Uttar Pradesh

StateCommission

A/2012/256

Canara Bank - Complainant(s)

Versus

Abdul Latif - Opp.Party(s)

Vinay Shankar

02 May 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2012/256
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Canara Bank
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Abdul Latif
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Mahesh Chand MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 02 May 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-256/2012

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, बिजनौर द्वारा परिवाद संख्‍या 153/04 में पारित निर्णय दिनांक 03.10.05 के विरूद्ध)

केनरा बैंक, नजीबाबाद ब्रांच, जिला बिजनौर द्वारा मैनेजर।   .........अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम्

अब्‍दुल लतीफ पुत्र श्री बल्‍लू निवासी ग्राम घनौरा पोस्‍ट जलालाबाद

तहसील नजीबाबाद, जिला बिजनौर।                       ......प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, पीठासीन सदस्‍य।

2. मा0 श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    : श्री विनय शंकर, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित     :कोई नहीं।

दिनांक 02.06.2017

मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      यह अपील जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम बिजनौर द्वारा परिवाद संख्‍या 153/04 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दि. 03.10.2005 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है। जिला मंच ने निम्‍न आदेश पारित किया है:-

      '' परिवादी का परिवाद स्‍वीकार हो विपक्षी बैंक के विरूद्ध डिक्री किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को रू. 100000/- मय ब्‍याज 6 प्रतिशत वार्षिक दिनांक 15/2/2004 से भुगतान की तिथि तक 30 दिन के अंदर अदा करे। वाद व्‍यय के रूप में रू. 1000/- परिवादी विपक्षी से पाने का अधिकारी है।''

      संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादी का केनरा बैंक में खाता संख्‍या 6597 है। परिवादी ने दि. 05.04.2002 तक अंकन रू. 72694/- की धनराशि प्रतिपक्षी के यहां बचत खाते में जमा की थी। उसके पश्‍चात परिवादी ने अंकन रू. 100000/- अपने बचत खाता में जमा किया है। कुल मिलाकर परिवादी का अंकन रू. 172694/- की धनराशि अपने खाते में जमा की थी। परिवादी ने दि. 09.02.02 को अंकन रू. 20000/- की धनराशि अपने उपरोक्‍त खाते से निकाली थी और शेष धनराशि अंकन रू. 152694/- खाते में शेष रह गई थी। परिवादी दि. 26.12.03 को अपने खाते से रूपया निकालने पहुंचा तो उसे पता चला कि उसके खाते में अंकन रू. 100000/- की धनराशि जमा नहीं हुई हे। परिवादी ने उसी दिन

 

-2-

प्रतिपक्षी को लिखित रूप में सूचना दी। प्रतिपक्षी के किसी अधिकारी या कर्मचारी ने हेराफेरा करके परिवादी का अंकन रू. 100000/- गायब कर दिया।

पीठ ने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता की बहस सुनी एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों एवं साक्ष्‍यों का भलीभांति परिशीलन किया गया। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।   

जिला मंच का आदेश दि. 03.10.05 का है और अपील दि. 08.02.12 को प्रस्‍तुत की गई है। इस प्रकार अपील लगभग 6 वर्ष से अधिक के विलम्‍ब से योजित की गई है। अपीलार्थी ने इस विलम्‍ब को क्षमा किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र दिया है जो शपथपत्र से समर्थित है। अपीलार्थी ने अपने शपथपत्र में यह अभिकथन किया है कि दि. 03.10.05 का जिला मंच का आदेश एकपक्षीय है। अपीलार्थी ने इस एकपक्षीय आदेश को निरस्‍त करने के लिए जिला मंच के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत किया था, परन्‍तु अपीलार्थी के आदेश निरस्‍तीकरण के प्रार्थना पत्र को दि. 22.10.07 को निरस्‍त कर दिया गया। अपीलार्थी ने जिला मंच के समक्ष पुन: एक रिव्‍यू प्रार्थना पत्र दिनांकित 23.10.2007 दिया जो जिला मंच ने दि. 09.01.12 को खारिज किया। अपीलार्थी ने अपने शपथपत्र में यह भी अंकित किया है कि उसके द्वारा जिला मंच के समक्ष रिव्‍यू पिटीशन 23.10.07 को प्रस्‍तुत की थी और मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय का निर्णय दि. 19.08.11 का है, जिसमें यह कहा गया है कि जिला फोरम को रिव्‍यू या रिकाल का अधिकार नहीं है। अपीलार्थी ने जिला फोरम के समक्ष रिव्‍यू एवं रिकाल प्रार्थना पत्र ' गुडफेथ ' में जिला मंच के समक्ष प्रस्‍तुत किए गए थे, अत: अपील प्रस्‍तुत करने में जो विलम्‍ब हुआ है वह क्षमा किए जाने योग्‍य है।

      पीठ ने पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों के परिशीलन से यह पाया कि जिला मंच का आदेश दि. 03.10.05 एकपक्षीय है। इस आदेश को निरस्‍त करने के लिए एक रेस्‍टोरेशन प्रार्थना पत्र दिनांकित 03.12.05 प्रस्‍तुत किया गया। इस प्रार्थना पत्र में अपीलार्थी ने यह अभिकथन किया कि परिवाद में दि. 12.03.04 की बावत उन्‍हें सम्‍मन आए थे, जिसमें उनके द्वारा स्‍थगन हेतु प्रार्थना पत्र दिया गया और उसके बाद मा0 अदालत में कोरम पूरा न होने के कारण जिला उपभोक्‍ता फोरम नहीं चल रहा था और जब जिला उपभोक्‍ता फोरम का गठन हुआ तो उस समय प्रार्थी को वाद की कोई सूचना नहीं दी गई और न ही वाद की तारीख बताई गई। अपीलार्थी के इस कथन में जो उसके द्वारा जिला मंच के समक्ष कहा गया

 

-3-

था, सत्‍यता प्रतीत होती है, क्‍योंकि जिला मंच के आदेश दिनांक 03.10.05 में अध्‍यक्ष के हस्‍ताक्षर नहीं थे और जो पीठ गठित हुई उसमें वरिष्‍ठ सदस्‍य और एक अन्‍य सदस्‍य के हस्‍ताक्षर हैं। जिला मंच ने दि. 22.10.07 को इस पुनर्विचार प्रार्थना पत्र को निरस्‍त किया। इस प्रकार यह जिला मंच के समक्ष 1 वर्ष 10 महीने लंबित रहा। तत्‍पश्‍चात अपीलार्थी ने जिला मंच के समक्ष रिव्‍यू प्रार्थना पत्र दि. 23.10.07/25.10.07 प्रस्‍तुत किया, जिसे जिला मंच ने अपने आदेश दि. 09.01.12 के अंतर्गत खारिज किया था। जिला मंच ने इस रिव्‍यू प्रार्थना पत्र को मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय के निर्णय सिविल अपील संख्‍या- 4307/2007, RAJEEV HITENDRA PATHAK & ORS. Vs. ACHYUT KASHINATH  KAREKAKR & ANR. के परिप्रेक्ष्‍य में खारिज किया। इस प्रकार अपीलार्थी द्वारा दिए गए रिव्‍यू का प्रार्थना पत्र लगभग 4 वर्ष से अधिक की अवधि तक जिला मंच के समक्ष लंबित रहा, अत: अपीलार्थी निश्चित रूप से रिव्‍यू एवं रिकाल प्रार्थना पत्र में हुए विलम्‍ब के लिए दोषी नहीं है। अपीलार्थी द्वारा प्रस्‍तुत शपथपत्र के अभिकथनो के परिप्रेक्ष्‍य में हम यह पाते हैं कि इस प्रकरण में अपील को प्रस्‍तुत करने में जो अत्‍यधिक विलम्‍ब हुआ उसमें अपीलार्थी की लापरवाही या निष्क्रियता नहीं है और न ही सदभावना में कोई कमी परिलक्षित होती है। इसके अतिरिक्‍त जिला मंच के निर्णय के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट है कि जिला मंच का निर्णय परिवादी के शपथपत्र पर आधारित है। प्रकरण एक सार्वजनिक बैंक का है और इसमें जनता की धनराशि निवेशित है, अपील में प्रथम दृष्‍टया सार प्रतीत होता है, अत: न्‍याय हित में यह आवश्‍यक है कि इस अपील को गुणदोष के आधार पर निस्‍तारित किया जाए, अत: अपील को प्रस्‍तुत करने में हुए विलम्‍ब को क्षमा किया जाता है।

अपीलार्थी ने अपने अपील आधार में कहा है कि जिला मंच का निर्णय एवं आदेश एकतरफा है। जिला मंच ने स्‍वयं अपने निर्णय में कहा है कि परिवादी अपने केस को सिद्ध नहीं कर पाया है और पासबुक में किए गए इन्‍दराजों को जमा धनराशि का प्रमाणित साक्ष्‍य नहीं समझा जा सकता है। जिला मंच का आदेश विधिसम्‍मत नहीं है और निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

      यह तथ्‍य निर्विवाद है कि परिवादी का अपीलार्थी बैंक में एक बचत खाता संख्‍या 6597 है। विवाद दि. 05.04.2000 को रू. 100000/- की धनराशि जमा होने के संबंध में है। परिवादी/प्रत्‍यर्थी का यह कथन है कि उसने दि. 05.04.2000 को रू. 100000/- की धनराशि अपने बैंक खाते में जमा की थी और इस धनराशि के जमा करने के बाद उसकी

-4-

धनराशि रू. 172694/- थी, जिसमें से उसने दि. 09.02.2002 को रू. 20000/- की धनराशि निकाली और उसके खाते में रू. 152694/- की धनराशि बची जो कि पासबुक में अंकित भी है। अपीलार्थी ने दि. 05.04.2000 को रू. 100000/- की धनराशि जमा होने से इंकार किया है। जिला मंच के समक्ष प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने जमा की गई धनराशि की रसीद दाखिल नहीं की है और यह कहा कि उसकी रसीद खो गई है इसका अंकन जिला मंच ने भी अपने निर्णय में किया है। जिला मंच के समक्ष परिवादी ने बैंक से प्राप्‍त जो कम्‍प्‍यूटर द्वारा

' जनरेट ' की गई लेखा की प्रति दाखिल की गई है, उसमें भी एक लाख रूपये की धनराशि जमा का अंकन नहीं है। जिला मंच ने स्‍वयं अपने निर्णय में अंकित किया है कि इस कम्‍प्‍यूटर द्वारा निर्मित प्रति की तालिका में रू. 100000/- जमा करना नहीं दिखाया गया है। इसके अतिरिक्‍त जिला मंच ने अपने निर्णय में यह भी लिखा है कि खाते की पासबुक खातेदार के पास रहती है, इसलिए पासबुक प्रमाणित साक्ष्‍य नहीं माना जा सकता। इस प्रकार जिला मंच के समक्ष परिवादी का परिवाद स्‍वीकार किए जाने के पर्याप्‍त साक्ष्‍य नहीं थे, परंतु उसने केवल इस आधार पर कि विपक्षी बैंक फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत होने के बाद दुबारा फोरम में नहीं आए और न ही जवाबदावा ही दाखिल किया, जबकि परिवादी ने अपने शपथपत्र में कहा है कि उसने रू. 100000/- जमा कि‍ए थे। परिवादी के कथन को स्‍वीकार कर लिया जो त्रुटिपूर्ण था। इस प्रकार जिला मंच ने कोई प्रमाणित साक्ष्‍य न होने पर भी परिवादी के कथन को स्‍वीकार किया है जो विधिसम्‍मत नहीं था। परिवादी को अपना केस साक्ष्‍यों से सिद्ध करना था जो उसके द्वारा उपलब्‍ध कराए गए साक्ष्‍यों से सिद्ध नहीं होता है।

      उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर हम यह पाते हैं कि प्रत्‍यर्थी अपने परिवाद को सिद्ध करने में पूर्णत: असफल रहे हैं। जिला मंच का निर्णय त्रुटिपूर्ण है और निरस्‍त किए जाने योग्‍य है। तदनुसार अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

आदेश

     प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला मंच का निर्णय दि. 03.10.05 निरस्‍त करते हुए परिवाद को खंडित किया जाता है।

      उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

       

       (राज कमल गुप्‍ता)                               (महेश चन्‍द)

         पीठासीन सदस्‍य                                   सदस्‍य

राकेश, आशुलिपिक, कोर्ट-5  

 
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Mahesh Chand]
MEMBER

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