राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या :486/2009
(जिला उपभोक्ता फोरम, गाजीपुर द्धारा परिवाद सं0-103/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.02.2009 के विरूद्ध)
Allahabad Bank, Ghazipur Branch through its Branch Manager, Ghazipur Branch, District Ghazipur.
........... Appellant/ Opp. Party
Versus
Abdul Aziz, S/o Late Nabeersul, R/o Police Radio Station, Police Lines, Ghazipur.
……..…. Respondent/ Complainant
समक्ष :-
मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्य
मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री अवधेश शुक्ला
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक : 21-9-2017
मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
मौजूदा अपील जिला उपभोक्ता फोरम, गाजीपुर द्वारा परिवाद सं0-103/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11.02.2009 के विरूद्ध योजित की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
"परिवाद अंन्तिम रूप से इस निर्देश के साथ निस्तारित किया जा रहा है कि विपक्षी निर्णय की तिथि से एक माह के भीतर परिवादी को रू0 15000.00 अदा करे तथा उस पर दिनांक 10.9.2003 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी अदा करे। विपक्षी को यह भी आदेशित किया जा रहा है कि वह एक माह के भीतर मानसिक क्षति के मद में रू0 5000.00 तथा वाद व्यय के मद में रू0 1000.00 भी परिवादी को अदा करें। ऐसा न करने पर विपक्षी उक्त धनराशि पर 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी देने के लिए उत्तरदायी होगा।"
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संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी इलाहाबाद बैंक विस्तार पटल पी0जी0 कालेज गाजीपुर के बचत खाता सं0-11081 का धारक है और नियनिम रूप से अपने उक्त खाते में धन सुरक्षित एवं निवेशित करता है तथा आवश्यकतानुसार निकालता है। परिवादी के उक्त बचत खाता सं0-11081 में दिनांक 05.3.2003 को रू0 47,707.00 सुरक्षित था, परिवादी ने दिनांक 10.9.2003 को अपने उक्त बचत खाते में रू0 4000.00 जमा किया और इस प्रकार दिनांक 10.9.2003 तक परिवादी के उक्त बचत खाते में कुल रू0 51,707.00 सुरक्षित हो गया। प्रतिवादी इलाहाबाद बैंक ने अपने पत्र दिनांक 11.11.2006 के माध्यम से परिवादी को यह अवगत कराया कि दिनांक 05.3.2003 को परिवादी के उक्त बचत खाते में रू0 15000.00 का प्रविष्टि भूलवश गलत हो गयी है। वह किसी दूसरे के खाते से सम्बन्धित है। उक्त जमा के बारे में परिवादी का कहना है कि सूचना मिथ्या एवं बेबुनियाद है। उसका यह भी कथन है कि उसने उक्त बचत खाते से रू0 15000.00 बिना पूर्व सूचना दिये ही दिनांक 11.11.2006 को अनाधिकृत रूप से निकाल लिया, कुल मिलाकर धारा-9 में परिवादी का यह कथ है कि प्रतिवादी ने उसके खाते से 15,000.00 दिनांक 10.9.2003 को फिर रू0 15,000.00 निकाल लिए और प्रतिवादी ने कोई सुनवाई नहीं की, जिसके फलस्वरूप परिवादी द्वारा प्रतिवादीगण के विरूद्ध रू0 30,000.00 की वसूलयाबी तथा रू0 10,000.00 बतौर क्षतिपूर्ति का अनुतोष दिलाये जाने हेतु जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया है।
प्रतिवादी इलाहाबाद बैंक की ओर से जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर यह कथन किया गया है कि परिवादी के बचत खाते में दिनांक 05.3.2003 तक कुल रू0 47,700.00 सुरक्षित था एवं परिवादी ने दिनांक 10.9.2003 को उक्त खाते में रू0 4000.00 जमा किया था एवं परिवादी के खाते में कुल रू0 51707.00 सुरक्षित थे एवं परिवादी के बचत खाता सं0-11081 की गजह पी0पी0एफ0 एकाउण्ट डा0 अब्दुल्ला के खाते में धनराशि रू0 15,000.00 लिपिकीय भूलवश जमा
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प्रविष्टि की जानकारी होने पर प्रतिवादी बैंक विभागीय कार्यवाही पूर्ण करने के उपरांत बिना विलम्ब के 11.11.2006 को परिवादी के बचत खाता 11081 में जमा रू0 15,000.00 रिफण्ड करके तथा उस पर अप टू डेट ब्याज रू0 437.00 के साथ बचत खाता दुरूस्त करके परिवादी को उसकी लिखित सूचना दे दी, जिसकी पूर्ण भरपायी के परिवादी ने बिना विरोध के प्राप्त कर लिया है।
इस सम्बन्ध में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अवधेश शुक्ला को सुना गया तथा प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। प्रत्यर्थी अब्दुल अजीज को निबन्धक के द्वारा नोटिस भेजा गया था क्योंकि प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रीतम सिंह का देहांत हो चुका था और प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आ रहा था और इसीलिए निबन्धक को निर्देशित किया गया था कि वह इस आशय से प्रत्यर्थी अब्दुल अजीज को सूचित कर दें और पीठ के आदेश दिनांक 19.01.2017 के अनुपालन में प्रत्यर्थी की ओर से स्वयं अब्दुल अजीज का एक पत्र दिनांक 10.11.2009 प्राप्त हुआ, जो कि पत्रावली में संलग्न है और प्रत्यर्थी की ओर से किसी भी अधिवक्ता का वकालतनामा दाखिल नहीं किया गया है तथा प्रत्यर्थी ने अपने उपरोक्त पत्र में यह लिखकर दिया है कि वह एक नौकरी पेशा आदमी है और मुकदमें की पैरवी करने में असमर्थ है और अपना जवाब डाक से भेज रहा है। इस सम्बन्ध में उक्त पत्र का अवलोकन किया गया एवं अपील के साथ जो अभिलेख दाखिल किए गये हैं, उनका भी अवलोकन किया गया।
आधार अपील में यह कहा गया है कि जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा गलती की गई है और उस पर ध्यान नहीं दिया गया है क्योंकि बैंक के द्वारा लिपिकीय त्रुटि की जानकारी होने पर उसने प्रत्यर्थी के खाते में 15,000.00 रू0 साथ में रू0 437.00 ब्याज के दिनांक 06.10.2007 को क्रेडिट कर दिए थे और इस प्रकार से उसके खाते में संशोधन किया गया था और उसके बारे में बैंक ने प्रत्यर्थी को पत्र के द्वारा बता दिया था और इस प्रकार से कोई सेवा में कमी बैंक द्वारा नहीं की गई है और जो धनराशि
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भूल से निकाली गई थी उसको ब्याज के साथ उनके खाते में जमा कर दिया गया था, तो प्रत्यर्थी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन जिला उपभोक्ता फोरम ने भूल से 15,000.00 रू0 और अदा करने का आदेश कर दिया है, जो समाप्त किए जाने योग्य है।
केस के तथ्यों व परिस्थितियों एवं जिला उपभोक्ता फोरम के प्रश्नगत निर्णय को देखने के उपरांत हम यह पाते हैं कि अपीलार्थी बैंक द्वारा जो भूल से गलती की गई थी, उसका निराकरण अपीलार्थी बैंक द्वारा कर दिया गया है और इस प्रकार हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा जो अलग से रू0 15,000.00 देने का आदेश पारित किया है, वह विधि सम्मत नहीं है, क्योंकि बैंक के द्वारा कोई जानबूझकर गलती नहीं की गई थी और इसके अतिरिक्त जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा अपने प्रश्नगत आदेश में जो रू0 5,000.00 मानसिक क्षति के मद में एवं रू0 1,000.00 वाद व्यय के रूप में अदा किए जाने का आदेश पारित किया गया है, वह भी केस के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए समाप्त किए जाने योग्य है। तद्नुसार अपीलार्थी की अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपीलार्थी की अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम, गाजीपुर द्वारा परिवाद सं0-103/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11.02.2009 को निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेगें।
(रामचरन चौधरी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-4