(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1287/2009
यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि0 बनाम आबिद हुसैन पुत्र सारिक हुसैन
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक: 05.12.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0-661/2003, आबिद हुसैन बनाम यूनाइटेड इंडिया इं0कं0लि0 में विद्वान जिला आयोग, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 15.6.2009 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री टी.के. मिश्रा तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. विद्वान जिला आयोग ने बीमित फर्नीचर की दुकान में अग्निकाण्ड के कारण अंकन 60,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति 10 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने के लिए आदेशित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी की एक दुकान 127/20 डब्ल्यू 1 साकेत नगर कानपुर में स्थित है, जहां पर वह फर्नीचर बनाने का व्यापार करता है। यह दुकान अपने भाई जाहिद हुसैन के साथ मिलकर ली गई थी और लिखित में साझानामा किया था। यह दुकान भाई साहिद हुसैन एवं जाहिद हुसैन के नाम से थी, जिसका बीमा परिवादी ने विपक्षी बीमा कंपनी से कराया था तथा बीमा प्रोपराइटर आबिद हुसैन के नाम से एक लाख रूपये का किया था। बीमा पालिसी दिनांक 21.3.2002 से दिनांक 20.3.2003 तक प्रभावी थी। इस दुकान में दिनांक 20.4.2003 को आग लग गई और लगभग एक लाख रूपये की लकड़ी के फर्नीचर का नुकसान
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हुआ, जिसकी रिपोर्ट थाना किदवई नगर में लिखाई गई। मौके पर अग्निशमन दस्ते ने आग बुझाई तथा रिपोर्ट तैयार की। बीमा क्लेम प्राप्त करने के लिए आवेदन दिया, जो इस आधार पर खारिज कर दिया कि दुकान न्यू सूपर फर्नीचर प्रोपराइटर आबिद हुसैन के लिए बीमित की गई थी न कि साहिद हुसैन के लिए। यह भी कहा गया कि स्टॉक का कोई रजिस्टर नहीं बनाया गया, इसलिए दावा खारिज कर दिया गया, जबकि परिवादी द्वारा स्टॉक का विवरण दिया गया था और अग्निशमन दस्ते ने भी क्षति का आंकलन किया था।
4. विपक्षी बीमा कपंनी द्वारा कथन किया गया कि परिवादी की फर्म प्रोपराइटरशिप फर्म है न कि पार्टनरशिप फर्म। पालिसी आबिद हुसैन के नाम बतौर प्रोपराइटर न्यू सूपर फर्नीचर के नाम से ली गई थी, जबकि बीमित व्यक्ति द्वारा न तो खाते रखे जाते हैं और न ही उसके द्वारा इनकम टैक्स एवं सेल टैक्स के रिटर्न दाखिल किए जाते हैं, केवल मामूली रकम की लकड़ी के फर्नीचर के बिल प्रस्तुत किए गए थे। फायर ब्रिगेड का आंकलन अनुचित है।
5. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने यह निष्कर्ष दिया कि सर्वेयर रिपोर्ट के आधार पर क्षति का आंकलन अंकन 24,675/-रू0 किया गया है और कटौती के बाद देय राशि अंनक 19,740/-रू0 दर्शायी है और साल्वेज की कीमत भी अंकित की गई है। विद्वान जिला आयोग ने इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया और लकड़ी की खरीद के पर्चे अंकन 85,000/-रू0 को विचार में लिया है तथा इस तथ्य को भी विचार में लिया है कि फायर ब्रिगेड द्वारा अंकन 85,000/-रू0 का नुकसान दर्शाया गया है। तदनुसार अंकन 60,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है।
6. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील के ज्ञापन में
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वर्णित तथ्यों तथा मौखिक बहस का सार यह है कि साझेदारी फर्म भागीदारी फर्म नहीं है। बीमा कंपनी के विरूद्ध वाद दायर करने का कोई अधिकार परिवादी को उत्पन्न नहीं हुआ, वह विपक्षी का उपभोक्ता नहीं है। सर्वेयर की रिपोर्ट को नकार कर वैधानिक त्रुटि कारित की गई है। दुकान का स्वामित्व विवादित है। बीमा कंपनी द्वारा मैसर्स न्यू सूपर फर्नीचर प्रोपराइटर आबिद हुसैन के लिए सुरक्षा प्रदान की गई है, जबकि दुकान की किरायेदारी जाहिद हुसैन के नाम है, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है। विद्वान जिला आयोग द्वारा क्षति का आंकलन भी अवैध रूप से किया गया है।
7. प्रस्तुत अपील के निस्तारण के लिए सर्वप्रथम विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या परिवादी के पक्ष में बीमा पालिसी जारी करना माना जाएगा, क्योंकि प्रश्नगत दुकान की किरायेदारी परिवादी के नाम नहीं है ?
8. चूंकि बीमा कंपनी ने बीमा पालिसी जारी करने से इंकार नहीं किया है, इसलिए दुकान की किरायेदारी किसके नाम है, इस प्रश्न को बीमा क्लेम निस्तारित करते समय नहीं उठाया जा सकता। यदि बीमित स्थल परिवर्तित होता तब बीमा कंपनी को यह अभिवाक लेने का अधिकार था कि जिस स्थल पर दुर्घटना कारित हुई है, उस स्थल पर अग्निकाण्ड नहीं हुआ है, इसलिए बीमा क्लेम देय है, परन्तु बीमा कंपनी द्वारा जिस स्थल का बीमा किया गया है, उस स्थल पर अग्निकाण्ड हुआ है, इसलिए दुकान की किरायेदारी के आधार पर बीमा क्लेम नकारने का कोई आधार नहीं है।
9. अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्षतिपूर्ति की राशि क्या निर्धारित करनी चाहिए ?
10. बीमा कंपनी द्वारा सर्वेयर की नियुक्ति की गई। सर्वेयर द्वारा मौके का निरीक्षण करने के पश्चात तथा क्रय विक्रय से संबंधित दस्तावेजों का
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अवलोकन करने के पश्चात अंकन 24,675/-रू0 की क्षति का आंकलन किया गया है, इसके पश्चात कुछ कटौती भी की गई है। स्वंय परिवादी ने स्वीकार किया है कि वह कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति है। वह फर्नीचर का काम करता है, इसलिए लेखा बहियां तैयार नहीं करता। अत: स्पष्ट है कि उसके द्वारा सर्वेयर के समक्ष उच्च दर की हानि से संबंधित सबूत प्रस्तुत नहीं किए गए, इसलिए सर्वेयर द्वारा क्षति का जो आंकलन किया गया है, उस आंकलन को स्वीकार किया जाना चाहिए था। सर्वेयर द्वारा क्षति का आंकलन अंकन 24,675/-रू0 किया गया है। साल्वेज स्वंय परिवादी के पास उपलब्ध है, इसलिए अंकन 24,675/-रू0 दिलाया जाना उचित है। इस आंकलन के पश्चात किसी प्रकार की कटौती का कोई अवसर बीमा कंपनी के पास मौजूद नहीं था, इसलिए सर्वेयर द्वारा मूल रूप से जो क्षति आंकलित की गई है, वह परिवादी प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। अग्निशमन दस्ते द्वारा दी गई रिपोर्ट क्षतिपूर्ति के आंकलन का आधार नहीं हो सकती। इसी प्रकार लकड़ी क्रय करने की रसीद भी क्षतिपूर्ति के आंकलन का आधार नहीं हो सकती। विद्वान जिला आयोग ने जिन दो बिन्दुओं पर क्षति का आंकलन किया है, उसे समुचित आंकलन नहीं कहा जा सकता। सर्वेयर रिपोर्ट के विपरीत अन्य किसी प्रकार की क्षति का आंकलन करने का कोई आधार विद्वान जिला आयोग के पास नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
11. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी को क्षतिपूर्ति की मद में अंकन 24,675/-रू0 की राशि 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज की दर के साथ देय होगी। शेष निर्णय/आदेश यथावत् रहेगा।
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प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2