प्रकरण क्र.सी.सी./14/273
प्रस्तुती दिनाँक 17.09.2014
प्रथमेश तेलंग आ. ए.के.तेलंग, निवासी-सीनियर एम.आई.जी.27, पद्मनाभपुर, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
आरती इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं बिल्डकाॅन लिमि., शंकर नगर, रायपुर (छ.ग.) द्वारा-डायरेक्टर, राजीव मुंदडा, आयु-30 वर्ष, पिता-कैलाश नाथ मुंदडा, निवासी-अशोका टावर, शंकर नगर, रायपुर (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 20 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से फ्लैट का कब्जा प्रदान करने, परिवादी को किराये के मकान में रहने के कारण तथा बैंक ऋण का अतिरिक्त भार के कारण हुई आर्थिक नुकसान राशि 4,00,000रू. मानसिक कष्ट हेतु 1,00,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी एवं अनावेदक के मध्य लिखित अनुबंध दि.23.04.2010 निष्पादित हुआ था।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक के द्वारा अनावेदक से वर्ष 2011 में अपने लिए एक फ्लैट अशोका इंप्रेशन के प्रथम तल के 2 बी.एच.के. फ्लैट क्र.बी 309 क्रय करने हेतु सौदा किया गया था तथा उक्त फ्लैट की कीमत 1350रू. प्रति वर्गफीट की दर से कुल 13,16,250रू. तथा बिजली व्यय 30,000रू. तथा कार पार्किंग हेतु 1,25,000रू. शुल्क तय किया गया था। परिवादी के द्वारा अनावेदक को उक्त फ्लैट क्र.309 के लिए अग्रिम राशि 1,47,125रू. दिए थे तथा शेष राशि का भुगतान परिवादी को बैंक लोन के माध्यम से अनावेदक को करना था, परंतु होम लोन स्वीकृत न होने के कारण परिवादी के द्वारा दूसरे फ्लैट अशोका इंप्रेशन मे ब्लाक ए के द्वितीय तल पर फ्लैट क्र.204 क्षेत्रफल लगभग 989 वर्गफीट को क्रय करने हेतु प्रस्ताव दिया गया, जिसको परिवादी के द्वारा स्वीकार किया गया तथा अनावेदक एवं परिवादी के मध्य अनुबंध पत्र पुनः फ्लैट क्र.204 के लिए निष्पादित किया गया, जिसके अनुसार पूर्व मे दिए गए अग्रिम राशि व अन्य मदों की राशि को फ्लैट क्र.204 के क्रय पंजीयन राशि मे मर्ज कर दी जावेगी का कथन किया गया। परिवादी के द्वारा फ्लैट के मूल विक्रय का 10 प्रतिशत राशि फ्लैट निर्माण के अनुसार समय पर किश्तों का भुगतान बैंक के माध्यम से किया जा रहा है। अनावेदक कंपनी के द्वारा परिवादी को पंजीकृत फ्लैट अनुबंध पत्र दिनांक से 2 वर्ष 6 माह के अंदर निर्माण कर निवास हेतु कब्जा देने का वचन दिया था, परंतु अनावेदक कंपनी ने परिवादी को आज दिनांक तक कब्जा नहीं दिया है। परिवादी को किराए के मकान में 10,000रू. प्रतिमाह देकर अपने पिता के मकान मे रहना पड़ रहा है। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा सेवा मे कमी की गई। अतः परिवादी को अनावेदक से मकान पर कब्जा दिलाने, परिवादी को किराये के मकान में रहने के कारण तथा बैंक ऋण का अतिरिक्त भार के कारण हुई आर्थिक नुकसान राशि 4,00,000रू. मानसिक कष्ट हेतु 1,00,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी के द्वारा पूर्व में अनावेदक कंपनी के आवसीय प्रोजक्ट अशोका इंप्रेशन मोवा, रायपुर के ब्लाक बी. मे फ्लैट क्र.309 को बुक किया गया था, परंतु परिवादी के द्वारा उक्त फ्लैट को वास्तु अनुरूप नहीं होना बताते हुए आवेदन दि.28.11.11 प्रस्तुत कर उक्त फ्लैट के बदले आवासीय प्रोजेक्ट अशोका इंप्रेशन के ब्लाक ए में फ्लैट लेने की इच्छा जताते हुए फ्लैट क्र.204 लेने के लिए आग्रह किया गया, जिसे स्वीकार करते हुए अनावेदक के द्वारा पूर्व में जमा की गई राशि को नए फ्लैट की राशि में समायोजित कर दिया गया जिसका अनुबंध पत्र दि.29.11.11 को निष्पादित किया गया। फ्लैट बुकिंग दिनांक से अनुबंधानुसार 2 वर्ष 6 माह के भीतर इस फ्लैट का निर्माण कार्य पूर्ण किया जाना था तथा शेष प्रतिफल का भुगतान परिवादी द्वारा किया जाना था। परिवादी के द्वारा आज दिनांक तक उक्त फ्लैट के पेटे 3,18,139रू. बकाया है, जिसकी बारंबार मांग किए जाने के उपरांत भी परिवादी के द्वारा अदा नहीं किया गया है। परिवादी तैयार उक्त फ्लैट की रजिस्ट्री किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर /खरीददार के नाम पर कराना चाहता है एवं लाभ प्राप्त करना चाहता है। अतः अनावेदक यह फ्लैट परिवादी के पक्ष में प्रदान करनें को तैयार नहीं है तथा इस पेटे जमा की गई राशि बैंक ब्याज के साथ वापस करने को तैयार है। परिवादी के द्वारा यह परिवाद अस्वच्छ हाथों से फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, जिसे 3,000रू. परिव्यय पर निरस्त किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक फ्लैट का कब्जा प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादी, अनावेदक किराये के मकान में रहने के कारण तथा बैंक ऋण का अतिरिक्त भार के कारण हुई आर्थिक नुकसान राशि 4,00,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 1,00,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
4. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि पक्षकारों के मध्य दो बार अनुबंध निष्पादित किया गया है, जिसके संबंध में अनावेदक का तर्क है कि जब परिवादी ने पहली बार ब्लाॅक बी.309 बुक कराया था तो दि.23.04.2010 को एनेक्चर-1 अनुसार पहले अनुबंध निष्पदित हुआ था, परंतु परिवादी ने दि.28.11.2011 का आवेदन प्रस्तुत किया और उक्त फ्लैट वास्तु अनुरूप नहीं होने का हवाला देते हुए दूसरे ब्लाक में फ्लैट नं.204 बी.ए. का बुकिंग कराया और निर्धारित राशियों को समायोजित करते हुए पुनः एनेक्चर-2 का अनुबंध पत्र दि.29.11.2011 निष्पादित हुआ।
(8) प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि पक्षकारों के मध्य दो अनुबंध एनेक्चर-1 और एनेक्चर-2 के निष्पादित हुये हैं। एनेक्चर-2 के अनुबंध की दिनांक 29.11.2011 है, अर्थात् भवन निर्माण पूर्ण करने की समयावधि अनुबंध के अनुसार 29.11.2011 से ढाई साल अर्थात् मई 2014 होनी थी, जिसके संबंध में अनावेदक का तर्क है कि उसने ढाई साल की अवधि में अनुबंधित फ्लैट का निर्माण कार्य पूरा किया, क्योंकि अनावेदक द्वारा केवल एक ही फ्लैट का निर्माण नहीं किया जाना था, बल्कि अनेकों फ्लैटों का एक ही प्रोजेक्ट था और इस प्रोजेक्ट को अनावेदक ने निर्धारित अवधि में पूरा किया, परंतु परिवादी ने शेष रकम नहीं पटाई जबकि अनावेदक ने अनेकों बार परिवादी को सूचित किया कि भवन निर्माण पूरा हो चुका है वह शेष रकम पटाकर रजिस्ट्री कराये, परिवादी ने निर्मित क्षेत्रफल से 17 वर्गफिट में अतिरिक्त काम कराया और आज दिनांक तक अनावेदक के तर्क अनुसार 318129रू. बकाया है, अनावेदक का तर्क है कि वह निरंतर मांग कर रहा है, परंतु परिवादी उक्त रकम अदा नहीं कर रहा है।
(9) परिवादी ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि उसने अभिकथित रकम अनावेदक को अदा कर दी है, स्वयं परिवादी ने अनुबंध की अवधि में ही फ्लैट बदला है, तब दूसरा अनुबंध हुआ है, जिसके अनुसार अनावेदक ने निर्माण कार्य करके परिवादी को एनेक्चर डी.4 अनुसार नोटिस भी दी है, परंतु परिवादी ने यह सिद्ध नहीं किया है कि तदानुसार उसकी शेष रकम अदा कर फ्लैट की रजिस्ट्री हेतु कार्यवाही की है और इस स्थिति में अनावेदक के तर्क को स्वीकार योग्य पाते हैं कि परिवादी को उक्त फ्लैट अपने निजी आवास के लिए नहीं चाहिए था, बल्कि परिवादी एक इंवेस्टर है जो रियल स्टेट में इंवेस्ट कर लाभ अर्जित करने का व्यवसाय करता है, इसी व्यवसाय के चलते उसने अभिकथित फ्लैट खरीदने का अनुबध्ंा किया था और जब उचित खरीददार नहीं मिले तो उक्त फ्लैट रख रखाव और मेंटेनेंस खर्चों से बचने के लिए परिवादी ने उक्त भवन की रजिस्ट्री नहीं कराई और यह असत्य आरोप लगा दिये की उक्त फ्लैट पूर्ण रूप से निर्मित नहीं किये गये हैं जबकि उस फ्लैट को मिलाकर अनेकों फ्लैट का एक प्रोजेक्ट था जो कि पूरा हो चुका है और उसमें लोग रहने भी लगे हैं।
(10) अनावेदक के इस तर्क को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि परिवादी स्वच्छ हाथों से न्याय मांगने नहीं आया है, क्योंकि परिवादी ने उक्त फ्लैट स्वयं के निवास के लिए नहीं खरीदी है, परिवादी के मामले में इसी तथ्य से शंका उत्पन्न होती है कि परिवादी की माता ने दि.08.12.2014 को एक शपथ पत्र, जिसमें परिवादी द्वारा अपने माता-पिता को 10,000रू. किराये के बारे में लिखा गया है उक्त शपथ पत्र के संबंध में अनावेदक का तर्क है कि कोई भी पुत्र एक ही शहर में रहकर अपने माता-पिता के साथ रहकर माता को किराये की राशि अदा नहीं करेगा। अतः स्थिति यही बनती है कि परिवादी अपने माता-पिता के साथ रहता है और अभिकथित फ्लैट जो कि रायपुर में स्थित है में क्यों रहने जायेगा।
(11) अनावेदक ने यह भी तर्क किया है कि अनावेदक एक ख्याति प्राप्त निर्माणकर्ता है और इस प्रकार के ग्राहकों द्वारा झूठे आधारों पर मामला प्रस्तुत करने से उसकी ख्याति को नुकसानी हो रही है, जबकि उसी प्रोजेक्ट में अन्य लोग निवास भी करने लगे है, तो परिवादी का कथन की निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ निराधार माना जाता है और ऐसे असत्य ग्राहकों से अनावेदक ट्रांजेक्शन भी नहीं करना चाहता है तो यदि परिवादी चाहे तो वह जमा की गई राशि मय ब्याज के अनावेदक से वापस प्राप्त कर सकता है।
(12) उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि परिवादी ने स्वयं दूसरा अनुबंध निष्पादित कराया, फ्लैट बदला और फिर निर्माण कार्य होने पर पूरी राशि अदा नहीं की और यह भी सिद्ध नहीं किया कि वह स्वयं के निवास के लिए उक्त मकान खरीद रहा था, बल्कि उसने असत्य शपथ पत्र प्रस्तुत किया तथा अनावेदक द्वारा मांगी गई शेष राशि भी अदा नहीं की। इस प्रकार हम प्रकरण की परिस्थितियों में यह नहीं पाते है कि अनावेदक द्वारा किसी भी प्रकार से सेवा में निम्नता एवं व्यवयसायिक कदाचरण किया गया है।
(13) फलस्वरूप हम परिवादी का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार नहीं पाते हैं अतः खारिज करते हैं।
(14) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।