जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं 50/2016
संग्राम पुत्र श्री षंकरलाल, जाति-माली, निवासी-जसनगर, तहसील-मेडता, जिला- नागौर (राज)। -परिवादी
बनाम
1. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड जरिये अध्यक्ष/प्रबन्ध निदेषक, अजमेर (राज.)।
2. अधीक्षण अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, नागौर (राज.)।
3. सहायक अभियंता, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, मेडतासिटी, जिला-नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री रिद्धकरण धोलिया, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री राधेष्याम सांगवा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986
आ दे ष दिनांक 06.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थीगण से एक कृशि विद्युत कनेक्षन ले रखा है। उक्त कनेक्षन परिवादी सहित अपने दीगर भाई खींवराज, संग्राम, पूनाराम, धन्नाराम व दुर्गाराम पुत्र षंकरराम, जाति-माली, निवासी-जसनगर के नाम से अपने खातेदारी के खेत में खाता संख्या 1810-0400 के रूप में अपना पुराना कृशि कनेक्षन जो अन्य जगह था, जिसको षिफ्ट करवाकर परिवादी संग्राम के खेत में कृशि सम्बन्ध ले रखा है। पुरानी जगह का कनेक्षन था, उसका ट्रांसफार्मर दिनांक 18.08.2015 को जमा करवा दिया था व दूसरा ट्रांसफार्मर दिनांक 19.11.2015 को अप्रार्थीगण द्वारा दिया गया। उसके बाद प्रार्थी अपने खेत में 15 एचपी के कनेक्षन से विद्युत उपभोग कर रहा है। इस बीच परिवादी को सहायक अभियंता (पवस), अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, मेडतासिटी के कार्यालय से एक नोटिस मिला, जिसमें परिवादी के यहां दिनांक 16.12.2015 का निरीक्षण बताते हुए स्वीकृत भार 15 एचपी के स्थान पर 20 एचपी का उपयोग में लेना बताते हुए 2,66,250/- रूपये की वसूली निकाली गई। परिवादी को उक्त नोटिस सतर्कता जांच प्रतिवेदन क्रमांक 18268/046, दिनांक 16.12.2015 के सम्बन्ध में मिलते ही उसने अप्रार्थीगण से सम्पर्क किया तथा बताया कि उसके खेत में किसी अधिकारी ने जांच नहीं की है, न ही उसने विद्युत चोरी की है। उसके तो केवल पांच एचपी का भार है। इसलिए दुबारा जांच कर उक्त रिपोर्ट को निरस्त करावें। इस प्रकार प्रार्थना पत्र देने पर सहायक अभियंता, मेडता के आदेष से परिवादी के यहां दुबारा जांच कराई गई तो स्वीकृत भार से कम लोड पाया गया। फिर भी अप्रार्थीगण ने अपने अधीनस्थ की गलती को छिपाने के लिए दुबारा पूर्व के नोटिस की राषि में सुधार करते हुए दूसरा नोटिस क्रम संख्या 3015, दिनांक 13.01.2016 का जारी कर उक्त प्रथम नोटिस दिनांक 01.01.2016 क्रम संख्या 2907 की राषि को कम करते हुए 90,910/- रूपये का दूसरा नोटिस प्रार्थी उपभोक्ता को जारी कर दिया। जबकि परिवादी के खेत में ना तो चोरी हो रही है और ना ही जांच करने के लिए जांच करने आया। परिवादी को दिनांक 19.11.2015 को सुपर ट्रांसफार्मर देने के बाद प्रार्थी ने विधिवत् रूप से 15 एचपी का कनेक्षन लिया था तथा उस जगह सिर्फ 5 एचपी की मोटर ही लगी है तथा उक्त विद्युत कनेक्षन के सम्बन्ध में परिवादी, अप्रार्थीगण द्वारा जारी समस्त वैध बिलों का भुगतान करता आ रहा है। इसके बावजूद अप्रार्थीगण ने बिना कोई जांच किये आॅफिस में बैठे बैठे ही जांच प्रतिवेदन बनाकर परिवादी को नोटिस जारी कर दिया गया तथा उसके खाते में वसूली की राषि डाल दी। अप्रार्थीगणय का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। अतः अप्रार्थीगण द्वारा जारी नोटिस दिनांकित 01.01.2016, क्रम संख्या 2907 व नोटिस क्रम संख्या 3015, दिनांकित 13.01.2016 को खारिज फरमाया जावे तथा जांच प्रतिवेदन संख्या 18268/46 दिनांक 16.12.2015 को भी निरस्त फरमाया जावे। इसके अलावा परिवादी के कृशि कनेक्षन की किसी निश्पक्ष अधिकारी से जांच करवाकर परिवाद का निस्तारण किया जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण की ओर से जवाब प्रस्तुत कर बताया गया है कि दिनांक 16.12.2015 को अप्रार्थी निगम के कनिश्ठ अभियंता द्वारा परिवादी के परिसर की मौके पर जांच की गई तो पाया कि परिवादी ने अपने ट्रांसफार्मर से दो सौ मीटर दूर केबल से सिंगल फेस 5 एचपी अवैध विद्युत भार की मोटर चला रहा था। तब मौके पर जब्ती कर वीसीआर षीट तैयार कर स्वीकृत भार 15 एचपी एवं विद्युत चोरी का भार 5 एचपी अनुसार परिवादी को 2,66,250/- रूपये का नोटिस जारी किया गया लेकिन बाद में दिनांक 18.02.2015 को पुनः सहायक अभियंता (सतर्कता) द्वारा जांच की गई तथा निगम के उच्चाधिकारियों से परामर्ष कर 5 एचपी विद्युत भार की चोरी मानते हुए संषोधित नोटिस जारी किया गया। यह बताया गया है कि दोनों जांच के समय परिवादी द्वारा विद्युत चोरी की जा रही थी जो कि भारतीय विद्युत अधिनियम की धारा 135 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है। यह भी बताया गया है कि मौके पर वीसीआर षीट भरी जाकर इस षीट के आधार पर एसेसमेंट कर बकाया राषि 90,910/- रूपये की वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया तब परिवादी ने विद्युत चोरी की जुर्माना राषि से बचने के लिए झूठे तथ्यों के आधार पर यह परिवाद पेष किया है। वास्तव में परिवादी मूल ट्यूबवेल के अलावा अवैध ट्यूबवेल बनाकर विद्युत चोरी कर रहा था। ऐसी स्थिति में परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही ट्यूबवेल षिफ्टिग हेतु अप्रार्थीगण द्वारा जारी मांग पत्र प्रदर्ष 1, अप्रार्थीगण द्वारा नोटिस क्रमषः प्रदर्ष 2 व 3 पेष किये गये हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि जगह षिफ्टिग के बाद परिवादी का मीटर एकदम सही व सुरक्षित चल रहा है लेकिन अप्रार्थीगण द्वारा गलत रूप से जांच प्रतिवेदन बताकर नोटिस जारी किये गये हैं। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर जांच प्रतिवेदन एवं नोटिस निरस्त किये जायें।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादी द्वारा मनगढत एवं गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद पेष किया है, वास्तव में परिवादी के परिसर की निगम के अधिकारियों द्वारा दो बार जांच की गई एवं दोनों बार परिवादी विद्युत चोरी करते हुए पाया गया। जिस पर वीसीआर रिपोर्ट तैयार की गई तथा इन्ही वीसीआर रिपोर्ट के आधार पर गणना कर बकाया राषि की वसूली हेतु नोटिस प्रदर्ष ए 3 एवं ए 5 जारी किये गये हैं। यह भी बताया गया है कि परिवादी का कृत्य विद्युत चोरी का होकर दण्डनीय अपराध रहा है। ऐसी स्थिति में परिवादी का मामला उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आने से खारिज होने योग्य है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैंः-
(1.) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग राजस्थान, जयपुर द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम में पारित निर्णय दिनांक 01.12.2014
(2.) 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण के द्वारा दिये तर्कोंं पर मनन कर उनके द्वारा विभिन्न न्याय निर्णयों में माननीय, न्यायालयों द्वारा अभिव्यक्त मत का अवलोकन करने के साथ ही पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध वी.सी.आर. षीट प्रदर्ष ए 2 एवं प्रदर्ष ए 4 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी के ट्यूबवेल पर स्थापित विद्युत सम्बन्ध की जांच निगम के अधिकारियों द्वारा दिनांक 16.12.2015 एवं 18.02.2016 को की गई थी, जिसके अनुसार परिवादी द्वारा मौके पर विद्युत चोरी करते हुए पाया गया। अप्रार्थीगण द्वारा बताया गया है कि वी.सी.आर. रिपोर्ट प्रदर्ष ए 2 एवं प्रदर्ष ए 4 के आधार पर ही कार्यालय रिपोर्ट ली जाकर परिवादी द्वारा की गई विद्युत उपभोग बाबत् राषि की गणना कर सिविल दायित्व की राषि जोडते हुए परिवादी के विरूद्ध नोटिस प्रदर्ष ए 3 एवं प्रदर्ष ए 5 अनुसार कुल 90,910/- रूपये बकाया राषि की मांग की गई है। हस्तगत मामले के तथ्यों एवं पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री को देखते हुए स्पश्ट है कि मामला वीसीआर षीट एवं विद्युत चोरी से सम्बन्धित रहा है तथा ऐसे मामले में परिवाद जिला उपभोक्ता मंच में पोशणीय न होने से इस सम्बन्ध में गुणावगुण के आधार पर कोई निश्कर्श दिया जाना उचित नहीं होगा। 2013 (8) एससीसी 491 उतरप्रदेष पावर कोरपोरेषन लिमिटेड व अन्य बनाम अनीस अहमद में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि
Complaint against assessment made under S. 126 or action taken against those committing offences under Ss. 135 to 140 of Electricity Act, 2003, held, is not maintainable before a Consumer Forum- Civil court’s jurisdiction to consider a suit with respect to the decision of assessing officer under S. 126, or with respect to a decision of the appellate authority under S. 127 is barred under S. 145 of Electricity Act, 2003
इसी प्रकार माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा अपील संख्या 934/2013 सुरेष कुमार बनाम अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, आदेष दिनांकित 01.12.2014 वाला मामला भी वीसीआर षीट से सम्बन्धित था एवं जांच के समय मीटर बंद पाया गया था, ऐसी स्थिति में माननीय राज्य आयोग द्वारा यही अभिनिर्धारित किया गया कि जहां वीसीआर के आधार पर बकाया की गणना कर धारा 126 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो तथा कार्रवाई धारा 135 से 140 विद्युत अधिनियम, 2003 में कर दी गई हो वहां उपभोक्ता न्यायालय को परिवाद सुनवाई का अधिकार नहीं बनता है।
माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी सतर्कता जांच रिपोर्ट के पष्चात् बकाया की गणना कर विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 126 अनुसार आवष्यक कार्रवाई कर वसूली हेतु नोटिस जारी किये गये हंै, ऐसी स्थिति में यह मामला भी उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा न ही जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष पोशणीय ही रहता है तथापि परिवादी इस हेतु सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त कर सकता है। परिणामतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद इस न्यायालय/मंच में पोशणीय न होने से खारिज किये जाने योग्य है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वे विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी संग्राम द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच में पोशणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है तथापि परिवादी इस हेतु स्वतंत्र होगा कि वह विधि अनुसार सक्षम सिविल न्यायालय से अनुतोश प्राप्त करे।
8. आदेश आज दिनांक 06.07.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या