RANJEETA BAI filed a consumer case on 03 Sep 2013 against ABHINAV JAY SHREE BHIMA COMAPNY LMT. in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/28/2013 and the judgment uploaded on 26 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक- 28-2013 प्रस्तुति दिनांक-21.02.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
श्रीमति रंजीताबार्इ विधवा, स्वर्गीय संदीप
टेंभरे, उम्र 22 वर्श, निवासी-ग्राम बिहीरिया
तहसील कुरर्इ, जिला सिवनी
(म0प्र0)।..................................................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
(1) अभिनव प्रयास, मण्डल प्रबंधक, प्रधान
कार्यालय-आर्इ-7 संत आषाराम नगर
राजा भोज आर्च के पीछे, होषंगाबाद
रोड़ बागसेबनिया, भोपाल, जिला भोपाल
(म0प्र0)।
(2) अभिनव प्रयास, षाखा प्रबंधक, षाखा
कार्यालय-मिषन स्कूल के बाजू में, स्टेट
बैंक रोड़ तिगडडा सिवनी, तहसील व
जिला सिवनी (म0प्र0)।
(3) षाखा प्रबंधक, रिलाइंस लार्इफ इंष्योरेंस
कम्पनी लिमिटेड, पता-कचहरी चौक, आर्इ.
सी.आर्इ.सी.आर्इ. बैंक के उपर, सिवनी, तहसील
व जिला सिवनी (म0प्र0)।.........................अनावेदकगणविपक्षीगण।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 03/09/2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादिया ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसके पति की मृत्यु पर, अनावेदक-पक्ष द्वारा जारी जनश्री बीमा योजना के तहत दुर्घटना मृत्यु पर देय राषि 75,000-रूपये का परिवादिया को भुगतान न किये जाने बाबद, उक्त राषि व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह विवादित नहीं कि-परिवादिया मृतक संदीप टेंभरे की विधवा है और संदीप टेंभरे की मृत्यु दिनांक-22.12.2011 को वाहन दुर्घटना में हुर्इ थी।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- अनावेदक क्रमांक-1 अभिनव प्रयास संस्था का प्रबंधक है और अनावेदक क्रमांक-2 उक्त संस्था के षहर सिवनी की ब्रांच का षाखा प्रबंधक है, जो जनश्री बीमा योजना की कार्यवाही संचालित करने का काम कर रहे हैं, उक्त संबंध में अभिनव प्रयास के कार्य एवं भविश्य की योजनाओं की दी गर्इ जानकारी से प्रभावित होकर, परिवादिया के पति द्वारा दिनांक-18.05.2010 को निर्धारित राषि अदा कर, अभिनव प्रयास की संस्था से सदस्यता प्राप्त कर पालिसी ली गर्इ और उक्त पालिसी के तहत सालाना किष्त भी परिवादिया के पति द्वारा अदा की जाती रही, जो कि-पालिसी संचालन के बीच दुर्घटना मृत्यु होने पर, 75,000-रूपये की राषि नामिनी के रूप में परिवादिया को दी जाना, पालिसी षर्तों के अनुसार बताया गया है, जो कि-दिनांक-22.02.2011 को ग्राम-कलवोड़ी में राश्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-7 में वाहन दुर्घटना में परिवादिया के पति संदीप टेंभरे की मृत्यु हो गर्इ, जिसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट, प्रथम सूचना रिपोर्ट, अंतिम रिपोर्ट की प्रति अनावेदक क्रमांक-2 द्वारा दिये गये फार्म भरकर असल पालिसी सहित, जनवरी-2012 में अनावेदक क्रमांक-2 की षाखा में जमा किये गये थे। और अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा आष्वासन दिया गया था कि-पन्द्रह दिन के अंदर संपूर्ण दस्तावेज सहित, क्लेम-फार्म अनावेदक क्रमांक-1 के कार्यालय में पहुंचाकर 75,000-रूपये की राषि का चेक पालिसी में दर्षित पते पर पहुंचा दिया जायेगा, पन्द्रह-बीस दिन बाद पुन: अनावेदक क्रमांक-2 के कार्यालय में संपर्क करने पर यह कहा गया कि-तुम्हें अभी राषि लेना है, तो 30,000-रूपये मिलेंगे, नहीं तो जिस वाहन से दुर्घटना हुर्इ है, उसके चालक के विरूद्ध दाणिडक प्रकरण में निर्णय की प्रति पेष करने के बाद ही 75,000-रूपये मिलेंगे, जबकि-परिवादिया के पति को पालिसी देते समय ऐसी कोर्इ षर्त नहीं रखी गर्इ थी, न ही पालिसी में ऐसी किसी षर्त का उल्लेख है, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा अनावष्यक षर्तों की बातें बताकर और क्लेम का भुगतान न कर, जबरन परेषान किया जा रहा है, जो परिवादिया के प्रति की गर्इ सेवा में कमी है, जो कि- अनावेदकगण द्वारा न ही क्लेम का भुगतान किया जा रहा है, न ही नो- क्लेम किया जा रहा है और दिनांक-16.04.2012 को अनावेदक क्रमांक-2 को रजिस्टर्ड-डाक से जरिये अधिवक्ता नोटिस देने के बावजूद, अनावेदकगण द्वारा कोर्इ कार्यवाही नहीं की जा रही है। अत: बीमा पालिसी के अनुसार नामिनी को देय 75,000-रूपये की राषि व उस-पर मृत्यु दिनांक से 9 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से ब्याज व हर्जाना चाहा गया है।
(4) मामले में अनावेदक क्रमांक-1 और 2 की ओर से पेष जवाब का सार यह है कि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, जनश्री बीमा योजना का संचालन किया जा रहा है, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 अभिनव प्रयास के रूप में एनिजयो चलाते हैं, ग्रामीण इलाकों में जाकर लोगों को समूह बीमा के लिए षिक्षित कर, समूह बीमा की प्रीमियम राषि प्राप्त कर, समूह बीमा, अन्य बीमा कम्पनियों से कराते हैं और समूह बीमा की पालिसी संबंधित बीमा कम्पनी से प्राप्त कर, बीमाकत्र्ता को प्रदान करते हैं तथा दुर्घटना कारित होने पर, बीमा धारक की मृत्यु पर, आवष्यक दस्तावेज एकत्रित कर, बीमाधारक को बीमा कम्पनी से बीमा राषि दिलाते हैं, जो कि-बीमा क्लेम की राषि दिलाने के लिए समूह बीमा पालिसी की मूल प्रति, दुर्घटना से संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट, मर्ग सूचना, षव परीक्षण रिपोर्ट, मृत्यु प्रमाण-पत्र और मृतक की पतिन होने बाबद राषन कार्ड जैसा प्रमाण-पत्र आवष्यक होता है, परिवादिया द्वारा, अनावेदक के पास आकर बीमा राषि के क्लेम की मांग की गर्इ थी, तो उसे बताया गया था कि- क्लेम राषि प्राप्त करने के लिए उक्त दस्तावेज भेजा जाना आवष्यक है, तभी दावा की राषि की अदायगी हो सकती है और अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा बार-बार उक्त दस्तावेज चाहे जाने पर भी परिवादिया द्वारा दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां पेष नहीं की गर्इं, जिसके आधार पर, परिवादिया के पति की मत्यु की समूह बीमा राषि की अदायगी की जा सके। और परिवादिया आज भी उक्त वांछित दस्तावेज प्रदान कर देगी, तो अनावेदक क्रमांक-1 और 2 बीमा कम्पनी से समूह बीमा की धन राषि दिलाने में मदद करने तैयार है, जो कि-परिवादिया उक्त दस्तावेज षीघ्र उपलब्ध कराये, ताकि पालिसी की षर्तों के अनुसार, परिवादिया के पति का वास्तविक मुआवजा दिलाया जा सके, लेकिन बार-बार निवेदन करने पर भी आवेदिका के द्वारा, पालिसी धारक-संदीप टेंभरे की मूल पालिसी पेष नहीं की गर्इ, न ही बीमा पालिसी का क्रमांक अनावेदक क्रमांक-1 और 2 को दिया गया, जिससे यह सुनिषिचत हो सकता कि-परिवादिया के पति के पास वैध बीमा पालिसी थी।
(5) अनावेदक क्रमांक-3 बीमा कम्पनी की ओर से मामले में कोर्इ परिवाद का जवाब पेष नहीं है।
(6) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हंंै कि:-
(अ) क्या अनावेदकगण द्वारा, परिवादिया को उसके पति
की मृत्यु पष्चात, पेष क्लेम की राषि का भुगतान न
किया जाना अनुचित होकर, परिवादिया के प्रति की
गर्इ सेवा में कमी है?
(ब) क्या अनावेदकगण ने, परिवादिया के प्रति-सेवा में
कमी किया है?
(स) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7) प्रदर्ष सी-8 से सी-14 तक के पुलिस विवेचना के दस्तावेज- अंतिम प्रतिवेदन, प्रथम सूचना रिपोर्ट, नक्षा मौका, षव परीक्षण हेतु आवेदन व पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रतियों व परिवादी-पक्ष की ओर से पेष परिवादिया-रंजीताबार्इ व इंद्रजीत टेंभरे के षपथ-पत्रों के अखणिडत साक्ष्य से यह तो स्थापित है कि-दिनांक-22.12.2011 को संदीप टेंभरे की वाहन दुर्घटना में दुर्घटना मृत्यु हुर्इ थी।
(8) अनावेदक क्रमांक-1 व 2 की ओर से पेष परिवाद के जवाब में कणिडका-1 में ही अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा योजना के अनुरूप आवेदिका के पति का विधिवत प्रीमियम प्राप्त कर, जीवन बीमा किये जाने के परिवाद के अभिवचन से यह कहते हुये इंकार किया गया है कि-परिवादिया-पक्ष की ओर से बीमा पालिसी पेष नहीं की गर्इ, न ही पालिसी का कोर्इ क्रमांक बताया गया, तो अनावेदक-पक्ष का यह अविषिश्ट जवाब है। जबकि-परिवाद के साथ ही परिवादी-पक्ष की ओर से पेष प्रदर्ष सी-1 के जनश्री बीमा योजना सदस्यता प्रमाण-पत्र, जिसमें नोडल एजेन्सी का नाम अभिनव प्रयास लेख है, दिनांक-18.05.2010 का है और उक्त दिनांक को ही प्रदर्ष सी-3 के अभिनव प्रयास की 315-रूपये की रसीद, एक वर्श पष्चात, दिनांक-18.06.2011 को पुन: एक वर्श के पालिसी लाभ बाबद प्रदर्ष सी-2 की रिन्युवल रसीद जो पेष की गर्इ है, उनके पीछे पृश्ठ भाग पर नियम व षर्तें भी उल्लेख हैं और प्रदर्ष सी-1 से सी-3 तक के सदस्यता प्रमाण-पत्र व प्रीमियम रसीदों की सत्यता व सहीपन को कोर्इ चुनौती अनावेदक क्रमांक-1 और 2 की ओर से नहीं दी गर्इ है।
(9) मामले में मृतक-संदीप टेंभरे के किसी बीमा कम्पनी द्वारा, जनश्री बीमा योजना के तहत बीमित रहे होने की कोर्इ बीमा पालिसी की प्रति किसी पक्ष से पेष नहीं हुर्इ है, मामले में अनावेदक क्रमांक-3 रिलायंस लार्इफ इंष्योरेंस कम्पनी की ओर से परिवाद का जवाब पेष न करते हुये, मात्र एक आवेदन, इस आषय का पेष किया गया है कि-परिवाद में कहीं कोर्इ पालिसी नंबर का उल्लेख नहीं, न ही कभी कोर्इ पालिसी पेष की गर्इ है, इसलिए बीमा कम्पनी परिवाद का जवाब नहीं दे सकी। जो कि-परिवादी से पालिसी क्रमांक या पालिसी का विवरण दिलाया जाये। जबकि- परिवादी-पक्ष की ओर से इस आषय का आवेदन पेष हुआ कि-अनावेदक क्रमांक-3 बीमा कम्पनी द्वारा ही मृतक-संदीप टेंभरे को बीमा पालिसी जारी की गर्इ थी और संदीप की मृत्यु के पष्चात, दावा को उचित निराकरण हेतु अनावेदक क्रमांक-1 और 2 ने परिवादिया से उक्त असल बीमा पालिसी अपने कार्यालय में प्राप्त कर ली थी, लेकिन आवेदिका उक्त असल बीमा पालिसी की छायाप्रति अपने पास नहीं रख पार्इ, जो कि-मूल पालिसी अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के कार्यालय में है, उससे पेष कराये जाने का निवेदन किया गया। जबकि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा पेष परिवाद के जवाब में तो स्वयं परिवादिया से ही बीमा पालिसी की प्रति या पालिसी का विवरण, पालिसी क्रमांक आदि प्रदान न किये जाने के कारण, परिवादिया के क्लेम का बीमा कम्पनी से भुगतान न कराया जा सकने का बचाव लिया गया है।
(10) स्वयं परिवाद में और परिवाद पेष करने के पूर्व परिवादी-पक्ष से अनावेदक क्रमांक-2 को जरिये अधिवक्ता भेजे गये नोटिस की प्रति प्रदर्ष सी-6 में तथा परिवादी-पक्ष की ओर से पेष कराये गये परिवादिया और उसके साक्षी इंद्रजीत टेंभरे के षपथ-पत्र में यही कहानी परिवादी-पक्ष की ओर से वर्णित की गर्इ है कि-बीमा पालिसी जारी हुर्इ थी, जो मृतक के पास थी और परिवादिया ने क्लेम के निराकरण के लिए अनावेदक क्रमांक-1 और 2 को जरिये अधिवक्ता भेजे गये नोटिस की प्रति प्रदर्ष सी-6 में तथा परिवादी-पक्ष की ओर से पेष कराये गये परिवादिया और उसके साक्षी इंद्रजीत टेंभरे के षपथ-पत्र में यही कहानी परिवादी-पक्ष की ओर से वर्णित की गर्इ है कि-बीमा पालिसी जारी हुर्इ थी, जो मृतक के पास थी और परिवादिया ने क्लेम के निराकरण के लिए अनावेदक क्रमांक- 1 और 2 के कार्यालय में पेष कर दी। और परिवादी-पक्ष की ओर से उनके अधिवक्ता द्वारा यह तर्क किया गया है कि-परिवादिया पढ़ी-लिखी नहीं है, इसलिए उसने पालिसी का नंबर आदि लिखकर अपने पास नहीं रखा, न ही कोर्इ पालिसी की फोटोप्रति अपने पास सुरक्षित रखी और मूल क्लेम के साथ अनावेदक क्रमांक-1 और 2 को पेष कर दिया था, तो उक्त तर्क के प्रकाष में देखा जाये, तो सिथति यही दर्षित हो रही है कि-जब परिवादिया पढ़ी-लिखी ही नहीं है, तो अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के कार्यालय में क्लेम के समय उसके द्वारा पेष किये दस्तावेजों में कोर्इ पालिसी रही है या नहीं, यह परिवादी-पक्ष को पता होने का कोर्इ कारण संभव नहीं। जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा जारी की गर्इ प्रीमियम रसीदें व सदस्यता प्रमाण-पत्र जैसे दस्तावेजों व पोस्टमार्टम रिपोर्ट व मृत्यु प्रमाण-पत्र जैसे दस्तावेजों को ही परिवादिया पालिसी दस्तावेज होना संभवत: कहती रही और इसी भ्रम में परिवादी के अधिवक्ता द्वारा प्रदर्ष सी-6 के नोटिस में और परिवाद-पत्र तथा परिवादी-पक्ष की ओर से पेष कराये गये षपथ-पत्रों में मृतक को मूल बीमा पालिसी प्राप्त होने और परिवादिया द्वारा, क्लेम के साथ अनावेदक क्रमांक-1 और 2 को बीमा पालिसी दस्तावेज पेष कर देने की काल्पनिक कहानी, बिना पढ़ी-लिखी परिवादिया के बताने के आधार पर ही लेख करा दी।
(11) यह इस परिसिथति से पुश्ट है कि-यदि वास्तव में अनावेदक क्रमांक-1 और 2 ने परिवादिया के पति से प्रीमियम प्राप्त करने के पष्चात कोर्इ समूह बीमा पालिसीजनश्री बीमा योजना के तहत प्राप्त की होती और परिवादिया के पति को प्रदान की होती, तो उसकी पूर्ण जानकारी अनावेदक क्रमांक-1 व 2 के अभिलेख में होती और अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, उक्त पालिसी का विवरण, यदि वास्तव में बीमा पालिसी जारी होती, तो छिपाने का कोर्इ कारण संभव नहीं था, क्योंकि ऐसा विवरण देना अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के हित में होता, जो कि-वास्तव में बीमा पालिसी जारी होना दर्षाकर वे बीमाधन और हर्जाने का भुगतान का दायित्व बीमा कम्पनी पर होना दर्षा पाते और स्वयं उक्त दायित्व से मुक्त होने का बचाव लेते, परन्तु कार्यवाही की आदेष-पत्रिकाओं से स्पश्ट है कि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 की ओर से उपसिथत होने वाले अधिवक्ताओं से सदस्यता प्रमाण-पत्र व प्रदर्ष सी-2 और सी-3 के उनके कार्यालय द्वारा जारी प्रीमियम रसीदों में दिये विवरण के आधार पर रिकार्ड देखकर, पालिसी का विवरण देने कहा गया और समय लेने के बाद भी उक्त विवरण, अनावेदक क्रमांक-1 और 2 नहीं दे सके, बलिक मामले में अनुपसिथत रहने लगे, तब अनावेदक क्रमांक-2 को लिखित नोटिस भी पालिसी विवरण पेष करने पीठ के द्वारा जारी किया गया, उसके पष्चात भी उनके अधिवक्ता उपसिथत हुये, लेकिन वास्तव में कोर्इ परिवादिया के पति के नाम किसी बीमा कम्पनी से बीमा पालिसी अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा जारी करार्इ गर्इ हो, ऐसा विवरण अनावेदक क्रमांक-1 और 2 नहीं दे सके।
(12) और इसलिए बहुत ही स्पश्ट है कि-परिवाद में बीमा पालिसी जारी होने और परिवादिया द्वारा, क्लेम के साथ अनावेदक क्रमांक-1 और 2 को पेष कर देने की त्रुटिपूर्ण विवरण को ही आधार बनाकर, अनावेदक क्रमांक-1 और 2 ने अपने जवाब में उल्टे परिवादिया से ही बीमा पालिसी की प्रति व पालिसी के क्रमांक की मांग का बचाव लेना प्रारम्भ कर दिया कि-उक्त के आभाव में ही क्लेम बीमा कम्पनी को नहीं भेजा जा सका। जबकि-वास्तव में परिवादिया के पति के नाम से प्रीमियम बीमा कम्पनी को जमा कर कोर्इ पालिसी अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा ली गर्इ होती, तो उसकी जानकारी मुख्य रूप से उन्हें ही होती।
(13) परिवाद मूल रूप से अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के विरूद्ध ही पेष हुआ था, उन्हें ही परिवादी-पक्ष व उनके अधिवक्ता बीमा कम्पनी समझता था, परिवाद पेष होने के बाद अनावेदक क्रमांक-1 और 2 बीमा कम्पनी न होना बताये जाने पर, प्रदर्ष सी-5 का समूह बीमा योजना में समिमलित होने का आवेदन व नामाकंन के परिवादी के पास उपलब्ध खाली फार्म में लेख बीमा कम्पनी के आधार पर, अनावेदक क्रमांक-3 बीमा कम्पनी को परिवादी-पक्ष ने, अनावेदक के रूप में संयोजित किया, उक्त से भी स्पश्ट है कि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा जारी प्रदर्ष सी-1 से सी-3 के दस्तावेजों को ही परिवादी-पक्ष पालिसी दस्तावेज होना समझकर परिवाद में वर्णित किया।
(14) अब प्रदर्ष सी-2 और सी-3 की रसीदों के पृश्ठ भाग पर उल्लेख नियम व षर्तों को देखा जावे, तो उसमें यह षर्त समिमलित है कि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के कार्यालय में लाग इन होने के बाद पालिसी प्रारम्भ होगी और लाग इन होने के 45 दिन पष्चात पालिसी बाण्ड, पालिसी धारक को दे-दिये जायेंगे और जब-तक कोर्इ पालिसी लाग इन नहीं होगी, तब-तक किसी क्लेम के लिए एनिजयो जिम्मेदार नहीं होगा और प्राप्त की गर्इ राषि किसी भी तरह वापस नहीं की जायेगी और पालिसी होल्डर या उसके नामिनी को कोर्इ भी क्लेम का भुगतान एनिजयो के चेक के द्वारा ही किया जायेगा और क्लेम के संबंध में पेष दस्तावेजों में सब सही पाया गया, तो पालिसी होल्डर या नामिनी के बैंक खाते में बहुत जल्दी क्लेम का भुगतान किया जायेगा।
(15) अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा जारी की गर्इ उक्त रसीदों पर उलिलखित षर्तों के विवरण से स्पश्ट है कि-उनके पास सारी जानकारी लाग इन है और क्लेम उन्हें ही प्राप्त करना था, भुगतान उनके ही द्वारा जारी चेक से परिवादिया के खाते में किया जाना था, तो अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, परिवादिया के पति के नाम प्राप्त की गर्इ पालिसी का विवरण, क्रमांक व बीमा पालिसी दस्तावेज की प्रति पेष न किये जाने से एक मात्र अखण्डनीय अवधारणा यही है कि-वास्तव में अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, परिवादिया के पति को जनश्री बीमा योजना के तहत, सदस्यता प्रमाण-पत्र जारी कर देने और दिनांक-18.05.2010 को प्रीमियम के नाम पर, उससे राषि प्राप्त कर लेने तथा एक वर्श पष्चात दिनांक-18.06.2011 को अगले एक वर्श की अवधि के लिए पुन: रिन्युवल प्रीमियम की राषि प्राप्त कर लेने के बावजूद, अनावेदक क्रमांक-1 और 2 ने परिवादिया के पति के नाम वास्तव में कोर्इ समूह बीमा पालिसी प्राप्त ही नहीं किया था और इसलिए अनावेदक क्रमांक-1 और 2 ने परिवादिया का क्लेम प्राप्त कर लेने के बाद, क्लेम राषि का भुगतान नहीं किया और परिवादिया का यह षपथ-कथन भी अखणिडत है कि-अनावेदक क्रमांक-2 के कार्यालय से संपर्क करने पर, वह परिवादिया पर 30,000- रूपये ही राषि प्राप्त कर लेने का दवाब, यह असत्य प्रवंचना कर डालता रहा कि-जिस वाहन से परिवादिया के पति की मृत्यु हुर्इ है, उसके चालन के विरूद्ध दाणिडक न्यायालय में निर्णय की सत्यप्रति पेष करने पर ही 75,000-रूपये दिये जा सकते हैं, उसके पूर्व नहीं दिये जा सकते।
(16) ऐसे में अनावेदक क्रमांक-3 बीमा कम्पनी से परिवादिया के पति के नाम कोर्इ समूह बीमा पालिसी अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा लिया जाना स्थापित नहीं, इसलिए अनावेदक क्रमांक-3 के द्वारा, परिवादिया के प्रति कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है। जबकि-अनावेदक क्रमांक-1 व 2 के द्वारा, अभिनव प्रयास संस्था को जनश्री बीमा योजना के तहत प्रदर्ष सी-1 की संस्था प्रमाण-पत्र में नोडल एजेन्सी होना वर्णित करते हुये, परिवादिया के पति से दो वर्श तक की प्रीमियम राषि वार्शिक रूप से प्राप्त कर, वास्तव में समूह बीमा पालिसी परिवादिया के पति के लिए प्राप्त नहीं की गर्इ और इस तरह परिवादिया के पति की दुर्घटना में मृत्यु होने पर, प्रदर्ष सी-5 के नामाकंन-पत्र के पृश्ठ भाग पर दर्षार्इ गर्इ समूह बीमा योजना बाबद दुर्घटना मृत्यु पर देय 75,000-रूपये की राषि से परिवादी को वंचित रखा गया और अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा परिवादिया के पति की मृत्यु के पष्चात भी अपने विरूद्ध दाणिडक कार्यवाही से बचने के लिए परिवादिया को धोखा देते हुये, यह मिथ्या व्यपदेषन किया जाता रहा कि-उसका पति जनश्री बीमा योजना के तहत बीमित रहा है और क्लेम राषि दिलाने का झूठा आष्वासन देकर, परिवादिया से क्लेम प्रपत्र व पति की मृत्यु संबंधी दस्तावेज प्राप्त कर, क्लेम विचाराधीन होने की असत्य प्रवंचना की जाती रही और इस फोरम में परिवाद के जवाब में भी अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, जानबूझकर यह असत्य भ्रम पैदा करने का प्रयास किया गया कि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, वास्तव में परिवादिया के पति के नाम समूह बीमा पालिसी प्राप्त की गर्इ थी, तो अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, परिवादिया को क्लेम राषि 75,000-रूपये का भुगतान न किया जाना, अनुचित होकर, परिवादिया के प्रति की गर्इ सेवा में कमी है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(17) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श से स्पश्ट है कि- अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, परिवादिया के पति से प्रीमियम राषि जनश्री बीमा योजना के समूह बीमा योजना बाबद प्राप्त कर और उसे उक्त हेतु अपनी संस्था की सदस्यता देने के बाद भी बीमा कम्पनी से उक्त योजना के तहत पालिसी प्राप्त न कर, परिवादिया को प्राप्त होने वाले 75,000-रूपये के हितलाभ से वंचित किया गया, इसलिए अनावेदक क्रमांक-1 व 2 उक्त राषि हर्जाने के रूप में परिवादिया को अदा करने हेतु दायित्वाधीन रहे हैं, जो अनावेदक क्रमांक-1 और 2 ने उक्त राषि परिवादिया को अदा न कर, उसके प्रति-सेवा में कमी की है, इसके आगे भी परिवादिया के नाम बीमा पालिसी न लिये जाने के तथ्य को छिपाकर, अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, परिवादिया से क्लेम-प्रपत्र व पति की मृत्यु संबंधी दस्तावेज प्राप्त कर, क्लेम प्राप्त करने की कार्यवाही लमिबत होने का झूठा बहाना बनाया जाता रहा और इस तरह परिवादिया व उसके पति के प्रति-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के पक्ष द्वारा, छलपूर्ण कार्यवाहियां किया जाना और उन्हें लगातार धोखे में रखा जाना दर्षित होता है, जिसके संबंध में परिवादी-पक्ष संज्ञेय अपराध बाबद, पुलिस रिपोर्ट व अन्य दाणिडक कार्यवाही करने के लिए भी स्वतंत्र है, पर क्लेम दिलाने की कार्यवाही किये जाने का झूठा दिखावा जो अनावेदक क्रमांक-1 और 2 की ओर से किया गया तथा इस मामले में परिवाद के जवाब में भी वास्तविक सिथत को छिपाकर, अनावेदक क्रमांक-1 और 2 की ओर से परिवादिया के क्लेम के निराकरण हेतु कार्यवाही न किये जाने का यह जानबूझकर असत्य बचाव लिया गया कि-परिवादिया के द्वारा, बीमा पालिसी व उसका विवरण पेष नहीं किया गया। जबकि-अनावेदक क्रमांक-1 व 2 ने अपने जवाब में और फोरम द्वारा आदेष दिये जाने के बावजूद, यह नहीं बता सकी है कि- परिवादिया के पति से प्राप्त की गर्इ प्रीमियम राषि बाबद किस बीमा कम्पनी से कौन सी पालिसी प्राप्त की गर्इ और इस तरह झूठा बचाव, अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के द्वारा लिया गया, जो स्वयं में भी परिवादी के प्रति की गर्इ गंभीर सेवा में कमी है तथा उसके प्रति अपनार्इ गर्इ अनुचित व्यापार प्रथा है, जिसके लिये अनावेदक क्रमांक-1 और 2 दाणिडक हर्जाना भी अदा करने के लिए दायित्वाधीन है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक- 'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(18) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) अनावेदक क्रमांक-1 व 2 द्वारा, परिवादिया के प्रति जो
सेवा में कमी की गर्इ है, जिससे उसे उसके पति की
दुर्घटना मृत्यु पर देय 75,000-रूपये (पचहत्तर हजार
रूपये) की हितलाभ राषि का नुकसान हुआ और हर्जाने
के रूप में उक्त राषि का भुगतान न कर, अनावेदक
क्रमांक-1 और 2 के द्वारा, जनवरी-2012 से परिवादी
के क्लेम को विचाराधीन होना असत्य रूप से दर्षाकर,
हर्जाना राषि के भुगतान में विलम्ब कारित किया गया,
तो अनावेदक क्रमांक-1 और 2 उक्त हेतु परिवादिया
को 80,000-रूपये (अस्सी हजार रूपये) हर्जाना संयुक्तत: या पृथकत: अदा करें।
(ब) इसके अतिरिक्त मृतक की समूह बीमा पालिसी लिये
जाने की परिवादिया को झूठा विष्वास दिलाने तथा इस
फोरम की कार्यवाही में असत्य जवाब बीमा पालिसी होने
के संबंध में पेष किये जाने बाबद, अनावेदक क्रमांक-1
और 2 परिवादिया को 15,000-रूपये (पन्द्रह हजार
रूपये) दाणिडक हर्जाना भी संयुक्तत: या पृथकत: अदा
करें।
(स) अनावेदक-पक्ष स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे
व अनावेदक क्रमांक-1 व 2 परिवादी को कार्यवाही
व्यय के रूप में 2,000-रूपये (दो हजार रूपये) अदा
करेंगे।
(द) अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के पक्ष से उक्त अदायगी
आदेष की प्रति प्राप्त होने की दिनांक से तीन माह के
अंदर परिवादिया को की जायेगी, जो कि-अनावेदक
क्रमांक-1 का कार्यालय धन की पावतियों में मुख्य
कार्यालय कहा गया है, इसलिए परिवादिया को भुगतान
का मुख्य दायित्व अनावेदक क्रमांक-1 का होगा।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes
Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.