प्रकरण क्र.सी.सी./12/361
प्रस्तुती दिनाँक 17.12.2012
श्रीमती अरूणा दत्ता ध.प. जी.सी.दत्ता, आयु 60 वर्ष, निवासी-प्रगति नगर, रिसाली, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
1. शाखा प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
2. श्रीमती काकोली दत्ता जौजे स्व. उत्तम दत्ता, पता-सेक्टर-7, सड़क-34, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 27 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादिनी द्वारा अनावेदक बीमा कंपनी से बीमा राशि 50,000रू. उस पर मिलने वाला बोनस व ब्याज, मानसिक क्षति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादिनी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी के पुत्र उत्तम दत्ता के द्वारा अपने जीवन काल मे अपने एवं अपनी पत्नि काकोली दत्ता के नाम पर अभिकथित पाॅलिसी ली थी, जिसमे परिवादिनी को नामिनी बनाया गया था,। परिवादी के पुत्र की मृत्यु दि.28.01.2003 को सड़क दुर्घटना में अंजोरा, बायपास मार्ग पर हो गई। उक्त घटना दिनांक के पश्चात् दि.13.02.2005 को काकुली दत्ता जो निःसंतान विधवा थी, द्वारा प्रदीप चटर्जी से पुर्न विवाह कर लिया तथा वह प्रदीप चटर्जी की धर्म पत्नि हो गई एवं उसकी हैसियल बीमाधारक की विधवा की नहीं रही, इसलिए काकोली दत्ता बीमा पाॅलिसी में किसी भी प्रकार का परिपक्वता पश्चात् लाभ प्राप्त करने की अधिकारी नहीं रही है तथा नाॅमिनी होने के कारण परिवादिनी बीमाधन पाने की पात्र है। परिवादिनी के द्वारा बीमाधारक की मृत्यु उपरांत अनावेदक बीमा कंपनी को सूचना प्रदान की गई तथा क्लेम फार्म मय दस्तावेज बीमा कंपनी को प्रस्तुत किए गए एवं समय- समय पर अन्य आवश्यक दस्तावेज प्रदान किए गए, किन्तु अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा परिवादिनी को बीमा दावा राशि का भुगतान नहीं किया गया। अनावेदक बीमा कपंनी द्वारा बीमा दावा निराकरण न करने से परिवादिनी के द्वारा अपने अधिवक्ता मार्फत नोटिस दि.05.11.12 को प्रेषित किया गया, जिसके पश्चात भी अनावेदक बीमा कंपनी के द्वारा परिवादिनी का बीमा दावा राशि प्रदान न कर की गई सेवा में कमी की गई है। अतः परिवादिनी को अनावेदक बीमा कंपनी से बीमा राशि 50,000रू. उस पर मिलने वाला बोनस व ब्याज, मानसिक क्षति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक क्र.1 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदक के द्वारा संयुक्त जीवन बीमा योजना क्र.89-15 अवधि 15 वर्ष के लिए श्री उत्तम दत्त तथा उनकी धर्मपत्नि श्रीमती काकोली दत्त के नाम पर वेतन बचत योजना के अंतर्गत जारी की गई थी, जिसके लिए प्रतिमाह 313रू. का प्रीमियम बीमाधारक के द्वारा अदा किया जाता रहा। उक्त बीमा पाॅलिसी के अंतर्गत दिनांक 18.02.2003 को मृत्यु दावा राशि 47183रू. का भुगतान किया जा चुका है तथा परिपक्वता भुगतान किया जाना शेष है। बीमा पालिसी चंूकि संयुक्त जीवन बीमा पालिसी के आधार पर जारी की गई है, जिसके मृतक बीमाधारक की पत्नि श्रीमती काकोली दत्ता जीवित है। इस प्रकार नामिनी अरूणा दत्ता, परिवादिनी को उक्त बीमा पालिसी अंतर्गत रकम प्राप्त नहीं हो सकती। नामांकन अधिनियम के अनुसार पालिसी में नामित व्यक्ति बीमित व्यक्ति की मृत्यु पश्चात ही बीमा राशि प्राप्त करने हेतु दावा प्रस्तुत किया जा सकता है। पालिसी में प्रथम दावेदार श्रीमती काकोली दत्ता है एवं जब तक वह जीवित है, उक्त बीमे की राशि श्रीमती अरूण दत्ता को प्राप्त नहीं हो सकती।
(4) अनावेदक क्र.2 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदिका क्र.2 के पति स्व. उत्तम दत्ता के द्वारा अपने तथा अनावेदिका क्र.2 के नाम से संयुक्त बीमा पाॅलिसी अनावेदक क्र.1 से प्रश्नगत पाॅलिसी प्राप्त की थी। उक्त कारण से दोनों बीमा पालिसी धाराकों की मृत्यु होने पर ही परिवादिनी को नाॅमिनी की हैसियत से क्लेम राशि पाने का अधिकार था, प्रस्तुत प्रकरण में अनावेदिका क्र.2 जीवित है, उक्त कारण से संपूर्ण हित लाभ अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी से अनावेदिका क्र.2 पाने की अधिकारिणी है न कि परिवादिनी। अनावेदिका क्र.2 मृतक की पत्नि थे तथा मृतक के द्वारा स्वयं एवं अनावेदिका क्र.2 के नाम पर पाॅलिसी प्राप्त की गई थी, इस कारण से अनावेदिका क्र.2 संपूर्ण हितलाभ प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है। मात्र इस आधार पर अनावेदिका क्र2 द्वारा अपने भविष्य को देखते हुए पुर्नविवाह कर लिया गया है, पाॅलिसी की राशि प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसकी हैसियत संयुक्त पाॅलिसीधारक की है। उक्त कारण से अनावेदिका क्र.2 उक्त प्रश्नगत पाॅलिसी से संबंधित समस्त लाभ पाने की अधिकारिणी है, किंतु अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा दावा राशि अनावेदिका क्र.2 को प्रदान न कर सेवा मे कमी एवं व्यवसायिक कदाचरण का कृत्य किया गया है उक्त कारण से अनावेदक बीमा को निर्देशित किया जाना आवश्यक है कि वह बीमा दावा राशि से संबंधित समस्त हितलाभ अनावेदिका क्र.2 को प्रदान करे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक बीमा कंपनी से बीमा राशि 50,000रू. उसपर बोनस व ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादी, अनावेदक बीमा कंपनी से मानसिक परेशानी के एवज राशि प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादिनी उक्त बीमा में मात्र नाॅमिनी थी, उक्त बीमा परिवादी के पुत्र उत्तम दत्ता और उत्तम दत्ता की पत्नी काकोली दत्ता के नाम से था, मात्र उत्तम दत्ता की मृत्यु हो जाने से नाॅमिनी बीमित राशि पाने की हकदार नहीं मानी जा सकती, क्योंकि बीमित उत्तम दत्ता की मृत्यु दिनांक को उत्तम दत्ता की पत्नी काकोली दत्ता, उत्तम दत्ता की विधवा थी, मात्र इस कारण से कि बाद की तिथि में उक्त काकोली दत्ता ने अन्यत्र विवाह कर लेने से नाॅमिनी को बीमित राशि प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि काकोली दत्ता ने अपने जवाबदावा में परिवादी को बीमित रकम प्राप्त करने के संबंध में आपत्ति की है।
(8) फलस्वरूप यदि उपरोक्त आधार पर अनावेदक बीमा कंपनी ने परिवादी का बीमा दावा खारिज किया है तो उसे सेवा में निम्नता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, फलस्वरूप परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार नहीं पाते हुए खारिज करते हैं।
(9) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।