प्रकरण क्र.सी.सी./13/148
प्रस्तुती दिनाँक 26.04.2013
पवन कुमार चैहान आ. भगेलासिंह चैहान, उम्र लगभग 46 वर्ष, निवासी-किरीतपुर, तह. बेरला, जिला-बेमेतरा (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
1. हितेंद्र साहू, संचालक उमंग फोर्स, सुपेला, थाना-राधिकानगर, न्यू कृष्णानगर, सुपेला, भिलाई, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
2. राकेश साहू, एजेंट, उमंग फोर्स, न्यू कृष्णानगर, सुपेला, भिलाई तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
3. ए.यु.फायनेंस प्रा. लिमि., 19ए., दुलेश्वर गार्डन, अजमेर रोड, जयपुर (राजस्थान) - - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 20 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण सवारी वाहन दिलाए जाने अथवा क्षतिपूर्ति राशि कुल 3,45,915रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष सहित दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा दि.14.08.2012 को फोर्सक्रम/40 पिकअप वाहन अनावेदक क्र.3 से फायनेंस कराकर 1,50,000रू. नगद राशि तथा शेष राशि 47 किश्तों में फायनेंस कराकर सवारी वाहन खरीदने की बात की गई थी, लेकिन उमंग फोर्स के संचालक हितेन्द्र साहू एवं राकेश साहू के द्वारा यह कहा गया कि अभी हमारे पास माल वाहक गाड़ी उपलब्ध है इसे ले जाओ और जब कोई सवारी वाहन हमारे पास आयेगा तेा उसे बदलकर हम आपको सवारी वाहन दे देंगे, ऐसा करके धोखे से जालसाजी कर फायनेंस के सभी कागजात में दस्तखत लेकर जबरदसती माल वाहक गाड़ी फायनेंस कर दिया गया। इसके बाद सवारी वाहन देने के नाम पर परिवादी को अनावेदक द्वारा लगातार घुमाया जाता रहा, फिर परिवादी ने दि.21.08.2012 को पंजीकृत नोटिस भी भेजी गई, जिसका जवाब उनके द्वारा नहीं दिया गया। इस तरह अनावेदकगण का उपरोक्त कृत्य सेवा में कमी एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अनावेदकगण से सवारी वाहन दिलाए जाने अथवा क्षतिपूर्ति राशि कुल 3,45,915रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावा:-
(3) अनावेदक क्र.1 एवं 2 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदक क्र.1 एवं 2 के द्वारा वाहन विक्रय का कार्य नहीं किया जाता है। फोर्स मोटर्स के स्थानीय डीलर मेसर्स उमंग फोर्स भिलाई में कार्यरत है, उक्त डीलर से आवेदक द्वारा अनावेदक क्र.3 से फायनेंस कराकर विवादित वाहन को क्रय किया गया था। यह असत्य है कि परिवादी को सवारी वाहन के स्थान पर अन्य वाहन का विक्रय जबरदस्ती किया गया था तथा बाद में दूसरा सवारी वाहन उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया गया था। वाहन को फायनेंस के माध्यम से क्रय किया गया है, जिसकी समस्त किश्ते अदा होने तक उसका एक्सचेंज होना संभव ही नहीं था। परिवादी के द्वारा जबरदस्ती के संबंध में सूचना स्थानीय डीलर अथवा पुलिस थाने में दी जा सकती थी। परिवादी के द्वारा वाहन की किश्त न अदा किए जाने के कारण उक्त वाहन का कब्जा अनावेदक क्र.3 के द्वारा ले लिया गया है, जिसकी झूठी रिपोर्ट परिवादी के द्वारा थाने मे दर्ज कराई गई है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद निराधार एवं मनगढंत होने के कारण सव्यय निरस्त किया जावे।
(4) अनावेदक क्र.3 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी एवं अनावेदक क्र..3 के मध्य उत्पन्न इस विवाद का निपटारा अनुबंध की शर्त संख्या 27 के अनुसार जयपुर में ही किया जा सकता है, दुर्ग में नहीं हो सकता है। अतः माननीय फोरम को इस प्रकरण में सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहंी है। परिवादी के द्वारा अनावेदक से अभिकथित वाहन को क्रय करने हेतु ऋण राशि प्रदान करने हेतु निवेदन वर्ष 2011 में किया गया था, अनावेदक के द्वारा फायनेंस की समस्त शर्तों से परिवादी को अवगत करा दिया गया था, एवं अनुबंध दि.30.06.11 को निष्पादित करते हुए ऋण राशि 3,20,000रू. परिवादी को उपलब्ध कराए थे। अनुबंधानुसार 9,396रू. की राशि 47 नियमित मासिक किश्तों में परिवादी के द्वारा अदा किए जाने थे, जो कि दिनंाक 23.07.11 से दि 23.04.15 तक अदा की जानी थी। परिवादी अनुबंध की शर्तो के परिपालन में प्रारंभ से ही चूक करता रहा है। इस विवाद का अंतिम रूप से विनिश्चिय पूर्व में ही दि.24.12.14 को आर्बीटेªटर के माध्यम से किया जा चुका है, जिसके तहत परिवादी के जिम्मे दिनंाक 14.11.14 तक 2,40,893रू. की राशि बकाया है, परिवादी के द्वारा प्रस्तुत वाद दायर दिनंाक से किश्त का भुगतान नहीं किया गया है। अनावेदक के द्वारा किसी प्रकार सेवा में कमी नहीं की गई है, परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदकगण से सवारी वाहन दिलाए जाने अथवा क्षतिपूर्ति राशि कुल 3,45,915रू., प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादी, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज में राशि प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादी ने अनावेदक क्र.3 से वाहन फायनेंस कराई है, तत्संबंध में ही दस्तावेज जारी किये गये हैं, परिवादी का तर्क है कि जब वाहन खरीदने की बात हुई थी तो सवारी वाहन खरीदने की बात हुई थी, परंतु अनावेदक क्र.1 और 2 ने यह कहा कि उनके पास अभी माल वाहक वाहन उपलब्ध है, इसीलिए माल वाहक वाहन ले जाये और बाद में जब सवारी वाहन आयेगा तो बदल कर दे दंेगे, परंतु दस्तावेज के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी ने अनावेदकगण से पिकअप वाहन खरीदी है।
(8) प्रकरण में प्रस्तुत दस्तावेजो से स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा उक्त दस्तावेजों का निष्पादन किया गया है, जिसमें कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि परिवादी को सवारी वाहन खरीदनी थी, परंतु माल वाहक वाहन उसने इसी शर्त पर ली कि सवारी वाहन आने पर अनावेदकगण बदली करेंगे, इस स्थिति में हम अनावेदकगण द्वारा किसी भी प्रकार की सेवा में निम्नता या व्यवसायिक कदाचरण किया जाना नहीं पाते हैं, बल्कि प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी ने फायनेंस पर वाहन प्राप्त की थी और फिर अनावेदक क्र.3 फायनेंस कंपनी को परिवादी ने किश्तें अदा नहीं की, जिसके कारण अनावेदक क्र.3 ने वाहन प्राप्त कर, उसका विक्रय कर राशि प्राप्त की है, जैसा कि परिवादी का लिखित तर्क है कि माल वाहक वाहन के लिए पर्याप्त काम नहीं मिलता था, इसलिए परिवादी फायनेंस की किश्त अदा नहीं कर पा रहा था।
(9) जब परिवादी को सवारी वाहन खरीदनी थी तो उसे अनावेदकगण से माल वाहक वाहन प्राप्त हीं नहीं करनी थी और जब प्राप्त की थी तो उसकी किश्त की राशि नियमित रूप से पटानी थी, उपरोक्त स्थिति में हम ऐसी कोई स्थिति नहीं पाते हैं कि अनावेदकगण द्वारा किया गया कृत्य सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है।
(10) अनावेदक क्र.1 और 2 मात्र कर्मचारी हैं, उनके विरूद्ध सेवा में निम्नता का मामला बनता ही नहीं है।
(11) प्रकरण की परिस्थिति को देखते हुए हम अनावेदक क्र.1 व 2 को न्यायदृष्टांत:-
1) के.के.खजूरी विरूद्ध डी.डी0 बत्रा एवं अन्य 2014 (4) सी.पी.आर. 18 (एन.सी.)
का लाभ देते हैं।
(12) फलस्वरूप हम परिवादी का परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार नहीं पाते हैं, अतः परिवाद खारिज करते हैं।
(13) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।