Rajasthan

Churu

37/2013

MURARI LAL TANTRIK - Complainant(s)

Versus

A.U.FINACE CO. - Opp.Party(s)

Dhanna Ram saini

17 Dec 2014

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 37/2013
 
1. MURARI LAL TANTRIK
WARD NO 35 BHARGAV BASTI CHURU
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

प्रार्थी की ओर से श्री धन्नाराम सैनी अधिवक्ता उपस्थित। अप्रार्थी संख्या 1 व 2 की ओर से श्री गजेन्द्र खत्री अधिवक्ता उपस्थित। अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से श्री आनन्द प्रजापत अधिवक्ता उपस्थित। पक्षकारान की बहस सुनी गई। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों केा दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 1 से एक वाहन मारूति स्वीफ्ट डिजायर फायनेन्स करवाया था प्रार्थी ने अप्रार्थीगण से किये गये करार के अनुसार अप्रार्थीगण द्वारा वित्तपोषित राशि का भुगतान पूर्ण रूप से कर दिया है फिर भी अप्रार्थी फायनेन्स कम्पनी ने अप्रार्थी संख्या 3 के द्वारा दिये गये ऋण की गारण्टी की ऐवज में प्रार्थी को उसकी एन.ओ.सी. जारी नहीं कर रहे है। जबकि नियमानुसार अप्रार्थी फायनेन्स कम्पनी को माह जुलाई 2012 में ही अन्तिम किश्त के चैक की राशि प्राप्त करते समय एन.ओ.सी. जारी कर देनी चाहिए थी परन्तु अप्रार्थी फायनेन्सी कम्पनी के द्वारा प्रार्थी को आजतक समस्त वित्तपोषित राशि अदा करने के बावजूद एन.ओ.सी. जारी नहीं करना अप्रार्थीगण का सेवादोष है। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थी संख्या 1 व 2 अधिवक्ता ने अपनी बहस में प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी की गारण्टी पर वर्ष 2011 में अप्रार्थी संख्या 3 को 1,00,000 रूपये वित्त सुविधा दिनांक 21.07.2011 को ऋण अनुबन्ध पत्र निस्पादित करते हुए दी गयी थी। जिसमें प्रार्थी ने अपने हस्ताक्षर बतौर बरोवर ऋण एग्रीमेन्ट पर किये है। अप्रार्थी संख्या 3 ने अपने द्वारा लिये गये ऋण राशि का भुगतान अप्रार्थी फायनेन्स कम्पनी को नहीं की। अप्रार्थी संख्या 3 की ओर अनुबन्ध खाता के अनुसार आज भी करीब 1,05,193 रूपये मय ब्याज बकाया है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि ऋण अनुबन्ध की शर्त संख्या 14 व 19 के अनुसार प्रार्थी की क्रेास लाईबिलिटी है जिसमें यह स्पष्ट अंकित है कि मूल ऋणी के द्वारा किश्त अदायगी की चूक की सूरत में अप्रार्थी फायनेन्स कम्पनी को यह अधिकार होगा कि वह किसी अन्य अनुबन्ध में वर्णित किसी भी अन्य अधिकारों का उपयोग कर सकेगा। अप्रार्थी फायनेन्स कम्पनी को प्रार्थी द्वारा किये गये ऋण एग्रीमेन्ट की शर्तों के अनुरूप जब तक अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा प्रश्नगत वाहन की ऋण राशि फायनेन्स कम्पनी को अदा नहीं कर दी जाती तब तक प्रार्थी अपने वाहन आर.जे. 10 सी.ए. 1721 की एन.ओ.सी. प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। अप्रार्थी संख्या 3 अधिवक्ता ने अपनी बहस में तर्क दिया कि प्रार्थी को अप्रार्थी संख्या 3 के विरूद्ध कोई वाद हेतुक प्राप्त नहीं है इसी आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।

           प्रार्थी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, प्रदर्स सी 1 से सी 3 दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थीगण की ओर से संदेश कुमार शर्मा व नोरंगलाल के शपथ-पत्र, प्रदर्स आर. 1 से आर. 6 दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये है। पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। मंच का निष्कर्ष निम्न प्रकार है।

           वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी व अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा अप्रार्थी संख्या 1 व 2 फायनेन्स कम्पनी से वाहन के पेटे ऋण लिया जाना व ऋण पेटे ऋण अनुबन्ध निस्पादित किया जाना स्वीकृत तथ्य है। अप्रार्थी संख्या 3 की ओर आज भी फायनेन्स कम्पनी का बकाया होना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु केवल यह है कि क्या अप्रार्थी फायनेन्स कम्पनी अप्रार्थी संख्या 3 के द्वारा लिये गये ऋण राशि की बकाया के लिये प्रार्थी गारण्टर के वाहन संख्या आर.जे. 10 सी.ए. 1721 की एन.ओ.सी. रोकने की अधिकारी है। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में तर्क दिया कि प्रार्थी की ओर उसके द्वारा लिये गये वाहन के ऋण पेटे किसी प्रकार का कोई ऋण बकाया नहीं है। इसलिए अप्रार्थीगण को उक्त वाहन की एन.ओ.सी. रोकने का कोई अधिकार नहीं है। जबकि अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने उक्त तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि अप्रार्थी फायनेन्स कम्पनी को यह अधिकार है कि वह मूल ऋणी व गारण्टर किसी से भी अपनी ऋणशुदा राशि बकाया होने पर वसूल कर सकता है। प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा लिये गये ऋण की ऐवज में बतौर गारण्टी व को-बरोवर के रूप में ऋण अनुबन्ध-पत्र पर हस्ताक्षर किये है। बहस के दौरान अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान प्रदर्स आर.1 से आर. 6 की ओर दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उपरोक्त दस्तावेजों के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रार्थी स्वंय ने अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा लिये गये ऋण हेतु अपने हस्ताक्षर बतौर को-बरोवर के रूप में किये है। प्रार्थी ने उक्त हस्ताक्षर बतौर गारण्टी के रूप में भी किये हुये है। विधि अनुसार अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के द्वारा दिये गये ऋण की बकाया हेतु अप्रार्थी फायनेन्स कम्पनी मूल ऋणी व गारण्टर किसी से भी अपनी वसूली करने हेतु स्वतन्त्र है। ऐसा ही मत माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त स्टेट बैंक आॅफ पटियाला बनाम कुसुम कालड़ा 1 सी.पी.जे. 2014 पेेज 551 एन.सी. में दिया है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह स्पष्ट निर्धारित किया है कि स्पंइपसपजल व िहनंतंदजवत ंदक चतपदबपचंस कमइजवत ंतम बव.मगजमदेपअम ंदक दवज पद ंसजमतदंजपअमण् ब्वउचसंपदंदज ींक ेजववक हनंतंदजवत वित जीम सवंदममण् ठंदा ींक मअमतल तपहीज जव तमबवअमत जीमपत उवदमल तिवउ हनंतंदजवतण् उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी से स्पष्ट है कि यदि अप्रार्थी फायनेन्स कम्पनी के द्वारा अपनी बकाया राशि हेतु प्रार्थी को उसके द्वारा लिये गये वाहन की एन.ओ.सी. जारी नहीं करना कोई सेवादोष नहीं है। इसलिए प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है।

           अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध खारिज किया जाता है। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

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