प्रकरण क्र.सी.सी./13/60
प्रस्तुती दिनाँक 25.10.2013
श्रीमती जैन बाई ध.प. श्री मंगलदास बंजारे, 38 वर्ष, ग्राम जोगीदल्ली, पोस्ट-भैंसातरा, उप. तहसील-घुमका, जिला-राजनांदगांव (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
प्रमोद मेहता आ. बाबु भाई मेहता, आयु लगभग 51 वर्ष, प्रोप्राइटर-के.पी. इंटरप्राइजेस, पूर्व कार्यालय-सोनालिका ट्रेक्टर, डीलर, बिजली आफिस के सामने, राजनांदगांव (छ.ग.) वर्तमान पता-के.पी.इंटरप्रायजेस, (तृप्ति रेस्टारेंट के बाजू में) 43/20, पदमनाभपुर, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 23 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से टेªक्टर ट्राॅली इत्यादि के संबंध में क्षतिपूर्ति राशि कुल 2,10,000रू. अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति के द्वारा फायनेंस के माध्यम से टेªक्टर ट्राली क्रय किया था, जिसकी कुल लागत 4,76,740रू. का अनुबंध मेग्मा फायनेंस कंपनी से किया गया था। परिवादी के द्वारा संपूर्ण राशि अनावेदक को अदा की जा चुकी है तथा फायनेस कंपनी के द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र दि.26.04.12 को जारी किया चुका है। उक्त टेªक्टर के लिए परिवादी ने अपनी पुरानी एच.एम.टी. टेªक्टर 3511 को एक्सचंेज मे दिया, जिसकी कीमत डीलर के द्वारा 70,000रू. तय की गई थी। परिवादी के नाम पर अनावेदक के द्वारा परिवादिनी के पति से कोरे चेक (बैंक आफ महाराष्ट्र) पर 20 नग पर हस्ताक्षर करा लिया गया था। वर्तमान मे अनावेदक के द्वारा इस चेक का दुरूपयोग करते हुए लिखत पराक्राम्य अधिनियम के अंतर्गत परिवाद पत्र न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी, दुर्ग के समक्ष प्रकरण क्र.906/11 प्रमोद मेहता विरूद्ध मंगल बंजारे के नाम से प्रस्तुत कर दिया गया, जो लंबित है। अनावेदक के द्वारा परिवादिनी के गांव खैरागढ़ स्थित कृषि भूमि ख.न. 571/3 को मात्र 50,000रू. में अपने परिचित राजेन्द्र मिश्रा, दुर्ग के नाम से रजिस्ट्री करवा दिया एवं प्राप्त राशि को परिवादी के ऋण खाते में जमा नहीं कराया गया, इस सबंध मे परिवादी के द्वारा दि.07.01.11 को नोटिस प्रेषित करया गया, जिस पर अनावेदक के द्वारा गोल-मोल जवाब दिया गया, परिवादिनी ने दि.28.04.2009 को 1,97,081रू. जमा कर रसीद प्राप्त की, मैग्मा फायनेंस के द्वारा 3,00,000रू. का लोन फायनेंस किया गया था, जिसे 36 मासिक किश्तों में 11,730रू. जमा किया जाना था, जिसकी अवधि 01.05.2009 से दि.01.04.2012 तक थी।
(3) परिवाद इस आशय का भी प्रस्तुत है कि अनावेदक के द्वारा पुराने टेªक्टर को 70,000रू. मे क्रय किया गया था, उक्त राशि को अनावेदक ने फायनेंस कंपनी में जमा नहीं किया तथा राजेन्द्र मिश्रा के नाम से कृषि भूमि को रजिस्ट्री कर, परिवादिनी को राशि अदा नहीं की गई। परिवादिनी ने जब टेªक्टर ट्राली सर्विसिंग के लिए दि.01.05.2009 को प्रमोद मेहता के पास भिजवाया, तब अनावेदक ने उक्त टेªक्टर ट्राली सी.जी.08/सी.9591 को अपने पास रख लिया था, जिसके कारण परिवादिनी को किसानी कार्य में बाधा हुई। अनावेदक के द्वारा टेªक्टर ट्राली वापस नहीं करने पर परिवादिनी थाना-घुमका तथा थाना कोतवाली, राजनांदगांव को दिनांक 10.11.2009 एवं 11.11.2009 को लिखित शिकायत किया। दि.15.11.09 को टेªक्टर ट्राली अनावेदक के द्वारा वापस किया गया। अनावेदक के द्वारा अनावश्यक रूप से टेªक्टर ट्राली रखे जाने के कारण परिवादिनी को प्रतिदिन 1,000रू. के हिसाब से महिने में 25-25 दिन ट्रेक्टर किराये से लेकर खेती किसानी तथा मकान निर्माण बाबत् मटेरियल ढुलाई के लिए 25,000रू. प्रतिमाह के हिसाब से 1,05,000रू. कुल छः माह में खर्च करना पड़ा। अनावेदक के द्वारा परिवादी को टेªक्टर ट्राली समय पर प्रदान नहीं करने के कारण 20,000रू. आना जाना एवं चेक दुरूपयोग कर दुर्ग न्यायालय में प्रकरण दायर होने पर वाद व्यय 40,000रू. हुई क्षतिपूर्ति अदा करना अनावेदक की जिम्मेदारी है। इस प्रकार परिवादिनी के द्वारा टेªक्टर ट्राली सर्विसिंग हेतु अनावेदक को प्रदान की गई थी किंतु अनावेदक के द्वारा टेªक्टर ट्राली को 6 माह अपने पास रोक कर रखा गया। वाद कारण उत्पन्न दि.05.01.2010 को तथा अधिवक्ता के द्वारा पंजीकृत सूचना दि.07.01.2011 को एवं जब दाण्डिक प्रकरण के दौरान अनावेदक से मुलाकात से होता रहा, वाद मूल अंतिम रूप से तब उत्पन्न हुआ जब हरिजन थाना प्रभारी, राजनांदगांव को दि.29.01.2013 को लिखित शिकायत प्रस्तुत की। इस प्रकार अनावेदक का उपरोक्त कृत्य सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अनावेदक से टेªक्टर ट्राली छः माह तक रोक कर रखने से हुई क्षति राशि 1,50,000रू., उक्त संबंध में आने लाने, टिकिट भाड़ा इत्यादि में व्यय राशि लगभग 20,000रू., चेक अनादरित होने से मुकदमा व्यय, दस्तावेजों इत्यादि व्यय राशि 40,000रू. कुल 2,10,000रू. दिलाया जावे।
जवाबदावा:-
(4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादिनी के द्वारा क्रय किए गए टेªक्टर की कीमत 5,77,421रू. बीमा रोड टैक्स एवं अन्य दस्तावेजी व्यय सहित थी, परिवादिनी के द्वारा कुल 4,12,434रू. फायनेस की राशि मिलाकर अनावेदक को अदा किये गए थे। परिवादिनी के द्वारा आज दिनांक तक 1,64,987रू. का भुगतान नहीं किया गया है। परिवादिनी के द्वारा अपने पुराने टेªक्टर को एक्सचेंज मे 70,000रू. की कीमत मे अनावेदक को प्रदान नहीं किया गया था, वास्तविक्ता यह है कि परिवादिनी के पति दि.17.07.09 को अनावेदक से टेªक्टर के भुगतान के संबंध में अंतिम हिसाब किताब कर इकरारनामा निष्पादित किया गया था, उसी दिनाक को टेªक्टर की शेष राशि के भुगतान स्वरूप अपने खाते वाले बैंक में दिनंाक 17.09.2009 का रकम 1,64,987रू. का चेक प्रदान किया गया था। परिवादी के खाते मंे राशि अप्राप्त होने के कारण उक्त चेक क्र.481311 अनादरित हो गया, जिसके सबंध में अनावेदक के द्वारा न्यायिक दण्डाधिकारी, दुर्ग के समक्ष प्रकरण प्रस्तुत किया गया। उक्त परिवाद में आवेदिका के पति के विरूद्ध दि.30.04.13 को निर्णय पारित करते हुए आवेदिका के पति को छः माह का साधारण कारावास से दंडित किया गया था। माननीय न्यायालय के आदेश के विरूद्ध परिवादिनी के पति के द्वारा अपील माननीय सत्र न्यायाधीश, दुर्ग न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था। न्यायालय के द्वारा उक्त अपील मा. षष्टम अतिरिक्त न्यायाधीश, दुर्ग के न्यायालय में प्रेषित की गई। विचारण न्यायालय के आदेश में आवेदिका के पति को दोष सिद्ध करने में कोई त्रुटि नहीं की गई, इस प्रकार आवेदिका के पति दोषी पाया गया। अनावेदक के द्वारा आवेदिका की भूमि को धोखाधड़ी से विक्रय पत्र निष्पादित नहीं कराया है तथा आवेदिका का टेªक्टर ट्राली कभी भी अपने पास रोक कर नही रखी गई थी, आवेदिका के पति अनावेदक के साथ दि.17.09.07 को इकरारनामा निष्पादित कर टेªक्टर की शेष राशि 1,64,987रू. का भुगतान करने हेतु चेक प्रदान किया गया था, जो अनावेदक के द्वारा जमा करने पर अनादरित हो गया तथा जिसके लिए परिवादिनी के पति को न्यायालय द्वारा दोषी मानते हुए टेªक्टर की शेष राशि अदा करने की देनदारी आवेदिका तथा उसके पति पर है, आदेशित किया गया है। आवेदिका के पति के द्वारा उक्त आदेश के विरूद्ध माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर में एक दाण्डिक पुनरीक्षण क्र.811/2013 प्रस्तुत की गई है, जो वर्तमान मे विचाराधीन है। अनावेदक के द्वारा भी षष्टम अपर सत्र न्यायाधीश, दुर्ग के द्वारा अपील क्र.107/2013 में पारित आदेश के विरूद्ध दाण्डिक याचिका प्रस्तुत की गई है, जो वर्तमान मे विचाराधीन है। इस प्रकार संक्षिप्त विचारण द्वारा आवेदिका के प्रकरण का निराकरण किया जाना संभव नही है अतः आवेदिका के द्वारा प्रस्तुत परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से क्षतिपूर्ति राशि कुल 2,10,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने की अधिकारी है? नहीं
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादी ने अपने मामले का यह भी आधार रखा है कि परिवादी ने जो अभिकथित नई टेªक्टर ट्राली खरीदी थी, उसके संबंध में अपने पुराने टेªक्टर को 70,000रू. में अनावेदक को दिया था, परंतु परिवादी ने कहीं भी ऐसा दस्तावेज पेश नहीं किया है कि उसने अनावेदक को अपने पुराने टेªक्टर 70,000रू. में बेचने का कोई करार किया था या कोई दस्तावेज निष्पादित किया था, यदि परिवादी से अनावेदक 70,000रू. पुराने टेªक्टर के एवज में प्राप्त करता तो निश्चित रूप से उक्त संबंध में कोई न कोई दस्तावेज निष्पादित किया जाता।
(8) प्रकरण के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि परिवादी मेग्मा फायनेंस कंपनी से नया टेªक्टर ट्राली फायनेंस कराई थी। दस्तावेजों से स्पष्ट है कि परिवादी ने यथा समय कर्ज की राशि नहीं पटाई और जिसके फलस्वरूप पक्षकारों के मध्य एनेक्चर डी.4 अनुसार पूरा हिसाब किताब हुआ, जिसके उपरांत परिवादी पर 1,64,987रू. देय निकले थे। एनेक्चर डी.4 से यह भी स्पष्ट है कि उक्त इकरारनामा अनुसार परिवादी ने 1,64,87रू. का चेक अनावेदक को प्रदान किया था, परंतु उक्त चेक अपर्याप्त रकम होने के कारण अनादरित हो गया था, जिसके संबंध में परिवादी के पति को संबंधित न्यायालय से सजा से भी दण्डित किया गया है।
(9) परिवादी का तर्क है कि परिवादी ने अनावेदक को सुरक्षा के रूप में अभिकथित जमीन की सेलडीड कराई थी और ऐसा अनावेदक ने परिवादी से छल कर जमीन को हडप लिया और परिवादी के पति के विरूद्ध अभिकथित चेक का अनादरण संबंधी केस चलाया, परंतु हम यह पाते हैं कि जब परिवादी ने जमीन की रजिस्ट्री कराई तो उसने उस समय आपत्ति नहीं ली, ऐसा भी नहीं है कि परिवादी इतना अनभिग्ज्ञ था कि उसे रजिस्ट्री का महत्व समझ में नहीं आता था। इस स्थिति में जब कि मामला कर्ज अदायगी का है, हम ऐसी स्थिति नहीं पाते हैं कि यदि परिवादी ने जमीन की रजिस्ट्री की या कोरे चेक दिये तो ऐसा मामला जिसमें छल का अभिकथिन किया गया है उपभोक्ता फोरम के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है।
(10) परिवादी का तर्क है कि दि.01.05.2009 को अनावेदक, परिवादी की पुरानी टेªक्टर सर्विसिंग के लिए ले गया था और छः माह तक वापिस नहीं किया, उक्त संबंध में परिवादी द्वारा कोई समुचित साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है, बल्कि मामला वाहन फायनेंस का है एवं रकम नहीं अदा करने का है, अतः परिवादी, अनावेदक के विरूद्ध सेवा में निम्नता या व्यवसायिक दुराचरण का बिन्दु सिद्ध करने में असफल रहा है, यदि छः माह तक अनावेदक टेªक्टर ट्राली को रोक कर रखता तो अवश्य ही परिवादी, अनावेदक के विरूद्ध समुचित कार्यवाही करता, परंतु परिवादी ने कहीं भी पादर्शिता सिद्ध करते हुए यह तथ्य प्रस्तुत नहीं किया है कि उसने कर्ज की संपूर्ण राशि आ कर दी, उसके बावजूद भी अनावेदक ने व्यवसायिक दुराचरण किया है।
(11) एनेक्चर डी.4 दस्तावेज जिसमें परिवादी के पति के भी हस्ताक्षर है, से स्पष्टतः सिद्ध हो जाता है कि परिवादी पर एक बड़ी राशि देय थी, जिसे परिवादी ने अदा नहीं किया और उक्त राशि के संबंध में जो चेक परिवादी ने जारी किये वे अपर्याप्त राशि होने के कारण अनादरित हो गये, जिसके संबंध में अपराधिक मामला चला, जिसके संबंध में परिवादी के पति को सजा हुई है। इस प्रकार स्वयं परिवादी स्वच्छ हाथों से न्याय मांगने नहीं आया है और उसने महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाकर अपना परिवाद प्रस्तुत किया है, वैसे भी परिवादी के तर्क से ही यह सिद्ध हो जाता है कि टेªक्टर का ट्रांजेक्शन 2009 में हुआ जबकि परिवादी द्वारा सन् 2013 में मामला प्रस्तुत किया गया है, स्वयं परिवादी ने अपने परिवाद में यह उल्लेख किया है कि वाद कारण दि.01.05.2009 को उत्पन्न हुआ है, तत्पश्चात् दिनांक 05.01.2010 को उत्पन्न हुआ है, अर्थात दावा समयावधि से बाहर है, जिसके संबंध में परिवादी ने कोई आवेदन पत्र नहीं दिया है। परिवादी का तर्क कि सन् 2011 में अधिवक्ता मार्फत नोटिस दिया था और सन् 2013 में हरिजन थाना प्रभारी, राजनांदगांव को लिखित शिकायत प्रस्तुत की थी, इसलिए वाद कारण जारी है, से हम सहमत नहीं है, मात्र नोटिस देने से या पुलिस को शिकायत प्रस्तुत करने से परिवादी को सन् 2011 या 2013 में वाद कारण प्राप्त नहीं होता है, अतः दावा समयावधि से बाहर भी माना जाता है।
(12) परिवादी के परिवाद से यह भी सिद्ध होता है कि परिवादी ने छः माह का ढुलाई का खर्च 25,000रू. प्रतिमाह के हिसाब से खेती किसानी व मकान बाबत् खर्च का उल्लेख किया है, परिवादी द्वारा ढुलाई के मद में मागी गई राशि छः माह निरंतर के संबंध में हम यह निष्कर्षित करते हैं कि ऐसी ढुलाई का काम और वह भी छः माह तक व्यक्ति स्वयं के उपयोग हेतु नहीं कर सकता है, क्योंकि यदि स्वयं के खेत के लिए ढुलाई करनी है तो वह एक या दो बार में करता न कि लगातार छः माह तक, इसी प्रकार मकान निर्माण हेतु मटेरियल की ढुलाई छः माह तक 25,000रू. प्रतिमाह के हिसाब से अपने उपयोग हेतु करना संभव ही नहीं है, जबतक कि ढुलाई का कार्य अन्य निर्माण कार्य के लिए नहीं किया जा रहा है, इस स्थिति में जब कि परिवादी ने कहीं भी यह अभिकथन नहीं किया है कि उसने अभिकथित टेªक्टर ट्राली स्वयं के उपयोग के लिए खरीदी थी, यही अभिनिर्धारित किया जाता है कि परिवादी ने अभिकथित वाहन स्वयं के उपयोग के लिए नहीं लिया था, बल्कि वाणिज्यक उपयोग के लिए लिया था।
(13) परिवादी का तर्क है कि वह अनावेदक को 5,00,000रू. अदा कर चुका है और पैसा प्राप्त करने के पश्चात् भी कोरे चेक लेकर चेक अनादरित करा दिया है, जैसा कि परिवादी ने एनेक्चर-7 में उल्लेख किया है, परंतु परिवादी ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि अनावेदक द्वारा किस प्रकार चेक अनादरित कराना संभव था, जबकि एनेक्चर डी.1, डी.2 से स्पष्ट है कि परिवादी के पति को चेक बैंक द्वारा अनादरित होने के संबंध में न्यायालय से सजा भी मिली है।
(14) प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा अनावेदक के विरूद्ध अपराधिक प्रकरण प्रस्तुत किया था, जिसे कि एनेक्चर डी.3 अनुसार संबंधित न्यायालय ने पुनरीक्षण स्वीकार कर अनावेदक को आई.पी.सी. की धारा 420, सहपठित धारा 34 से उनमुक्त भी किया है। इस प्रकार यही स्थिति स्पष्ट होती है कि परिवादी के बैंक खाते में रकम न होते हुए भी अनावेदक के पक्ष में चेक जारी कर दिया और फिर जब चेक अनादरित हुआ और परिवादी को सजा हुई तो रकम अदायगी से बचने के लिए अनावेदक पर यह निराधार परिवाद प्रस्तुत कर दिया है, जबकि एनेक्चर डी.4 अनुसार परिवादी के पति ने स्वयं ही अनावेदक के साथ इकरारनामा किया था कि उसे 1,64,987रू. अनावेदक को देने हैं और उसी राशि के संबंध में परिवादी के चेक अनादरित हुये हैं।
(15) उपरोक्त स्थिति में हम अनावेदक द्वारा सेवा में निम्नता या व्यवसायिक दुराचरण कारित किया जाना सिद्ध नहीं पाते हैं, क्योंकि परिवादी ने स्वयं ही कर्ज अदायगी में डिफाॅल्ट किये हैं और असत्य आधारों पर दावा प्रस्तुत किया है।
(16) फलस्वरूप हम अनावेदक को उसके द्वारा प्रस्तुत न्यायादृष्टांत:-
1) केरला एग्रो मशीनरी कारपोरेशन लिमिटेड विरूद्ध बीजोय कुमार राय, सिविल अपील, आदेश दि.28.02.2002 (सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया)
का लाभ देना उचित पाते हैं और परिवादी का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार नहीं पाते हैं, अतः खारिज करते हैं।
(17) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।