प्रकरण क्र.सी.सी./11/46
प्रस्तुती दिनाँक 18.01.2011
बिसनलाल आ. ररूहा आयु 62 वर्ष, निवासी-आचार्य विनोबा नगर, देवबलौदा, तहसील पाटन, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - -परिवादी/आवेदक
विरूद्ध
मैनेजिंग डायरेक्टर, अपोलो बी.एस.आर. हास्पिटल जुनवानी रोड, स्मृति नगर, भिलाई, तह व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 11 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से उसकी पत्नि के लापरवाही पूर्व किए गए उपचार हेतु ली गई संपूर्ण राशि 2,70,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 20,000रू., लापरवाहीपूर्ण उपचार के कारण असमय मृत्यु के कारण हुई क्षति के लिए 2,00,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदक के अस्पताल में दि.17.06.2010 को परिवादी के द्वारा अपनी पत्नी रमशीला बाई को भर्ती कराया गया तथा दि.21.06.2010 को उनकी मृत्यु हो गई थी।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक की पत्नि रमशीला बाई का स्वास्थ्य दिनंाक 17.06.2010 को खराब हो जाने पर उन्हें कृष्णा नर्सिंग होम, भिलाई 3 में उपचार हेतु भर्ती किया गया था, जहां पर डाॅक्टरों के द्वारा उन्हे हार्ट की समस्या होना बताया गया एवं उपचार के लिए अनावेदक के अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह के साथ भेजा गया। परिवादी के द्वारा अपनी पत्नी को अनावेदक के हास्पिटल में उक्त दिनांक को ही भर्ती किया गया । परिवादी के द्वारा अपनी पत्नी को अस्पताल में भर्ती के समय 20,000रू जमा किए गए तथा अनावेदक के डाॅक्टर के द्वारा यह कहा गया कि परिवादी की पत्नी के उचार हेतु 85,000रू. लगेगा व आपकी पत्नी ठीक हो जावेगी। अनावेदक के चिकित्सकों द्वारा बताई गई राशि पर परिवादी द्वारा अपनी पत्नी के उपचार हेतु सहमति व्यक्त की गई पर दूसरे दिन चिकित्सक डाॅक्टर दिलीप रत्नानी के द्वारा परिवादी को 2,00,000रू. जमा करने कहा गया, तब परिवादी ने किसलिये इतनी राशि लग रहा है व कल आप लोगों ने 85,000रू. कहा था और आज देा लाख रूपये, इतने में डाॅ.रत्नानी ने परिवादी को कहा कि आप अपनी पत्नी को ठीक व स्वस्थ देखना चाहते हैं तो इस राशि की व्यवस्था तत्तकाल करो। परिवादी के द्वारा दि.19.06.2010 को उपरोक्त राशि अनावेदक के अस्पताल मे जमा कर दी गई। परिवादी की पत्नी को आई.सी.यू. में रखा गया था, जिसके कारण परिवादी अपनी पत्नी को दूर से ही कभी कभी मिलने के समय में ही देख पाता था और आवेदक को पत्नी के सही स्थिति की जानकारी नहीं हो पाती थी। दि.20.6.2010 तक डाॅक्टर व उसके स्टाॅफ के द्वारा परिवादी की पत्नि के स्वास्थ्य में सुधार होना बताते रहे फिर दूसरे ही दिन दि.21.06.2010 को एकाएक मृत हो जाना बताया गया तथा परिवादी की पत्नि का अस्पताल का कुल व्यय 2,94,260रू. होना बताते हुए शेष 74,260रू. जमा करने पर ही मृतका का शरीर को दिया जायेगा कहा गया, जिस पर परिवादी के द्वारा अस्पताल से अनुनय विनय कर 50,000रू. जमा कर अपनी पत्नी का मृत शरीर प्राप्त किया गया, तथा यह पूछनें पर कि उपरोक्त सभी राशि किस प्रकार व्यय हुई क्या ईलाज दिया गया संबंधी जानकारी चाही गई तो उसकी कोई स्पष्ट जानकारी दस्तावेज अनावेदक के द्वारा प्रदान नहीं किया गया, इस प्रकार अनावेदक के द्वारा परिवादी के सीधे-सादे होने का फायदा उठाया गया और आवेदक के सीधे सादेपन का लाभ उठाते गुमराह कर लूटने का कृत्य किया है जो कि सेवा में कमी एवं व्यावसायिक दुराचरण का द्योतक है।
(4) परिवाद इस आशय का भी प्रस्तुत है कि परिवादी के मजबूरी व अज्ञानता का लाभ उठाते हुए अनावेदक ने आवेदक से पैकेज राशि के नाम पर 85,000रू. प्राप्त किया व इसके अलावा पैथालाॅजी जनरल सर्विस, डाॅक्टर विजिट चार्ज, बेड चार्ज, रेडियोलाॅजी, मेडीसीन, कार्डियोलाॅजी, अदर्स, नर्सिंग चार्ज, मेडिकल इक्यूमेंट के नाम पर 2,09,260रू. अतिरिक्त रूप से धोखा देकर गुमराह कर लेना सेवा शर्तों का उल्लंघन है। आवेदक द्वारा अपनी पत्नी के मृत्यु के बाद अनावेदक से सम्पर्क कर इतनी राशि किस मद में और क्यों खर्च हुआ जानना चाहा, तो अनावेदक के द्वारा स्पष्ट रूप से जानकारी नहीं दी गई व गोल मोल जवाब देकर और यह कहा गया कि जो हमें दिया है उसमें सब कुछ लिखा है आप खुद देख सकते हैं और उपचार संबंधित दस्तावेज को देने से इंकार किया गया। परिवादी ने अनावेदक को अपने अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस प्रेषित कर उपचार के लिए ली गई अतिरिक्त राशि व क्षतिपूर्ति की मांग की, जिसका अनावेदक ने जवाब नहीं दिया और न ही क्षतिपूर्ति अदा किया, तब परिवादी ने अनावेदक के उपरोक्त कृत्य का शिकायत जिला मेडिकल बोर्ड व मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी को किया। अतः परिवादी को अनावेदक से उसकी पत्नी के ईलाज में हुए व्यय की अदा की गई संपूर्ण राशि 2,70,000रू., मानसिक कष्ट क्षतिपूर्ति हेतु 20,000रू., लापरवाही पूर्ण ईलाज के फलस्वरूप परिवादी की पत्नी की मृत्यु हो जाने से हुई क्षति के लिए क्षतिपूर्ति राशि 2,00,000रू. एवं उपरोक्त राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज, मानसिक संताप हेतु 20,000रू. वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(5) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि दिनांक 17.06.2010 को परिवादी के द्वारा अपनी पत्नी रमशीला बाई को भर्ती कराया गया तथा दि.21.06.2010 को उनकी मृत्यु हो गई। अनावेदक चिकित्सक के द्वारा परिवादी को यह कभी नहीं कहा गया था कि परिवादी की पत्नि के ईलाज में 85,000रू. लगेगा व परिवादी की पत्नी ठीक हो जावेगी। इलाज में क्या व्यय होगा यह इलाज जैसे-जैसे आगे बढ़ता है वैसे-वैसे व्यय सामने आता हैं। परिवादी की पत्नि को दिल का गंभीर दौरा पड़ा था तथा ब्लड प्रेशर गिर रहा था, इसके लिए परिवादी की पत्नी को आई.ए.बी.पी. की आवश्यकता होगी तथा ऐजियोप्लाष्टी व स्टेंट भी लगाना पड़ेगा, जिसमे लगभग 2,00,000रू. व्यय होगा की जानकारी परिवादी को दी गई थी, इलाज के पश्चात भी परिवादी की पत्नी की स्थिती गंभीर थी। परिवादी की पत्नि को इनोट्राॅपिक सपोर्ट भी दिया गया था, किंतु स्थिती पूर्ववत् गंभीर ही बनी रही। मरीज की गंभीर स्थिती के बारे में उनके रिश्तेदारों, उनके पति बिशनलाल को बार-बार बताया गया, जिसकी इंट्री केस फाईल में दर्ज है। परिवादी से जो राशि नियमानुसार ली जानी थी, वही उसे भुगतान करने के लिए कहा गया, इसके अतिरिक्त कोई अधिक राशि परिवादी से नहीं ली गई है। इस प्रकार 85,000रू. केवल एंजियोप्लास्टी प्रक्रिया में व्यय हुआ तथा शेष व्यय पैकेज से अलग का व्यय है। परिवादी को इलाज मे हुए व्यय का विवरण दिया जा चुका है, परिवादी को मरीज की वास्तविक स्थिति समय समय पर बतलायी जाती थी, अनावेदक के द्वारा परिवादी की पत्नि के ईलाज में किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं की गई है। परिवादी से जो भी राशि ली गई है वह नियमानुसार ली गई है, अनावेदक ने परिवादी के अभिकथनों से इंकार किया है। परिवादी द्वारा यह परिवाद असत्य आधारों पर फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, जिसे निरस्त किया जावे।
(6) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से अपनी पत्नि के उपचार अंर्तगत व्यय की गई राशि 2,70,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक क्षति के एवज में 20,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(7) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(8) परिवादी का तर्क है कि उसकी पत्नी का दि.17.06.2010 को जब स्वास्थ्य खराब हुआ तो उसे कृष्णा नर्सिंग होम, भिलाई - 3 ले जाया गया, जहां हार्ट प्राॅब्लम बताया गया तो दि.17.06.2010 को अनावेदक के अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां पर भर्ती रह कर दि.21.06.2010 को परिवादी की पत्नी की मृत्यु हो गई।
(9) परिवादी का यह भी तर्क है कि जब परिवादी की पत्नी को भर्ती किया गया था तो बताया गया था कि 85,000रू. का पैकेज है तो परिवादी ने सहमति व्यक्त की, परंतु दूसरे दिन डाॅ.दिलीप रत्नानी ने परिवादी को 2,00,000रू. जमा करने को कहा गया, पूछने पर परिवादी को कह दिया गया कि पत्नी को ठीक और स्वस्थ्य देखना चाहते हो तो इस राशि की तत्काल व्यवस्था करें तब परिवादी ने दि.19.06.2010 को उक्त राशि 2,00,000रू. जमा कर दी, इस बीच उसे बताया गया कि उसकी पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है, चूंकि पत्नी से मिलने नहीं दिया जाता था और दूर से कभी-कभी देख पाते थे, इसलिए उसे अपनी पत्नी की सही स्थिति की जानकारी नहीं हो पाती थी और डाॅक्टर और स्टाफ की बताये अनुसार ही विश्वास करना होता है।
(10) परिवादी के तर्क के अनुसार दि.20.06.2010 तक परिवादी को डाॅक्टर और स्टाफ बताते रहे कि परिवादी के पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार है और अचानक दि.21.06.2010 को बता दिया गया कि परिवादी की पत्नी की मृत्यु हो गई और संपूर्ण उपचार का बिल 2,94,260रू. जिसे जमा करने के लिए कहा गया, पहले ही से परिवादी 2,20,000रू. जमा कर चुका था, अतः 74,260रू. जमा करेगा तभी मृत शरीर दिया जायेगा, अत्यन्त निवेदन के पश्चात् 50,000रू. जमा करने पर मृत शरीर को दिया गया। इस प्रकार अनावेदक ने परिवादी के सीधे साधेपन का लाभ उठाते हुए लापरवाहीपूर्ण सेवा में कमी की है।
(11) उपरोक्त स्थिति में मुद्दा यही रहता है कि क्या मरीज के भर्ती करते हुए यदि पैकेज की राशि 85,000रू. बता दी गई थी तो उसके अतिरिक्त क्या अनावेदक अन्य राशि वसूल कर सकता था? तथा क्या अनावेदक द्वारा मरीज के इलाज में अभिकथित लिया गया अतिरिक्त खर्च वास्तव में आया था?
(12) प्रथमतः तो अनावेदक ने यह व्यवसायिक दुराचरण किया कि जब परिवादी को 85,000रू. का पैकेज बताया तो उस पैकेज का विस्तृत विवरण दिया जाना था कि उस 85,000रू. में किस प्रकार का इलाज शामिल है, जब जन सामान्य को पैकेज शब्द का उल्लेख करते हुए 85,000रू. के बारे में बताया जायेगा तो यह स्वाभाविक है मरीज के परिजन द्वारा उस 85,000रू. में संपूर्ण इलाज किया जाना ही समझा जायेगा, चाहे वह इलाज एक दिन किया जाये या अनेकों दिनों तक। अनावेदक द्वारा जब पैकेज राशि घोषित कर दी गई थी तो उसका कोई अधिकार नहीं था कि वह अन्य कोई राशि की मांग परिवादी से करता। अनावेदक ने कहीं भी ऐसा दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है जिससे यह सिद्ध हो कि अनावेदक ने परिवादी को यह सूचित किया था कि पैकेज के अलावा इलाज में अन्य खर्चों की राशि बाद में वसूली जायेगी। अतः निश्चित रूप से पैकेज की राशि के अलावा अन्य कोई भी राशि मरीज के इलाज के संबंध में वसूलना अनुचित व्यापारिक प्रथा है। यदि अस्पतालों में इलाज हेतु बड़ी राशि की मांग की जाती है और जब पैकेज बताया जाता है तो मरीज अपने सामर्थ के अनुसार ही पैकेज का विकल्प लेता है। प्रथमतः तो 85,000रू. को ही छोटी राशि नहीं मानी जा सकती है और फिर ग्रामीण परिवेश के व्यक्ति के द्वारा 85,000रू. जमा किया जाना और फिर मरीज के भर्ती कर लेने के बाद 2,00,000रू. राशि की मांग किया जाना निश्चित रूप से घोर व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है।
(13) मरीज को भर्ती कर लेने के बाद इतनी बड़ी राशि की मांग किया जाना इसी स्थिति को सिद्ध करता है कि अनावेदक इलाज की आड़ में मरीज से एक बड़ी राशि वसूलने की व्यवसायिक दुराचरण की नीति को अपना रहा है, जबकि अनावेदक का यह कर्तव्य था कि वह पैकेज में सभी संभावित इलाज और उपचार की राशियां शामिल कर मरीज को पहले से ही सचेत कर देता कि विषम परिस्थिति में अलग इलाज की राशि अत्यधिक बढ़ सकती है, अनावेदक उक्त पूर्व सूचित राशि प्रोविज़नल बिल के माध्यम से परिवादी से प्राप्त भी कर सकता था और फिर इलाज समाप्त होने पर यदि कम पैसे में इलाज होता तो शेष राशि को परिवादी के परिजन को वापस कर सकता है, तब यह स्थिति नहीं बनती कि पैकेज की राशि के अलावा इतनी मोटी राशि परिवादी को मरीज के भर्ती होने के बाद बताकर वसूल की जाती, भले ही उसका सामर्थ है या नहीं है, ऐसा चिकित्सकीय व्यवसाय नीति निश्चित रूप से घोर सेवा में निम्नता और व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करता है जो इस प्रकरण में अनावेदक ने अपनाई है कि पहले तो कम राशि का पैकेज दिया और फिर जब एक बार मरीज भर्ती हो गया तो ना-ना प्रकार के इलाज किये गये बताकर 85,000रू. के अलावा अगले दिन ही राशि 2,00,000रू. की मांग की गई।
(14) अब यह मुद्दा विचारणीय है कि क्या वास्तव में जो अतिरिक्त राशि 2,09,260रू. बाद में परिवादी से ली गई वह मरीज के इलाज में खर्च होना आवश्यक थी या नहीं। यदि हम एनेक्चर डी.1 एवं डी.2 का अवलोकन करें तो उससे यह सिद्ध नहीं होता कि जब क्लौट निकाला गया तो कितना ब्लाॅकेज बचा था। डायेक्टर स्टेटिंग के पहले बैलूनिंग क्यों नहीं की गई, जिससे बैलूनिंग के द्वारा जगह को चैड़ा किया जा सकता था, यदि पूरा क्लाॅट निकल गया तो स्टेन्ट की आवश्यकता पड़नी ही नहीं थी। अनावेदक द्वारा ब्लाॅकेज कितना बचा था, यह उल्लेखित नहीं किया गया यदि ब्लाॅकेज 65 प्रतिशत से कम था तो एन्जियोप्लास्टी की नहीं जानी थी। अनावेदक ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि मरीज को प्री एन्जियोप्लास्टी इन्जेक्शन दिया गया था या नहीं। अनावेदक ने यह भी सिद्ध नहीं किया कि खून चढ़ाने की आवश्यकता क्यों पड़ी, जबकि दस्तावेजों में अनावेदक ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि किन कारणों से आई.ए.बी.पी. की आवश्यकता पड़ी, जबकि मरीज दि.17.06.2010 को भर्ती हुई और दि. 17.06.2010 को ही डायरेक्ट स्टेन्टिग कर दी गई, जबकि प्रायमरी एन्जियोप्लास्टी के पहले वान्छित इन्जेक्शन लाया जाना था।
(15) अनावेदक ने इस संबंध में भी कोई संतोषप्रद स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया है जब मरीज की एन्जियोप्लास्टी की गई तो परिवादी को उसकी सी.डी. क्यों नहीं दी गई, यह स्थिति भी अनावेदक के घोर कदाचरण व सेवा में निम्नता को सिद्ध करती है और इस आधार पर भी परिवादी के मामले पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं पाया जाता है और यही निष्कर्षित किया जाता है कि अनावेदक पैकेज की पूर्व सूचित राशि 85,000रू. के अलावा कोई भी राशि परिवादी से प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
(16) यदि एनेक्चर-7 का अवलोकन करें तो मरीज का दो तिथियों में एक्स-रे लेने का खर्च भी जोड़ा गया है, परंतु एक्स-रे फिल्म प्रकरण में अनावेदक ने पेश नहीं की है।
(17) एनेक्चर-5 के अवलोकन से स्पष्ट है कि सात बार खून चढ़ाने हेतु राशि भी जोड़ी गई है जो कि उक्त दस्तावेज के सीरियल 36 से 42 में इन्द्राज है, जबकि खून क्यों चढ़ाया गया, इस संबंध में अनावेदक ने कोई कारण अपने जवाबदावा में अभिकथन नहीं किया है।
(18) एनेक्चर-7 में जहां सीरियल 4 में 90,000रू. लिखे गये हैं वहीं अनेकोअनेक अन्य दवाओं का भी विभिन्न तिथियों में इन्द्राज है, यहां तक कि दि.21.06.2010 में भी, जबकि एनेक्चर डी.30 के अनुसार दि.21.06.2010 के सबेरे नौ बजकर पांच मिनट पर मरीज की मृत्यु हो गई।
(19) इसी प्रकार एनेक्चर-8 में आई.ए.बी.पी. को खरीदने का फाइनल बिल में दि.19.06.2010 की तारीख का इन्द्राज है, जबकि एनेक्चर डी.15’ए’ के पृष्ठ भाग में आई.ए.बी.पी. सर्पोट शुरू करने की तारीख दि.18.06.2010 का इन्द्राज है अर्थात् अनावेदक ने आई.ए.बी.पी. को पहले चालू किया और खरीदने की तिथि एनेक्चर-8 में बाद की डाली है, इस कारण से अनावेदक द्वारा इन बिलों की सत्यता पर शंका उत्पन्न होती है।
(20) इसी प्रकार एनेक्चर-7 में स्टेन्ट खरीदी तारीख दि.18.06.2010 है जबकि स्टेन्ट दि.17.06.2010 को एनेक्चर डी.2 अनुसार डाल दिया गया है, इसी प्रकार आई.ए.बी.पी. खरीदने की तारीख एनेक्चर डी.8 अनुसार दि.20.06.2010 सीरियल 173 में अंकित है जबकि आई.ए.बी.पी. एनेक्चर डी.15’ए’ अनुसार दि.18.06.2010 को चालू करना अंकित है यह परिस्थितियां भी इसी बात को सिद्ध करती है कि बिलों की प्रविष्टि शंकास्पद है, अतः परिवादी ऐसे बिलों की राशि पटाने का जिम्मेदार नहीं माना जा सकता तथा अनावेदक निश्चित रूप से इन कारणों से कदाचरण का दोषी है।
(21) अब यदि संबंधित बिलों का विस्तृत अवलोकन किया जाये तो एनेक्चर डी.7 में फाॅर्मेसी के मद में अलग से 90,000रू. चार्ज किया गया है। इसी प्रकार एनेक्चर डी.8 में फाॅर्मेसी के मद में 38,480रू. चार्ज किये गये हैं, परंतु दवाओं के नाम नहीं लिखे हैं। एनेक्चर डी.10 में सीरियल 86 में दि.18.06.2010 को स्टेण्ट के मद में 90,000रू. जोड़े गये है, जबकि स्टेन्ट दि.17.06.2010 को लगाये जाने का उल्लेख है। आई.ए.बी.पी. के मद में 38,480रू. दि.20.06.2010 को और फिर प्रत्येक दिन के हिसाब से भी आई.ए.बी.पी. चार्जेस जोड़े गये हैं, यदि यह रकम अलग-अलग भी जोड़ी गई है तो फिर पैकेज की राशि वसूलने का क्या मतलब है या पैकेज शब्द निर्धारण का क्या अर्थ है, जबकि स्वाभाविक यही है कि पैकेज की राशि में इस प्रकार के सभी मद जुड़े होना माने जायेंगे और तब पैकेज की राशि का निर्धारण होगा, यदि परिवादी को पैकेज की राशि 85,000रू. बता दिया गया था तो उपरोक्त मद में राशियांे को अलग से वसूल किया जाना निश्चित रूप से व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आयेगा। वैसे भी यदि अनावेदक द्वारा प्रस्तुत चार्जेस संबंधी विवरण का अवलोकन किया जाये तो उक्त दस्तावेज संदेहस्पद पाये जाते हैं, क्योंकि उक्त बिल एनेक्चर डी.3 से डी.10 दि.21.06.2010 की तारीख के है, जबकि उनमें पिं्रट की तिथि 12.02.2011 है, अर्थात् परिवादी का तर्क सही है कि जब मरीज की दि.21.06.2010 को मृत्यु हो गई और जब उसे यह कहा गया कि अतिरिक्त राशि अदा करने पर ही मृत शरीर दिया जायेगा और उसका विस्तृत बिल और खर्चों से संबंधित दस्तावेजों की मांग की गई तो उसे तुरंत दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराये गये और दि.12.02.2011 को अर्थात् करीब 8 माह बाद बिल संबंधी दस्तावेज का प्रिंट दिया गया, जिससे यही सिद्ध होता है कि अनावेदक ने जानबूझकर परिवादी को तुरंत विस्तृत खर्चों का दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया, यह स्थिति भी अनावेदक द्वारा व्यवसायिक दुराचरण किया जाना सिद्ध करता है। यहां यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि एनेक्चर डी.13 में चिकित्सक को फोन पर सूचित किया गया और चिकित्सक ने भी फोन पर सलाह दी, अर्थात् मरीज की खुद चिकित्सक द्वारा जांच नहीं की गई और इलाज चालू कर दिया गया, ऐसा कृत्य अनावेदक के घोर सेवा में निम्नता को सिद्ध करता है।
(22) एनेक्चर 4 से एनेक्चर 18 के दस्तावेजों का अवलोकन किया जाये तब भी यही सिद्ध होता है कि उक्त दस्तावेज में संपूर्ण एनेक्चर 4 से एनेक्चर 18 के लिए क्या इतनी बड़ी रकम की आवश्यकता वाजिब थी और क्या यह खर्च 85,000रू. के खर्च में शामिल नहीं था। मेडिकल इक्यूप्मेंट के चार्जेस एनेक्चर 2 अलग से लिये गये हैं। एनेक्चर 2 का अवलोकन मात्र ही अनावेदक की व्यवसायिक दुराचरण की स्थिति को स्पष्ट करता है कि एनेक्चर 2 दि.21.06.2010 को जारी किया गया, जबकि मरीज दि.17.06.2010 को भर्ती कर दिया गया था, यह बता करके कि पैकेज चार्जेस 85,000रू. है यदि उसे एनेक्चर 2 के अनुसार इतने खर्च भी बताये गये रहते तो परिवादी के पास विकल्प रहता कि वह अपने सामर्थ के अनुसार उस अस्पताल में इलाज कराये या नहीं। एनेक्चर-2 क्र.10 में पैकेज 85,000रू. लिखा गया है तब इसी दस्तावेज क्र.1 से 9 और क्र.11 में इतनी बड़ी-बड़ी राशि अलग मदों का हवाला देते हुए अनावेदक द्वारा उल्लेख किया जाना निश्चित रूप से व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है। जब पैकेज की राशि 85,000रू. बता दी गई है तो फायनल बिल के माध्यम से अनावेदक द्वारा परिवादी को इतनी बड़ी अतिरिक्त राशि बताया जाना निश्चित रूप से परिवादी को अचम्भित और हताश करेगा वह भी उस स्थिति में जब शेष राशि अदा करने पर ही मृत शरीर देने की बात कहीं गयी, यह मानवता के विरूद्ध तो है ही साथ ही अनावेदक की चिकित्सा जैसी पवित्र पेशे के संस्कारों के विरूद्ध भी है, जबकि अनावेदक का यह कर्तव्य था कि यदि उसके द्वारा पैकेज की राशि बता दी गई है तो उसमें सभी संभावित इलाज के खर्च की राशि भी शामिल होनी थी।
(23) एनेक्चर-19 परिवादी द्वारा अध्यक्ष, जिला मेडिकल बोर्ड को लिखे पत्र, के अनुसार यह सिद्ध होता है कि परिवादी ने उपचार संबंधी सभी दस्तावेज अनावेदक से मांगे थे साथ ही अपनी पत्नी के मृत शरीर की भी मांग की थी, परंतु अनावेदक अतिरिक्त राशि 74,260रू. जमा करनें पर ही मृत शरीर देने की बात कहे थे और फिर परिवादी को 50,000रू. जमा करने पर उसकी पत्नी का मृत शरीर दिया गया। अनावेदक द्वारा परिवादी को संबंधित दस्तावेज अविलंब क्यों प्रदान नहीं किये, इस संबंध में अनावेदक ने कोई संतोषप्रद स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया है, जबकि स्पष्ट है कि मृतिका की मृत्यु दि.21.06.2010 को हो गई थी, उसके करीब 8 माह बाद दस्तावेजों की प्रिंट किया गया, जबकि उक्त विस्तृत विवरण सहित बिल की प्रति प्राप्त करना परिवादी का अधिकार था, जब उसे 85,000रू. का पैकेज बताया गया तो अन्य राशि ली ही नहीं जानी थी। उक्त दस्तावेज एनेक्चर-19 में यह भी लिखा गया है कि उसे डराकर उससे 2,00,000रू. (दो लाख रूपये) लिये गये और अनावेदक ने अधिवक्ता मार्फत भेजी गई नोटिस, एनेक्चर-22 का जवाब नहीं दिया, जिससे भी अनावेदक का बचाव संदेहास्पद माना जाता है।
(24) यदि हम एनेक्चर-19 का सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो एक बहुत ही आश्चर्यजनक स्थिति सामने आती है, जिसमें परिवादी ने यह उल्लेख किया है कि उसकी पत्नी अर्थात् मृतिका का किसी तरह का कोई आॅपरेशन वगैरह नहीं हुआ है, इस इन्द्राज को भी नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता।
(25) परिवादी का तर्क है कि उसकी पत्नी को आई.सी.यू. में रखा गया था। अतः उसे डाॅक्टर व स्टाफ द्वारा ही सूचना मिलती थी और परिवादी से कहा जाता था कि उसकी पत्नी ठीक है और उसे दि.20.06.2010 तक डाॅक्टर व स्टाफ बताते रहे कि पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार है, जबकि अनावेदक के दस्तावेजों से ही स्पष्ट सिद्ध होता है कि दि.18.06.2010 को ही मरीज जनरल कन्डीशन बहुत पूअर हो गई, आई.ए.बी.पी. लगाया गया और वेन्टीलेटर सर्पोट में रखा गया, जैसा कि एनेक्चर-19 में उल्लेखित है। इन परिस्थितियों में अनावेदक का परिवादी को सूचित करना कि मरीज के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा, निश्चित रूप से घोर कदाचरण की श्रेणी में आता है। स्वाभाविक है कि मरीज के अस्पताल में भर्ती होने पर परिजन अत्यधिक विचलित हो जाते हैं और अस्पताल वाले जहां जो लिखने बोलते हैं, लिख देते हैं, पंरतु उस परिस्थिति में अस्पताल वालों का कर्तव्य एवं मानवीय जिम्मेदारी होती है कि मरीज के परिजनों के प्रति पारदर्शिता अपनाए और वस्तु स्थिति सही तरीके से समझाएं, यदि परिजन ग्रामीण परिवेश के कम शिक्षित हैं तो उन्हें स्पष्ट तौर पर स्थिति समझाएं। एनेक्चर डी.14 एवं एनेक्चर डी.20 में कहीं उल्लेखित नहीं है कि मरीज के परिजन को आई.ए.बी.पी. का अर्थ व कीमत के बारे में समझाया गया, अर्थात् यही सिद्ध होता है कि परिजन को मरीज की हालत की सही स्थिति समझायी नहीं गई और यही बताया गया कि स्वास्थ में सुधार है, यह स्थिति भी अनावेदक के घोर कदाचरण व सेवा में निम्नता को सिद्ध करती है।
(26) उपरोक्त स्थिति में हम यही निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदक ने परिवादी को पहले पैकेज की राशि 85,000रू. बताकर मरीज को भर्ती करा लिया गया, फिर अतिरिक्त राशि वसूली गई, यहां तक कि मरीज की गंभीर हालत को स्वास्थ्य में सुधार होना बताया गया और जब मरीज की मृत्यु हो गई, मृत शरीर को परिजन को राशि अदा करने पर ही देने की बात कही और इस प्रकार घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण का कृत्य किया। यह सामाजिक चेतना का विषय है कि क्या चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे में ऐसा कदाचरण इन्सान का डाॅक्टर पर गूढ़ विश्वास को डगमगा नहीं देगा एवं क्या ऐसे कदाचरण पर रोक लगाया जाना आवश्यक नहीं है? ऐसी परिस्थितियां परिजनों के निश्चित रूप से घोर मानसिक वेदना कारित करती है, जिसके एवज में यदि परिवादी ने 20,000रू. (बीस हजार रूपये) की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।
(27) उपरोक्त परिस्थितियों मंे हम अनावेदक को उसके द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांतों:-
1) सुरेन्द्र सिंह विरूद्ध स्काॅर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट एण्ड रिसर्च सेंटर एवं अन्य 2013 एस.टी.पी.एल. (सी.एल.) 4061 (एन.सी.)
2) राजीव नवत विरूद्ध डाॅ.शाजहां यूसुफ साहिब, चेयरमेन एण्ड एम.डी., अल-शिफा सुपर स्पेसीलिटी हाॅस्पिटल एवं अन्य 2013 एस.टी.पी.एल. (सी.एल.) 3865 (एन.सी.) एवं
3) कसतुरबा मेडिकल कालेज हाॅस्पिटल विरूद्ध रूमा कुमार 2013 एस.टी.पी.एल. (सी.एल.) 2202 (एन.सी.)
का लाभ देना उचित नहीं पाते हैं।
(28) फलस्वरूप हम परिवादी का परिवाद स्वीकार करने के समुचित आधार पाते हैं कि अनावेदक ने उपरोक्तानुसार घोर सेवा में निम्नता व व्यवसायिक कदाचरण किया है।
(29) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को उपचार हेतु ली गई राशि 2,70,000रू. (दो लाख सत्तर हजार रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दिनांक 18.01.2011 से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 20,000रू. (बीस हजार रूपये) अदा करेे।
(द) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करे।