 2 को वाहन के विक्रय मूल्य का भुगतान किया  इस प्रकार उत्तरदाता को वाहन का विक्रय मूल्य प्राप्त हुआ । उत्तरदाता अप्रार्थी ने  अप्रार्थी सं.1  को  वाहन का  बिल एवं फार्म संख्या 22  इसलिए सुपुर्द नहीं किए क्योंकि अप्रार्थी के खाते में प्रार्थी का हिसाब  बकाया चल रहा था  और जब अप्रार्थी संख्या 1 ने प्रार्थी पर उक्त दस्तावेज उनके यहां  भिजवाने का दबाव बनाया तो  प्रार्थी ने फर्जी दस्तावेज तैयार करवाए  और फर्जी दस्तावेज  की जानकारी उत्तरदाता को फौजदारी प्रकरण में अनुसंधान  करने के दौरान हुई ।  अप्रार्थी ने  प्रार्थी पर  भारी जुर्माना लगाते हुए परिवाद खारिज करने की प्रार्थना की है । 
4.    हमने उभय पक्ष को सुूना एवं पत्रावली का अनुषीलन किया । 
5ण्                परिवाद व अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के जवाब के अनुसार प्रार्थी ने दिनंाक  5.4.2010 को  इनोवा जी एक्स चार वाहन  क्रय करने हेतु अप्रार्थी बैंक से राषि रू. 8,00,000/- का  ऋण स्वीकृत करवाया तथा ष्षेष राषि स्वयं की मिलात हुए एक ड्राफट संख्या 475452 दिनांक 5.4.2010 के पत्र से अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा  अप्रार्थी संख्या 2 को  भेजा, यह तथ्य स्वीकृतषुदा है । अप्रार्थी संख्या 2 ने भी  ऐसा ड्राफट उसे प्राप्त होना स्वीकार किया लेकिन उसका कथन है कि उक्त राषि प्रार्थी द्वारा उसे पूर्व में क्रय की गई वाहन की बकाया राषि  की थी । प्रार्थी  के आगे कथन रहें है कि अप्रार्थी संख्या 2 वाहन की राषि का  उपरोक्त ड्राफट प्राप्त करने के उपरान्त भी उसे वाहन डिलीवर नहीं किया जबकि अप्रार्थी संख्या 1 ऋण की  किष्ते वसूल कर रहा है । अतः परिवाद के निर्णय हेतु हमारे समक्ष यही बिन्दु है कि क्या प्रार्थी की ओर से अप्रार्थी संख्या 2 को भेजा गया उक्त ड्राफट प्रार्थी द्वारा नया वाहन क्रय पैटे भेजा  था या अप्रार्थी संख्या 2  से पूर्व में  क्रय किए गए वाहन की बकाया राषि का था ? 
6.    इन निर्णय बिन्दु के संबंध में पक्षकारान के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गई । विद्वान अधिवक्ता प्रार्थी की  बहस है कि अप्रार्थी बैंक द्वारा प्रार्थी को नई इनोवो वाहन कय्र हेतु उसका आवेदन दिनंाक 5.3.2010 पर रू. 8,00,000/- का ऋण स्वीकृत किया गया एवं अप्रार्थी संख्या 1 ने प्रार्थी से बकाया राषि प्राप्त कर रू.9,77,173/- का ड्राफट संख्या 475452 पत्र दिनांक 5.4.2010 से सीधे अप्रार्थी संख्या 1 को भेजा , के संबंध में अप्रार्थी बैंक ने उपर वर्णित राषि का ऋण स्वीकृत करने व उपर वर्णित ड्राफट भेजने के तथ्य को स्वीकार किया है ।  अप्रार्थी संख्या 2 के जवाब से भी उसे उपर वर्णित ड्राफट मिला था लेकिन इस अप्रार्थी का कथन है कि उक्त राषि  प्रार्थी द्वारा पूर्व में  क्रय की गई वाहन की बकाया राषि थी । अधिवक्ता की बहस है कि अप्रार्थी संख्या 2 यह  सिद्व नहीं कर पाया है कि ऐसा वाहन प्रार्थी को पूर्व में कब विक्रय किया गया था । अधिवक्ता की आगे बहस है कि जब प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 2 से वाहन डिलीवरी हेतु  सर्मपर्क किया तो उसे बतलाया कि जिस माॅडल का प्रार्थी वाहन चाहता हैैेे उस माॅडल का वाहन उपलब्ध नहीं था जब वांछित माॅडल का वाहन आ जावेगा तब दे दिया जावेगा । उक्त दिवस के पष्चात  परिवाद पेष होते तक प्रार्थी को अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा  उपरोक्त ड्राफट  से भेजी गई राषि के पैटे कोई वाहन उपलब्ध नही ंकरवाया । अधिवक्ता की यह भी बहस है कि अप्रार्थी संख्या 1 प्रार्थी के खाते से इस ऋण  पैटे मासिक किष्तों की राषि रू. 22300/- लगातार वसूल कर रहा है एवं परिवाद पेष होने तक अप्रार्थी ने प्रार्थी से 14 किष्ते वसूल कर ली है जबकि प्रार्थी को वाहन आज तक भी प्राप्त नही ंहुआ है। अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह भी बतलाया कि यह ऋण राषि नए वाहन के क्रय हेतु थी । अप्रार्थी संख्या 1 के पत्र दिनांक 5.4.2010 में नए वाहन की आपूर्ति संबंधी उल्लेख है तथा षर्तो के अनुसार अप्रार्थी संख्या 2 को इस ड्राफट पैटे प्रार्थी को नया वाहन उपलब्ध कराना था इस राषि का अन्यथा उपयोग उपभोग वंर्जित था । प्रार्थी ने इस संबंध में दिनांक 01.2.2011 को अप्रार्थी संख्या 1 को एक पत्र भी दिया जिसमें अप्रार्थी बैंक से निवेदन किया गया कि उसे अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा वाहन नहीं दिया गया फिर भी वह किष्ते बराबर दे रहा है एवं भविष्य में भी देता रहेगा । दिनंाक 01.4.2011  को अप्रार्थी संख्या 1  के मैनेजर द्वारा प्रार्थी व  अप्रार्थी संख्या 2 के विरूद्व प्राथम सूचना रिर्पोट  अन्तर्गत धारा 420, 467,468, भारतीय दण्ड संहिता  में दर्ज करवाया जिसके संबंध में  प्रार्थी ने एक  पीटिषन अन्तर्गत धारा 482  दण्ड संहिता प्रक्रिया  के माननीय  राजस्थान उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की  उक्त पीटिषन में माननीय उच्च न्यायालय ने दिनंाक 14.3.2012 को एक आदेष पारित किया इसके उपरान्त भी पुलिस ने अप्रार्थीगण से मिलकर प्रार्थी को इस आदेष से पहले ही गिरफतार करवा दिया  तथा उसके विरूद्व चालान भी प्रस्तुत कर दिया एवं अप्रार्थी संख्या 2 को छोड दिया गया । इस तरह से अधिवक्ता प्रार्थी की बहस है कि अप्रार्थीगण  की मिली भगत से पुलिस ने प्रार्थी के विरूद्व यह कार्यवाही की है । जहा तक अप्रार्थी संख्या 2 का कथन कि प्रार्थी ने एक वाहन वर्ष 2008 में क्रय किया एवं उक्त ऋण की राषि पुराने हिसाब में समायोजित की है  उक्त तथ्य अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा सिद्व नहीं हुआ है ।  इस प्रकार अधिवक्ता प्रार्थी की बहस है कि अप्रार्थी संख्या 2  के विरूद्व  भी सेवा में कमी का मामला सिद्व है  क्योंकि प्रार्थी को वाहन उपलब्ध  नही होने के  उपरान्त भी  अप्रार्थी  प्रार्थी से किष्तों की राषि वसूल कर रहा है । 
7.     अप्रार्थी संख्या 1 के विद्वान अधिवक्ता ने अपनी बहस में बतलाया कि प्रार्थी ने यह .ऋण टैक्सी  हेतु लिया था  इस प्रकार ऋण प्राप्त करने का आषय व्यावसायिक था इसलिए  प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है ।  इस संबंध में उन्होने दृष्टान्त प्प् ;2013द्धब्च्श्र 72;छब्द्ध ळमदमतंस डवजमते प्दकपं च्अज स्जक टे ळण्ैए थ्मतजपसप्रमते;चद्ध स्जकण् ।दतण्ए प्;2013द्धब्च्श्रण्ृ09ण् ळवं ैजंजम बवदेनउमत क्पेचनजमे त्मकतमेेंस ब्वउउपेेपवद ब्ीहवसंउंदकंसंउ प्दअमेजउमदज ंदक थ्पदंदबम ब्वउचंदल स्जकण् टे ल्वहंदंदक ैींदांत छंपा पेष किए ।   अधिवक्ता की आगे बहस है कि प्रार्थी को ऋण स्वीकृत किया गया जिसकी मासिक किष्ते  प्रार्थी को जमा करानी थी जो प्रार्थी द्वारा 14 किष्ते  स्वयं कथनानुसार जमा हुई है एवं बकाया किष्तों हेतु प्रार्थी स्वयं ने एक आवेदन दिया कि बकाया राषि वह षीघ्र ही जमा करा देगा एवं एनओसी प्राप्त कर लेगा ।   यदि अप्रार्थी बैंक प्रार्थी से बकाया राषि हेतु कोई मांग करता है तो उसके पक्ष में सेवा में कमी का मामला कतई नहीं बनता है ।  अधिवक्ता की यह भी बहस है कि ड्राफट संख्या 475452  सीधे  अप्रार्थी संख्या 2 को नहीं दिया बल्कि उक्त ड्राफट प्रार्थी को इस षर्त पर दिया गया कि वह अप्रार्थी संख्या 2 से पावती रसीद प्राप्त कर  पेष करे साथ ही  वाहन का बिल व बीमा कवर नोट की कापी भी लेकर देवे जो  रसीद प्रार्थी द्वारा लाकर दी गई जिससे यह सिद्व है कि उक्त ड्राफट अप्रार्थी बैंक द्वारा सीधे अप्रार्थी संख्या 2 को नहीं दिया गया  । प्रार्थी द्वारा वाहन से संबंधित रजिस्ट्रेषन प्रमाणपत्र व  बीमा कवर नोट  बैंक के समक्ष पेष किए उनके संबंध में अप्रार्थी बैंक द्वारा जांच करवाई गई तो जिला परिवहन अधिकारी, अजमेर के पत्र दिनांक 12.11.2010 से ज्ञात हुआ कि वाहन संख्या आर.जे.01 टीए 1994 नम्बर किसी भी वाहन को आवंटित नहीं किया गया है इस तरह से रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र  फर्जी होना पाया गया  तथा बीमा जिस कम्पनी से जारी होना बतलाया उक्त कम्पनी से ज्ञात करने पर पता चला कि उक्त कम्पनी ने भी ऐसे वाहन का कोई बीमा नहीं किया गया था जिस पर इस अप्रार्थी द्वारा गारण्टर व अप्रार्थी संख्या 2 के  विरूद्व धोखाधडी के संबंध में एक  प्रथम सूचना रिर्पोट  संख्या 75/11 दर्ज करवाई गई जिसमें प्रार्थी गिरफतार हुआ एवं उसके विरूद्व चालान पेष हुआ है । इस प्रकार अप्रार्थी संख्या 1 के विद्वान अधिवक्ता की बहस रही है कि अप्रार्थी बैंक आज भी प्रार्थी से बकाया राषि प्राप्त करने का अधिकारी है एवं  प्रार्थी ने गलत तथ्य दर्षाते हुए  यह ऋण प्राप्त किया एवं बाद में वाहन का फर्जी  रजिस्ट्रेषन  व वाहन का फर्जी बीमा प्रमाण पत्र  पेष किया अतः इस अप्रार्थी के विरूद्व सेवा में कमी का  बिन्दु सिद्व नहीं है । 
8.    अधिवक्ता अप्रार्थी संख्या 2 की बहस है कि प्रार्थी ने झूठा परिवाद पेष किया है एवं इस संबंध में अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा एक प्रथम सूचना रिर्पोट दर्ज करवाई  । जिसमें अनुसंधान से पाया गया कि प्रार्थी ने झूठा रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र व बीमा कवर नोट प्रस्तुत किया जिसके संबंध में उसे गिरफतार भी किया गया था एवं उसके विरूद्व चालान भी पेष किया  गया था । अधिवक्ता अप्रार्थी की आगे बहस है कि प्रार्थी ने इस अप्रार्थी से दिनांक 1.9.2008 को एक इनोवा  जीएक्स चार  वाहन  क्रय किया तथा इस वाहन को रायल  सुन्दरम एलायन्ज इन्ष्योरेंस कम्पनी से बीमित भी करवाया गया । इस वाहन के  अस्थायी रजिस्ट्रेषन नम्बर आर.जे. 19 टेम्परेरी क्रमांक 00042314 भी जारी किया गया तथा प्रार्थी ने इस वाहन की कीमत की राषि का भुगतान  जल्दी ही किए जाने का आष्सासन इस अप्रार्थी को दिया । प्रार्थी ने इस अप्रार्थी से पूर्व में भी कई वाहन खरीदे थे इसलिए उस पर विष्वासन कर  उसे वाहन दिया गया ।  प्रार्थी ने  वाहन ऋण स्वीकृत करवा कर  अप्रार्थी संख्या 2 को  2008 में बेचे गये वाहन की  राषि का भुगतान किया । अप्रार्थी को नए वाहन की  कोई राषि नहीं दी गई थी बल्कि वर्ष 2008 में प्रार्थी को बेचे गए वाहन की बकाया राषि का भुगतान इस अप्रार्थी को किया गया है । अधिवक्ता अप्रार्थी की आगे बहस है कि प्रार्थी  ने वाहन का ऋण प्राप्त करने  के उद्देष्य से  जिला परिवहन अधिकारी, अजमेर  के यहां से फर्जी रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र तैयार करवाया  और दिनांक 2.01.2010 को वाहन क्रय करना बतलाया जबकि यह बिल दिनंाक 11.4.2010 को अप्रार्थी संख्या 2 के कार्यालय से किसी सत्य नाराण प्रजापत को जारी किया गया था । प्रार्थी ने फार्म संख्या 21  विक्रय प्रमाण पत्र भी फर्जी तैयार किया गया व फार्म नं. 22 भी फर्जी तैयार किया । जिसके संबंध में प्रार्थी के विरूद्व प्रथम सूचना रिर्पेाट दर्ज  हुई । अधिवक्ता की  यह भी बहस है कि एक तरफ प्रार्थी उसे वाहन नहीं मिलने का कथन कर रहा है वही दूसरी ओर वह वाहन की किष्ते बराबर जमा करा रहा है । प्रार्थी के यह विारोधाभासी कथन प्रार्थी के मामले को संदिग्ध बनाते है । इस प्रकार अप्रार्थी के अधिवक्त की बहस है कि इस अप्रार्थी के विरूद्व किसी भी प्रकार का मामला नहीं बनता है । 
9.    हमने बहस पर गौर किया ।  जहां तक अप्रार्थी संख्या 1 बैंक का प्रष्न है , स्वयं प्रार्थी के अभिवचन जो परिवाद में रहे एवं अप्रार्थी संख्या 1 बैंक के अभिवचन से तथां पत्रावली पर इसी आषय की अन्य साक्ष्य से यह सुस्थापित हो रहा है कि प्रार्थी ने अप्रार्थी बैंक से रू. 8,00,000/- का ऋण स्वीकृत कराया था  एवं इस हेतु प्रार्थी ने अप्रार्थी बैंक को इस ऋ़ण की अदायगी रू 22300/- प्रतिमाह की किष्त से करना तय हुआ था । स्वयं प्रार्थी के कथनानुसार  उसके द्वारा 14 मासिक किष्ते जमा करवाई जा चुकी थी । ष्षेष राषि का भुगतान नहीं किए जाने पर बैंक द्वारा तकाजा किया गया  इसी क्रम में प्रार्थी ने दिनंाक 1.2.2011 को एक पत्र भी अप्रार्थी संख्या 1 बैंक को लिखा जिसमें बकाया राषि के भुगतान हेतु दिनांक 20.2.2011 तक का समय चाहा । परिवाद में प्रार्थी का कहना है कि  चूंकि उसे अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा वाहन की डिलीवरी नहीं दी गई । अतः अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा बकाया राषि की वसूली नहीं करने के संबंध में हमारी विवेचना है कि जब तक बैंक की सारी राषि की वसूली नहीं हो जाती तब तक बैंक बकाया राषि की वसूली करने हेतु सक्षम है । इन सारे विवेचन से हमारा निष्कर्ष है कि अप्रार्थी बैंक बकाया राषि की वसूली के संबंध में कार्यवाही करती है तो उसके पक्ष में किसी तरह से सेवा में कमी का मामला बनना नहीं पाया जाता है । 
10.    अब प्रष्न यह है कि क्या अप्रार्थी संख्या 2 ने प्रार्थी से नए वाहन हेतु राषि प्राप्त करने के उपरान्त भी वाहन नहीं दिया  इस आषय का निर्णय बिन्दु कायम हुआ है, के संबंध में पक्षकारान की ओर से हुई बहस पर गौर किया । प्रार्थी के अनुसार अप्रार्थी संख्या 2  को ड्राफट  दिनंाक 5.4.2010 को अप्रार्थी संख्या 1 बैंक द्वारा भेजा  तथा संलग्न पत्र में नया वाहन क्रय किए जाने का भी उल्लेख है । प्रार्थी की यही षिकायत रही है कि  अप्रार्थी संख्या 2 ने ड्राफट  दिनांक 
5.4.2010 को प्राप्त करने के उपरान्त भी परिवाद पेष होने तक उसे वाहन सुपुर्द नहीं किया गया है । इस संबंध में इस अप्रार्थी का कथन रहा है कि प्रार्थी ने कोई नया वाहन क्रय नहीं किया  बल्कि वर्ष 2008 में इनोवा कार प्रार्थी को विक्रय की गई थी जिसका बिल संख्या ए-2008-आर 000066 दिनांक 1.9.2008 था एवं वाहन की डिलीवरी चालान संख्या 542 से प्रार्थी को डिलीवरी दी गई थी । प्रार्थी ने इस वाहन की राषि भारतीय स्टेट बैंक, अजमेर से ऋ़ण स्वीकृत कराकर देने को कहा । अतः प्रार्थी ने इस बिल में भारतीय स्टेट बैंक, अजमेर के नाम हाईपोथिकेषन भी लिखवाया  एवं इसके बाद प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 1 से़ ़ऋ़ण स्वीकृत करा कर उक्त वाहन की राषि का  भुगतान उपर वर्णित ड्राफट के द्वारा किया गया । प्रार्थी व अप्रार्थी के कथन एक दूसरे के विपरीत है । वर्ष 2008 में क्रय किए गए वाहन की राषि का भुगतान प्रार्थी ने करने का कथन किया है लेकिन ऐसा भुगतान प्रार्थी ने किस तरह से किया एवं कब किया  इस बाबत् कोई  स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है । भुगतान की रसीद भी प्रार्थी की ओर से पेष नहीं हुई है । प्रार्थी ने एक प्रथम सूचना रिर्पोट दिनांक 6.9.2011 को अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के विरूद्व दर्ज करवाई, के पैरा 5 में अवष्य उल्लेख किया कि प्रार्थी ने वर्ष 2008 में क्रय किए गए वाहन का नगद भुगतान किया लेकिन नगद भुगतान की भी कोई  रसीद प्रार्थी की ओर से पेष नही ंहुई है ।  इन तथ्यों से  अप्रार्थी संख्या 2 के इस कथन को बल मिलता है कि वर्ष  2008 में क्रय किए गए वाहन की राषि बकाया थी जो प्रार्थी द्वारा ड्राफट  दिनांक 5.4.2010 से अदा की गई । 
11.        दूसरी परिस्थिति प्रकरण में इस तरह की प्रकट हो रही है कि पत्रावली पर स्वयं प्रार्थी ने वेट इन्वाईस दिनांक 2.2.2010 पेष  किया जिसमें वाहन के चैसिस नम्बर व इंजन नम्बर वही अंकित है जो प्रार्थी द्वारा वर्ष 2008 में क्रय किए गए वाहन के है । अप्रार्थी संख्या 1 बैंक के कथन जो उसने एक प्रथम सूचना रिर्पोट प्रार्थी व अप्रार्थी संख्या 2 के विरूद्व दर्ज करवाई में उल्लेखितानुसार प्रार्थी से ऋण राषि स्वीकृत करवाई गई  और प्रार्थी से  वाहन के बिल, रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र व बीमा कवर नोट की मांग की गई और जब प्रार्थी द्वारा उक्त दस्तावेजात प्रस्तुत किए गए जिनकी जांच करने पर उन्हें फर्जी पाया गया  तथा प्रार्थी के विरूद्व फर्जी कागजात बनाने का मामला सिद्व पाया गया एवं प्रार्थी  के विरूद्व सक्षम न्यायालय में चार्जषीट भी पेष हुई है । इसी क्रम में प्रार्थी ने जो रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र  पेष किया उसमें अंकित रजिस्ट्रेषन नम्बर आर.जे.01.टीए.1994 के संबंध में  जिला परिवहन अधिकारी, अजमेर से स्पष्टीकरण संबंधी पत्र दिनंाक 12.11.2010 प्राप्त हुआ, के अनुसार ऐसे नम्बर किसी भी वाहन को आवंटित नहीं होने का उल्लेख किया गया है। पत्रावली पर जैसा कि अप्रार्थी संख्या 1 का कथन रहा है कि प्रार्थी की ओर से  पेष बीमा कवर नोट जो फ्यूचर जनरल इन्ष्योरेंस कम्पनी द्वारा जारी हुआ, भी फर्जी पाए जाने का भी उल्लेख अप्रार्थी  द्वारा पेष प्रथम सूचना रिर्पोट में किया गया है । इस पाॅलिसी के कवर नोट की प्रति पत्रावली पर  अप्रार्थी बैंक की ओर से  पेष हुई है एवं  यह कवर नोट वर्ष 2010 में  एक नये वाहन के लिए  जारी  हुआ, में चैसिस नम्बर व इंजन नम्बर वही अंकित है जो वाहन  वर्ष 2008 में प्रार्थी को अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा बेचा गया था । 
12.      तीसरी  परिस्थिति यह भी प्रकट हो रही है कि स्वयं प्रार्थी के कथनानुसार उसने इस अप्रार्थी से नया वाहन क्रय करने हेतु वाहन की राषि का ड्राफट दिनांक 5.4.2010 को दिया था । परिवाद में यह भी उल्लेख है कि जब प्रार्थी ने वाहन  की डिलीवरी हेतु इस अप्रार्थी से कहा तो प्रार्थी को कहा गया कि जो माॅडल वह चाहता है ,  वह माॅडल अभी नहीं है , आने पर डिलीवरी दे दी जावेगी । इस के बाद यह परिवाद करीब डेढ वर्ष  बाद पेष हुआ तब तक प्रार्थी ने कभी भी अप्रार्थी संख्या 2 से वाहन की डिलीवरी हेतु  कोई ताकाजा किया हो, नहीं दर्षाया गया है । प्रार्थी ने इस डेढ वर्ष  की अवधि  मे  अप्रार्थी संख्या 2 को कोई लिखित नोटिस दिया हो, ऐसा भी नहीं पाया गया है । प्रार्थी के कथनानुसार अप्रार्थी संख्या 2 ने  उससे राषि प्राप्त कर ली एवं वाहन नहीं देने के सबंध में अप्रार्थी संख्या 2 के विरूद्व कोई प्रथम सूचना रिर्पोट या अन्य कार्यवाही की हो ऐसा भी नहीं पाया गया है एवं ऐसा नहीं किए जाने का कोई कारण भी प्रार्थी ने अपने परिवाद में या अन्य  किसी तरह से नहीं दर्षाया है ।  इतना ही नहीं वाहन प्राप्त होने के उपरान्त भी प्रार्थी ने अपा्रर्थी संख्या 1 को नियमित रूप से किष्तो का भुगतान किया जाना भी पाया गया  है।  प्रार्थी का ऐसा व्यवहार  एक अस्वाभाविक व्यवहार प्रतीत हो रहा है । ऐसे हालात में जब वाहन की पूरी राषि का भुगतान कर दिया जाता है एवं  इसके उपरान्त भी वाहन की डिलीवरी लम्बे  समय तक नहीं मिलती है  तथा प्रार्थी नये वाहन की आय से भी वंचित रह रहा है एवं किष्तों की अदायगी भी मय ब्याज कर रहा है तो स्वाभाविक तौर पर एक साधारण  ज्ञानवान व्यक्ति भी युक्तियुक्त समय में इस संबंध में अवष्य कार्यवाही करता , लेकिन प्रार्थी द्वारा  इस संबंध में परिवाद पेष होने तक कोई कार्यवाही की हो, नही ंपाया गया है । प्रथम सूचना रिर्पोट दिनांक 6.9.2011 को अर्थात यह परिवाद दिनांक 14.2.2011 को पेष होने के 1 माह पूर्व  दर्ज करवाई है ।
13.    अप्रार्थीगण ने प्रार्थी द्वारा वाहन टैक्सी चलाने के उद्देष्य से लेने से मामला व्यावसायिक श्रेणी का होने से प्रार्थी उपभोक्ता नहीं माना जा सकता, संबंधी कथनों के संबंध में  हमारी विवेचना है कि ऋण आवेदन के पैरा संख्या 5 में वाहन स्वनियोजन  हेतु संचालित होगा, संबंधी उल्लेख है । अतः प्रार्थी उपभोक्ता नहीं है, तथ्य सिद्व नहीं माना जा सकता । 
14.    उपरोक्तानुसार जो विवचेना हुई है एवं जिन परिस्थितियों  संबंधी विवेचना की गई है, से प्रार्थी  का कथन विष्वसनीय रूप से सिद्व होना नहीं पाया जा रहा है । प्रकरण के तथ्य एवं  पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि  एक प्रथम सूचना रिर्पोट अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी व अप्रार्थी संख्या 2 के विरूद्व धोखाधडी व फर्जी दस्तावेजात तैयार करने हेतु पेष  कराई वहीं दूसरी प्रथम सूचना रिर्पोट दिनांक 6.9.2011 को प्रार्थी ने अन्य अप्रार्थीगण के विरूद्व दर्ज कराई  है। इस प्रकार प्रकरण में पक्षकारान  ने एक दूसरे के विरूद्व  धोखाधडी व फर्जीबाडे के आरोप लगाए है । इस मंच में प्रस्तुत होने वाले परिवादों की सुनवाई संक्षिप्त( ैनउउंतमसल) रूप से होती है ।  एक दूसरे पक्ष से जिरह आदि करने की प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है ।  अतः पक्षकारान से अपेक्षा की जाती है कि वे अपना मामला स्वच्छ हाथों से पेष करें एवं सही तथ्य प्रकट करें । हस्तगत प्रकरण में पक्षकारान स्वच्छ हाथों से आए हैं, इस तथ्य की कमी भी हम पाते है । 
15.    उपरोक्त विवेचनानुसार हमारे विनम्र मत  में प्रार्थी अपना कथन  तथा उसने जो राषि जरिए ड्राफट  दिनांक 5.4.2010 के अप्रार्थी को दी वह  नया वाहन कय्र करने हेतु दिया एवं अपा्रर्थी संख्या 2 ने  उसे नया वाहन नहीं देकर सेवा में कमी कारित की है । उपरोक्त समस्त परिस्थितियों  एंवं तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए  प्रार्थी द्वारा कोई विष्वसनीय साक्ष्य  पेष नहीं होने से सिद्व नहीं हुए है  एवं यह  निर्णय बिन्दु प्रार्थी की ओर से सिद्व नही ंहुआ है । अतः प्रार्थी का यह परिववाद स्वीकार होने योग्य नहीं है एवं आदेष है कि 
                      -ःः आदेष:ः
16.          प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार  किया जाकर  खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।

(विजेन्द्र कुमार मेहता)  (श्रीमती ज्योति डोसी)    (गौतम प्रकाष षर्मा) 
                सदस्य              सदस्या               अध्यक्ष

17.        आदेष दिनांक 31.10.2014 को  लिखाया जाकर सुनाया गया ।

              सदस्य             सदस्या             अध्यक्ष

 

 
 
[ Gautam prakesh sharma]
PRESIDENT
 
[ vijendra kumar mehta]
MEMBER
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

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