प्रकरण क्र.सी.सी/13/21
प्रस्तुती दिनाँक 16.01.2013
डा.श्रीकान्त शर्मा आ. श्री बसन्त शर्मा, उम्र 28 वर्ष, निवासी-अम्बीकापुर रोड, पत्थल गांव, तह. व जिला-जशपुर (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
संचालक, रूंगटा काॅलेज आॅफ डेन्टल साइन्स एण्ड रिसर्च, कोहका, कुरूद रोड, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 12 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से अतिरिक्त फीस की राशि 84,000रू. तथा उसपर 2005 से ब्याज, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे निर्विवादित तथ्य है कि आवेदक के द्वारा अनावेदक संस्था में बी.डी.एस.कोर्स के लिए शिक्षा सत्र 2005 में प्रवेश लिया था।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने अनावेदक के डेंटल कालेज में वर्ष 2005 में बी.डी.एस के चार वर्षीय पाठ्यक्रम प्रवेश लिया था। छत्तीसगढ़ शासन के आदेश दि.13.06.2006 के अनुसार बी.डी.एस. के लिए शैक्षणिक शुल्क 1,31,000रू. प्रति वर्ष निर्धारित किया गया। अनावेदक, आवेदक से शैक्षणिक शुल्क कुल 2,25,000रू. प्राप्त किया, जो कि शासन द्वारा निर्धारित शुल्क से 84,000रू. अधिक था। उक्त अतिरिक्त राशि को आगमी वर्षाे की फीस में समायोजित किये जाने का कथन किया, किन्तु अनावेदक द्वारा आगे के वर्षों मंे समायोजन नहीं किया गया। परिवादी द्वारा अनावेदक के कार्यालय मंे संपर्क किया तब बताया गया कि डी.डी. के माध्यम से घर के पते पर राशि भेज दी जायेगी, किन्तु आज दिनांक तक न तो आवेदक को अतिरिक्त ट्यूशन फीस की राशि वापस किया गया और न ही कोई जवाब दिया गया। इस तरह अनावेदक के उक्त रवैये से त्रस्त होकर आवेदक ने दि.23.12.2012 को अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस अनावेदक को प्रेषित की गयी, जिसका जवाब नहीं दिया गया। अनावेदक का उपरोक्त कृत्य सेवा में कमी एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है। अतः अनावेदक से परिवादी को अतिरिक्त फीस की राशि 84,000रू. तथा उसपर 2005 से 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज, वाद व्यय एवं अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि आवेदक के द्वारा अनावेदक संस्था में बी.डी.एस.कोर्स के लिए वर्ष 2005 में प्रवेश लिया था। परिवादी द्वारा अतिरिक्त फीस की राशि की मांग अथवा समायोजन की मांग नहीं किया था। आवेदक के द्वारा सत्र 2011 में सत्र पूरा होने के उपरांत अतिरिक्त शुल्क वापस लेने आवेदन दिया गया है, इसलिए वर्ष 2007-2008 में जमा की गई फीस की राशि कोई अतिरिक्त फीस नहीं है, इस तरह परिवादी ने झूठा व मनगढंत कथन किया है। आवेदक को पाठ्यक्रम पूर्ण होने के उपरांत उसके इंटरर्नशिप कम्प्लीशन प्रमाण पत्र एवं चरित्र प्रमाण पत्र प्रदान किया गया तथा वर्ष 2011 में अतिरिक्त फीस की मांग करने पर उसे शासन के नियमानुसार फीस की राशि समय समय पर विभिन्न दिनांकों में किश्तों में दिया गया, जिसे परिवादी द्वारा संस्था में स्वयं उपस्थित होकर प्राप्त किया गया। अनावेदक संस्था से अतिरिक्त फीस की राशि 84,000रू. प्राप्त करने के उपरांत भी यह आवेदन पेश किया गया जो कि उपभोक्ता के अधिकारों का दुरूपयोग है, इस प्रकार प्रस्तुत दावा निरस्त किये जाने योग्य है।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से अतिरिक्त फीस की राशि 84,000रू. तथा उसपर वर्ष 2005 से ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? केवल ब्याज पाने का अधिकारी है,
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक ने यह दर्शाने की चेष्टा की है कि उसने परिवादी से जो ज्यादा रकम वसूली की थी उसको किश्तों में अदा कर दिया है, क्योंकि जिस सत्र में ज्यादा रकम वसूल की थी, उसके पश्चात् ही शासन के आदेश फीस निर्धारण के संबंध में आये थे, परंतु प्रकरण के अवलोकन से हम यह पाते हैं कि शासन का आदेश दि.13.06.2006 का है। उक्त आदेश के अनुसार शैक्षणिक शुल्क 1,31,000रू. प्रति वर्ष निर्धारित किया गया था, उक्त आदेश एनेक्चर पी.5 है। एनेक्चर-1 अनुसार 1,31,000रू. के बदले वर्ष 2005 में कुल 2,25,000रू. ट्यूशन फीस ली गयी थी, जबकि एनेक्चर पी.5 आदेश दि.13.06.06 का है और अनावेदक के दस्तावेजों के अनुसार अधिक वसूली गयी रकम दि.31.10.2012 से दि.31.12.12 तक विभिन्न किश्तों में दी गयी है अर्थात् अनावेदक ने जब जून 2006 के बाद उक्त आदेश प्राप्त कर लिया था तब अविलंब ही परिवादी को इतनी मोटी रकम जो कि उसने परिवादी से ज्यादा वसूली थी अविलंब वापस क्यों नहीं किया, इस संबंध में अनावेदक द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है और जो राशि अनावेदक ने एनेक्चर-डी.1 से एनेक्चर-डी.5 के माध्यम से परिवादी को किश्तों में अदा की है उक्त राशि किश्तों में अदा करने का भी कोई संतोषप्रद कारण प्रस्तुत नहीं किया है, जबकि अनावेदक संस्था कालेज है और ऐसा नहीं माना जा सकता कि उसके पास शासन के आदेश की तिथि के पास अविलंब रकम वापस करने के साधन नहीं थे। सन् 2006 से 2012 तक अनावेदक ने इतनी बड़ी रकम 84,000रू. को जो कि एक छात्र से वसूली गयी फीस थी को अपने निजी उपयोग में लिया और यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसे अनेक छात्र होंगे जिनसे अनावेदक ने इतनी बड़ी रकम अधिक फीस के रूप में वसूली होगी, जिसे शासन के आदेश अनुसार अनावेदक को वापस करना होगा, परंतु अनावेदक ने परिवादी को 2006 के पश्चात् 2012 में उपरोक्त राशि अदा की है जो कि निश्चित तौर पर घोर व्यवसायिक कदाचरण को सिद्ध करता है जबकि परिवादी का तर्क है कि वह मौखिक रूप से अधिक वसूल की गयी राशि की मांग करते थे, परंतु अनावेदक नये-नये कारण बताते हुए राशि के लिए गुमराह करता रहा और परिवादी ने डिग्री प्राप्त कर ली और जब राशि नहीं मिली तो अपने अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस प्रेषित कर अधिक फीस की जमा राशि 84,000रू. मय ब्याज के भुगतान करने के लिए दिया, जिससे अनावेदक ने नगद भुगतान कर दिये जाने का कथन किया।
(8) परिवादी का तर्क है कि अधिवक्ता माफर्त नोटिस देने के पश्चात् परिवादी ने नगद राशि देने का झूठा कथन किया, इस बीच अनावेदक कभी वित्तीय वर्ष पश्चात् सेटलमेंट करने का, तो कभी आॅडिट कम्पलीट होने का, तो कभी सी.ए. से सलाह लेने हेतु प्रतीक्षा करने का, तो कभी डी.डी. के माध्यम से घर के पते पर राशि भेजने का वचन दिया, जिससे त्रस्त होकर परिवादी ने अनावेदक को अधिवक्ता के माफर्त नोटिस दी।
(9) यद्यपि अनावेदक ने एनेक्चर-डी.1 से डी.5 के दस्तावेज पेश कर 84,000रू. परिवादी को अदा किये जाने के संबध्ंा में परिवादी के पावती हस्ताक्षर का दस्तावेज भी पेश किया है, पंरतु परिवादी का कथन है कि उसे उक्त राशि प्राप्त नहीं हुई है, एनेक्चर पी.13 की नोटिस दि.23.12.2012 की है अर्थात् अभिकथित पावती के पश्चात् की है, जिसमें परिवादी को 84,000रू. की रकम किश्तों में अदा किये जाने का उल्लेख है।
(10) अतः यद्यपि हम यह पाते हैं कि अनावेदक ने 84,000रू. की रकम परिवादी को अदा कर दी है, परंतु यह सिद्ध होता है कि अनावेदक ने परिवादी को उक्त अदायगी शासन के आदेश के पश्चात् अविलंब नहीं की बल्कि 2006 के पश्चात् 2012 में की है और इस प्रकार अनावेदक एक शिक्षण संस्था होते हुए अपने छात्रों द्वारा अधिक फीस की राशि जमा की गयी, इतनी मोटी रकम को इतने अधिक सालों से अपने पास रखा और इस प्रकार अनावेदक ने सेवा में घोर निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण किया है, फलस्वरूप हम परिवादी का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार पाते है।
(11) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को 84,000रू. पर शासन के आदेश दिनांक के पश्चात् दि.01.07.2006 से अंतिम किश्त अदायगी दिनांक 31.12.2012 तक 8 प्रतिशत सालाना की दर से ब्याज की रकम अदा करे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करे।