प्रकरण क्रमांक 324/2012
दायर दिनाँक 26.10.2012
विसनाथ सिंह साहू आ. स्व. जत्ती राम साहू, निवासी-क्वा.नं.6/बी., सड़क एवेन्यु/ए, सेक्टर 6, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
1. आर.एन.आर. बिल्डर्स, द्वारा-शाखा प्रबंधक, आफिस-छाया गार्डन रोड, प्रगति नगर, रिसाली, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
2. के.जी.राव आ. के.टी.राव, निवासी-1065/एम.आई.जी.01, आमदी नगर, हुडको, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 13 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण से संपूर्ण राशि 13,50,000रू. या विकल्प में मकान का संपूर्ण कार्य दो माह में पूर्ण कर तथा शेष राशि 2,72,000रू. प्राप्त कर कब्जा सौंपे, मानसिक कष्ट हेतु 1,50,000रू., इकरारनामा दि.17.10.2010 के अनुसार प्लींथ तक के कार्य के एवज में प्राप्त की गई राशि 2,70,000रू. दिलायी जावे, इकरारनामा दि.31.10.2011 के शर्तों के अनुसार अनावेदकगण से किराये की राशि 5,000रू. प्रतिमाह, अधिवक्ता शुल्क, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण में स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी एवं अनावेदक क्र.2 के मध्य दि.17.102.010 को अनुबंध पत्र निष्पादित हुआ था।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा अनावेदक क्र.2 के छोटे भाई स्व. जोगेन्दर राव के माध्यम से आवासी भूमि कुल 2000 वर्गफिट क्रय किया था। परिवादी के द्वारा उक्त भूमि पर मकान निर्माण करवाने हेतु जोगेन्दर राव को ठेका दिया, लेकिन जोगेन्दर राव के आकस्मिक निधन हो जाने के कारण उनके द्वारा मात्र प्लींथ लेबल का काम ही किया जा सका था। प्लींथ लेवल तक के कार्य का संपूर्ण भुगतान स्व.जोगेन्द राव को परिवादी द्वारा दिया जा चुका था। जोगेन्दर राव की मृत्यु पश्चात् अनावेदक क्र.1 के द्वारा संपूर्ण मकान पूर्ण साज सज्जा के साथ सौंपने का आश्वासन परिवादी को दिया गया तथा अनावेदक क्र.2 द्वारा दि.17.10.2010 को एक इकरारनामा निष्पादित किया गया, जिसके तहत परिवादी को कुल 13,50,000रू. में एक डबल मंजिल मकान बना कर दिया जाना था। पुनः अनावेदकगण के द्वारा दि.31.10.2011 को एक अलग इकरारनामा निष्पादित किया गया, जिसके तहत परिवादी को मात्र 2,72,000रू. प्रदान करना था। 2,72,000रू. में से प्लास्टर का कार्य पूर्ण होने के पश्चात् 1,72,000रू. प्रदान करना था तथा शेष 1,00,000रू. मकान पूर्ण होने पर भुगतान करना था। इकरारनामा की शर्तो के तहत दि.15.12.2011 तक मकान पूर्ण कर परिवादी को नहीं सौंपा गया तो अनावेदकगण, परिवादी को 5,000रू. प्रतिमाह की दर से किराये की राशि अदा करेगा। परिवादी के द्वारा प्लींथ लेवल तक के काम की शुरूआत में 1,10,000रू. का भुगतान किया तथा इसके पश्चात् पुनः 02.11.2010 को कुल 40,000रू. का नगद भुगतान किया गया तथा भारतीय स्टेट बैंक शाखा, सेक्टर-1 से आवास ऋण प्राप्त कर परिवादी के द्वारा अनावेदकगण को दि.04.01.2011 को कुल 3,00,000रू. का चेक के माध्यम से भुगतान किया गया। दि.31.10.2011 को निष्पादित इकरारनामा के अनुसार परिवादी को मात्र 2,72,000रू. का भुगतान किया जाना है, लेकिन अभी भी मकान का बहुत सारा कार्य अनावेदकगण के द्वारा विधि विरूद्ध तरीके से रोक दिया गया है।
(4) परिवाद इस आशय का भी प्रस्तुत है कि दि.31.10.11 के इकरारनामा में स्पष्ट कर दिया गया था कि अनावेदकगण के द्वारा बीच में कार्य रोक दिये जाने के कारण कुल 1,88,000रू. का कार्य कराया गया था। अनावेदकगण के द्वारा परिवादी के मकान पर शेष संपूर्ण कार्य पूर्ण नहीं किये जाने पर परिवादी के द्वारा एक अर्कीटेक्ट के द्वारा शेष बचे कार्य के संबंध में एक एस्टीमेट प्रमाण पत्र दिनांक 17.09.2012 प्राप्त किया गया।
(5) परिवाद दावा इस आशय का भी प्रस्तुत है कि परिवादी द्वारा विभिन्न दिनांक को अनावेदकगण से मिलकर शेष कार्यों को पूर्ण करने हेतु निवेदन किया, इसके विपरीत अनावेदक क्र.2 के द्वारा परिवादी के साथ बदतमीजी की, अनावेदकगण लगभग 95 से 98 प्रतिशत तक संपूर्ण राशि प्राप्त करने के उपरांत बहुत सारे कार्य करने से इंकार कर रहा है। इस प्रकार अनावेदकगण, परिवादी से 10,78,000रू. प्राप्त करने के पश्चात् संपूर्ण कार्य करने हेतु उत्तरदायी है। अनावेदकगण कुल 13,50,000रू. की राशि में से 10,78,000रू. परिवादी से प्राप्त कर चुके हैं। परिवादी वर्तमान में शेष बचे 2,72,000रू. का भुगतान करने को तत्पर है। स्व.जोगेन्दर राव के द्वारा प्लींथ लेवल का संपूर्ण कार्य कर दिया गया था, लेकिन अनावेदकगण के द्वारा दि.17.10.2010 के इकरारनामा में पुनः प्लीथ का कार्य हेतु 2,70,000रू. जोड़कर कुल 13,50,000रू. प्राप्त करने का कोशिश कर रहा है, जबकि परिवादी, इकरारनामा में वर्णित प्लींथ का 2,70,000रू. अनावेदकगण से प्राप्त करने का अधिकारी है। दि.17.08.2012 को परिवादी के द्वारा विधिक सूचना प्रेषित किया गया, लेकिन उसके बावजूद भी अनावेदकगण द्वारा पूरा कार्य नहीं किया जा रहा है न ही इकरारनामा के अनुसार प्राप्त राशि को वापस कर रहा है। अनावेदकगण को उपरोक्त कृत्य सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अनावेदकगण से संपूर्ण राशि 13,50,000रू. दिलायी जावे या विकल्प में अनावेदकगण को निर्देशित किया जाये कि वे मकान का संपूर्ण कार्य दो माह के अंदर पूरा कर तथा शेष 2,72,000रू. प्राप्त कर मकान पूर्ण कर परिवादी को मकान का कब्जा सौंपे, मानसिक क्षतिपूर्ति राशि 1,50,000रू., इकरारनामा दि.17.10.2010 के अनुसार प्लींथ तक के कार्य के एवज में प्राप्त राशि 2,70,000रू. अनावेदकगण से दिलवायी जाये, इकरारनामा दि.31.10.2010 के अनुसार अनावेदकगण से 5,000रू. प्रतिमाह की दर से किराये की राशि एवं अधिवक्ता शुल्क, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावा:-
(6) अनावेदकगण का जवाबदावा सारांश में इस प्रकार है कि परिवादी एवं अनावेदकगणों के मध्य रकब 2000 वर्गफिट में दो मंजिला भवन निर्माण करवाने हेतु अनुुबंध दि.17.10.2010 को निष्पादित हुआ था, जिसमें प्लींथ का कार्य भी शामिल था, जिसके अनुसार अनावेदकगण के द्वारा कुल 13,50,000रू. मे परिवादी का भवन निर्माण कार्य कर के दिया जाना था। परिवादी के द्वारा दि.31.10.11 का इकरारनामा अनावेदक क्र.2 के हिसाब में गडबड़ी करते हुए उसे दिग्भ्रमित करते हुए निष्पादित कराया गया है एवं कालांतर में जब अनावेदक क्र.2 के द्वारा हिसाब किया गया, तब उसे यह ज्ञात हुआ कि उसे परिवादी से 6,00,000रू लेना शेष है, परंतु अनुबंध में 2,72,000रू. भुगतान किया जाना उल्लेखित है। परिवादी के द्वारा मकान के स्वीकृत नक्शे के अलावा भवन के दोनों तलों पर 300-300 वर्गफीट अनुबंध से अतिरिक्त निर्माण कार्य कराया गया है। परिवादी के द्वारा कथित रूप से 1,80,000रू के करवाए गए कार्यों का अनावेदकगणो के अनुबंध में उल्लेखित कार्यो से कोई संबंध नहंी है। उक्त कार्य अनुबंध की परिधि से बाहर जाकर अतिरिक्त साज-सज्जा के सामान लगाने एवं पुटिंग, फिनिशिंग एवं पेटिंग के मद में किया गया है। परिवादी के द्वारा अन्य मजदूरों से कराए गए कार्यो को अनुबंध में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। परिवादी के द्वारा प्रस्तुत आर्कीटेक्ट की रिपोर्ट असत्य आधार पर प्रस्तुत की गई है। प्रस्तुत वाद का निराकरण दस्तावेजों एवं मौखिक साक्ष्य के आधार पर संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन के व्यवहार वाद से कराया जाना संभव है, जिसे निराकृत करने का एकमात्र क्षेत्राधिकार सक्षम व्यवहार न्यायालय को है। प्रस्तुत प्रकरण का निराकरण विस्तृत साक्ष्य लिए बगैर किया जाना संभव नहीं होने से परिवादी के द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।
(7) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी अपने संतोष अनुसार अभिकथित भवन का दो माह के भीतर कब्जा अनावेदकगण से प्राप्त करने, अन्यथा स्थिति में परिवादी, अनावेदकगण से राशि 10,78,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदकगण से किराये की क्षतिपूर्ति राशि दि.31.10.2011 से 5,000रू. प्रतिमाह की दर से प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. क्या परिवादी, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज में 1,50,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
4. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(8) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(9) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादी ने अनावेदक क्र.2 के भाई को पहले निर्माण कार्य का ठेका दिया था, परंतु अनावेदक क्र.2 के भाई की मृत्यु हो गई और उस समय तक प्लींथ लेवल तक का ही काम किया गया था, तत्पश्चात् अनावेदक क्र.2 ने परिवादी से ठेके पर निर्माण का कार्य लिया।
(10) अनावेदक क्र.2 का तर्क है कि जब उसने परिवादी से ठेके पर काम लिया तो प्लींथ नहीं बनी थी और इसीलिए एनेक्चर-ए.1 का प्लींथ के संबंध में भी अनुबंध हुआ था, जबकि परिवादी का तर्क है कि अनावेदक क्र.2 के भाई ने प्लींथ लेवल तक का काम किया है।
(11) अनावेदक द्वारा ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है कि जब उसने काम चालू किया तो खाली भूमि थी और उसपर कोई कार्य नहीं किया गया था, जबकि परिवादी ने एनेक्चर ए.3 की नोटिस अनावेदक क्र.2 को भी दी है, जिसमें यह उल्लेख किया है कि अनावेदक क्र.2 के भाई द्वारा 2008 से काम चालू कर दिया गया था, बोर खन्नन और मकान के नींव का काम पूरा किया गया था, फिर 2010 में अनावेदक क्र.2 के भाई की मृत्यु हुई और तीन महीने बाद अनावेदक क्र.2 ने भवन निर्माण कार्य पूर्ण करने का वादा किया, तब दि.17.10.2010 को एनेक्चर ए.1 का अनुबंध हुआ, अर्थात् अभिकथित भूमि पर 2008 में ही काम चालू हो गया था, जब 2008 में काम चालू हो गया था तो यह माना ही नहीं जा सकता है कि अनावेदकगण को भूमि निर्माण हेतु बिलकुल खाली बिना निर्माण कार्य शुरू हुये प्राप्त हुई थी, इस स्थिति में हम अनावेदकगण का तर्क कि प्लींथ का काम उन्होंने किया था, स्वीकार योग्य नहीं पाते हैं।
(12) एनेक्चर ए.1 के अनुसार निर्माण कार्य दि.15.12.2011 तक होना था और अन्यथा स्थिति में परिवादी 5,000रू. प्रतिमाह अनावेदकगण से पाने का अधिकारी था।
(13) एनेक्चर ए.1 के अवलोकन से कहीं भी यह सिद्ध नहीं होता है कि अनावेदकगण ने प्लींथ का निर्माण कार्य किया है। पक्षकारों के मध्य एक और अनुबंध एनेक्चर ए.2 दि.31.10.2011 का संलग्न है, जिसमें दि.15.12.2011 तक निर्माण कार्य पूर्ण होने की तारीख तय हुई है और परिवादी द्वारा अनावेदकगण को कुल 10,78,000रू. अदा कर दिये जाने का उल्लेख है। इस दस्तावेज के खण्डन में अनावेदक द्वारा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है अर्थात् एनेक्चर ए.2 से यह सिद्ध होता है कि दि.31.10.2011 तक परिवादी ने अनावेदकगण को 10,78,000रू. अदा कर दिये थे, जबकि निर्माण की कुल लागत अनुबंध अनुसार 13,50,000रू. तक हुई थी, अर्थात् केवल 2,72,000रू. ही अदा करने शेष थे, जिसके अनुपात में अनावेदकगण ने कितना निर्माण कार्य किया गया, इस संबंध में साक्ष्य विवेचना आवश्यक है, यदि हम अनावेदक द्वारा प्रस्तुत निर्माण कार्य की फोटोग्राफ का ही अवलोकन करें तो उसी से स्वमेय सिद्ध हो जायेगा कि अनावेदकगण ने इतनी बड़ी राशि जो उन्होंने दि.31.10.2011 तक प्राप्त कर ली थी, उसके अनुपात में निर्माण कार्य नहीं किया और इस कारण हम परिवादी के तर्को से सहमत है कि अनावेदकगण ने इतनी बड़ी राशि लेकर बहुत सारा निर्माण कार्य विधि विरूद्ध तरीके से रोक दिया, जो कि निश्चित रूप से अनावेदकगण की घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करता है। निर्माण कार्य रोकने के संबंध में अनावेदकगण ने कोई भी संतोषप्रद स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया है। अनावेदकगण ने यह तर्क किया है कि जब बाद में उन्होंने हिसाब लगाया तो परिवादी के विरूद्ध 2,72,000रू. शेष नहीं निकल कर 6,00,000रू. निकल रहे थे, जबकि इस संबंध में अनावेदकगण ने विस्तृत विवरण प्रस्तुत ही नहीं किया है कि 6,00,000रू. किस प्रकार निकल रहे थे, जबकि प्रकरण में संलग्न फोटोग्राफ प्रथम दृष्टया यह सिद्ध कर देती है कि निर्माण कार्य बिलकुल अधूरा था।
(14) जब कोई व्यक्ति इतनी बड़ी लागत लगाकर मकान निर्माण कार्य करता है और बीच में ही ठेकेदार द्वारा काम रोक दिया जाता है और समयावधि में कार्य पूरा नहीं किया जाता है तो व्यक्ति हर प्रयास करेगा कि उसके भवन का निर्माण कार्य शीघ्र पूरा हो, जिससे वह उसमें निवास कर सके, वह इस बात का सालो साल रास्ता नहीं देखेगा कि ठेकेदार ने यदि निर्माण कार्य नहीं किया है तो भवन अर्द्ध निर्मित अवस्था में पड़ा रहे, इसीलिए स्वाभाविक है कि वह किसी अन्य ठेकेदार से निर्माण कार्य करायेगा, जिससे यथा संभव शीघ्र मकान पूर्ण निर्मित हो, परिवादी द्वारा तर्क किया गया है कि उसने 1,88,000रू. का कार्य अन्य निर्माणकर्ता से पूर्ण कराया, जिसके संबंध में एनेक्चर ए.1 अनुबंध में उल्लेख किया गया है और जिसके संबंध में परिवादी ने दस्तावेज भी पेश किये हैं। इस अनुबंध एनेक्चर ए.1 के खण्डन में अनावेदकगण द्वारा न ही कोई साक्ष्य प्रस्तुत की गई है और न ही यह संतोषप्रद स्पष्टीकरण दिया गया है कि जब एनेक्चर ए.1 के अनुबंध में 1,88,000रू. परिवादी ने व्यक्तिगत रूप से साहू जी के नाम से इंद्राज किया है तो उस समय अनावेदकगण द्वारा आपत्ति क्यों नहीं ली गई। अतः यही माना जायेगा कि परिवादी को इतनी बड़ी राशि अनावेदकगण को देने के बाद भी 1,88,000रू. स्वयं के द्वारा अन्य व्यक्ति से काम कराने हेतु इसलिए देने पड़े, क्योंकि परिवादी अनावेदकगण द्वारा काम बंद कर दिये जाने के कारण हताश हो गया था और वह शीघ्रातिशीघ्र निर्माण कार्य पूरा कराना चाहता था, क्योंकि उसने जहां एक ओर एनेक्चर ए.8 द्वारा बैंक से हाऊस लोन लिया था, वहीं उसे किराये के संबंध में भी नुकसानी उठानी पड़ रही थी और यह सब स्थिति अनावेदकगण के द्वारा निराधार रूप से निर्माण कार्य रोकने के कारण कारित हुई, जो कि निश्चित रूप से अनावेदकगण के विरूद्ध घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करता है, जबकि पक्षकारों के मध्य एनेक्चर-2 के अनुबंध में भी मकान पूर्ण होने की तिथि 15.12.2011 तय थी और एनेक्चर ए.1 में भी अनावेदकगण ने यह टीप डाली थी कि यदि दि.15.12.2011 तक निर्माण कार्य नहीं होगा तो परिवादी प्रतिमाह 5,000रू. किराये के रूप में प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
(15) परिवादी द्वारा अनावेदकगण को दी गई नोटिस एनेक्चर ए.3 की कंडिका-6 में अधूरे कार्य का विवरण दिया है, जोकि परिवादी द्वारा प्रस्तुत अखण्डित फोटोग्राफ से प्रथम दृष्टया ही सिद्ध हो जाती है और इस स्थिति में अनावेदक द्वारा प्रस्तुत एनेक्चर डी.1 आर्कीटेक्ट एस.के.बाघमार की रिपोर्ट से अनावेदकगण को कोई लाभ नहीं मिलता है।
(16) अनावेदकगण ने ऐसा कोई संतोषप्रद कारण साक्ष्य में सिद्ध नहीं किया है कि उनके द्वारा समयावधि में निर्माण कार्य पूर्ण क्यों नहीं कराया गया, जबकि अनावेदकगण ने प्लींथ लेवल से काम चालू कराया था, तब अनावेदकगण को प्लींथ लेवल वाली राशि 2,70,000रू. को जोड़ना ही नहीं था और यदि ऐसा अनावेदकगण ने किया है तो वे घोर व्यवसायिक दुराचरण के दोषी हैं।
(17) अनावेदकगण ने कहीं भी सिद्ध नहीं किया है कि परिवादी ने अनावेदकगण से अनुबंध के अतिरिक्त कार्य कराया है, अनावेदकगण ने अपने जवाबदावा के विशेष कथन में यह उल्लेख किया है कि परिवादी ने भवन के दोनों तलों पर तीन-तीन सौ वर्गफिट का अतिरिक्त निर्माण कार्य कराया था, परंतु उक्त संबंध में कोई संतोषप्रद साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है, जब कि परिवादी ने 1,88,000रू. का निर्माण कार्य स्वयं अपने खर्च से अलग से करवाना सिद्ध किया है, जिसके संबंध में उपरोक्तानुसार साक्ष्य विवेचना की जा चुकी है।
(18) यदि परिवादी को दुर्भावनापूर्वक रकम देने से बचने का आशय होता तो वह यह स्वीकार नहीं करता कि वह अनावेदकगण को निर्माण की उक्त स्थिति में 2,72,000रू. देने का जिम्मेदार है, जबकि परिवादी ने यह अभिकथन किया है कि परिवादी, अनावेदकगण को अभी भी 2,72,000रू. का भुगतान करने को तत्पर है, यदि अनावेदकगण मकान का पूरा निर्माण कार्य दो माह के अंदर सम्पन्न कराते हैं, जबकि अनावेदकगण ने अपने जवाबदावा में मकान निर्माण पूर्ण करने का इरादा ही अभिकथन नहीं किया है। अतः यही माना जाता है कि अनावेदकगण, परिवादी से अनाधिकृत रूप से ज्यादा रकम की मांग करने के आशय से निर्माण कार्य को समयावधि में पूर्ण नहीं किये और इतनी बड़ी राशि प्राप्त करने के पश्चात् भी उसके अनुपात में निर्माण कार्य नहीं कर अवैधानिक रूप से निर्माण कार्य रोक दिया, फलस्वरूप अनावेदकगण सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण के दोषी पाये जाते हैं।
(19) यह सामाजिक चेतना का विषय है कि क्या निर्माणकर्ता को इतनी छुट दी जा सकती है कि वे जन साधारण की इतनी मोटी रकम इतनी लम्बे समय से अपने पास रखे और उसपर गंभीरता से कार्यवाही नहीं करे, जबकि अनावेदक को निर्माण कार्य सम्पन्न करने में त्वरित कार्यवाही करनी थी जो कि अनावेदक ने सिद्ध नहीं किया है।
(20) जब कोई व्यक्ति यदि इतनी मोटी रकम मकान के लिये देता है, और उसे कब्जा प्रदान नहीं किया जाता और उसके मकान का निर्माण कार्य रोक दिया जाता है, निश्चित रूप से यह स्थिति परिवादी के लिए घोर मानसिक वेदना का कारण बनी, जिसके एवज में यदि परिवादी ने अनावेदकगण से 1,50,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं माना जा सकता है।
(21) फलस्वरूप हम परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हैं और यह आदेश देते हैं कि:-
(अ) अनावेदकगण अभिकथित निर्माण कार्य को दो माह के अंदर परिवादी के संतोष अनुसार पूर्ण कर परिवादी से 2,72,000रू. (दो लाख बहत्तर हजार रूपये) प्राप्त कर, उक्त भवन का कब्जा परिवादी को सौंपेंगे, अन्यथा स्थिति में अनावेदकगण संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से परिवादी को 10,78,000रू. (दस लाख अठहत्तर हजार रूपये) अदा करेंगे।
(ब) अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दि.26.10.12 से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को किराये की क्षतिपूर्ति राशि दि.31.10.2011 से परिवाद प्रस्तुती दिनांक 26.10.2012 तक 5,000रू. (पांच हजार रूपये) प्रतिमाह की दर से अदा करेंगे।
(द) अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 1,50,000रू. (एक लाख पचास हजार रूपये) अदा करेंगे।
(इ) अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करेंगे।