Chhattisgarh

Durg

CC/10/340

श्रीमती महेश्‍वरी सिंन्‍हा - Complainant(s)

Versus

शाखाप्रबंधक दुर्गराजनांदगाव बैक - Opp.Party(s)

आशीष वर्मा

25 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/10/340
 
1. श्रीमती महेश्‍वरी सिंन्‍हा
ग्राम गनौद दुर्ग
Durg
Chhattisgarh
...........Complainant(s)
Versus
1. शाखाप्रबंधक दुर्गराजनांदगाव बैक
शाखा चंदखुरी
Durg
Chhattisgarh
2. दि ओरियंटल इंश्‍योरेंस कंपनी लि
राजेन्‍द्र पार्क चौक
दुर्ग
Chhattisgarh
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर् PRESIDENT
 HON'BLE MRS. शुभा सिंह MEMBER
 
For the Complainant:आशीष वर्मा, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                   प्रकरण क्र.सी.सी./10/340

                                                                                                   प्रस्तुती दिनाँक 01.10.2010

1. श्रीमती महेश्वरी सिन्हा पति स्व. जागेश्वर सिन्हा,

2. कु. मानसी सिन्हा नाबालिक द्वारा वली माता महेश्वरी सिन्हा,

3. डेरहिन बाई आ. स्व. श्यामलाल सिन्हा, उम्र 60 वर्ष लगभग,

निवासी-ग्राम व पो. थनौद, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)                                                          - - - -     परिवादीगण

विरूद्ध

1.             शाखा प्रबंधक, दुर्ग-राजनांदगांव ग्रामीण बैंक, शाखा चंदखुरी, तह. व जिला - दुर्ग (छ.ग.)

2.             दि. ओरिएण्टल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, मण्डल कार्यालय- परमानंद भवन, राजेन्द्र पार्क चैक, जी.ई.रोड, दुर्ग (छ.ग.) 

- - - -      अनावेदकगण

आदेश

(आज दिनाँक 25 फरवरी 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

                                परिवादीगण द्वारा अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी से जनता व्यक्तिगत पालिसी के तहत राशि 5,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट क्षति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।

                                (2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदक क्र.1 के माध्यम से अनावेदक क्र.2 द्वारा अभिकथित बीमा पाॅलिसी जारी की गई थी।

परिवाद-

                                (3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादीगण मृतक स्व. जागेश्वर सिन्हा के विधिक वारिसानगण है।   अनावेदक क्र.1 बैंक द्वारा स्व. जागेश्वर सिन्हा के बचत खाते से 100रू. प्रीमियम काटकर अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी के पास जमा किया गया तथा अनावेदक क्र.2 द्वारा सामूहिक व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा पालिसी दि.04.10.2008 से 03.10.2009 तक के लिए जारी की गई थी, जिसके अंतर्गत बीमाधारक की आकस्मिक मृत्यु हो जाने पर नाॅमिनी को बीमाधन 5,00,000रू. देय था।  परिवादीगण के पति, पिता एवं पुत्र स्व. जागेश्वर सिन्हा दि.26.07.2009 को थाना कुम्हारी के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत अज्ञात ट्रक द्वारा ठोकर मार दिये जाने के कारण स्व. जागेश्वर सिन्हा गंभीर रूप से घायल हो गये। उन्हें इलाज हेतु सेक्टर-9 बी.एस.पी.अस्पताल, भिलाई में कई दिनों तक भर्ती रहना पड़ा। स्व. जागेश्वर सिन्हा 90 प्रतिशत विकलांग हो गये थे, जिससे कार्य करने में असमर्थ हो गये थे और इस तरह स्व. जागेश्वर सिन्हा की दुर्घटना में आयी चोटों के फलस्वरूप दि.29.03.2010 को मृत्यु हो गयी। परिवादीगण ने दुर्घटना की सूचना अनावेदक क्र.1 के माध्यम से अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी को प्रेषित कर दी गयी तथा अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी को दस्तावेजों सहित क्लेम फार्म प्रस्तुत कर दिया गया।  अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी द्वारा परिवादीगण का बीमा दावा गलत आधारों पर प्रदान नहीं किया गया। अनावेदक क्र.2 का उपरोक्त कृत्य सेवा में कमी एवं व्यवसायिक कदाचरण की श्रेणी में आता है। अतः परिवादीगण द्वारा अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी से जनता व्यक्तिगत पाॅलिसी के तहत राशि 5,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट क्षति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।

जवाबदावा:-

                                (4) अनावेदक क्र.1 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादीगण का दावा सही है। परिवादीगण, अनावेदक क्र.1 से कोई भी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हैं, क्योंकि इस अनावेदक के विरूद्ध कोई वाद कारण नहीं है, अनावेदक क्र.1 द्वारा सभी दस्तावेज अनावेदक क्र.2 को भेज दिये गये थे। अनावेदक क्र.1 परिवादीगण के प्रति किसी प्रकार से सेवा में कमी नहीं की गयी। परिवादीगण ने अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध किसी प्रकार का अनुतोष भी नहीं चाहा है।  अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध प्रकरण निरस्त किया जावे।

                                (5) अनावेदक क्र.2 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदक क्र.2 द्वारा अनावेदक क्र.1 के पक्ष में अनावेदक क्र.2 द्वारा अननेमड् ग्रुप पर्सनल एक्सीडेंट बीमा पाॅलिसी जारी की गई थी। अनावेदक परिवादीगण, बीमाधारक की मृत्यु दुर्घटना से हुई स्वयं प्रमाणित करें। बीमा पालिसी के तहत बीमित की दुर्घटना के फलस्वरूप मृत्यु होने पर ही क्षतिधन 5,00,000रू. भुगतान योग्य है। बीमा पालिसी के अनुसार बीमित शारीरिक विकलांगता अथवा अपना कार्य करने में असमर्थ हो जाने पर बीमाधन 5,00,000रू. भुगतान किये जाने का कोई दायित्व बीमा कंपनी पर नहीं है।  परिवादीगण ने बीमाधारक जागेश्वर सिन्हा 90 प्रतिशत विकलांग होने के संबंध में मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी अपंगता प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया।  परिवादीगण द्वारा बीमाधारक स्व. जागेश्वर सिन्हा की मृत्यु की सूचना दिये जाने पर मृतक की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया, जिसके कारण आवश्यक दस्तावेजों के अभाव में बीमा दावे का निराकरण नहीं हो सका, जिसके लिए स्वयं परिवादीगण जिम्मेदार है।  बीमा पाॅलिसी में ब्याज अदायगी का कोई प्रावधान नहीं है। अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी द्वारा परिवादीगण को बीमा दावा राशि का भुगतान न कर सेवा में कमी नहीं की गयी। परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।

                                (6) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादीगण, अनावेदक क्र.2 से बीमा दावा राशि 5,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है?     हाँ

2.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?           आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत

 निष्कर्ष के आधार

                                (7) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

(8) माननीय राज्य आयोग से यह प्रकरण सुनवाई हेतु पुनः प्राप्त हुआ है और उभय पक्ष को सुनवाई के पश्चात् प्रकरण पुनः गुण-दोषों पर आदेश पारित किया जाना है।

 

                                (9) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने यह बचाव लिया है कि मृतक की जब मृत्यु हुई थी तो वह किसी दुर्घटना के फलस्वरूप नहीं हुई थी और इस कारण परिवादीगण क्षतिपूर्ति राशि पाने के हकदार नहीं हैं।

(10) अनावेदक बीमा कंपनी ने यह भी बचाव लिया है कि परिवादी द्वारा मृतक की मृत्यु के संबंध में पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी प्रस्तुत नहीं की है, जबकि अनावेदक द्वारा उक्त दस्तावेजों की मांग की गई थी, अतः संबंधित बीमा पाॅलिसी के अनुसार परिवादीगण बीमा राशि प्राप्त करने के अधिकारी नहीं है।

(11) प्रकरण का अवलोकन कर हम यह पाते हैं कि परिवादी ने अखण्डित दस्तावेज से यह सिद्ध किया है कि मृतक एनेक्चर-3 की फायनल रिपोर्ट के अनुसार जब कार से जा रहा था तो अज्ञात ट्रक चालक द्वारा ब्रेक मारने के कारण कार ट्रक के पीछे घुस गई और तत्संबंध में रिपोर्ट हुई एनेक्चर-4 प्रथम सूचना पत्र रिपोर्ट है, जिसमें घटना की तारीख 26.07.09 अंकित है यह दस्तावेज भी अखण्डित है, उक्त घटना पर अविश्वास करने का इसलिए भी कोई कारण नहीं है कि उक्त कार को अजय वर्मा नामक व्यक्ति ने सुपुर्दनामा पर प्राप्त किया है, जिसके संबंध में दस्तोवज एनेक्चर-7ए प्रकरण में संलग्न है तथा एनेक्चर-7 मृतक का ड्रायविंग लायसेंस भी है।

(12) उपरोक्त अखण्डित दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि दि.26.07.09 को मृतक का कार एक्सीडेंट हुआ था और उक्त कार आगे वाली ट्रक के अचानक रूकने से ट्रक से टकराकर ट्रक के पीछे घुस गई तथा स्वाभाविक है कि कार चालक  निश्चित रूप से गंभीर चोटें आई होगी।

(13) एनेक्चर-5 मृतक की एम.आर.आई. रिपोर्ट है जो कि घटना के अगले दिन की है, उक्त एम.आर.आई. रिपोर्ट एनेक्चर-5 पर अविश्वास किये जाने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि वह अखण्डित दस्तावेज है भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संचालित जे.एल.एन. हाॅस्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर, सेक्टर-9, भिलाई द्वारा विधिवत् हस्ताक्षरित दस्तावेज है। इसी प्रकार एनेक्चर-6 मृतक के सिर की सीटीस्केन रिपोर्ट है जो कि उसी अस्पताल के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट है।  इस प्रकार इन अखण्डित दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि मृतक को उक्त दुर्घटना में गंभीर चोटें आई थी, तत्पश्चात् एनेक्चर-15 के विभिन्न चिकित्सकीय दस्तावेजों के अनुसार उसी अस्पताल में मृतक का इलाज होता रहा।  परिवादीगण द्वारा उक्त इलाज के संबंध में एनेक्चर-15 प्रस्तुत किया गया है, जिसमें सर्वाइकल स्पाईन इंजूरी तथा अन्य फैक्चर का उल्लेख है। इन दस्तावेजों के अवलोकन से यह भी सिद्ध होता है कि मृतक के गले की रीड़ की हड्डी चोट के कारण खिसक गई थी मृतक के हाथ-पैर में लकवा जैसी स्थिति आ गई थी, उसका पैर सुन्न हो गया था अर्थात् मृतक गंभीर रूप से चोटग्रस्त होना सिद्ध होता है।  अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा इन दस्तावेजों के खण्डन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है।

(14) प्रकरण में मृतक की विकलांगता प्रमाण पत्र एनेक्चर -11 भी प्रस्तुत है, साथ ही एनेक्चर-14 का सरपंच द्वारा जारी प्रमाण पत्र भी संलग्न है कि मृतक दि.26.07.09 को दुर्घटना में गंभीर चोट से घायल हो गया था और चलने फिरने में असमर्थ हो गया था और उसी दुर्घटना के फलस्वरूप मृतक की मृत्यु हुई है। एनेक्चर-15 के चिकित्सकीय दस्तावेजों पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है, जिससे यह भी सिद्ध होता है कि अभिकथित दुर्घटना के फलस्वरूप ही मृतक को इतनी गंभीर चोटें आई कि अंततः उसकी मृत्यु हो गई और तब एनेक्चर-2 अनुसार मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुआ।

(15) अनावेदक का तर्क कि मृतक का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया, उससे परिवादी के बीमा दावा में प्रकरण की परिस्थिति को देखते हुए अनावेदक को लाभ नहीं दिया जा सकता है।  पोस्टमार्टम कराया जाना प्रशासनिक कार्यवाही है, यदि वह नहीं की गई है तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि परिवादीगण ने कोई गंभीर त्रुटि की और इस कारण वो बीमा दावा राशि पाने का अधिकार खो देंगे।

(16) किसी परिवार में इस प्रकार की विपत्ति आने पर बीमा कंपनियों को उच्च श्रेणी का शिष्टाचार अपनाते हुए ऐसा संवेदनशील होना चाहिए कि मृतक के परिवार को अनावेदक के नकारात्मक रवैये का मानसिक कुठाराघात नहीं हो, कोई व्यक्ति बीमा इसी कल्पना से कराता है कि प्रतिकूल परिस्थितियां आने पर उसका परिवार आर्थिक रूप से परेशानी में नहीं रहेगा, यह सामाजिक चेतना का विषय है कि बीमा कम्पनियां बिना मामले मुकदमा चलाये बीमित व्यक्ति के परिवार को बीमा राशि प्रदान क्यों नहीं करती? जब बीमा कराना होता है तो अपने एजेंटों के माध्यम से बिछाये जाल से नाना प्रकार के प्रयत्न कर लोगों से बीमा तो करवा लेती हैं और प्रीमियम के रूप में मोटी-मोटी राशियां प्राप्त तो कर लेती है, परंतु जब बीमा दावा देने की स्थिति आती है तो ऐसे विभिन्न आधार प्रस्तुत कर बीमित राशि देने से मुकर जाती हैं और इस बारे में एक अच्छी सोच नहीं रखती है कि मृतक के परिवार वैसे ही सदमें में हैं और फिर भी त्वरित बीमा राशि प्राप्त नहीं होने पर उन्हें मामला मुकदमें में भटकने के लिए मजबूर किया जाता है। यह प्रकरण अनावेदक बीमा कंपनी की ऐसी ही कार्यवाही का एक ज्वलंत उदाहरण है, जहां मृतक और उसका परिवार ग्रामीण परिवेश के हैं, मृतक मात्र एक चालक था तथा उसका परिवार ऐसी स्थिति में नहीं था कि वह अनावेदकगण के विरूद्ध बीमित राशि अदा नहीं किये जाने के कारण मामला मुकदमें में भटकने का साहस और क्षमता रखता। निर्विवादित रूप से परिवादी मृतक की पत्नी है तथा अन्य परिवादीगण मृतक की माँ और नाबालिक पुत्री हैं और इसी तथ्य से यह कल्पना की जा सकती है कि किस प्रकार इन तीनों को बीमित राशि प्राप्त करने के लिए सन 2010 अर्थात् करीब पांच साल से एड़ी चोटी की दोड़ विभिन्न कार्यालय और न्यायालयों मंे लगानी पड़ रही है, जैसा कि प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि यह प्रकरण पहले इसी फोरम से निराकृत हुआ, फिर माननीय राज्य आयोग के समक्ष अपील की गई और परिवादीगण को तृतीय अपर मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में भी दावा करना पड़ा। इन सब परिस्थितियों में मृतक के परिवारजन की परेशानियों का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है और यह सोच का विषय हो जाता है कि क्या बीमा कम्पनियां बीमा दावा अदायगी में अत्यधिक तकनीकी बिन्दुओं का सहारा लेना उचित है?

(17) उपरोक्त साक्ष्य विवेचना से यह सिद्ध होता है कि अभिकथित दुर्घटना के फलस्वरूप ही मृतक को अत्यधिक गंभीर चोटें आई उसके सर्वाइकल स्पाईन में चोट पहुंची और अनेकोनेक दिनों तक सेक्टर-9 अस्पताल, भिलाई में जोकि एक ख्याति प्राप्त भिलाई इस्पात संयंत्र के अस्पताल है, में इलाज किया जाता रहा, मृतक का शरीर सुन्न हो गया, वह विकलांग हो गया और अन्ततः उसकी मृत्यु हो गई। हम अनावेदक के इन तर्कों से सहमत नहीं है कि मृतक की मृत्यु दुर्घटना के फलस्वरूप नहीं हुई। प्रकरण में संलग्न मेडिकल दस्तावेजों से जिनका वर्णन ऊपर किया गया है यह निरूपित किया जायेगा कि मृतक को जो भी चोटें आई वह दुर्घटना के फलस्वरूप थी और उन्हीं चोटों के चलते मृतक विकलांग हो गया और अन्ततः उसकी मृत्यु हो गई, क्योंकि सर्वाइकल स्पाईन की चोट से ही मृतक का शरीर सुन्न हो गया था तथा निश्चित रूप से वह ऐसी साधारण चोट नहीं थी कि उससे रिकव्हरी हो जाती, बल्कि एनेक्चर-15 के चिकित्सकीय दस्तावेजों में मृतक की हालत चिन्ताजनक (सीरियस) बताई गई है, अर्थात् मृतक की मृत्यु उसी दुर्घटना के फलस्वरूप आई चोटों के फलस्वरूप हुई है, मात्र इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर यह आसानी से निष्कर्षित किया जाता है कि मृतक को सर्वाइकल स्पाईन में घातक चोटें आई, जिसके कारण उसका लगातार इलाज हुआ और अन्ततः उसकी मृत्यु हुई।  अनावेदक को इस बिन्दु का लाभ नहीं दिया जा सकता है, चूंकि अपराध 279, 337 आई.पी.सी. के संबंध में चालान प्रस्तुत किया गया था, उसमें 304 ए. भारतीय दण्ड संहिता की धारा नहीं जोड़ी गई थी, या मृतक का निरंतर इलाज नहीं किया गया या मृतक को अस्पताल से डिस्चार्ज होने के सात माह पश्चात् उसकी मृत्यु हुई, हम अनावेदक के इन तर्कों से सहमत नहीं है, क्योंकि मृतक को चोटें आई थी वह सर्वाइकल स्पाईन की थी, मृतक का शरीर सुन्न हो गया था और उस स्थिति में एक ग्रामीण परिवार, जिसमें कोई भी पुरूष नहीं था, के लिए असीमित समय तक मृतक को अस्पताल में रखना संभव ही नहीं पाया जा सकता और न ही ऐसे परिवार को आर्थिक रूप से सम्पन्न पाया जा सकता है और उस स्थिति में जब सर्वाइकल स्पाईन की इंजुरी हो गई, शरीर सुन्न हो गया था तो आवश्यक नहीं है कि मृतक को अस्पताल में ही रखा जाता और तब ही अनावेदक यह निष्कर्षित करते की दुर्घटना में आई चोटों के कारण ही मृतक की मृत्यु कारित हुई, यह सोच का विषय है कि अनावेदक बीमा कपंनी अपनी मनःस्थिति ऐसी क्यों नहीं बनाती और यह स्थिति मानने और स्वीकार करने की भावना क्यों नहीं रखती कि जन सामान्य को ऐसी स्थितियों से जुझने के लिए कितना सामथ्र्य रहता है मात्र अस्पताल से डिसचार्ज हो जाने से यह उत्प्रेरण निकालना उचित नहीं है कि उसकी चोंटे ठीक हो गयी और उसकी मृत्यु उक्त दुर्घटना में आयी चोटों के फलस्वरूप नहीं थी।

(18) जब मृतक का शरीर सुन्न हो गया था तो उसे लगातार अस्पताल में रखा जाना यदि संभव और आवश्यक नहीं था और उसे घर ले आया गया, तब इस स्थिति में भी मृतक को आई चोटों के आधार पर अनावेदक बीमा कंपनी इन छोटे-छोटे बचाव का लाभ प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है, जबकि जिला अस्पताल के डाॅक्टरों ने ही एनेक्चर-12 अनुसार यह शपथ पत्र दिया है कि मृतक को 90 प्रतिशत विकलांगता स्थायी रूप से आई थी, एनेक्चर-13 अनुसार अनिल देवांगन ने भी शपथ पत्र दिया है कि मृतक दि.26.07.2009 की सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हुआ था, सेक्टर-9 अस्पताल में कई दिनों तक भर्ती रहा था, वह 90 प्रतिशत विकलांग हो गया और दि.29.10.2010 को गंभीर सड़क दुर्घटना के कारण मृतक की मृत्यु हो गई। फलस्वरूप हम यह निष्कर्षित करते है कि मृतक की मृत्यु अभिकथित सड़क दुर्घटना के कारण ही हुई थी और बीमा पाॅलिसी के अंतर्गत परिवादीगण बीमा राशि अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी से प्राप्त करने के अधिकारी है। 

(19) परिवादीगण द्वारा अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी से अनुतोष चाहा गया है, अनावेदक क्र.1 से नहीं, फलस्वरूप अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध परिवाद निरस्त किया जाता हैं।

(20) फलस्वरूप उपरोक्त साक्ष्य विवेचना के आधार पर अनावेदक क्र.2 द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-

(1)           देवंती देवी विरूद्ध नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य प्ट (2011) सी.पी.जे. 684 (एन.सी.)

का लाभ दिया जाना उचित नहीं पाते हैैं और परिवादी द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-

(1)           नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड विरूद्ध श्री मधुसुदन दास 2011 (2) सी.पी.आर. 16 (एन.सी.)

का लाभ देते हैं।

(21) फलस्वरूप हम परिवादीगण का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी, परिवादीगण को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-

(अ)    अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी, परिवादीगण को बीमा दावा राशि 5,00,000रू. (पांच लाख रूपये) अदा करे।

(ब)    अनावेदक क्र.2, परिवादीगण को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दिनांक 01.10.2010 से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।

(स)    अनावेदक क्र.2, परिवादीगण को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करे।

 
 
[HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर्]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. शुभा सिंह]
MEMBER

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