Chhattisgarh

Durg

CC/10/384

जसविंदर सिं‍ग पाबला - Complainant(s)

Versus

एच डी एफ सी जनरल इंश्‍योरेस - Opp.Party(s)

प्रभात पाण्‍डेय

16 Mar 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/10/384
 
1. जसविंदर सिं‍ग पाबला
नेहरू नगर सुपेला भिलाई
दुर्ग
छ0ग0
...........Complainant(s)
Versus
1. एच डी एफ सी जनरल इंश्‍योरेस
देवेन्‍द्र नगर रायपुर
रायपुर
छ0ग0
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. MAITREYI MATHUR PRESIDENT
 HON'BLE MRS. SHUBHA SINGH MEMBER
 
For the Complainant:प्रभात पाण्‍डेय, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                   प्रकरण क्र.सी.सी./10/384

                                                                                                   प्रस्तुती दिनाँक 11.11.2010

जसविंदर सिंह पाबला आ.जगदीश सिंह पाबला, उम्र. 37 वर्ष, निवासी- प्रोफेसर कालोनी, 19/969, नेहरू नगर (वेस्ट), सुपेला, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग)                            - - - -     परिवादी

 

विरूद्ध

1.             एच.डी.एफ.सी. इरगो, जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, चावला काम्पलेक्स, 3 मंजिल देवेन्द्र नगर, रोड, साई नगर, रायपुर (छ.ग.)

2.             क्लेम मैनेंजर, (वेस्ट), एच.डी.एफ.सी. इरगो, जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, 6 वीं मंजिल, लीला बिजनेस पार्क, अंधेरी कुरला रोड, अंधेरी ईस्ट, मुंबई (महाराष्ट्र) पिन कोड-400059

                                                                                                                - - - -      अनावेदकगण

आदेश

(आज दिनाँक 16 मार्च 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

                                परिवादी द्वारा अनावेदकगण से बीमा दावा राशि 3,94,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।

                                (2) प्रकरण में स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा परिवादी के अभिकथित वाहन का बीमा किया गया।              

परिवाद-

                                (3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने अपनी महेन्द्रा बुलेरो वाहन का बीमा अनावेदक बीमा कंपनी से दि.05.11.2009 से दि.04.11.2010 तक के लिए कराया गया था। अनावेदक के द्वारा वाहन का मूल्य 3,94,000रू. निर्धारित कर राशि 16,907रू. प्रीमियम के रूप में ली गई थी। परिवादी का बीमित वाहन दि.10.11.2009 की रात्रि को उसके निवास के सामने से चोरी हो गई, जिसकी सूचना तत्काल टेलीफोन के माध्यम से दी गई थी, तथा स्थानीय पुलिस थाना सुपेला में दि.11.11.2009 को प्रथम सूचना दर्ज कराई गई। परिवादी के वाहन का पुलिस द्वारा खात्मा कर दिए जाने के बाद समस्त आवश्यक दस्तावेजों के साथ दावा अनावेदक कंपनी को भेजा गया, जिसे अनावेदक क्र.2 द्वारा दि.15.02.10 के पत्र के माध्यम से बिना किसी वैध आधार के निरस्त कर दिया गया। परिवादी ने अपने वाहन का बीमा कराते समय अनावेदक के एजेंट को कोई पूर्व पाॅलिसी नहीं दी थी, क्यांकि पूर्व पालिसी काफी समय पहले ही समाप्त हो चुकी थी। अनावेदक ने परिवादी के उक्त वाहन की बीमा पालिसी अनावेदक जारी की गई थी। बीमा कंपनी द्वारा बिना किसी वैध कारण के परिवादी का दावा खारिज कर दिया गया। अतः परिवादी को अनावेदक बीमा कंपनी से बीमा दावा राशि 3,94,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।

जवाबदावाः-

                                (4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी ने अनावेदक बीमा कपंनी से बीमा पालिसी लेने हेतु पूर्व की बीमा पालिसी जो कि चोला मण्डलम जनरल इंश्योरेंस की पालिसी प्रस्तुत की थी, जिसके आधार पर अनावेदक बीमा कंपनी ने नई बीमा पालिसी जारी की थी। परिवादी ने अनावेदक को वाहन चोरी की तत्काल सूचना नहीं दी, बल्किघटना के दो माह पश्चात् वाहन चोरी होने की सूचना दी गई। परिवादी के द्वारा दुर्घटना की सूचना दिए जाने के पश्चात अंवेषक के माध्यम से चोला मण्डलम जनरल इंश्योरेंस कंपनी की पालिसी का सत्यापन कराया गया तो उक्त पालिसी फर्ज़ी निकली। इस प्रकार परिवादी ने बीमा के परम सिद्धांत के सदभाव का उल्लंघन किया। बीमा पालिसी लेने हेतु झूठे तथ्यों एवं दस्तावेजों का सहारा लिया था, जिसके कारण बीमा पाॅलिसी आरंभ से ही शून्य है। परिवादी किसी तरह का अनुतोष नहीं पा सकता। परिवादी ने झूठे तथ्यों का सहारा लेकर बीमा कराया जो बीमा पालिसी की शर्त क्र.8 का उल्लंघन है और वाहन चोरी होने की तत्काल सूचना न दिया जाना शर्त क्र.1 का उल्लंघन किया है। अतः दावा भुगतान योग्य न होने के कारण दि.15.02.2010 को निरस्त कर अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा सेवा में कमी नहीं की गई है। अतः परिवादी का आवेदन सव्यय निरस्त कर दिया गया।

                                (5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादी, अनावेदकगण से बीमा दावा राशि 3,94,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है?              नहीं

2.             क्या परिवादी, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज में 50,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है?             नहीं

3.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?           आदेशानुसार परिवाद खारिज

 

निष्कर्ष के आधार

                                (6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

                                (7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदकगण ने यह बचाव लिया है कि परिवादी को अभिकथित बीमा पाॅलिसी पूर्व में चोला मण्डलम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की पाॅलिसी, जिसे परिवादी ने अनावेदक को दिया था के आधार पर किया था और जब उक्त चोला मण्डलम वाली पाॅलिसी का सत्यापन कराया गया तो पाया गया कि उक्त पालिसी फर्ज़ी थी, इस प्रकार परिवादी ने छूठे तथ्यों का सहारा लिया, जिसके कारण अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा जारी बीमा पालिसी प्रारंभ से ही शून्य थी, अनावेदक बीमा कंपनी का यह भी बचाव है कि परिवादी ने वाहन चोरी की सूचना तत्काल अनावेदक बीमा कंपनी को नहीं दी जो कि बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन था।

(8) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह भी पाते हैं कि एनेक्चर-2 अनुसार अनावेदक बीमा कंपनी ने परिवादी को सूचित किया है कि अभिकथित चोला मण्डलम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि. की पालिसी एनेक्चर डी.2 बाद में फर्ज़ी पाई गई है। एनेक्चर डी.3 से यह सिद्ध होता है कि अभिकथित चोला मण्डलम की पालिसी एनेक्चर डी.2 किसी के नाम से जारी नहीं हुई है। परिवादी ने इस संबंध में कोई भी संतोषप्रद स्पष्टीकरण नहीं दिया है और न ही इन दस्तावेजों का खण्डन किया है। परिवादी ने इस प्रकरण में अभिकथित चोला मण्डलम बीमा कंपनी द्वारा जारी कोई शपथ पत्र प्रस्तुत किया है कि किन परिस्थितियों में चोला मण्डलम की पालिसी एनेक्चर डी.2 फर्ज़ी पाई गई, वस्तुतः परिवादी चोला मण्डलम की पालिसी एनेक्चर डी.2 के संबंध में बिल्कुल मौन है, जिससे यही सिद्ध होता है कि परिवादी स्वच्छ हाथों से न्याय मांगने नहीं आया है, फलस्वरूप मात्र इसी आधार पर हम परिवादी का दावा स्वीकार योग्य नहीं पाते हैं, फलस्वरूप परिवादी का दावा खारिज करते हैं।

(9) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।

 
 
[HON'BLE MRS. MAITREYI MATHUR]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. SHUBHA SINGH]
MEMBER

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